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प्रोजेक्ट सशक्त
देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (NPAs) और दबावग्रस्त परिसंपत्तियों (Stressed Assets) की समस्या का समाधान करने के लिये सुनील मेहता की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट के आधार पर एक समग्र नीति ‘प्रोजेक्ट सशक्त’ बनाई गई है। प्रोजेक्ट सशक्त के अंतर्गत NPA की समस्या का हल करने के लिये पांच सूत्री फ़ॉर्मूला लागू किया जाएगा। ये हैं-
- 50 करोड़ रुपये तक की राशि के बैड लोन को SME Resolution Approach के तहत लिया जाएगा एवं इसे 90 दिनों के भीतर हल करने के लिये बैंक एक समिति का निर्माण करेगा।
- 50 करोड़ रुपये से 500 करोड़ रुपये तक के NPA खातों का निपटान करने के लिये अग्रणी बैंक (Lead Bank) की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। इसके तहत बैंक एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करेंगे। लीड बैंक विशेषज्ञों की एक समिति बनाकर एक संकल्प प्रस्ताव तैयार करेगा और अगर लीड बैंक द्वारा इसे 180 दिनों के भीतर नहीं निपटाया जाता है, तो इसका समाधान National Company Law Tribunal अर्थात् दिवालियापन कानून के तहत किया जाएगा। इस संकल्प योजना को कम-से-कम 66% ऋण वाले उधारदाताओं द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये।
- 500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि वाले NPA खातों का निपटान करने के लिये Asset Management Company (AMC) की स्थापना की जाएगी, जो बैंकों के NPA किये हुए लोन को क्रय करेगी जिससे इस कर्ज़ का भार बैंकों पर नहीं पड़ेगा। ये कंपनियाँ पूरी तरह स्वतंत्र एवं बाज़ार द्वारा संचालित होंगी। एक वैकल्पिक निवेश निधि (Alternative Investment Fund- AIF) संस्थागत निवेशकों से धन जुटा सकती है। बैंक भी यदि चाहें तो इसमें निवेश कर सकते हैं। AIF राष्ट्रीय कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की परिसंपत्तियों की बोली लगा सकता है।
- ऐसे बड़े ऋण जिनका समाधान उपर्युक्त प्रक्रियाओं द्वारा नहीं किया जा सकता है उन NPAs को NCLT को हस्तांतरित कर दिया जाएगा, जहाँ दिवालियापन एवं दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC) द्वारा इनका समाधान किया जाएगा।
- एक Asset Trading Platform का निर्माण किया जाएगा जहाँ निष्पादनकारी एवं गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की ट्रेडिंग आसानी से की जा सकेगी।
नोट- अभी हाल ही में Stressed Assets के समाधान के लिये ‘प्रोजेक्ट सशक्त’ के तहत लीड बैंक को अधिकार देने वाले एक समझौते Inter-Creditor Agreement (ICA) पर हस्ताक्षर किये गए हैं। यह NPA की समस्या को हल करने के लिये एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
पायकों का विद्रोह, 1817
पायकों का विद्रोह 1817 में ओडिशा में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक महत्वपूर्ण आंदोलन था, जो आर्थिक शोषण और पारंपरिक अधिकारों के ह्रास के कारण हुआ। पायक ओडिशा के पारंपरिक पैदल सैनिक थे, जिन्हें अपनी सैन्य सेवाओं के बदले लगान मुक्त भूमि दी जाती थी। अंग्रेजों द्वारा 1803 में ओडिशा पर विजय और खुर्दा के राजा को सत्ता से हटाए जाने के बाद पायकों का सम्मान और शक्ति काफी कम हो गई।
- विद्रोह के प्रमुख कारण
- पारंपरिक अधिकारों का ह्रास : अंग्रेजों ने पायकों की करमुक्त भूमि छीन ली और उनके वंशानुगत अधिकार समाप्त कर दिए।
- आर्थिक शोषण : अंग्रेजों की राजस्व नीतियाँ, नमक की बढ़ी हुई कीमतें, स्थानीय मुद्रा का खात्मा और करों का चांदी में भुगतान करने की अनिवार्यता ने आम जनता को बुरी तरह प्रभावित किया।
- संपत्ति की जब्ती : खुर्दा के राजा की सेना के सेनापति, बख्शी जगबंधु विद्यााधर, की पैतृक संपत्ति रोरांग किला 1814 में जबरन छीन ली गई।
- विद्रोह की शुरुआत और विस्तार
- मार्च 1817 में खोंड जनजाति के लोगों ने गुमसुर से खुर्दा में प्रवेश कर विद्रोह की चिंगारी भड़काई।
- पायकों ने, जो पहले मुगलों और मराठों के विरुद्ध भी लड़े थे, अंग्रेजों को कड़ा प्रतिरोध दिया और खुर्दा जैसे क्षेत्रों में उन्हें हराया।
- विद्रोह का नेतृत्व बख्शी जगबंधु ने किया। यह आंदोलन 1818 तक कमजोर पड़ गया, लेकिन जगबंधु ने 1821 तक अंग्रेजों का प्रतिरोध जारी रखा।
- विद्रोह के परिणाम
- 1825 में, नयागढ़ के राजा ने जगबंधु से बातचीत के बाद आत्मसमर्पण कराया। उन्हें सरकार से 150 रुपये मासिक पेंशन पर कटक में रहने की अनुमति मिली।
- विद्रोह के बाद, करों में छूट, मूल्यांकन में राहत, और संपत्ति की जबरन बिक्री पर रोक जैसे सुधार किये गए।
यह विद्रोह ब्रिटिश शासन की नीतियों के विरुद्ध ओडिशा के साहसिक प्रतिरोध का प्रतीक बना।
- विद्रोह के प्रमुख कारण
ध्वनि का विवर्तन (Diffraction of Sound)
जब ध्वनि तरंगें किसी अवरोध, जैसे दीवार या वस्तु, से टकराती हैं, तो वे अवरोध के किनारों से मुड़कर आगे बढ़ती हैं। इसे ध्वनि का विवर्तन कहा जाता है। यह एक सामान्य परिघटना है, जो तरंगों के फैलने और उनके व्यवहार को समझने में मदद करती है। यह ध्वनि की तरंगदैर्ध्य और अवरोध के आकार पर निर्भर करता है। लंबे तरंगदैर्ध्य वाली ध्वनि तरंगें, जो निम्न आवृत्ति की होती हैं, अधिक प्रभावी ढंग से विवर्तन करती हैं। इसके विपरीत, उच्च आवृत्ति वाली तरंगें (छोटी तरंगदैर्ध्य) विवर्तन में कम सक्षम होती है।
उदाहरण:
बंद कमरे के बाहर से आने वाली आवाज़ का अंदर सुनाई देना।- मुख्य बिंदु:
- तरंगदैर्ध्य का प्रभाव:
- निम्न आवृत्ति (लंबी तरंगदैर्ध्य): अधिक प्रभावी विवर्तन।
- उच्च आवृत्ति (छोटी तरंगदैर्ध्य): विवर्तन की क्षमता कम।
- तरंगदैर्ध्य का प्रभाव:
- महत्व:
- अवरोधों के पीछे ध्वनि का पहुँचना।
- दैनिक जीवन में ध्वनि के फैलने को समझने में सहायक।
विवर्तन केवल ध्वनि तक सीमित नहीं है; यह अन्य प्रकार की तरंगों, जैसे प्रकाश और जल तरंगों, के लिये भी लागू होता है। ध्वनि के विवर्तन का प्रभाव हमारे रोजमर्रा के जीवन में स्पष्ट रूप से अनुभव होता है, जैसे दूर से आती आवाज़ का सुनाई देना। यह परिघटना ध्वनि की पहुँच और प्रसार को समझने में सहायक है।
- मुख्य बिंदु:
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का महत्त्व
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान बहुआयामी है। यह न केवल रोजगार और आजीविका प्रदान करता है, बल्कि औद्योगिक विकास, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और पूंजी निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- अर्थव्यवस्था में योगदान:
- कृषि क्षेत्र देश की 42.3% आबादी को रोजगार प्रदान करता है और GDP में 18.2% हिस्सेदारी रखता है।
- 2023-24 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 1.4% रही, जो 2022-23 के 4.7% से कम है। इस कमी का मुख्य कारण अल नीनो प्रभाव से प्रभावित मानसून है।
- खाद्यान्न आपूर्ति:
- 2022-23 में खाद्यान्न उत्पादन 329.7 मिलियन टन के रिकॉर्ड स्तर पर था।
- 2023-24 में यह 328.8 मिलियन टन रहा, जो मानसून के कारण थोड़ा कम है।
- औद्योगिक विकास में भूमिका:
- कृषि क्षेत्र कपास, गन्ना, और तिलहन जैसे कच्चे माल का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।
- यह खाद्य प्रसंस्करण और अन्य उद्योगों को समर्थन देता है।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में योगदान:
- भारत कृषि उत्पादों का प्रमुख निर्यातक है।
- 2022-23 में कृषि निर्यात का कुल मूल्य 52.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- गरीबी उन्मूलन और आजीविका:
- लगभग 70% ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर है।
- लघु और सीमांत किसानों की संख्या 82% है।
- पूंजी निर्माण में सहयोग:
- कृषि उत्पादों की मांग उद्योगों में निवेश को प्रेरित करती है।
- कृषि क्षेत्र की कमजोरी GDP की वृद्धि दर को प्रभावित कर सकती है।
कृषि भारत की आर्थिक संरचना का आधार है और देश की प्रगति में इसकी भूमिका अपरिहार्य है।
- अर्थव्यवस्था में योगदान:
राजस्थान के लोक देवता मल्लिनाथ जी एवं तल्लीनाथ जी
- मल्लिनाथ जी
- इनका जन्म 14वीं सदी में हुआ था तथा इनका संबंध मारवाड़ के राजपरिवार से था। पराक्रमी योद्धा के रूप में इन्होंने महेवा (मारवाड़ पर शासन किया) का शासक बन तुगलक के मालवा सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को पराजित किया।
- वीर योद्धा के साथ ये सिद्धपुरुष एवं भविष्यद्रष्टा थे।अपनी रानी रूपांदे की सलाह के अनुसार उगमसी भाटी के शिष्य बनकर योग साधना की शिक्षा ग्रहण की तथा लोक-देवता के रूप में प्रसिद्ध हो गए।
- इनका विश्वास निर्गुण निराकार ईश्वर में था। सत्संग व हरि-कीर्तन में अत्यधिक निष्ठा के चलते इन्होंने मारवाड़ में संतों को एकत्र कर वृहत् हरि-कीर्तन का आयोजन करवाया।
- इन्होंने सांसारिक दुःखों से मुक्ति का मार्ग ईश्वर स्मरण को बताया।
- इनका प्रमुख मंदिर 'तिलवाड़ा' (बाड़मेर) में लूनी नदी के किनारे है। जहाँ चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक विशाल पशु मेला आयोजित किया जाता है।
- तल्लीनाथ जी
- ये नाथ संप्रदाय के गुरु जलंधर नाथ के शिष्य थे। ये बाड़मेर के रावल परिवार के सदस्य थे। इनका प्रमुख स्थान मालानी (जालौर), ठिकाना बाड़मेर था। इनका वास्तविक नाम 'गांगदेव राठौड़' था।
- ये पेड़-पौधों की रक्षा पर अत्यधिक जोर देकर उनके संवर्द्धन की बात करते थे। ये प्रकृति-प्रेमी थे।
- इनके पूजा स्थल पंचमुखी पहाड़ी (जालौर) पर वृक्ष काटना निषिद्ध है। जालौर ही इनकी कर्मस्थली रही है जहाँ 'ओरण भूमि' है।
- ये रुग्ण लोगों, पशुओं व सर्पदंश पीड़ितों का इलाज तुरंत कर देते थे।
- मल्लिनाथ जी