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कॉन्सेप्ट कार्ड
मानव श्वसन तंत्र
- अंतःश्वसन की प्रक्रिया द्वारा ऑक्सीजन समृद्ध वायु सबसे पहले नथुनों (Nostrils) से होती हुई नासागुहा (Nasal Cavity) में पहुँचती है, तत्पश्चात् श्वास नली से होकर फेफड़ों (फुफ्फुस) में पहुँचती है। फेफड़े, वक्षगुहा (Chest Cavity) में स्थित होते हैं। पार्श्व में पसलियों (Ribs) से घिरी रहने वाली वक्षगुहा को डायफ्रॉम (Diaphragm) नामक एक बड़ी पेशीय परत आधार प्रदान करती है।
- अंतःश्वसन के दौरान पसलियों की गति ऊपर एवं बाहर की ओर और डायफ्रॉम की नीचे की ओर से वक्षगुहा का आयतन बढ़ जाता है तथा फेफड़े वायु से भर जाते हैं।
- उच्छ्वसन के दौरान पसलियों के नीचे एवं अंदर की ओर और डायफ्रॉम के ऊपर की ओर यानी अपनी पूर्व स्थिति में आने से वक्षगुहा का आयतन कम हो जाता है तथा वायु फेफड़ों से बाहर धकेल दी जाती है।
- फेफड़ों द्वारा अंतःश्वसित वायु में ऑक्सीजन 21% एवं कार्बन डाइऑक्साइड 0.04% जबकि उच्छ्वसित वायु में ऑक्सीजन 16.4% एवं कार्बन डाइऑक्साइड 4.4% होती है। इस प्रकार, साँस लेने और छोड़ने दोनों ही क्रियाओं से संबद्ध वायु ‘गैसों का मिश्रण’ होती है।
- उच्छ्वसित वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षाकृत अधिक मात्रा रहने के कारण यदि हम चूने के पानी से एक-तिहाई भरी परखनली में कॉर्क की सहायता से डाले गए स्ट्रॉ (नली) के बाहरी सिरे में मुंह से धीरे-धीरे फूंक मारें तो चूने का रंग दूधिया होने लगता है।
- यदि हम दर्पण के सम्मुख उच्छ्वास करें तो पाते हैं कि दर्पण की सतह धुंधली हो जाती है। ऐसा होने का कारण है- उच्छ्वास के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड के साथ छोड़े गए जलवाष्प का दर्पण की सतह पर टकराकर ठहर जाना।
- हम गहरी साँस लेने और छोड़ने के दौरान मापन फीते से वक्ष की अलग-अलग माप प्राप्त कर यह समझ सकते हैं कि कैसे साँस भरते समय हमारी वक्षगुहा फैलती है और साँस छोड़ते समय सिकुड़ती है।
- अंतःश्वसन के दौरान हमारी नासागुहा के रोम धूम्र, धूल, परागकण आदि को रोकने का कार्य करते हैं। किंतु कभी-कभी ये कण जब नासागुहा के पार चले जाते हैं तो गुहा की कोमल परत में उत्तेजना आने से हम छींकने लगते हैं और छींकने के क्रम में ये अवांछित कण वायु के साथ बाहर फेंका जाते हैं।
- छींकते समय हमें नाक को रूमाल से ढक लेना चाहिये ताकि नासागुहा द्वारा बाहर निकाले गए कण अन्य लोगों द्वारा अंतःश्वसन के रूप में ग्रहण न किया जा सके।
- धूम्रपान फेफड़ों को न सिर्फ क्षति पहुंचाता है बल्कि यह कैंसर जैसे खतरनाक रोगों का कारण भी बनता है, अतः हमें धूम्रपान से हर हाल में बचना चाहिये।
- परंपरागत श्वसन व्यायाम अर्थात् प्राणायाम से हमारे फेफड़े स्वस्थ और मज़बूत रहते हैं, फलस्वरूप हमारी कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ जाती है और हमें पर्याप्त ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
यौगिक (Compounds)
- वह पदार्थ जो दो या दो से अधिक तत्त्वों के नियत अनुपात में रासायनिक तौर पर संयोजन से बना होता है, ‘यौगिक’ कहलाता है।
- उदाहरण- पानी, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन तत्त्वों के नियत अनुपात में रासायनिक संयोजन से बनता है। इसी प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड, अमोनिया इत्यादि यौगिक हैं।
- यौगिकों को मुख्यतः दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है-
- कार्बनिक यौगिक (Organic Compound)
- अकार्बनिक यौगिक (Inorganic Compound)
- कार्बनिक यौगिक- जिन यौगिकों का मुख्य घटक कार्बन होता है और कार्बन, हाइड्रोजन के साथ जुड़ा है, वे ‘कार्बनिक यौगिक’ कहलाते हैं। उदाहरण- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, तेल, मोम आदि।
- अकार्बनिक यौगिक- वे यौगिक जिनका मुख्य घटक कार्बन नहीं है, विशेषतः कार्बन हाइड्रोजन बंध अनुपस्थित होता है, ‘अकार्बनिक यौगिक’ कहलाते हैं। ये यौगिक अजैविक स्रोतों, जैसे- चट्टानों, खनिजों आदि से प्राप्त होते हैं।
- उदाहरण- धावन सोडा (Na2CO3) नमक (NaCl) आदि।
मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ
मानव के विकास की अवस्थाओं को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है-
- रामापिथेकस- यह केवल निचले और ऊपरी जबड़ों से पहचाना जाता है। जबड़ों से ऐसी चौड़ाई का संकेत मिलता है जो थूथनदार कपि में नहीं पाई जाती है।
- ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफ्रीकेनस- यह एक हल्का और सुकुमार जीव था। ऑस्ट्रेलोपिथेकस सीधा चलता था और उसकी पीठ मुड़ी रहती थी ताकि शरीर अपने संतुलन के लिये कमर पर झुका रहे। उसके पैर छोटे थे और खोपड़ी तो मनुष्य से काफी मिलती-जुलती थी, परंतु उसका चेहरा कपि की तरह थूथनदार था।
- होमो इरेक्टस- इसे मूलतः Pithecanthropus की संज्ञा दी जाती थी, जिसका तात्पर्य- सीधा चलने वाला कपि-मानव है। इसकी खोपड़ी पिछले प्रारूप की तुलना में अधिक गोलाकार थी, हालाँकि इसका माथा ढलवां तथा भ्रू-अस्थि सुदृढ़ थी और सीधा खड़ा होने पर इसकी ऊँचाई 5 फुट थी।
- निएंडरथल- यह आधुनिक मानव का पूर्वज था। इसकी गर्दन छोटी, चेहरा चौड़ा, भ्रू-अस्थि उभरी और आँखों के कोटर काफी बड़े थे। यह गर्दन झुकाकर सीधा चलता था और अपने पूर्ववर्ती जितना ऊँचा था।
- होमोसेपियंस- यह पहला मानव प्रारूप था, जिसमें एक उभरी हुई ठोड़ी का विकास और खोपड़ी में एक गोलाकार या उत्तल अग्र भाग का निर्माण। इससे तीन मानव प्रजातियों के आविर्भाव का पूर्व संकेत मिलता है। ये प्रजातियाँ हैं- कॉकेशस, मंगोलॉयड और नीग्रोयड।
बिंदुसार (298-273 ई. पू.)
- बिंदुसार ने ‘अमित्रघात’ की उपाधि धारण की।
- चंद्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी बिंदुसार हुआ, जो 298 ई. पू. में मगध की राजगद्दी पर बैठा।
- जैन परंपराओं में बिंदुसार की माता का नाम ‘दुर्धरा’ मिलता है।
- बिंदुसार को वायुपुराण में भद्रसार/मद्रसार तथा जैन ग्रंथों में ‘सिंहसेन’ कहा गया है।
- बिंदुसार के शासनकाल में तक्षशिला में हुए दो विद्रोहों का वर्णन मिलता है। इस विद्रोह को दबाने के लिये बिंदुसार ने पहले सुसीम को और बाद में अशोक को भेजा।
- एथीनियस नामक एक अन्य यूनानी लेखक ने बिंदुसार तथा सीरिया के शासक एंटियोकस प्रथम के बीच मैत्रीपूर्ण पत्र-व्यवहार का वर्णन किया है, जिसमें भारतीय शासक ने तीन चीजों की मांग की थी-
- सूखे अंजीर
- मदिरा
- एक दार्शनिक
- सीरियाई सम्राट ने दो चीज़ें (मदिरा तथा सूखी अंजीर) भिजवा दीं, परंतु तीसरी मांग के संबंध में कहा कि यूनानी कानून के अनुसार दार्शनिकों का विक्रय नहीं किया जा सकता है।
- ‘दिव्यावदान’ से ज्ञात होता है कि उसकी राजसभा में आजीवक संप्रदाय का एक ज्योतिषी ‘पिंगलवत्स’ निवास करता था।
- बिंदुसार के काल में भी चाणक्य प्रधानमंत्री था।
- थेरवाद परंपरा के अनुसार बिंदुसार ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था।
- बिंदुसार की सभा में 500 सदस्यों वाली एक मंत्रिपरिषद् थी जिसका प्रधान ‘खल्लाटक’ था, जो कौटिल्य के बाद प्रधानमंत्री बना था।
- बिंदुसार ने अशोक को अवंति का राज्यपाल नियुक्त किया था (दिव्यावदान)।
- ‘स्ट्रैबो’ के अनुसार, सीरिया के शासक एंटियोकस प्रथम ने डायमेकस नामक एक राजदूत बिंदुसार के दरबार में भेजा, जो मेगस्थनीज का उत्तराधिकारी माना जाता था।
- ‘प्लिनी’ के अनुसार मिस्र के शासक ‘टॉलमी द्वितीय फिलाडेल्फ्स’ ने ‘डायोनिसस’ को राजदूत बनाकर मौर्य दरबार में भेजा था।
मानव आश्रय (भाग-1)
यह एक ऐसा निवास स्थान है जहाँ मनुष्य रहते हैं। मानव आश्रय गृह/मकान कहलाता है। गृह/मकान दो प्रकार के हो सकते हैं-
- कच्चा घर- ये आवास लकड़ी, मिट्टी, पुआल आदि से बने होते हैं, उदाहरण के लिये- झोपड़ी / मिट्टी के घर।
- पक्का घर- ये आवास कंक्रीट, ईंटों, लोहे, लकड़ी आदि से बने होते हैं, उदाहरण के लिये- फ्लैट, बंगला आदि।
विशिष्ट क्षेत्र के लिये विशिष्ट घर-
विशिष्ट क्षेत्रों में विशिष्ट जलवायु या रहने की स्थिति होती है जो उस क्षेत्र के आधार पर होती है जहाँ मानव अपना घर बनाता है। वे इस प्रकार हैं-
- मिट्टी के बने घर- ये घर मिट्टी, चारे, झाड़ियों, बबूल की लकड़ी, घास आदि के बने होते हैं।
- ये घर आमतौर पर उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ अत्यधिक गर्म जलवायु होती है या गाँवों में।
- ये घर आमतौर पर राजस्थान के गाँवों में पाए जाते हैं ताकि गर्मी में भी तापमान अनुकूल हो सके।
- इन घरों को कीड़ों से बचाने के लिये आमतौर पर गाय के गोबर और मिट्टी से लेपन या रंगा जाता है।
- इनकी छतें कंटीली झाड़ियों से बनी होती हैं।
- लकड़ी और बाँस से बने घर- ये घर भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये घर आमतौर पर बाँस और लकड़ी से बने होते हैं। ये घर ज़मीन से 10-12 फीट ऊपर (3 से 3.5 मी.) हैं ताकि इन्हें बाढ़ से बचाया जा सके। इनकी छते ढालू प्रकार की होती हैं। ये घर असम और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- पत्थर के घर- लद्दाख जैसे ठंडे रेगिस्तानी इलाकों में पत्थर के घर पाए जाते हैं। ये घर दो मंज़िलों वाले पत्थरों से बने हैं। ये घर मिट्टी और चूने की मोटी परत से ढके हुए हैं। इस प्रकार के घरों में लकड़ी का उपयोग फर्श या छत बनाने में किया जाता है। यहाँ के भूतल में आमतौर पर खिड़कियाँ नहीं होती हैं। यहाँ के लोग पहली मंज़िल पर रहते हैं और कभी-कभी भीषण ठंड के दौरान भूतल पर चले जाते हैं और छत पर सब्ज़ियाँ एवं फल सुखाने के लिये रखे जाते हैं।



















