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CTET



कॉन्सेप्ट कार्ड  

ताना भगत आंदोलन (1914–1920)

  • ताना भगत आंदोलन झारखंड के छोटानागपुर क्षेत्र में उरांव जनजातियों द्वारा आरंभ किया गया एक  महत्त्वपूर्ण सामाजिक-धार्मिक एवं राजनीतिक आंदोलन थाइसका नेतृत्व जतरा भगत ने किया, जिन्हें उनके अनुयायीताना भगतके नाम से पुकारते थे

    कारण:
    उरांव जनजाति लंबे समय से आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक शोषण का शिकार थीब्रिटिश शासन, जमींदारों, साहूकारों और स्थानीयदिक्कुओंके अत्याचारों से त्रस्त होकर उन्होंने विद्रोह का मार्ग अपनायाउनके लिये स्वराज का अर्थ थाब्रिटिश सत्ता से मुक्ति और साथ ही बाहरी शोषकों से छुटकाराजतरा भगत ने जनजातियों को मद्यपान, पशुबलि, भूत-प्रेत पूजा जैसी कुरीतियों से दूर रहने और नैतिक जीवन अपनाने का संदेश दिया 

    प्रकृति:
    ताना भगतों ने अपने जमींदारों को किराया देना बंद कर दिया और कर-अदायगी से इनकार किया। उन्होंने हिंसा का सहारा नहीं लिया, बल्कि अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आंदोलन को आगे बढ़ाया। उन्होंने सफेद वस्त्र धारण किए, स्वच्छता रखी और “जय जगत” का नारा दिया।

    महत्व:
    यह आंदोलन महात्मा गांधी के अहिंसात्मक स्वतंत्रता संग्राम से गहराई से प्रभावित था। 1920 के बाद ताना भगतों ने गांधीजी के नेतृत्व वाले असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया। यह आंदोलन आदिवासी समाज में जागरूकता, सामाजिक सुधार और राजनीतिक चेतना का प्रतीक बन गया।

    मुख्य तथ्य: 

    • स्थान: छोटानागपुर (वर्तमान झारखंड)
    • काल: 1914–1920 
    • नेता: जतरा भगत
    • प्रकृति: सामाजिक-धार्मिक-राजनीतिक एवं अहिंसात्मक आंदोलन

मात्रक (Units)

  •  किसी भी भौतिक राशि को मापने के लिये जिस मानक परिभाषित परिमाण को अपनाया जाता है, उसे मात्रक (Unit) कहते हैं। मात्रक का प्रयोग मापन में एकरूपता (uniformity), सटीकता (accuracy) और सुव्यवस्था (consistency) लाने के लिये किया जाता है।

    • मात्रकों के मुख्य प्रकार 
      1. मूल मात्रक (Fundamental Units) 
        • ये ऐसे मात्रक हैं जो किसी अन्य मात्रक पर निर्भर नहीं होते। 
        • उदाहरण : मीटर (m), किलोग्राम (kg), सेकंड (s) इत्यादि। 
      2. व्युत्पन्न मात्रक (Derived Units) 
        • ये मूल मात्रकों के संयोजन से बनते हैं।
        • उदाहरण : वेग (m/s), बल (kg·m/s²), दाब (N/m²) आदि।
           
    • S.I. पद्धति (SI System) 
      • पूरा नाम : Système International d’Unités (अंतर्राष्ट्रीय मात्रक प्रणाली) 
      • स्वीकृति वर्ष : 1960 (अंतर्राष्ट्रीय भार एवं माप सम्मेलन द्वारा) 
      • विशेषताएँ : 
        • विश्वभर में मान्य 
        • माप में सरलता और एकरूपता 
        • सभी विज्ञान और इंजीनियरिंग क्षेत्रों में उपयोग 
    • S.I. के 7 मूल मात्रक 

    क्रम 

    भौतिक राशि 

    मात्रक (हिंदी) 

    मात्रक (अंग्रेज़ी) 

    संकेत 

    1 

    लंबाई 

    मीटर 

    metre 

    m 

    2 

    द्रव्यमान 

    किलोग्राम 

    kilogram 

    kg 

    3 

    समय 

    सेकण्ड 

    second 

    s 

    4 

    तापमान 

    केल्विन 

    kelvin 

    K 

    5 

    विद्युत धारा 

    ऐम्पियर 

    ampere 

    A 

    6 

    ज्योति-तीव्रता 

    कैण्डेला 

    candela 

    cd 

    7 

    पदार्थ का परिमाण 

    मोल 

    mole 

    mol 

     

    • पूरक मात्रक (Supplementary Units) 

    भौतिक राशि 

    मात्रक 

    संकेत 

    समतल कोण 

    रेडियन 

    rad 

    घन कोण 

    स्टेरेडियन 

    sr 

     

    • पुराने मात्रकों के नए नाम (S.I. पद्धति में) 

    भौतिक राशि 

    पुराना नाम / संकेत 

    नया नाम / संकेत 

    तापमान 

    डिग्री सेण्टीग्रेड (°C) 

    डिग्री सेल्सियस (°C) 

    आवृत्ति 

    कंपन प्रति सेकण्ड (cps) 

    हर्ट्ज़ (Hz) 

    ज्योति-तीव्रता 

    कैण्डिल शक्ति (C.P.) 

    कैण्डेला (cd) 

     

कोली विद्रोह (1822–1829 और 1857)

  • कोली विद्रोह महाराष्ट्र और गुजरात के कोली जनजातीय समुदायों द्वारा ब्रिटिश शासन और शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ किए गए संघर्षों की एक शृंखला थीयह दो प्रमुख चरणों में हुआपहला 1822 से 1829 तक महाराष्ट्र के अहमदनगर क्षेत्र में, और दूसरा 1857 में गुजरात के मेहसाणा जिले की तरंगा पहाड़ियों में

    नेतृत्व:
    पहले चरण (1822–29) में रामजी भांगरे ने ब्रिटिश सरकार और स्थानीय बनिया साहूकारों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व कियावे पहले नायकवारी पुलिस में जमादार थे, लेकिन कर और वेतन विवाद के कारण नौकरी छोड़कर अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठा लिये 
    दूसरे चरण (1857) में तरंगा पहाड़ियों के कोली विद्रोह का नेतृत्व मगनलाल भुखन, द्वारकादास और जेठा माधवजी ने किया

    कारण: 
    1822–29 के विद्रोह का मुख्य कारण पेशवाओं से पुणे पर अंग्रेजों के कब्जे (1818) के बाद बढ़ती आर्थिक असमानता और स्थानीय साहूकारों द्वारा किसानों का शोषण था।
    1857 में कोलियों का विद्रोह मुख्यतः औपनिवेशिक शासन से उत्पन्न असंतोष, नए कानूनों और पारंपरिक रीति-रिवाजों पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण हुआ।

    विकास:
    रामजी भांगरे ने 500–600 कोली योद्धाओं के साथ अकोला हिल्स में साहूकारों के खातों को जला दिया और ब्रिटिश विरोधी कार्रवाइयाँ कीं। अंततः उन्हें पकड़कर 1830 में नासिक में फांसी दी गई।
    1857 के विद्रोह में कोलियों ने सितंबर में हमला किया और दो महीने तक कंपनी के इलाकों में लूटपाट की, परंतु पर्याप्त जनसमर्थन न मिलने के कारण विद्रोह असफल रहा।

बिरसा मुंडा विद्रोह (उलगुलान)

  • स्थान: छोटानागपुर क्षेत्र (1890 का दशक)

    नेतृत्व:
    बिरसा मुंडा ने 1890 के दशक में छोटानागपुर क्षेत्र में आदिवासी आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने मुंडा समुदाय को अंग्रेजी शासन और शोषणकारी जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ एकजुट किया तथा “उलगुलान” अर्थात् महान विद्रोह का आह्वान किया। बिरसा ने अपने अनुयायियों को शराब, जादू-टोना और तंत्र-मंत्र जैसी कुप्रथाओं से दूर रहने, स्वच्छता बनाए रखने और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी। उन्होंने स्वयं को “धरती आबा” (पृथ्वी के पिता) के रूप में प्रस्तुत किया, जो आदिवासियों के अधिकार और संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्षरत थे। 

    कारण:
    ब्रिटिश शासन की भूमि नीतियाँ मुंडाओं की पारंपरिकखुंटकट्टी प्रणाली” (संयुक्त काश्तकारी व्यवस्था) को नष्ट कर रही थींमिशनरियों द्वारा उनकी संस्कृति का अपमान किया जा रहा था, जबकि बाहरी साहूकार और जमींदार उनकी भूमि और संपत्ति पर कब्ज़ा कर रहे थेपरिणामस्वरूप, आदिवासी समुदाय बेगार और मजदूरी के लिये विवश हो गया 

    महत्व:
    बिरसा मुंडा के इस आंदोलन ने आदिवासी समाज में राजनीतिक और सामाजिक चेतना का संचार किया। ब्रिटिश सरकार को जनजातीय अधिकारों की रक्षा हेतु भूमि अभिलेख तैयार करने पड़े, जिससे 1908 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम बना। इस अधिनियम से बाहरी लोगों (‘दिक्कुओं’) द्वारा भूमि अधिग्रहण को रोका जा सका। यद्यपि 1900 में बिरसा की मृत्यु के बाद आंदोलन मंद पड़ गया, परंतु उनका बलिदान आदिवासी स्वाभिमान का प्रतीक बन गया। 

    तथ्य:
    भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को हर वर्ष “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाई जाती है।

रम्पा विद्रोह (1922–1924)

  • रम्पा विद्रोह, जिसे मन्यम विद्रोह (Manyam Rebellion) के नाम से भी जाना जाता है, 1922 से 1924 के बीच आंध्र प्रदेश के गोदावरी एजेंसी क्षेत्र (वर्तमान अल्लूरी सीताराम राजू जिला) में हुआ थायह विद्रोह ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण आदिवासी आंदोलन था

    नेतृत्व:
    इस विद्रोह का नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू ने कियायद्यपि वे स्वयं आदिवासी नहीं थे, परंतु उन्होंने आदिवासियों की पीड़ा को समझा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिये उन्हें संगठित कियावे स्थानीय कोया जनजाति के बीच अत्यंत लोकप्रिय थे 

    कारण:
    ब्रिटिश प्रशासन ने आदिवासियों पर वन उपज एकत्र करने और खेती करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके अलावा जबरन श्रम (forced labor), अत्यधिक कर और पुलिस का अत्याचार भी उनके असंतोष का कारण बने। इन नीतियों ने आदिवासियों के पारंपरिक जीवन और आजीविका को पूरी तरह प्रभावित किया।

    घटनाक्रम:
    1922 में अल्लूरी सीताराम राजू और लगभग 500 कोया आदिवासियों ने ब्रिटिश पुलिस स्टेशनों पर हमले किये, राइफलें और गोला-बारूद लूटे, और पहाड़ी इलाकों में गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई। यह आंदोलन तेजी से फैला और ब्रिटिश शासन के लिए बड़ी चुनौती बन गया।

    ब्रिटिश प्रतिक्रिया:
    ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को दबाने के लिये सैन्य कार्रवाई शुरू कीकई महीनों की खोज के बाद, 1924 में राजू को गिरफ्तार कर गोली मार दी गई विद्रोह के दमन के बाद भी उनके बलिदान ने आंध्र प्रदेश में स्वतंत्रता संग्राम की भावना को प्रज्वलित किया

    👉 तथ्य: अल्लूरी सीताराम राजू को आज “मन्यम वीरुडु” (जंगलों का वीर) कहा जाता है, और उनकी स्मृति में आंध्र प्रदेश सरकार ने एक जिले का नाम उनके नाम पर रखा है — अल्लूरी सीताराम राजू जिला (2022)।

     





















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