UGC NET परीक्षा का उद्देश्य भारतीय विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सहायक प्रोफेसर और 'जूनियर रिसर्च फेलोशिप' की भूमिकाओं के लिये भारतीय नागरिकों की योग्यता का आकलन करना है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने UGC NET परीक्षा आयोजित करने की जिम्मेदारी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) को सौंपी है।
नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) दिसंबर 2018 से कंप्यूटर आधारित टेस्ट (CBT) मोड में यूजीसी-नेट का आयोजन करती आ रही थी। हालाँकि जून 2024 सत्र के लिये NTA ने परीक्षा को ऑफलाइन मोड (OMR आधारित) में आयोजित करने का निर्णय लिया। सामान्यतः यूजीसी-नेट परीक्षा वर्ष में दो बार (जून और दिसंबर) में आयोजित की जाती है।
UGC द्वारा उल्लिखित परीक्षा पैटर्न और पाठ्यक्रम के अनुसार, हम एनटीए UGC NET परीक्षा के लिये विभिन्न पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं, इन पाठ्यक्रमों में प्रश्नपत्र- I और प्रश्नपत्र- II के तहत हिंदी साहित्य, इतिहास, राजनीति विज्ञान और भूगोल शामिल हैं।
परीक्षा पद्धति (एग्ज़ाम पैटर्न)
UGC NET परीक्षा के अंतर्गत दो प्रश्नपत्र - प्रश्नपत्र-I और प्रश्नपत्र-II शामिल होते हैं। प्रश्नपत्र-I, को 'शिक्षण और शोध अभिवृत्ति/अभिक्षमता' के नाम से भी जाना जाता है, जो शिक्षण अभिक्षमता, संप्रेषण, गणितीय और विश्लेषणात्मक तर्क आदि में अभ्यर्थी की दक्षता का मूल्यांकन करता है।
इसके विपरीत, प्रश्नपत्र-II अभ्यर्थी के स्नातकोत्तर विषय से संबंधित एक विषय-विशिष्ट प्रश्नपत्र है। प्रश्नपत्र-I और प्रश्नपत्र-II में क्रमशः 50 और 100 प्रश्न होते हैं। विस्तृत परीक्षा पद्धति निम्नलिखित है :
परीक्षा पद्धति
मोड
ऑफलाइन (OMR आधारित)
प्रश्नपत्रों की संख्या
2 (प्रश्नपत्र-I और प्रश्नपत्र-II)
अंकन योजना
प्रत्येक सही उत्तर के लिये 2 अंक (कोई ऋणात्मक अंकन नहीं)
प्रश्नों की संख्या
150 प्रश्न ((प्रश्नपत्र- I से 50 प्रश्न और प्रश्नपत्र- II से 100 प्रश्न)
प्रश्नों के प्रकार
बहुविकल्पीय वस्तुनिष्ठ प्रश्न
अवधि
कुल 3 घंटे (प्रश्नपत्र- I के लिये 1 घंटा, प्रश्नपत्र- II के लिये 2 घंटे)
परीक्षा का माध्यम
हिंदी या अंग्रेज़ी (भाषा के प्रश्नपत्र को छोड़कर)
कुल अंक
300 अंक (प्रश्नपत्र- I में 100 अंक और प्रश्नपत्र- II में 200 अंक)
रणनीति एवं पाठ्यक्रम
परीक्षा-पूर्व एक सुव्यवस्थित रणनीति, जैसे - समय प्रबंधन, विषय की प्राथमिकता की निर्धारण, तनाव में कमी और संसाधनों का इष्टतम उपयोग आदि, विद्यार्थी की सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह विभिन्न सेक्शन्स पर आवश्यकतानुसार संतुलित ध्यान सुनिश्चित करते हुए समय के कुशलतम उपयोग हेतु सक्षम बनाती है। रणनीति महत्त्वपूर्ण टॉपिक्स के प्राथमिकता निर्धारण में सहायता करती है और विद्यार्थियों को परीक्षा संरचना से परिचित करवाकर उनके तनाव को कम करती है। यह संसाधनों के इष्टतम उपयोग को बढ़ावा देती है, प्रभावी पुनरीक्षण में सहायता करती है एवं लक्ष्य निर्धारण और अनुकूल दृष्टिकोण के माध्यम से आत्मविश्वास पैदा करती है। कुल मिलाकर रणनीति विद्यार्थियों में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें परीक्षा कक्ष में बेहतर प्रदर्शन योग्य बनाती है|, जिससे विभिन्न परीक्षा परिस्थितियों में अच्छा प्रदर्शन करने की उनकी क्षमता बढ़ती है। इसे ध्यान में रखते हुए, हमने अपने पाठ्यक्रमों में प्रस्तुत प्रत्येक प्रश्नपत्र के लिये व्यापक रणनीतियों की रूपरेखा तैयार की है। हमें विश्वास है कि इन रणनीतियों को पढ़ने और लागू करने से, विद्यार्थी अपनी उच्च अंकों के साथ परीक्षा उत्तीर्ण करने की संभावना को बढ़ा सकते हैं|
इस प्रश्नपत्र का प्राथमिक उद्देश्य अभ्यर्थियों की शिक्षण और शोध अभिक्षमताओं का आकलन करना है। नतीजतन, अभ्यर्थियों से संज्ञानात्मक अभिक्षमताओं का प्रदर्शन करने की अपेक्षा की जाती है, जिसमें संज्ञानात्मक अभिवृत्ति, विश्लेषण, मूल्यांकन, तर्क संरचना की समझ, निगमनात्मक और आगमनात्मक तर्क शामिल हैं।
इसके अतिरिक्त, अभ्यर्थियों को उच्चतर शिक्षण संस्थानों में शिक्षण और अधिगम का व्यापक ज्ञान होना चाहिये, साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी की सामान्य समझ और लोगों के परस्पर संवाद, पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों और जीवन की गुणवत्ता पर उनके प्रभाव के बारे में जागरूकता होनी चाहिये। यूजीसी-नेट परीक्षा में प्रश्नपत्र- I किसी विशिष्ट विषय के लिये नहीं है, लेकिन असिस्टेंट प्रोफेसर या जूनियर रिसर्च फेलोशिप के लिये अभ्यर्थियों की पात्रता को निर्धारित करने में महत्त्व रखता है।
UGC ने प्रश्नपत्र - I के पाठ्यक्रम को 10 इकाइयों में विभाजित करते हुए इसकी रूपरेखा तैयार की है। प्रश्नपत्र -I के प्रश्नपत्र में 50 बहुविकल्पीय प्रश्न होते हैं, प्रत्येक प्रश्न में चार विकल्प होते हैं। अभ्यर्थियों को सही विकल्प चुनना होता है और आमतौर पर प्रत्येक इकाई से 5 प्रश्न पूछे जाते हैं। प्रत्येक सही उत्तर के लिये 2 अंक प्रदान किये जाते हैं, और गलत उत्तरों के लिये कोई ऋणात्मक अंकन नहीं होता है।
यूजीसी-नेट परीक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिये , प्रश्नपत्र-I की प्रकृति और संरचना की गहन समझ महत्त्वपूर्ण है। इस प्रश्नपत्र के अनुरूप एक प्रभावी अध्ययन योजना तैयार करना आवश्यक है। UGC NET परीक्षा में प्रश्नपत्र-1 के लिये एक प्रभावी रणनीति समझने हेतु मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं :
पाठ्यक्रम को समझना
अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे UGC NET प्रश्नपत्र-I के पाठ्यक्रम की व्यापक समझ रखें। इस पाठ्यक्रम में शिक्षण अभिवृत्ति/अभिक्षमता; शोध अभिवृत्ति/अभिक्षमता; बोध, सम्प्रेषण; युक्तियुक्त तर्क; आँकड़ों की व्याख्या; सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी); लोग, विकास और पर्यावरण तथा उच्चतर शिक्षा प्रणाली सहित विविध विषय शामिल हैं।
एक व्यापक अध्ययन योजना तैयार करना
अभ्यर्थियों को पाठ्यक्रम के अनुरूप एक व्यावहारिक और संपूर्ण अध्ययन योजना विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। विद्यार्थियों के मज़बूत और कमज़ोर दोनों पक्षों की पहचान करना महत्त्वपूर्ण है। इससे अभ्यर्थियों को प्रत्येक विषय के लिये पर्याप्त समय के सही उपयोग के क्षेत्रों की जानकारी होती है, जहाँ सुधार अपेक्षित है|
प्रश्नपत्र-I के किसी भी सेक्शन्स में क्या और कितना अध्ययन करना है, इसकी बेहतर समझ के लिये, विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों का विश्लेषण आवश्यक है। विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों का विश्लेषण पाठ्यक्रम के विभिन्न सेक्शन्स की सामग्री में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है और प्रभावी अध्ययन रणनीतियों को तैयार करने में सहायता करता है।
प्रमुख खंडों के लिये रणनीतियों के संबंध में कुछ बिंदु निम्नलिखित हैं :
शिक्षण अभिवृत्ति/अभिक्षमता
इस सेक्शन में, अभ्यर्थियों को अपनी समझ बढ़ाने के लिये निम्नलिखित तत्त्वों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी जाती है:
शिक्षण और अधिगम की प्रक्रियाओं के मूलभूत सिद्धांतों को समझना।
नवीन शैक्षिक सिद्धांतों और पद्धतियों के साथ अद्यतन बने रहना।
शिक्षण प्रणाली में शिक्षक की भूमिका के बारे में गहन ज्ञान अर्जित करना।
शिक्षा में समसामयिक मुद्दों के प्रति जागरूकता बने रखना।
शोध अभिवृत्ति/अभिक्षमता
अभ्यर्थियों को शोध अभिवृत्ति/अभिक्षमता से संबंधित निम्नलिखित पहलुओं को समझने का प्रयास करना चाहिये:
विविध शोध विधियों और तकनीकों से परिचित होना।
शोध-आधारित प्रश्नों के समाधान और डेटा की व्याख्या में संलग्न होना।
शोध में प्रयुक्त सांख्यिकीय विधियों के मूल सिद्धांतों को समझना।
बोध
बोध (Comprehension) एक ऐसा सेक्शन है जो भ्रामक रूप से आसान लगता है लेकिन इसमें निपुणता हासिल करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। बहरहाल, अभ्यर्थी कुछ आवश्यक बिंदुओं को ध्यान में रखकर 'कॉम्प्रिहेंशन' में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इस सेक्शन के लिये रणनीतिक विचारों में निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:
गद्यांश/परिच्छेद को पढ़ने से पूर्व उससे संबंधित प्रश्नों पर ध्यान दें। इससे आपको यह समझ आता है कि पढ़ते समय कौन-सी जानकारी पर ध्यान देना है।
प्रश्नों में महत्त्वपूर्ण शब्दों को रेखांकित या हाइलाइट करें। इससे आपको गद्यांश में आवश्यक विशिष्ट जानकारी पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
विवरण पर पूरा ध्यान देते हुए, गद्यांश को सक्रिय रूप से पढ़ें। पाठ पर केवल सरसरी निगाह डालने के बजाय पाठ को ध्यान से पढ़ें।
प्रत्येक गद्यांश में मुख्य विचारों और मुख्य बिंदुओं को पहचानें। गद्यांश की समग्र संरचना को समझने से प्रश्नों का अधिक सटीक उत्तर देने में सहायता मिलती है।
गद्यांश पढ़ने के बाद प्रश्नों को वापस पढ़ें। यह सुनिश्चित करता है कि आपको इस बात की स्पष्ट समझ है कि क्या पूछा जा रहा है और प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने के लिये किस जानकारी की आवश्यकता है।
स्पष्ट रूप से गलत उत्तर विकल्पों को हटा दें। उन विकल्पों को हटाने के लिये गद्यांश की अपनी समझ का उपयोग करें जो प्रदान की गई जानकारी से मेल नहीं खाते हैं।
संप्रेषण
अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे मौलिक संप्रेषण सिद्धांतों, मॉडलों और अवधारणाओं से परिचित हों, पारस्परिक, जनसंचार माध्यम और संगठनात्मक संदर्भों सहित विभिन्न संचार रूपों में उनके अनुप्रयोगों को समझें।
इसके अतिरिक्त, उन्हें भारत में जनसंचार की कार्यप्रणाली को समझने, इससे जुड़े संबंधित निकायों और एजेंसियों से परिचित होने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
'संप्रेषण' के कुछ पहलुओं की गतिशील प्रकृति को देखते हुए, अभ्यर्थियों को वर्तमान और प्रासंगिक जानकारी से अवगत रहने की सलाह दी जाती है।
गणितीय तर्क एवं अभिवृत्ति/अभिक्षमता
अभ्यर्थियों को आधारभूत अंकगणित में प्रतिशत, अनुपात और समानुपात जैसी अवधारणाओं सहित अपनी दक्षता को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। अंकगणितीय समस्याओं को हल करने में दक्षता हासिल करने तथा संख्यात्मक अभिक्षमता को मज़बूत करने के लिये लगातार अभ्यास की आवश्यकता होती है।
अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे तर्क को भी उचित महत्त्व दें। तर्क में गहन समझ और दक्षता के लिये शृंखला, कोडिंग-डिकोडिंग और पैटर्न जैसे क्षेत्रों में नियमित अभ्यास आवश्यक है।
युक्तियुक्त तर्क
प्रश्नपत्र-I का यह खंड विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले पारंपरिक तर्क प्रश्नों से काफी अलग है। इसलिये, अभ्यर्थियों को पाठ्यक्रम में उल्लिखित सभी बिंदुओं का सावधानीपूर्वक अध्ययन करना चाहिये जैसे- तर्कों की संरचना, भ्रांतियाँ , निगमनात्मक तथा आगमनात्मक तर्क और भारतीय तर्क के पहलू।
आँकड़ों की व्याख्या
बुनियादी स्तर पर आँकड़ों की व्याख्या संबंधी प्रश्नों में अक्सर तालिकाओं, ग्राफ या चार्ट में प्रस्तुत जानकारी को समझना और उसका विश्लेषण करना शामिल होता है। बुनियादी स्तर के आँकड़ों की व्याख्या संबंधी प्रश्नों को हल करने में आपकी सहायता के लिये यहाँ कुछ संकेत दिये गए हैं:
दिये गए आँकड़ें के शीर्षक और लेबल को पढ़कर प्रश्न हल करना प्रारंभ करें।
माप की इकाइयों और आँकड़ों में प्रयुक्त किसी भी प्रमुख शब्द को समझें।
यदि आँकड़ों में प्रतिशत या अनुपात शामिल हैं, तो विभिन्न तत्त्वों के बीच संबंधों को बेहतर ढंग से समझने के लिये उनकी गणना करें।
प्रत्येक प्रश्न को एक-एक करके पढ़ें। प्रश्नों को ध्यान से पढ़ें और प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने के लिये आँकड़े देखें।
यदि सटीक मान प्रदान नहीं किये गए हैं, तो उचित अनुमान लगाने के लिये डेटा का उपयोग करें। इससे उन उत्तर विकल्पों को हटाने में मदद मिल सकती है जो स्पष्ट रूप से गलत हैं।
कुछ प्रश्नों के लिये बुनियादी अंकगणितीय गणनाओं की आवश्यकता हो सकती है, इसलिये सुनिश्चित करें कि आप जोड़, घटाव, गुणा और भाग में सहज हैं।
यदि आप किसी उत्तर के बारे में अनिश्चित हैं, तो स्पष्ट रूप से गलत विकल्पों को हटाने का प्रयास करें। इससे आपके सही विकल्प चुनने की संभावना बढ़ सकती है।
आँकड़ों की व्याख्या एक कौशल है जो अभ्यास के साथ बेहतर होता है। विभिन्न प्रकार के आँकड़ों की व्याख्या आसान रूप से करने के लिये विभिन्न प्रकार के डेटा सेट पर काम करें। आँकड़ों की व्याख्या कौशल संबंधी आत्मविश्वास पैदा करने के लिये प्रत्येक प्रश्न को व्यवस्थित रूप से हल करना और नियमित रूप से अभ्यास करना याद रखे
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी
इस सेक्शन में, अभ्यर्थियों से आधारभूत कंप्यूटर ज्ञान रखने की अपेक्षा की जाती है। यह अनिवार्य है कि अभ्यर्थी :
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के बुनियादी सिद्धांतों पर मज़बूत पकड़ रखे।
कंप्यूटर एप्लिकेशन, इंटरनेट उपयोग और ई-गवर्नेंस के बारे में जानकारी रखे।
सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वर्तमान तकनीकी प्रवृत्तियों और प्रगति से अवगत रहे। यह जानकारी आधारभूत कंप्यूटर अवधारणाओं की व्यापक समझ में योगदान दे सकती है।
लोग, विकास और पर्यावरण
इस अनुभाग को समझने के लिये, अभ्यर्थियों को यह करना चाहिये :
विविधता, समावेशन और सतत विकास से संबंधित चिंताओं का समाधान करें।
व्यक्ति, समाज और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंधों को समझने का प्रयास करें।
उच्चतर शिक्षा प्रणाली
यह देखते हुए कि परीक्षा उच्चतर शिक्षण और शोध से संबंधित है, अभ्यर्थियों से अपेक्षा की जाती है कि वे :
भारत में उच्चतर शिक्षण संस्थानों की संरचना और संचालन के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
उच्चतर शिक्षा क्षेत्र में नवीनतम विकास से अवगत रहें।
प्रत्येक सेक्शन के लिये लक्षित रणनीति तैयार करने के अलावा, अभ्यर्थियों को विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों और मॉक टेस्ट को हल करके व्यापक अभ्यास करने की सलाह दी जाती है। हमारे यूजीसी नेट प्रश्नपत्र- I कोर्सेज़ (अंग्रेज़ी और हिंदी) में, हम पर्याप्त संख्या में मॉक टेस्ट प्रदान करते हैं, जो कक्षाओं के दौरान विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों (PYQs) पर चर्चा के साथ पूर्ण होते हैं। यह व्यापक दृष्टिकोण तैयारी की संपूर्णता सुनिश्चित करता है, जिससे विद्यार्थियों को परीक्षा में आने वाली किसी भी चुनौती से निपटने में सहायता मिलती है।
इसके अलावा, यह सलाह दी जाती है कि विद्यार्थी सभी प्रासंगिक सेक्शन्स को कवर करने वाली एक व्यापक पुस्तक पढ़ें। हमने अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों भाषाओं में एक पुस्तक प्रकाशित की है जो आवश्यक विषयों की विस्तृत कवरेज प्रदान करती है और इसमें विगत वर्षों में प्रत्येक सेक्शन से पूछे गए प्रश्न भी शामिल हैं।
उल्लिखित रणनीति का सटीकता के साथ पालन करके, विद्यार्थी प्रश्नपत्र- I में उच्च अंक प्राप्त करने का लक्ष्य रख सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) के लिये अर्हता प्राप्त करने की उनकी संभावनाएँ बढ़ सकती हैं।
प्रश्नपत्र-I का विस्तृत पाठ्यक्रम निम्नलिखित है :
इकाई-I : शिक्षण अभिवृत्ति / अभिक्षमता (Teaching Aptitude)
शिक्षण : अवधारणाएँ, उद्देश्य, शिक्षण का स्तर (स्मरण शक्ति, समझ और विचारात्मक), विशेषताएँ और मूल अपेक्षाएँ
शिक्षार्थी की विशेषताएँ : किशोर और वयस्क शिक्षार्थी की विशेषताएँ (शैक्षिक, सामाजिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक), व्यक्तिगत भिन्नताएँ
शिक्षण प्रभावक तत्त्व : शिक्षक, शिक्षार्थी, सहायक सामग्री, अनुदेशात्मक सुविधाएँ, शैक्षिक वातावरण एवं संस्था
उच्चतर अधिगम संस्थाओं में शिक्षण पद्धति : अध्यापक-केंद्रित बनाम शिक्षार्थी-केंद्रित पद्धति, ऑफलाइन बनाम ऑनलाइन पद्धतियाँ (स्वयं, स्वयंप्रभा, मूक्स इत्यादि)।
शिक्षण सहायक प्रणाली : परंपरागत, आधुनिक और आई.सी.टी. आधारित।
मूल्यांकन प्रणालियाँ : मूल्यांकन के तत्त्व और प्रकार, उच्चतर शिक्षा में विकल्प-आधारित क्रेडिट प्रणाली में मूल्यांकन, कंप्यूटर आधारित परीक्षा, मूल्यांकन पद्धतियों में नवाचार।
इकाई-II : शोध अभिवृत्ति /अभिक्षमता (Research Aptitude)
शोध : अर्थ, प्रकार और विशेषताएँ, प्रत्यक्षवाद एवं शोध के उत्तर-प्रत्यक्षवादी उपागम
शोध पद्धतियाँ : प्रयोगात्मक, विवरणात्मक, ऐतिहासिक, गुणात्मक एवं मात्रात्मक पद्धतियाँ
शोध के चरण
शोध प्रबंध एवं आलेख लेखन : फॉर्मेट और संदर्भ की शैली
शोध में आई.सी.टी. का अनुप्रयोग
शोध नैतिकता
इकाई-III : बोध (Comprehension)
एक गद्यांश दिया जाएगा, उस गद्यांश से पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देना होगा।
इकाई-IV : संप्रेषण (Communication)
संप्रेषण : संप्रेषण का अर्थ, प्रकार और अभिलक्षण
प्रभावी संप्रेषण : वाचिक एवं गैर-वाचिक, अंत:सांस्कृतिक एवं सामूहिक संप्रेषण, कक्षा संप्रेषण
प्रभावी संप्रेषण की बाधाएँ
जन-मीडिया एवं समाज
इकाई-V : गणितीय तर्क और अभिवृत्ति / अभिक्षमता (Mathematical Reasoning and Aptitude)
तर्क के प्रकार
संख्या श्रेणी, अक्षर शृंखला, कूट और संबंध
गणितीय अभिवृत्ति (अंश, समय और दूरी, अनुपात, समानुपात एवं प्रतिशतता, लाभ और हानि, ब्याज़ और छूट, औसत आदि)।
युक्ति के ढाँचे का बोध : युक्ति के रूप, निरुपाधिक तर्कवाक्य का ढाँचा, अवस्था और आकृति, औपचारिक एवं अनौपचारिक युक्ति दोष, भाषा के प्रयोग, शब्दों का लक्ष्यार्थ और वस्त्वर्थ (Denotation), विरोध का परंपरागत वर्ग।
निगमनात्मक और आगमनात्मक युक्ति का मूल्यांकन और विशिष्टीकरण, अनुरूपताएँ
वेन आरेख : तर्क की वैधता सुनिश्चित करने के लिये वेन आरेख का सरल और बहुविध प्रयोग
भारतीय तर्कशास्त्र : ज्ञान के साधन
प्रमाण : प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि।
अनुमान की संरचना और प्रकार, व्याप्ति, हेत्वाभास
इकाई-VII : आँकड़ों की व्याख्या (Data Interpretation)
आँकड़ों का स्रोत, प्राप्ति और वर्गीकरण
गुणात्मक एवं मात्रात्मक आँकडे़
चित्रवत वर्णन (बार-चार्ट, हिस्टोग्राम, पाई-चार्ट, टेबल-चार्ट व रेखा-चार्ट) और आँकड़ों का मान-चित्रण
आँकड़ों की व्याख्या
आँकड़े और शासन
इकाई-VIII : सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology – ICT)
आई.सी.टी. : सामान्य संक्षिप्तियाँ और शब्दावली
इंटरनेट, इंट्रानेट, ई-मेल, दृश्य-श्रव्य कॉन्फ्रेंसिंग की मूलभूत बातें
उच्चतर शिक्षा में डिजिटल पहलें
आई.सी.टी. और शासन
इकाई-IX : लोग, विकास और पर्यावरण (People, Development and Environment)
विकास और पर्यावरण : सहस्राब्दि विकास और संपोषणीय विकास लक्ष्य
मानव और पर्यावरण संव्यवहार : नृजातीय क्रियाकलाप और पर्यावरण पर उनके प्रभाव
पर्यावरणपरक मुद्दे : स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक; वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, अपशिष्ट (ठोस, तरल, बायो-मेडिकल, जोखिमपूर्ण, इलेक्ट्रॉनिक) जलवायु परिवर्तन और इसके सामाजिक-आर्थिक तथा राजनीतिक आयाम
मानव स्वास्थ्य पर प्रदूषकों का प्रभाव
प्राकृतिक और ऊर्जा स्रोत : सौर, पवन, मृदा, जल, भू-ताप,बायोमास, बायो-मास, नाभिकीय और वन
प्राकृतिक जोखिम और आपदाएँ : न्यूनीकरण की युक्तियाँ
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986; जलवायु परिवर्तन संबंधी राष्ट्रीय कार्य योजना, अंतर्राष्ट्रीय समझौते/प्रयास - मॉण्ट्रियल प्रोटोकॉल, रियो सम्मेलन, जैव विविधता सम्मेलन, क्योटो प्रोटोकॉल, पेरिस समझौता, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन
इकाई-X : उच्चतर शिक्षा प्रणाली (Higher Education System)
उच्चतर अधिगम संस्थाएँ और प्राचीन भारत में शिक्षा
स्वतंत्रता के बाद भारत में उच्चतर अधिगम और शोध का उद्भव
भारत में प्राच्य, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक अधिगम कार्यक्रम
व्यावसायिक/तकनीकी और कौशल आधारित शिक्षा
मूल्य शिक्षा और पर्यावरणपरक शिक्षा
नीतियाँ, शासन और प्रशासन
हिन्दी साहित्य
पाठ्यक्रम में सम्मिलित खंडों का विश्लेषण करना
किसी भी परीक्षा के लिये एक निश्चित पाठ्यक्रम होता है। जहाँ से प्रश्नों को पूछा जाता है। NTA द्वारा भी इस परीक्षा के लिये एक विस्तृत पाठ्यक्रम का निर्धारण किया गया है। अभ्यर्थी को सबसे पहले पाठ्यक्रम में संलग्न पुस्तकों को ध्यान से पढ़ना चाहिये तथा उनके नोट्स बना लेने चाहिये। यदि इस विषय के विगत पाँच वर्षों के प्रश्नों का अवलोकन किया जाए तो पता चलता है कि परीक्षा में NTA द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम में से ही अधिक-से-अधिक प्रश्न पूछे जा रहे हैं।
इसके अलावा हिन्दी में कविता, कहानी, निबंध, उपन्यास तथा उनके लेखकों की क्रमवार सूची को पूछा जाता है। इस प्रकार के प्रश्नों की तैयारी के लिये कविता, कहानी, निबंध, उपन्यास तथा उनके लेखकों की क्रमवार सूची बना लें। जिस खंड से ज्यादा सवाल पूछे जाते हैं उनका बार-बार रिवीजन किया जाना चाहिये।
प्रमुख लेखकों की कृतियाँ, नाटकों के मुख्य पात्र, लेखकों के मुख्य कथन, संस्कृत आचार्यों के काव्य ग्रंथ, काव्य परिभाषाओं के श्लोक आदि पर विशेष ध्यान दें।
हिन्दी की उपभाषाएँ, लिपि और प्रमुख साहित्यकारों की विधाओं को भी अच्छे से याद करें।
अध्ययन योजना को केंद्र में रखना
किसी भी परीक्षा में सफलता हासिल करने के लिये एक अच्छी योजना की ज़रूरत होती है। योजना बना तो सभी लेते हैं लेकिन केंद्रित कुछ ही रह पाते हैं। इसलिये योजना बनाने के साथ-साथ जब तक सफलता न मिले उस पर केंद्रित रहने की आवश्यकता होती है।
सबसे पहले हिन्दी साहित्य के प्रत्येक खंड को अच्छी तरह पढ़ना जरूरी है। प्रत्येक खंड को पढ़ने के लिये समय निर्धारित करें। किसी खंड को बहुत अच्छे से पढ़ लिया और किसी को बिल्कुल नहीं पढ़ा, ऐसी गलती न करें। पढ़ने के साथ-साथ पहले पढ़े गए खंडों का पुनःअवलोकन जरूर करें।
प्रत्येक खंड को पढ़ते समय महत्त्वपूर्ण जानकारियों के शॉर्ट नोट्स बना लें। तैयारी के दौरान जानकारियों को बार-बार अपडेट करते रहें।
प्रमुख सहायक पुस्तकें
UGC NET के हिन्दी साहित्य विषय के लिये विश्वसनीय पुस्तकों का ही इस्तेमाल करना चाहिये।
परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थी को सबसे पहले आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित “हिन्दी साहित्य का इतिहास” संपूर्ण रूप से पढ़ने के साथ-साथ उसके शॉर्ट नोट्स भी बना लेना चाहिये। उसके बाद पाठ्यक्रम में संलग्न किताबों को पढ़ने के साथ-साथ उसके नोट्स भी बना लेना चाहिये।
इसके अलावा कुछ अन्य सहायक पुस्तकों में दृष्टि पब्लिकेशन्स की ‘हिन्दी साहित्य’, जो UGC NET/JRF के लिये नवीनतम परीक्षा प्रणाली पर आधारित है, वरीयता दे सकते हैं। कुछ अन्य पुस्तकों में गोविंद पाण्डेय की हिन्दी ‘साहित्य का वस्तुनिष्ठ इतिहास’, विश्वनाथ त्रिपाठी की ‘हिन्दी साहित्य का सरल इतिहास’ तथा डॉ. भागीरथ मिश्र की ‘काव्यशास्त्र’ आदि पुस्तकों का अध्ययन कर सकते हैं।
विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों का अभ्यास
आप सभी ने NTA UGC NET/JRF के हिन्दी साहित्य का पाठ्यक्रम और पूछे जाने वाले प्रश्नों को देखा ही होगा। यदि इनका ठीक से अवलोकन किया जाए तो एक बात साफ तौर पर उभर कर सामने आती है कि यद्यपि परीक्षा का स्वरूप वस्तुनिष्ठ है किंतु जहाँ कुछ अध्यायों में यह वस्तुनिष्ठता अधिक कठोर है, वहीं कुछ में इसका स्वरूप काफी हद तक विषयनिष्ठ होता है। उदाहरण के लिये, भाषा के विकास का खंड जहाँ अधिक तथ्यात्मक है, वहीं किसी गद्यांश के लेखक की पहचान करने वाला प्रश्न इस रूप में अपेक्षाकृत कम तथ्यात्मक है। यदि हमने पाठ के मूल भाव को ग्रहण कर लिया है तो उसके लेखक की पहचान करना अधिक मुश्किल नहीं है।
इसी प्रकार कथन-कारण के प्रश्नों को भी धाराणागत स्पष्टताओं के माध्यम से हल किया जा सकता है। कहने का भाव यह है कि यदि परीक्षा की प्रकृति को ठीक से समझ लिया जाए, तो आसानी से सफल हुआ जा सकता है। हिन्दी साहित्य पढ़ रहे अभ्यर्थी को NTA द्वारा आयोजित UGC NET/JRF परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्नों का अवलोकन करना चाहिये। जिससे उनको प्रश्नों की प्रकृति तथा स्वरूप का पता चल सके।
परीक्षा में कई प्रश्न और विकल्प दोहराए जाते हैं, इन प्रश्नों को नोट कर लें। विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों को निर्धारित समय में हल करें। प्रश्नपत्र हल करते समय अपने मज़बूत और कमज़ोर पक्ष की पहचान करें और उसी के अनुसार अध्ययन करें।
प्रश्नपत्र-II (हिन्दी साहित्य) का विस्तृत पाठ्यक्रम निम्नलिखित है :
इकाई - I
हिन्दी भाषा और उसका विकास
हिन्दी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : प्राचीन भारतीय आर्य भाषाएँ, मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाएँ- पालि, प्राकृत - शौरसेनी, अर्द्धमागधी, मागधी, अपभ्रंश और उनकी विशेषताएँ; अपभ्रंश, अवहट्ट और पुरानी हिन्दी का संबंध; आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ और उनका वर्गीकरण। हिन्दी का भौगोलिक विस्तार : हिन्दी की उपभाषाएँ, पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, राजस्थानी, बिहारी तथा पहाड़ी वर्ग और उनकी बोलियाँ। खड़ी बोली, ब्रज और अवधी की विशेषताएँ। हिन्दी के विविध रूप : हिन्दी, उर्दू, दक्खिनी, हिन्दुस्तानी। हिन्दी का भाषिक स्वरूप : हिन्दी की स्वनिम व्यवस्था - खंड्य और खंड्येतर, हिन्दी ध्वनियों के वर्गीकरण का आधार, हिन्दी शब्द रचना - उपसर्ग, प्रत्यय, समास, हिन्दी की रूप रचना - लिंग, वचन और कारक व्यवस्था के सन्दर्भ में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया रूप, हिन्दी वाक्य रचना। हिन्दी भाषा प्रयोग के विविध रूप : बोली, मानक भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा और सम्पर्क भाषा। संचार माध्यम और हिन्दी, कम्प्यूटर और हिन्दी, हिन्दी की संवैधानिक स्थिति। देवानागरी लिपि : विशेषताएँ और मानकीकरण।
इकाई - II हिन्दी साहित्य का इतिहास
हिन्दी साहित्येतिहास दर्शन
हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की पद्धतियाँ
हिन्दी साहित्य का काल-विभाजन और नामकरण, आदिकाल की विशेषताएँ एवं साहित्यिक प्रवृत्तियाँ, रासो-साहित्य, आदिकाल हिन्दी का जैन साहित्य, सिद्ध और नाथ साहित्य, अमीर खुसरो की हिन्दी कविता, विद्यापति और उनकी पदावली तथा लौकिक साहित्य
भक्तिकाल
भक्ति-आंदोलन के उदय के सामाजिक-सांस्कृतिक कारण, भक्ति-आंदोलन का अखिल भारतीय स्वरूप और उसका अन्त:प्रादेशिक वैशिष्ट्य।
भक्ति काव्य की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, अलवार सन्त। भक्ति काव्य के प्रमुख सम्प्रदाय और उनका वैचारिक आधार। निर्गुण-सगुण कवि और उनका काव्य।
रीतिकाल
सामाजिक-सांस्कृतिक, पृष्ठभूमि, रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ (रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त)
रीति कवियों का आचार्यत्व।
रीतिकाल के प्रमुख कवि और उनका काव्य
आधुनिक काल
हिन्दी गद्य का उद्भव और विकास। भारतेन्दु पूर्व हिन्दी गद्य, 1857 की क्रान्ति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण, भारतेन्दु और उनका युग, पत्रकारिता का आरंभ और 19वीं शताब्दी की हिन्दी पत्रकारिता, आधुनिकता की अवधारणा।
द्विवेदी युग : महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनका युग, हिन्दी नवजागरण और सरस्वती, राष्ट्रीय काव्य धारा के प्रमुख कवि, स्वछन्दतावाद और उसके प्रमुख कवि।
छायावाद : छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ, छायावाद के प्रमुख कवि, प्रगतिवाद की अवधारणा, प्रगतिवादी काव्य और उसके प्रमुख कवि, प्रयोगवाद और नई कविता, नई कविता के कवि, समकालीन कविता (वर्ष 2000 तक), समकालीन साहित्यिक पत्रकारिता।
हिन्दी साहित्य की गद्य विधाएँ
हिन्दी उपन्यास :
भारतीय उपन्यास की अवधारणा।
प्रेमचन्द पूर्व उपन्यास, प्रेमचन्द और उनका युग।
प्रेमचन्द के परवर्ती उपन्यासकार (वर्ष 2000 तक)।
हिन्दी कहानी :
हिन्दी कहानी उद्भव और विकास, 20वीं सदी की हिन्दी कहानी और प्रमुख कहानी आंदोलन एवं प्रमुख कहानीकार।
हिन्दी नाटक :
हिन्दी नाटक और रंगमंच, विकास के चरण, भारतेन्दु युग, प्रसाद युग, प्रसादोत्तर युग, स्वातंत्र्योत्तर युग, साठोत्तर युग और नया नाटक
प्रमुख नाट्यकृतियाँ, प्रमुख नाटककार (वर्ष 2000 तक)।
हिन्दी एकांकी। हिन्दी रंगमंच के विकास के चरण, हिन्दी का लोक रंगमंच। नुक्कड़ नाटक।
हिन्दी निबंध :
हिन्दी निबंध का उद्भव और विकास, हिन्दी निबंध के प्रकार और प्रमुख निबंधकार।
हिन्दी आलोचना :
हिन्दी आलोचना का उद्भव और विकास। समकालीन हिन्दी आलोचना एवं उसके विविध प्रकार। प्रमुख आलोचक।
हिन्दी की अन्य गद्य विधाएँ :
रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा साहित्य, आत्मकथा, जीवनी और रिपोर्ताज़, डायरी।
हिन्दी का प्रवासी साहित्य : अवधारणा एवं प्रमुख साहित्यकार।
इकाई-III
साहित्यशास्त्र
काव्य के लक्षण, काव्य हेतु और काव्य प्रयोजन।
प्रमुख संप्रदाय और सिद्धांत - रस, अलंकार, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति और औचित्य।
जयशंकर प्रसाद - चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी
धर्मवीर भारती - अंधायुगी
लक्ष्मीनारायण लाल - सिंदूर की होली
मोहन राकेश - आधे-अधूरे, आषाढ़ का एक दिन
हबीब तनवीर - आगरा बाज़ार
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना - बकरी
शंकरशेष - एक और द्रोणाचार्यय
उपेन्द्रनाथ अश्क - अंजो दीदी
मन्नू भंडारी - महाभोज
इकाई -IX
हिन्दी निबंध
भारतेन्दु - दिल्ली दरबार दर्पण, भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?
प्रताप नारायण मिश्र - शिवमूर्ति
बालकृष्ण भट्ट - शिवशंभु के चिट्ठे
रामचन्द्र शुक्ल - कविता क्या है?
हजारीप्रसाद द्विवेदी - नाखून क्यों बढ़ते हैं?
विद्यानिवास मिश्र - मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
अध्यापक पूर्ण सिंह - मजदूरी और प्रेम
कुबेरनाथ राय - उत्तराफाल्गुनी के आस-पास
विवेकी राय - उठ जाग मुसाफिर
नामवर सिंह - संस्कृति और सौंदर्य
इकाई -X
आत्मकथा, जीवनी तथा अन्य गद्य विधाएँ
रामवृक्ष बेनीपुरी - माटी की मूरतेंै
महादेवी वर्मा - ठकुरी बाबा
तुलसीराम - मुर्दहिया
शिवरानी देवी - प्रेमचन्द घर में
मन्नू भंडारी - एक कहानी यह भी
विष्णु प्रभाकर - आवारा मसीहा
हरिवंशराय बच्चन - क्या भूलूँ क्या याद करूँ
रमणिका गुप्ता – आपहृदरी
हरिशंकर परसाई - भोलाराम का जीव
कृष्ण चन्दर - जामुन का पेड़्य
दिनकर - संस्कृति के चार अध्याय
मुक्तिबोध - एक लेखक की डायरी
राहुल सांकृत्यायन - मेरी तिब्बत यात्रा
अज्ञेय - अरे यायावर रहेगा याद
इतिहास
एक प्रभावी रणनीति तैयार करने और UGC NET परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिये इतिहास विषयों के सार और रूपरेखा को समझना महत्त्वपूर्ण है। परीक्षा की प्रकृति को समझने और अपनी तैयारी का आकलन करने के लिये, अभ्यर्थियों को विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों का अध्ययन करना चाहिये। UGC NET इतिहास परीक्षा के लिये तैयार की गई एक सफल रणनीति नीचे प्रस्तुत की गई है, जिसका पालन करके, अभ्यर्थी परीक्षा में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
समग्र अध्ययन
अधिक उन्नत संदर्भ अध्ययन सामग्री पर आगे बढ़ने से पहले NCERT पाठ्यपुस्तकों से पढ़ना शुरू करें।
मानक पुस्तकों या पुस्तकों के माध्यम से प्रसिद्ध इतिहासकारों के कार्यों पर अपना ध्यान बनाएँ रखें।
खंडवार अध्ययन
अपनी तैयारी को प्राचीन, मध्यकालीन, आधुनिक आदि जैसे अलग-अलग ऐतिहासिक कालखंडों में वर्गीकृत करके व्यवस्थित करें।
घटनाओं के कालानुक्रमिक अनुक्रम की समझ बढ़ाने के लिये एक समयरेखा निर्धारित करें।
विषयगत दृष्टिकोण
प्रत्येक ऐतिहासिक कालखंड के अंतर्गत - राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं जैसे विषयों का अन्वेषण करें।
विभिन्न समयावधियों में इन विषयों के विकास की जाँच करें।
कला और वास्तुकला
विभिन्न ऐतिहासिक कालखंडों में कला और वास्तुकला की प्रगति को समझें।
प्रत्येक कालखंड की कला और सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश के बीच संबंध स्थापित करें।
पुरातत्त्व
पुरातात्त्विक पद्धतियों और खोजों से स्वयं को अपडेट रखें।
पुरातात्त्विक खोजों को ऐतिहासिक आख्यानों और घटनाओं के साथ संयोजित करें।
इतिहास लेखन
विभिन्न ऐतिहासिक विचारधाराओं को समझें।
ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ी व्याख्याओं के विकास का अन्वेषण करें।
मानचित्र एवं रेखाचित्रों का उपयोग
ऐतिहासिक घटनाओं को चित्रित करने के लिये मानचित्र और कालखंडों के निर्माण के कौशल को बेहतर करें।
दृश्य सामग्री के माध्यम से ऐतिहासिक तर्कों की प्रस्तुति को बेहतर करें, वैचारिक समझ को बढ़ाएँ और अध्ययन सामग्री को अपडेट रखें।
विगत वर्ष के प्रश्नपत्र
परीक्षा पैटर्न को समझने के लिये विगत वर्ष के प्रश्नपत्रों को हल करें।
प्रश्न निर्माण में प्रमुख विषयों और पुनरावृत्ति रुझानों की पहचान करें।
मॉक टेस्ट
परीक्षा हॉल की स्थितियों के अभ्यास के लिये नियमित मॉक टेस्ट में शामिल हों।
कमज़ोर पक्ष वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने प्रदर्शन का आकलन करें।
मॉक टेस्ट के दौरान समय प्रबंधन का अभ्यास करें।
अध्ययन सामग्री की समीक्षा हेतु रणनीति
कम समय में पाठ्यक्रम के रिवीज़न के लिये संक्षिप्त नोट्स संकलित करें।
संबंधित जानकारी को सुदृढ़ करने के लिये नियमित रूप से नोट्स की समीक्षा करें।
वर्तमान घटनाओं का एकीकरण
ऐतिहासिक घटनाओं और समसामयिक घटनाओं के बीच संबंध स्थापित करें।
ऐतिहासिक विकास की समकालीन प्रासंगिकता को समझें।
स्टडी ग्रुप की भागीदारी
विचारों के आदान-प्रदान के लिये साथियों के साथ सहयोग करें और ग्रुप स्टडी में भाग लें।
अंतर्दृष्टि साझा करें और साथी विद्यार्थियों से भी सीखें।
ऐतिहासिक शोध से अपडेट रहना
ऐतिहासिक शोध में वर्तमान रुझानों और प्रकाशनों के बारे में जानकारी रखें।
प्रसिद्ध समकालीन इतिहासकारों के नवीनतम कार्यों से अवगत रहें।
समय प्रबंधन
ऐतिहासिक कालखंड और विषयों का अध्ययन करने के लिये पर्याप्त समय दें।
विषयों को उनके वेटेज और महत्त्व के आधार पर प्राथमिकता दें।
पुनरावृत्ति
ऐतिहासिक तथ्यों, तिथियों और स्पष्टीकरणों को नियमित रूप से दोहराएँ।
मुख्य विवरणों को याद रखने में सहायता के लिये छोटे-छोटे सूत्रों का प्रयोग करें।
माइंड मैप और डायग्राम
ऐतिहासिक अवधारणाओं के लिये माइंड मैप बनाएँ।
ऐतिहासिक प्रक्रियाओं को दर्शाने के लिये डायग्राम्स का उपयोग करें।
फीडबैक और सुधार
मेंटर या शिक्षकों से निरंतर फीडबैक लें।
अपने कमज़ोर पक्षों को लगातार सुधारने का प्रयास करें।
प्रश्नपत्र-II (इतिहास) का विस्तृत पाठ्यक्रम निम्नलिखित है :
इकाई - I
स्रोतों संबंधी वार्त्ता : पुरातत्त्वीय स्रोत - अन्वेषण, उत्खनन, पुरालेख विद्या तथा मुद्राशास्त्र की जानकारी। पुरातत्त्वीय स्थलों का काल निर्धारण। साहित्यिक स्रोत - स्वदेशी साहित्य (प्राथमिक एवं द्वितीयक), धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष साहित्य, मिथक, दंत-कथाओं आदि के काल निर्धारण की समस्याएँ। विदेशी विवरण - यूनानी, चीनी और अरबी विद्वान।
पशुचारण तथा खाद्य उत्पादन : नवपाषाण और ताम्रपाषाण युग - अधिवासन, वितरण, औज़ार और विनिमय का ढाँचा।
सिंधु घाटी/हड़प्पा सभ्यता : उद्भव, विस्तार, मुख्य स्थल, अधिवास का स्वरूप, शिल्प विशिष्टता, धर्म, समाज और राज्य शासन विधि, सिंधु घाटी सभ्यता का ह्रास, आंतरिक और बाहरी व्यापार, भारत में प्रथम शहरीकरण।
वैदिक तथा उत्तरकालीन वैदिक युग : आर्यों से संबंधित विवाद, राजनीतिक तथा सामाजिक संस्थाएँ, राज्य संरचना और राज्य के सिद्धांत; वर्ण और सामाजिक स्तरीकरण का उद्भव, धार्मिक और दार्शनिक विचार। लौह प्रौद्योगिकी का प्रारंभ, दक्षिण भारत के महापाषाण।
राज्य शासन व्यवस्था का विस्तार : महाजनपद, राजतंत्रीय और गणतंत्रीय राज्य, आर्थिक और सामाजिक विकास तथा छठी शताब्दी ई.पू. में द्वितीय शहरीकरण का उद्भव; अशास्त्रीय पंथ - जैन धर्म, बौद्ध धर्म और आजीवक सम्प्रदायों का उद्भव।
इकाई - II
राज्य से साम्राज्य तक : मगध का उत्थान, सिकंदर के अधीन यूनानी आक्रमण और इसके प्रभाव, मौर्य साम्राज्य का प्रसार, मौर्यकालीन राज्यव्यवस्था, समाज, अर्थव्यवस्था; अशोक का धम्म और उसकी प्रकृति, मौर्य साम्राज्य का ह्रास और विघटन, मौर्यकालीन कला और वास्तुकला, अशोक के राज्यादेश - भाषा और लिपि।
साम्राज्य का अंत एवं क्षेत्रीय ताकतों का उद्भव : इंडो-यूनानी, शुंग, सातवाहन, कुषाण और शक-क्षत्रप, संगम साहित्य, संगम साहित्य में प्रतिबिम्बित दक्षिण भारत की राज्य शासन प्रणाली और समाज। दूसरी शताब्दी बी.सी.ई. से तीसरी शताब्दी सी.ई. तक व्यापार और वाणिज्य, रोमन जगत के साथ व्यापार, महायान बौद्ध धर्म, खारवेल और जैन धर्म का उद्भव, मौर्योत्तर काल में कला और वास्तुकला, गांधार, मथुरा और अमरावती शैलियाँ।
गुप्त वाकाटक युग : राज्य शासन व्यवस्था और समाज, कृषि अर्थव्यवस्था, भू-अनुदान, भू-राजस्व और भू-अधिकार, गुप्तकालीन सिक्के। मंदिर स्थापत्य कला का प्रारम्भ, पौराणिक हिन्दू धर्म का उद्भव, संस्कृत भाषा और साहित्य का विकास। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, खगोल विज्ञान, गणित और औषधि में विकास।
हर्ष तथा उसका युग : प्रशासन और धर्म।
आंध्र देश में सालंकायन वंश और विष्णुकुंडीन वंश।
इकाई -III
क्षेत्रीय राज्यों का उद्भव : दक्षिण के राज्य - गंग, कदंब वंश, पश्चिमी और पूर्वी चालुक्य वंश, राष्ट्रकूट, कल्याणी चालुक्य, काकतीय, होयसल और यादव वंश।
दक्षिणी भारत के साम्राज्य : पल्लव, चेर, चोल, पांड्य वंश।
पूर्वी भारत के साम्राज्य : बंगाल के पाल और सेन, कामरूप के वर्मन, उड़ीसा के भौमाकार और सोमवंशी।
पश्चिमी भारत के साम्राज्य : वल्लभी के मैत्रिक और गुजरात के चालुक्य वंश।
उत्तरी भारत के साम्राज्य : गुर्जर-प्रतिहार, कलचुरि-चेदि, गहड़वाल वंश और परमार वंश।
प्रारम्भिक मध्यकालीन भारत की विशेषताएँ : प्रशासन और राजनीतिक ढाँचा, राजतंत्र का वैधीकरण।
कृषि अर्थव्यवस्था : भूमि अनुदान, उत्पादन संबंधी बदलते संबंध; श्रेणीबद्ध भूमि अधिकार और किसान वर्ग, जल संसाधन, कर प्रणाली, सिक्के और मुद्रा प्रणाली।
व्यापार एवं शहरीकरण : व्यापार का ढाँचा और शहरी बस्तियों का स्वरूप, पत्तन और व्यापारिक मार्ग, व्यापारी माल और विनिमय, व्यापार संघ (गिल्ड); दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापार और उपनिवेशीकरण
ब्राह्मण धर्मों का विकास : वैष्णववाद और शैववाद; मंदिर; संरक्षण और क्षेत्रीय बहुशाखन; मंदिर स्थापत्य कला और क्षेत्रीय शैलियाँ; दान, तीर्थ एवं भक्ति, तमिल भक्ति आंदोलन - शंकर, माधव तथा रामानुजाचार्य।
समाज : वर्ण, जाति और जातियों का प्रचुरोद्भवन, स्त्रियों की स्थिति; लिंग, विवाह और सम्पत्ति संबंध; सार्वजनिक जीवन में स्त्रियाँ। किसानों के रूप में जनजातियाँ तथा वर्ण व्यवस्था में उनका स्थान, अस्पृश्यता।
शिक्षा और शैक्षिक संस्थाएँ : शिक्षा के केंद्रों के रूप में अग्रहार, मठ और महाविहार। क्षेत्रीय भाषाओं का विकास।
प्रारम्भिक मध्यकालीन भारत में राज्य निर्माण की चर्चाएँ : (अ) सामन्त मॉडल (ब) खंडीय मॉडल (स) समन्वयी मॉडल।
अरब के साथ संबंध : सुलेमान, गज़नवी की विजय; अलबरूनी का यात्रा विवरण।
इकाई - IV
मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत : पुरातत्त्वीय, पुरालेखीय और मुद्राशास्त्रीय स्रोत, भौतिक साक्ष्य और स्मारक; इतिवृत्त; साहित्यिक स्रोत - फारसी, संस्कृत और क्षेत्रीय भाषाएँ; दफ्तर खाना - फरमान, बहियाँ/पोथियाँ/अख़बारात; विदेशी यात्रियों के वृत्तांत - फारसी।
राजनीतिक विकास : दिल्ली सल्तनत - गौरी, तुर्क, खिलज़ी, तुगलक, सैय्यद और लोदी। दिल्ली सल्तनत का ह्रास।
मुगल साम्राज्य की नींव : बाबर, हुमायूँ और सूर वंश; अकबर से औरंगज़ेब तक प्रसार और सुदृढ़ीकरण। मुगल साम्राज्य का पतन।
उत्तरकालीन मुगल शासक और मुगल साम्राज्य का विघटन
विजयनगर और बहमनी : दक्षिण सल्तनत; बीजापुर, गोलकुंडा, बीदर, बरार और अहमदनगर-उत्थान, प्रसार और विघटन; पूर्वी गंग तथा सूर्यवंशी गजपति।
मराठों का उत्थान और शिवाजी द्वारा स्वराज की स्थापना; पेशवाओं के अधीन उसका विस्तार; मुगल-मराठों के संबंध, मराठा राज्य संघ, पतन के कारण।
इकाई -V
प्रशासन और अर्थव्यवस्था : सल्तनतकालीन प्रशासन, राज्य का स्वरूप - धर्मतंत्रीय एवं ईशकेंद्रित, केंद्रीय, प्रांतीय और स्थानीय प्रशासन, उत्तराधिकार का नियम।
शेरशाह के प्रशासनिक सुधार; मुगल प्रशासन - केंद्रीय, प्रांतीय और स्थानीय - मनसबदारी और ज़ागीरदारी पद्धतियाँ।
दक्षिण में प्रशासनिक प्रणाली : विजयनगर राज्य और शासन व्यवस्था, बहमनी प्रशासनिक प्रणाली; मराठा प्रशासन - अष्टप्रधान।
दिल्ली सल्तनत और मुगलों के शासनकाल में सीमा संबंधी नीतियाँ।
सल्तनत और मुगल काल में अंतर्राज्यीय संबंध।
कृषि उत्पादन और सिंचाई व्यवस्था, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, किसान वर्ग, अनुदान और कृषि ऋण, शहरीकरण तथा जनांकिकीय ढाँचा।
उद्योग : सूती कपड़ा, हस्तशिल्प, कृषि - आधारित उद्योग, संगठन, कारखाने और प्रौद्योगिकी।
व्यापार तथा वाणिज्य : राज्य नीतियाँ, आंतरिक और बाह्य व्यापार - यूरोपीय व्यापार, व्यापार केंद्र एवं पत्तन, परिवहन तथा संचार।
हुंडी (विनिमय पत्र) और बीमा, राज्य की आय तथा व्यय, मुद्रा, टकसाल प्रणाली, दुर्भिक्ष तथा किसान विद्रोह।
इकाई -VI
समाज और संस्कृति : सामाजिक संगठन एवं सामाजिक संरचना।
सूफी : उनके सिलसिले, विश्वास और प्रथाएँ, प्रमुख सूफी संत, सामाजिक समकालीकरण।
भक्ति आंदोलन : शैववाद, वैष्णववाद, शक्तिवाद।
मध्यकालीन युग के संत : उत्तर और दक्षिण के संत, सामाजिक-राजनीतिक तथा धार्मिक जीवन पर उनका प्रभाव। मध्यकालीन भारत की स्त्री संत।
सिख आंदोलन : गुरुनानक देव - उनकी शिक्षाएँ और प्रथाएँ, आदिग्रंथ; खालसा।
सामाजिक वर्गीकरण : शासक वर्ग, प्रमुख धार्मिक समूह, उलेमा, वणिक तथा व्यावसायिक वर्ग- राजपूत समाज।
ग्रामीण समाज : छोटे सामन्त, ग्राम कर्मचारी, कृषक और गैर-कृषक वर्ग, शिल्पकार।
महिलाओं की स्थिति : ज़नाना व्यवस्था - देवदासी व्यवस्था।
शिक्षा का विकास, शिक्षा के केंद्र और पाठ्यक्रम, मदरसा शिक्षा।
ललित कलाएँ : चित्रकारी की प्रमुख शैलियाँ - मुगल, राजस्थानी, पहाड़ी, गढ़वाली; संगीत का विकास।
कला और वास्तुकला, इंडो-इस्लामी वास्तुकला, मुगल वास्तुकला, क्षेत्रीय वास्तुकला की शैलियाँ।
इंडो-अरबी वास्तुकला, मुगल उद्यान, मराठा दुर्ग, पूजा गृह तथा मंदिर।
इकाई - VII
आधुनिक भारतीय इतिहास के स्रोत : अभिलेखागारीय सामग्री, जीवन चरित और संस्मरण, समाचार पत्र, मौखिक साक्ष्य, सृजनात्मक साहित्य और चित्रकारी, स्मारक, सिक्के।
ब्रिटिश सत्ता का उत्थान : 16वीं से 18वीं शताब्दी के मध्य भारत में यूरोपीय व्यापारी - पुर्तगाली, डच, फ्राँसीसी और ब्रिटिश।
भारत में ब्रिटिश आधिपत्य क्षेत्र (डोमिनियन) की स्थापना एवं विस्तार।
भारत के प्रमुख राज्यों के साथ ब्रिटिश संबंध - बंगाल, अवध, हैदराबाद, मैसूर, कर्नाटक और पंजाब।
1857 का विद्रोह, कारण, प्रकृति एवं प्रभाव।
कंपनी और ताज (क्राउन) का प्रशासन; ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन केंद्रीय तथा प्रांतीय ढाँचे का क्रमिक विकास।
कंपनी के शासनकाल में सर्वोच्च सत्ता, सिविल सेवा, न्यायतंत्र, पुलिस और सेना; ताज (क्राउन) के अधीन रजवाड़ों की रियासतों में सर्वोच्च सत्ता के प्रति ब्रिटिश नीति
स्थानीय स्वशासन
सांविधानिक परिवर्तन, 1909-1935
इकाई - VIII
उपनिवेशीय अर्थव्यवस्था : बदलती संरचना, व्यापार की मात्रा और दिशा।
कृषि का विस्तार तथा वाणिज्यीकरण, भू-अधिकार, भू-बंदोबस्त, ग्रामीण ऋणग्रस्तता, भूमिहीन श्रम, सिंचाई और नहर व्यवस्था।
उद्योगों का ह्रास - शिल्पकारों की बदलती सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ; वि-शहरीकरण; आर्थिक अपवहन; विश्व युद्ध और अर्थव्यवस्था।
ब्रिटिश औद्योगिक नीति; मुख्य आधुनिक उद्योग; कारखाना कानून का स्वरूप; श्रम और मज़दूर संघ आन्दोलन।
मौद्रिक नीति, बैंकिंग, मुद्रा और विनिमय, रेलवे तथा सड़क परिवहन, संचार-डाक और टेलीग्राफ।
नूतन शहरी केंद्रों का विकास; नगर आयोजन और स्थापत्य की नूतन विशेषताएँ, शहरी समाज और शहरी समस्याएँ।
अकाल, महामारी और सरकारी नीति।
जनजाति और किसान आंदोलन
संक्रमणकाल में भारतीय समाज : ईसाई धर्म से संपर्क - ईसाई मिशन और मिशनरी; भारत की सामाजिक एवं आर्थिक प्रथाओं और धार्मिक धारणाओं की समालोचना; शैक्षिक तथा अन्य गतिविधियाँ।
नई शिक्षा : सरकारी नीति; स्तर और विषयवस्तु; अंग्रेज़ी भाषा; विज्ञान, प्रौद्योगिकी, लोक स्वास्थ्य एवं औषधि का विकास - आधुनिकतावाद की ओर।
भारतीय पुनर्जागरण : सामाजिक-धार्मिक सुधार; मध्यम वर्ग का उद्भव; जातिगत संगठन और जातीय गतिशीलता।
महिलाओं से संबंधित प्रश्न : राष्ट्रवादी चर्चा; महिलाओं के संगठन; महिलाओं से संबंधित ब्रिटिश कानून, लिंग पहचान एवं संवैधानिक स्थिति।
प्रिंटिंग प्रेस : पत्रकारिता संबंधी गतिविधि तथा लोकमत।
भारतीय भाषाओं और साहित्यिक विधाओं का आधुनिकीकरण - चित्रकारी, संगीत और प्रदर्शन कलाओं का पुनर्स्थापन।
इकाई -IX
भारतीय राष्ट्रवाद का उत्थान : राष्ट्रवाद का सामाजिक एवं आर्थिक आधार।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धांत और कार्यक्रम, 1885–1920 : प्रारंभिक राष्ट्रवादी, स्वाग्रही राष्ट्रवादी और आंदोलनकारी।
स्वदेशी एवं स्वराज।
गांधीवादी जन आंदोलन; सुभाष चंद्र बोस और आई.एन.ए.; राष्ट्रीय आंदोलन में मध्यवर्ग की भूमिका; राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी
वामपंथी राजनीति।
दलित वर्ग आंदोलन।
सांप्रदायिक राजनीति; मुस्लिम लीग एवं पाकिस्तान की उत्पत्ति।
स्वतंत्रता और विभाजन की ओर।
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत : विभाजन की चुनौतियाँ; भारतीय रजवाड़ों की रियासतों का
एकीकरण; कश्मीर, हैदराबाद तथा जूनागढ़।
एकीकरण; कश्मीर, हैदराबाद तथा जूनागढ़।
बी.आर. अम्बेडकर - भारतीय संविधान का निर्माण एवं इसकी विशेषताएँ।
अधिकारी वर्ग का ढाँचा।
नई शिक्षा नीति।
आर्थिक नीतियाँ और नियोजन प्रक्रिया; विकास, विस्थापन और जनजातीय मुद्दे।
राज्यों का भाषायी पुनर्गठन; केंद्र-राज्य संबंध।
विदेश नीति संबंधी पहल : पंचशील; भारतीय राजनीति की गत्यात्मकता - आपातकाल; भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण।
इकाई -X
ऐतिहासिक प्रणाली, शोध, कार्य प्रणाली तथा इतिहास लेखन।
इतिहास का विषय विस्तार, सीमा और महत्त्व।
इतिहास में वस्तुनिष्ठता और पूर्वाग्रह।
अन्वेषणात्मक संक्रिया, इतिहास में आलोचना, संश्लेषण तथा प्रस्तुति।
इतिहास और इसके सहायक विज्ञान।
इतिहास - विज्ञान, कला या सामाजिक विज्ञान
इतिहास में कारण-कार्य संबंध और कल्पना।
क्षेत्रीय इतिहास का महत्त्व।
भारतीय इतिहास में आधुनिक प्रवृत्तियाँ।
शोध कार्यप्रणाली।
इतिहास में प्राक्कल्पना।
प्रस्तावित शोध का क्षेत्र।
स्रोत - आँकड़ों का संग्रह, प्राथमिक/द्वितीयक, मूल तथा पारगमनीय स्रोत।
ऐतिहासिक शोध प्रवृत्तियाँ।
वर्तमान भारतीय इतिहास लेखन।
इतिहास में विषय का चयन।
नोट्स लेना, संदर्भ निर्देश, पाद टिप्पणियाँ और ग्रंथ-सूची।
थीसिस/शोध प्रबंध और निर्दिष्ट कार्य को पूरा करना।
साहित्यिक चोरी, बौद्धिक बेईमानी एवं इतिहास लेखन।
ऐतिहासिक लेखन का प्रारंभ - यूनानी, रोमन एवं गिरजाघर संबंधी इतिहास लेखन।
पुनर्जागरण और इतिहास लेखन पर इसका प्रभाव।
इतिहास लेखन के नकारात्मक तथा सकारात्मक समर्थक (स्कूल)।
इतिहास लेखन में बर्लिन क्रांति - वॉन रैंक।
इतिहास का मार्क्सवादी दर्शन - वैज्ञानिक भौतिकवाद।
इतिहास का चक्रीय सिद्धांत - ओसवाल्ड स्पेंगलर।
चुनौती एवं प्रत्युत्तर सिद्धांत - अर्नोल्ड जोसफ टॉयनबी।
इतिहास में उत्तर-आधुनिकतावाद।
संकल्पनाएँ, विचार और अवधियाँ/शब्दावलियाँ
भारतवर्ष
सभा और समिति
वर्णाश्रम
वेदांत
पुरुषार्थ
ऋण
संस्कार
यज्ञ
गणराज्य
जनपद
कर्म का सिद्धांत
दंडनीति/अर्थशास्त्र/सप्तांग
धर्मविजय
स्तूप/चैत्य/विहार
नागर/द्रविड़/बेसर
बोधिसत्व/तीर्थंकर
अलवार/नयनार
श्रेणी
सत्याग्रह
स्वदेशी
पुन:परिवर्तनवाद
सम्प्रदायवाद
प्राच्यवाद
प्राच्य निरंकुशतावाद
वि-औद्योगीकरण
भारतीय पुनर्जागरण
आर्थिक अपवहन
भूमि-छिद्र-विधान-न्याय
कर-भोग-भाग
विष्टि
स्त्रीधन
स्मारक पत्थर
अग्रहार
आइन-ए-दहसाला
परगना
शहना-ए-मण्डी
महालवाड़ी
हिन्द स्वराज
वणिकत्ववाद
आर्थिक राष्ट्रवाद
खिलाफत
सुलह-ए-कुल
तुर्कान-ए-चहलगानी
वतन
बलूता
उपनिवेशवाद
परमोच्चशक्ति
द्वैध शासन
संघवाद
उपयोगितावाद
निस्यंदन सिद्धांत
अग्रवर्ती नीति
व्यपगत सिद्धांत
सहायक सन्धि (मैत्री)
तकावी
इक्ता
जज़िया
ज़कात
मदद-ए-माश
अमरम
राय-रेखो
जंगम/दास
मदरसा/मकतब
चौथ/सरदेशमुखी
सराय
पोलिगर
जागीर/शरियत
दस्तूर
मनसब (ओहदा)
देशमुख
नाडु/उर
उलेमा
फरमान
सुधर्मवाद
भूदान
पंचशील
मिश्रित अर्थव्यवस्था
समाजवाद
हिन्दू कोड बिल
ऐतिहासिक पद्धतियाँ
साहित्यिक चोरी
राजनीति विज्ञान
किसी भी परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिये रणनीति एक महत्त्वपूर्ण खंड है। अभ्यर्थियों को पढ़ने व पाठ्यक्रम को कवर करने में लगने वाले समय तथा रिवीज़न में लगने वाले समय के मध्य संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता होती है। इसी को ध्यान में रखते हुए हम ‘UGC-NET प्रश्नपत्र-2: राजनीति विज्ञान’ हेतु एक 4-चरणीय रणनीति की चर्चा करेंगे।
चरण-1 : पाठ्यक्रम का समग्र विश्लेषण
अभ्यर्थियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सर्वप्रथम समग्र पाठ्यक्रम से भलीभाँति परिचित हों। उल्लेखनीय है कि राजनीति विज्ञान हेतु UGC द्वारा जारी किया गया पाठ्यक्रम 10 इकाइयों में विभाजित है। प्रत्येक इकाई विभिन्न केंद्रीय , राज्य, सम व निजी विश्वविद्यालयों के पूर्व-स्नातक व परा-स्नातक कोर्सेज़ में राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम के अंतर्गत शामिल बिंदुओं को प्रतिबिंबित करती है। इकाई-1 ‘राजनीतिक सिद्धांत’ पर केंद्रित है, जिसके अंतर्गत विभिन्न राजनीतिक परंपराएँ व अवधारणाएँ कवर की जाती हैं। इकाई-2 के अंतर्गत राजनीतिक विचारकों की एक सूची शामिल है, ये सभी वैश्विक विचारक हैं। इकाई-3 विशिष्ट रूप से भारतीय राजनीतिक विचारकों पर केंद्रित है, जिसके अंतर्गत प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के प्रमुख राजनीतिक विचारक शामिल हैं। इकाई-4 ‘तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण’ पर केंद्रित है। इस इकाई में विद्यार्थी कई टॉपिक्स में इकाई-1 के साथ समानता देख पाते हैं। इकाई-5 अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर केंद्रित है और यह इकाई-6, जो कि भारतीय विदेश नीति पर आधारित है, के साथ कई मामलों में समानता दर्शाती है। इन दोनों ही इकाइयों में कूटनीति-संबद्ध अवधारणाओं, संस्थाओं व विमर्श में साझे तत्त्व देखे जा सकते हैं। इसी प्रकार इकाई-9 व 10 में क्रमशः ‘लोक प्रशासन’ व ‘शासन’ (भारतीय संदर्भ) के मध्य साझे तत्त्व दिखाई देते हैं।
चरण-2 : विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों का महत्त्व
अभ्यर्थियोंं को विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों का भी गहन विश्लेषण करना चाहिये। इसके माध्यम से उन्हें समय प्रबंधन व परीक्षा की प्रकृति के प्रति समग्र समझ विकसित करने में सहायता मिलती है। यह विद्यार्थियों की प्रश्नों की प्रकृति की समझ को भी बेहतर करता है, जिससे उन्हें आत्म-विश्लेषण करने में सहायता मिलती है।
चरण-3 : प्रश्नों के प्रकार
सामान्यतः UGC-NET प्रश्नपत्र-2 में 6 प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं :
प्रत्यक्ष प्रश्न (एकरेखीय)
विषयनिष्ठ कथन विश्लेषण (2 प्रकार)
वक्तव्य (किसने क्या कहा?)
कालानुक्रम आधारित प्रश्न
पुस्तकों व उनके लेखकों की पहचान से संबंधित प्रश्न
सूचियों को सुमेलित करने से संबंधित प्रश्न
चरण-4 : मॉक टेस्ट्स व रिवीज़न का महत्त्व
विद्यार्थियों को ऐसी अध्ययन समयसारणी विकसित करने का प्रयास करना चाहिये, जिसके अंतर्गत प्रत्येक टॉपिक को उसके भारांश व विद्यार्थी की उसमें प्रवीणता के आधार पर समय आवंटित किया गया हो। जटिल अथवा चुनौतीपूर्ण टॉपिक्स को, यह सुनिश्चित करते हुए अधिक समय दिया जाना चाहिये, कि समस्त पाठ्यक्रम कवर किया जा रहा हो। व्यवस्थित नोट्स तैयार करना, नियमित अंतराल पर रिवीज़न व मॉक टेस्ट्स हल करना भी विद्यार्थियों का लक्ष्य होना चाहिये। उन्हें राजनीति विज्ञान से संबंधित मूलभूत अवधारणाओं व सिद्धांतों की समझ विकसित करते हुए राजनीतिक सिद्धांत, तुलनात्मक राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, भारतीय शासन प्रणाली एवं राजनीति तथा लोक प्रशासन के मूलभूत तत्त्वों की समझ विकसित करने का प्रयास करना चाहिये। विद्यार्थियों को राजनीति विज्ञान के क्षेत्र से संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, शासकीय नीतियों व अन्य प्रासंगिक टॉपिक्स के संदर्भ में समसामयिक जानकारी भी अपडेट करते रहना चाहिये।
प्रश्नपत्र-II (राजनीति विज्ञान) का विस्तृत पाठ्यक्रम निम्नलिखित है :
कन्फ्यूशियस, प्लेटो, अरस्तू, मैकियावेली, हॉब्स, लॉक, रूसो, हीगेल, मैरी वुल्स्टनक्राफ्ट, जॉन स्टुअर्ट मिल, कार्ल मार्क्स, ग्राम्शी, हैना आरेंट, फ्रांज़ फेनन, माओ त्से-तुंग, जॉन रॉल्स।
इकाई – III : भारतीय राजनीतिक विचारक (Indian Political Thought)
धर्मशास्त्र, कौटिल्य, अगानासुत्त, ज़ियाउद्दीन बरनी, कबीर, पंडिता रमाबाई, बाल गंगाधर तिलक, स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, श्री अरबिंदो, पेरियार ई. वी. रामास्वामी, मुहम्मद इकबाल, एम.एन. रॉय, वी.डी. सावरकर, डॉ. बी.आर. अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, दीनदयाल उपाध्याय।
इकाई – IV : तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण (Comparative Political Analysis)
उपागम : संस्थागत, राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक अर्थव्यवस्था तथा नव-संस्थावाद; तुलनात्मक विधियाँ।
उपनिवेशवाद तथा विऔपनिवेशीकरण : उपनिवेशवाद के रूप, औपनिवेशिकता-विरोधी संघर्ष तथा विऔपनिवेशीकरण (डिकॉलोनाइज़ेशन)।
राष्ट्रवाद : यूरोपीय तथा गैर-यूरोपीय।
राज्य सिद्धांत : पूंजीवादी और समाजवादी समाजों में राज्य की प्रकृति पर वाद-विवाद; उत्तर-औपनिवेशिक राज्य; कल्याणकारी राज्य; वैश्वीकरण तथा राष्ट्र-राज्य।
राजनीतिक शासन-प्रणालियाँ : लोकतांत्रिक (निर्वाचकीय, उदार, बहुमत आधारित, सहभागी) तथा गैर-लोकतांत्रिक शासन प्रणालियाँ (पैतृकवाद, अधिकारीतंत्रीय प्राधिकारवाद, सैन्य तानाशाही, सर्वाधिकारवाद तथा फासीवाद)।
संविधान तथा संविधानवाद : संविधान के रूप, विधि का शासन, न्यायिक स्वतंत्रता तथा उदारवादी संविधानवाद; आपातकालीन शक्तियाँ और संविधानवाद का संकट।
लोकतंत्रीकरण : लोकतांत्रिक संक्रमण तथा समेकन।
विकास : अल्पविकास, निर्भरता, आधुनिकीकरण, विश्व व्यवस्था सिद्धांत, विकास तथा लोकतंत्र।
शक्ति की संरचनाएँ : शासक वर्ग, शक्ति संपन्न अभिजन वर्ग, लोकतांत्रिक अभिजनवाद।
कर्त्ता और प्रक्रियाएँ : निर्वाचन पद्धतियाँ, राजनीतिक दल तथा दलीय प्रणाली, हित-समूह, सामाजिक आंदोलन, नव सामाजिक आंदोलन, गैर-सरकारी संगठन (NGO) तथा नागरिक समाज अभियान; क्रांतियाँ।
इकाई – V : अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations)
अंतर्राष्ट्रीय संबंध के अध्ययन के उपागम : आदर्शवाद, यथार्थवाद, संरचनात्मक मार्क्सवाद, नव उदारवाद, नव यथार्थवाद, सामाजिक रचनावाद, आलोचनात्मक अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत, नारीवाद, उत्तर- आधुनिकतावाद।
अवधारणाएँ : राज्य, राज्य प्रणाली तथा गैर-राज्यकर्त्ता, शक्ति, संप्रभुता, सुरक्षा - परंपरागत और गैर-परंपरागत।
संघर्ष तथा शांति : युद्ध की बदलती हुई प्रकृति; सामूहिक - विनाशकारी हथियार; निवारण; संघर्ष वियोजन, संघर्ष रूपांतरण।
संयुक्त राष्ट्र : लक्ष्य, उद्देश्य, संयुक्त राष्ट्र की संरचना तथा इसकी कार्यप्रणाली का मूल्यांकन; शांति और विकास से संबंधित दृष्टिकोण, मानवीय हस्तक्षेप। अंतर्राष्ट्रीय विधि; अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध की राजनीतिक अर्थव्यवस्था : वैश्वीकरण, वैश्विक अभिशासन तथा ब्रेटन वुड्स प्रणाली, उत्तर-दक्षिण संवाद, विश्व व्यापार संगठन (WTO), जी-20, ब्रिक्स।
क्षेत्रीय संगठन : यूरोपीय संघ, अफ्रीकी संघ, शंघाई सहयोग संगठन, आसियान।
समसामयिक चुनौतियाँ : अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन तथा पर्यावरणीय चिंताएँ, मानवाधिकार, प्रवासन तथा शरणार्थी; गरीबी तथा विकास; धर्म, संस्कृति तथा पहचान आधारित राजनीति की भूमिका।
इकाई – VI : भारत की विदेश नीति (India’s Foreign Policy)
भारत की विदेश नीति संबंधी दृष्टिकोण : उत्तर औपनिवेशिक, विकासात्मक, उदयमान शक्ति तथा उभरती हुई राजनीतिक अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की पहचान।
भारत की विदेश नीति में निरंतरता और बदलाव : सिद्धांत तथा निर्धारक तत्त्व; गुटनिरपेक्ष आंदोलन : गुटनिरपेक्ष आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तथा प्रासंगिकता; भारत की परमाणु नीति।
प्रमुख शक्तियों के साथ भारत के संबंध : संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत समाजवादी गणतंत्रों का संघ (सोवियत संघ)/रूस, पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना।
बहुध्रुवीय दुनिया के साथ भारत के संबंध : यूरोपीय संघ, ब्रिक्स, आसियान, शंघाई सहयोग संगठन, अफ्रीकी संघ, दक्षिणी अफ्रीकी विकास समुदाय तथा खाड़ी सहयोग परिषद् के साथ भारत के संबंध।
पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध : सार्क, गुजराल सिद्धांत, लुक ईस्ट/एक्ट ईस्ट (पूर्व की ओर देखो/पूर्व की ओर कार्य करो), लुक वेस्ट (पश्चिम की ओर देखो)।
अंतर्राष्ट्रीय शासन व्यवस्था में भारत की संधि वार्ता रणनीति : संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल।
समसामयिक चुनौतियाँ : समुद्री सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरणीय सुरक्षा, प्रवासन तथा शरणार्थी, जल संसाधन, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, साइबर सुरक्षा।
इकाई – VII : भारत में राजनीतिक संस्थाएँ (Political Institutions in India)
भारतीय संविधान का निर्माण : औपनिवेशिक विरासत; भारत के संविधान निर्माण में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का योगदान।
संविधान सभा : गठन, वैचारिक आधार, संवैधानिक बहस।
संविधान का दर्शन : उद्देशिका, मौलिक अधिकार, राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व।
भारत में संविधानवाद : लोकतंत्र, सामाजिक परिवर्तन, राष्ट्रीय एकता, नियंत्रण और संतुलन, मौलिक संरचना पर बहस, संविधान संशोधन।
संसद : संरचना, भूमिका तथा कार्यपद्धति, संसदीय समितियाँ।
न्यायपालिका : उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, न्यायिक समीक्षा, न्यायिक सक्रियतावाद व न्यायिक सुधार।
राज्यों में कार्यपालिका तथा विधानमंडल : राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राज्य विधानमंडल।
भारत में संघवाद : सशक्त केंद्रपरक संरचना, असममित संघीय प्रावधान तथा अनुकूलन, अंतरसरकारी समन्वयन क्रियाविधि तथा अंतर-राज्यीय परिषद; उभरती हुई प्रवृत्तियाँ। निर्वाचन प्रक्रिया तथा भारत का निर्वाचन आयोग : निर्वाचन प्रक्रिया का संचालन, नियम, चुनाव सुधार।
स्थानीय शासन संस्थाएँ : कार्यपद्धति तथा सुधार।
संवैधानिक तथा सांविधिक निकाय : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग।
इकाई – VIII : भारत में राजनीतिक प्रक्रियाएँ (Political Processes in India)
राज्य, अर्थव्यवस्था तथा विकास : भारतीय राज्य की प्रकृति, विकास योजना मॉडल, नव आर्थिक नीति, वृद्धि तथा मानव विकास।
वैश्वीकरण की प्रक्रिया : सामाजिक तथा आर्थिक निहितार्थ।
पहचान की राजनीति : धर्म, जनजाति, जाति, क्षेत्र, भाषा।
सामाजिक आंदोलन : दलित, जनजातीय, महिला, किसान, श्रमिक।
नागरिक समाज समूह : गैर-दलीय सामाजिक मंच, गैर-सरकारी संगठन, सामाजिक कार्य समूह।
भारतीय राजनीति का क्षेत्रीयकरण : भारतीय राज्यों का पुनर्गठन, राजनीतिक तथा आर्थिक इकाई के रूप में राज्य, उप-राज्य क्षेत्र, क्षेत्रीय विषमता, नए राज्यों की मांग।
भारत में जेंडर(लिंग) और राजनीति : समानता तथा प्रतिनिधित्व से जुड़े मुद्दे।
राजनीतिक दलों की विचारधारा तथा सामाजिक आधार : राष्ट्रीय दल, राज्य-स्तरीय दल।
चुनावी राजनीति : सहभागिता, चुनावी प्रतिद्वंद्विता, प्रतिनिधित्व, उभरती हुई प्रवृत्तियाँ।
इकाई – IX : लोक प्रशासन (Public Administration)
लोक प्रशासन : अर्थ तथा विकास, लोक तथा निजी प्रशासन; उपागम - प्रणाली सिद्धांत, निर्णय-निर्माण, पारिस्थितिकीय उपागम।
लोक प्रशासन के सिद्धांत तथा अवधारणाएँ : वैज्ञानिक प्रबंधन सिद्धांत, तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत, नव लोक प्रशासन, विकास प्रशासन, तुलनात्मक लोक प्रशासन, नव लोक प्रबंधन, उदारीकरण तथा वैश्वीकरण के युग में लोक प्रशासन की बदलती हुई प्रकृति।
संगठन के सिद्धांत और नियम : वैज्ञानिक प्रबंधन सिद्धांत, अधिकारीतंत्र सिद्धांत, मानव संबंध सिद्धांत।
संगठन का प्रबंधन : नेतृत्व तथा अभिप्रेरणा का सिद्धांत।
संगठनात्मक संप्रेषण : सिद्धांत तथा नियम, चेस्टर बर्नार्ड के संप्रेषण के नियम, संगठन में सूचना प्रबंधन।
संगठन में संघर्ष प्रबंधन : मैरी पार्कर फोलेट।
उद्देश्य आधारित प्रबंधन : पीटर ड्रकर।
इकाई – X : भारत में शासन - विधि तथा लोक नीति (Governance and Public Policy in India)
शासन, सुशासन तथा लोकतंत्रीय शासन, राज्य की भूमिका, नागरिक समाज तथा व्यक्ति।
उत्तरदायित्व तथा नियंत्रण : नियंत्रण और संतुलन के लिये संस्थागत तंत्र, कार्यपालिका पर विधायिका का नियंत्रण, प्रशासनिक तथा बजटीय नियंत्रण, संसदीय समितियों के माध्यम से नियंत्रण, विधायिका और कार्यपालिका पर न्यायिक नियंत्रण, प्रशासनिक संस्कृति, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक सुधार।
सुशासन के संस्थागत तंत्र : सूचना का अधिकार, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, सिटीज़न चार्टर; शिकायत निवारण प्रणाली - ओम्बुड्समैन, लोकपाल, लोकायुक्त।
ग्रासरूट (ज़मीनी स्तर पर) शासन : पंचायती राज संस्थाएँ तथा उनकी कार्यपद्धति।
योजना तथा विकास : विकेंद्रीकृत योजना, विकास के लिये योजना, सतत विकास, ई-गवर्नेंस, नीति आयोग।
सामाजिक-आर्थिक विकास के उपकरण के रूप में लोक नीति : आवास, स्वास्थ्य, पेयजल, खाद्य सुरक्षा, MGNREGA, NRHM, RTE के विशेष संदर्भ में लोक नीतियाँ।
लोक नीति की निगरानी और मूल्यांकन; शासन विधि को उत्तरदायी बनाने की क्रियाविधि : जनसुनवाई, सामाजिक अंकेक्षण।
भूगोल
UGC-NET भूगोल परीक्षा एक उच्चस्तरीय प्रतिस्पर्द्धी परीक्षा है और इसमें कई स्तर पर तैयारी की जरूरत होती है। भूगोल विषय का पाठ्यक्रम तकनीकी और विषय-विशिष्ट है। प्रश्नपत्र-II के लिये UGC-NET भूगोल पाठ्यक्रम में दस इकाइयाँ शामिल हैं, जिसके अंतर्गत भू-आकृति विज्ञान, जलवायु विज्ञान, समुद्र विज्ञान, पर्यावरण भूगोल, जनसंख्या एवं अधिवास भूगोल, आर्थिक गतिविधियाँ एवं क्षेत्रीय विकास का भूगोल, भौगोलिक चिंतन, भौगोलिक तकनीकें एवं भारत का भूगोल टॉपिक्स शामिल हैं। इस विषय में पर्याप्त विविधता और व्यापकता है। हालाँकि, एक अभ्यर्थी द्वारा सही रणनीतियों के साथ, परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना संभव है | इस परीक्षा को पास करने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं :
अभ्यर्थियों को अपने मज़बूत और कमज़ोर पक्षों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिये पाठ्यक्रम को ध्यानपूर्वक पढ़ना और विश्लेषण करना चाहिये। एक समयसारणी बनाएँ एवं प्रत्येक इकाई पर कितना समय देना है, इसे तय करें।
विगत वर्षों के पेपर्स और मॉक टेस्ट्स का अभ्यास करें, क्योंकि इससे आप अपने प्रदर्शन का मूल्यांकन कर सकते हैं। समय प्रबंधन परीक्षा में महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सीमित समय में कई प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं। वस्तुनिष्ठ प्रश्न कठिन स्तर के हो सकते हैं, लेकिन विकल्पों को सावधानीपूर्वक पढ़ने से, गलत उत्तरों को हटाकर (एलिमिनेट) सही उत्तर पर पहुँचा जा सकता है। इसके अलावा विवरणात्मक प्रश्नों को भी सावधानीपूर्वक पढ़ने की आवश्यकता है।
प्रश्नपत्र-II (भूगोल) का विस्तृत पाठ्यक्रम निम्नलिखित है :
इकाई- I : भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology)
महाद्वीपीय प्रवाह, प्लेट विवर्तनिकी, आंतरिक एवं बाह्य बल; अनाच्छादन एवं अपक्षय, भू-आकृतिक चक्र (डेविस और पेंक), ढाल विकास का सिद्धांत तथा प्रकम; भू-संचलन (भूकंपनीयता, वलन, भ्रंश तथा ज्वालामुखीयता); स्थल निर्माण घटना और भू-आकृतिक संकट के कारण (भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन, हिमस्खलन)।
इकाई- II : जलवायु विज्ञान(Climatology)
वायुमंडल की संरचना एवं संयोजन; सूर्यातप, पृथ्वी का ऊष्मा बजट, तापमान, दाब और पवनें; वायुमंडलीय परिसंचरण (वायु-राशियाँ, वाताग्र तथा ऊपरी वायु संचलन); चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात (उष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्ण कटिबंधीय); कोपेन एवं थॉर्नथ्वेट के जलवायु वर्गीकरण; ENSO घटनाएँ (एल-नीनो, ला-नीना और दक्षिणी दोलन); मौसमी संकट और आपदाएँ [चक्रवात, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, ओला वृष्टि, ऊष्ण एवं शीत तरंगें, सूखा एवं वृष्टि प्रस्फोट, हिमनद झील प्रस्फोट जनित बाढ़ (GLOF)]; जलवायु परिवर्तन : अतीत में जलवायु परिवर्तन के साक्ष्य और कारण, वैश्विक जलवायु पर मानवीय प्रभाव।
इकाई- III : समुद्र विज्ञान (Oceanography)
महासागरीय उच्चावच; संरचना : तापमान, घनत्व एवं लवणता; संचरण : ऊष्ण एवं शीत धाराएँ, लहरें, ज्वार-भाटा, समुद्र स्तरीय परिवर्तन; संकट : सुनामी और चक्रवात।
इकाई- IV : पर्यावरण भूगोल (Geography of Environment)
घटक : पारिस्थितिक तंत्र (भौगोलिक वर्गीकरण) और मानव पारिस्थितिकी, क्रियाएँ : पोषण स्तर, ऊर्जा प्रवाह, चक्रण (भू-रसायन, कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन); खाद्य शृंखला, खाद्य जाल और पारिस्थितिकीय पिरामिड; मानव अंतर्संबंध और प्रभाव; पर्यावरणीय नैतिकता तथा गहन पारिस्थितिकी; पर्यावरणीय संकट एवं आपदाएँ (वैश्विक तापन, नगरीय ऊष्मण द्वीप, वायुमंडलीय प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि निम्नीकरण); राष्ट्रीय कार्यक्रम और नीतियाँ : विधिक प्राधार, पर्यावरणीय नीति; अंतर्राष्ट्रीय समझौते, अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम और नीतियाँ (ब्रंटलैंड आयोग, क्योटो प्रोटोकॉल, एजेंडा-21, संधारणीय विकास और पेरिस समझौता)।
इकाई- V : जनसंख्या एवं अधिवास भूगोल (Population and Settlement Geography)
जनसंख्या भूगोल : जनसंख्या आँकड़ों के स्रोत (जनगणना, प्रतिदर्श सर्वेक्षण एवं जन्म-मृत्यु सांख्यिकी), आँकड़ों की विश्वसनीयता तथा त्रुटियाँ; विश्व जनसंख्या वितरण (मापन, प्रतिरूप और निर्धारक); वैश्विक जनसंख्या वृद्धि (पूर्व ऐतिहासिक काल से आधुनिक काल तक), जनांकिकी संक्रमण, जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत (माल्थस, सैडलर तथा रिकार्डो); प्रजनन क्षमता और मृत्युदर विश्लेषण (संकेतक, निर्धारक एवं विश्व प्रतिरूप); प्रवासन (प्रकार, कारण, परिणाम तथा प्रतिमान); जनसंख्या संरचना एवं विशेषताएँ (आयु, लिंग, ग्रामीण-नगरीय, व्यावसायिक संरचना एवं शैक्षणिक स्तर); विकसित और विकासशील देशों में जनसंख्या नीतियाँ।
अधिवास भूगोल : ग्रामीण अधिवास (प्रकार, प्रतिरूप एवं वितरण); ग्रामीण अधिवासों की समकालीन समस्याएँ (ग्रामीण-नगरीय प्रवास, भूमि उपयोग में बदलाव, भूमि अधिग्रहण और संव्यवहार); नगरों की उत्पत्ति के सिद्धांत (गॉर्डन चाइल्ड, हेनरी पिरेनी एवं लेविस ममफोर्ड); विकसित और विकासशील देशों में नगरीकरण की विशेषता तथा प्रक्रियाएँ (नगरों की वृद्धि के कारक, नगरीकरण की प्रवृत्ति, आकार, संरचना और नगरीय क्षेत्रों के कार्य); नगरीय प्रणालियाँ [प्रधान शहर (प्राइमेट सिटी) के कानून, कोटि-आकार-नियम (रैंक साइज़ रूल)]; केंद्रीय स्थान सिद्धांत (क्रिस्टॉलर एवं लॉश), नगरों की आंतरिक संरचना, नगरीय भूमि उपयोग सिद्धांत (बर्गीज, हेरिस, उलमैन एवं हॉयट); महानगरीय संकल्पना, वैश्विक नगर एवं एज सिटीज़, बदलता नगरीय स्वरूप [परिधि-नगरीय क्षेत्र, ग्रामीण-नगरीय उपांत, उपनगरीय, मुद्रिक (रिंग) और अनुषंगी (सैटेलाइट) नगर]; नगरों में सामाजिक विसंयोजन, नगरीय सामाजिक क्षेत्र विश्लेषण; नगरीय गरीबी का प्रकटीकरण (मलिन बस्ती, अनियमित क्षेत्र की वृद्धि, अपराध एवं सामाजिक बहिष्कार)।
इकाई- VI : आर्थिक गतिविधियाँ एवं क्षेत्रीय विकास का भूगोल (Geography of Economic Activities and Regional Development)
आर्थिक भूगोल : आर्थिक गतिविधियों के स्थानीय संगठन को प्रभावित करने वाले कारक (प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक एवं चतुर्थक); प्राकृतिक संसाधन (वर्गीकरण, वितरण एवं संबंधित समस्याएँ); प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन; विश्व में विकसित एवं विकासशील देशों में ऊर्जा संकट।
कृषि भूगोल : भूमि क्षमता वर्गीकरण और भूमि उपयोग आयोजन; शस्य प्रतिरूप : शस्य संयोजन विधि क्षेत्र का निरूपण (वीवर, दोई तथा रफीउल्लाह), शस्य विविधीकरण, वॉन थ्यूनेन का भूमि उपयोग आयोजन मॉडल; कृषि उत्पादकता का मापन और निर्धारक, कृषि उत्पादकता में क्षेत्रीय विविधता; विश्व की कृषि पद्धतियाँ।
औद्योगिक भूगोल : उद्योगों का वर्गीकरण; औद्योगिक अवस्थान के कारक, औद्योगिक अवस्थान के सिद्धांत (ए. वेबर, ई. एम. हूबर, ऑगस्ट लॉश, ए. प्रेड एवं डी. एम. स्मिथ); विश्व के औद्योगिक प्रदेश; अल्प विकसित देशों के विनिर्माण क्षेत्र पर वैश्वीकरण का प्रभाव; पर्यटन उद्योग; सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तथा ज्ञान उत्पादन (शिक्षा एवं अनुसंधान विकास), उद्योगों का विश्व वितरण तथा वृद्धि।
परिवहन एवं व्यापार भूगोल : स्थानिक पारस्परिक अन्योन्य क्रिया (Interaction) के सिद्धांत एवं मॉडल (एडवर्ड उलमैन एवं एम. ई. हर्स्ट); कनेक्टिविटी और उपलब्धता मापन और सूचकांक; स्थानीय प्रवाह मॉडल; गुरुत्वाकर्षण मॉडल तथा इसके प्रकार; विश्व व्यापार संगठन; वैश्वीकरण एवं उदारीकरण का विश्व व्यापार प्रतिरूप; अंतर एवं अंतरा प्रादेशिक सहयोग और व्यापार की संभावनाएँ एवं समस्याएँ।
प्रादेशिक विकास : प्रादेशिक वर्गीकरण, औपचारिक और कार्यात्मक प्रदेश; विश्व प्रादेशिक विविधता, प्रादेशिक विविधता के सिद्धांत; प्रादेशिक विकास के सिद्धांत (अल्बर्ट ओ. हर्शमैन, गुन्नार मिर्डाल, जॉन प्राइडमैन); अल्पविकसित निर्भरता का सिद्धांत; वैश्विक आर्थिक खंड; भारत में प्रादेशिक विकास और सामाजिक आंदोलन।
इकाई-VII : सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनीतिक भूगोल (Cultural, Social and Political Geography)
सांस्कृतिक एवं सामाजिक भूगोल : संस्कृति की संकल्पना, सांस्कृतिक जटिलताएँ; क्षेत्र और प्रदेश, सांस्कृतिक विरासत, सांस्कृतिक पारिस्थितिकी, सांस्कृतिक अभिसरण, सामाजिक संरचना एवं प्रक्रियाएँ; सामाजिक कल्याण और जीवन की गुणवत्ता, सामाजिक बहिष्कार; भारत में सामाजिक समूहों का स्थानीय वितरण (जनजाति, जाति, धर्म एवं भाषाएँ); पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य, रुग्णता पारिस्थितिकी; पोषणता की स्थिति (निदान की स्थिति, वर्गीकरण और स्थानिक एवं मौसमी वितरण का प्रतिरूप विशेषत: भारत के संदर्भ में); भारत में स्वास्थ्य सुरक्षा की योजनाएँ और नीतियाँ, भारत में चिकित्सा पर्यटन।
राजनीतिक भूगोल : परिसीमाओं और सीमाओं की संकल्पना (विशेषकर भारत के संदर्भ में); हार्टलैंड एवं रिमलैंड सिद्धांत, राजनीतिक भूगोल की प्रवृत्ति और विकास; संघवाद का भूगोल; भारत में निर्वाचन सुधार, मतदान व्यवहार के निर्धारक; जलवायु परिवर्तन की भू-राजनीति, विश्व संसाधनों की भू-राजनीति; भारत की हिंद महासागरीय भू-राजनीति; क्षेत्रीय सहयोग के संगठन (SAARC, ASEAN, OPEC, EU), विश्व संसाधनों की नव-राजनीति।
इकाई- VIII : भौगोलिक चिंतन (Geographic Thought)
भौगोलिक ज्ञान में ग्रीक, रोमन, अरब, चीनी एवं भारतीय भूगोलवेत्ताओं का योगदान; भूगोलवेत्ताओें का योगदान (वरेनियस, इमैनुएल कांट, अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट, कार्ल रिटर, शेफर और हार्टशोर्न); भौगोलिक चिंतन पर डार्विन का प्रभाव; भारतीय भूगोल की समकालीन प्रवृत्ति : भूगोल में मानचित्र कला, थिमेटिक और मेथोडोलॉजिकल विधियों का योगदान; प्रमुख भौगोलिक परंपराएँ (भू-विज्ञान, मानव-पर्यावरण अंतर्संबंध, क्षेत्र अध्ययन और स्थानिक विश्लेषण); भौगोलिक अध्ययन में द्वैतवाद (भौतिक बनाम मानव, प्रादेशिक बनाम क्रमबद्ध, निश्चयवाद बनाम संभववाद, गुणात्मक बनाम मात्रात्मक, वस्तुपरक बनाम सिद्धांतपरक)। प्रतिमान विस्थापन, भौगोलिक परिदृश्य (प्रत्यक्षवाद, व्यवहारवाद, संरचनावाद, नारीवाद एवं उत्तर आधुनिकतावाद)।
इकाई- IX : भौगोलिक तकनीकें (Geographical Techniques)
भौगोलिक सूचना एवं आँकड़ों के स्रोत (स्थानिक एवं गैर-स्थानिक); मानचित्र के प्रकार, मानचित्र निर्माण की तकनीकें [कोरोप्लेथ, समांतर (Isarithmic), डेसीमेट्रिक (Dasymetric), प्रवाह मानचित्र, मानचित्र पर आँकड़ों का निरूपण (पाई आरेख, दंड आरेख, रेखा आरेख), GIS आँकड़ा आधार (चित्ररेखापुंज और सदिश आँकड़ा प्रारूप एवं आरोपण आँकड़ा प्रारूप); भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) के प्रकार्य (रूपांतरण, संपादन और विश्लेषण); अंकीय उत्थान मॉडल (DEM), भू-संदर्भ (समन्वय पद्धति और मानचित्र प्रक्षेप आँकड़ा); भौगोलिक सूचना तंत्र के अनुप्रयोग (विषयात्मक मानचित्र कला, स्थानिक डिसीजन सपोर्ट सिस्टम), आधारभूत सुदूर संवेदन (विद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम, संवेदक एवं प्लेटफॉर्म, वियोजन एवं वियोजन के प्रकार, एयर फोटो के तत्त्व, सैटेलाइट इमेज की विवेचना, फोटोग्राममिति); एरियल फोटोग्राफ के प्रकार; अंकीय प्रतिबिंब प्रक्रमण, सुदूर संवेदन की तकनीकी का विकास और वृहद् आँकड़ों का आदान-प्रदान प्रदान तथा इसका भारत के प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में उपयोग; जीपीएस घटक (अंतरिक्ष, भूतल नियंत्रण एवं रिसीवर खंड) एवं अनुप्रयोग; केंद्रीय प्रवृत्ति मापन का उपयोग, परिक्षेपण और असमताएँ; प्रतिचयन (सैंपलिंग), प्रतिचयन कार्यविधि और परिकल्पना परीक्षण (chi squire test, t test ANOVA); समय श्रेणी विश्लेषण, सहसंबंध और समाश्रयण (Regression) विश्लेषण; सूचकांकों का मापन, सूचकांक मापनी का निर्माण, संयुक्त सूचकों की संगणना; प्रधान घटक विश्लेषण और समूह विश्लेषण, आकारमिति विश्लेषण; सरिताओं का क्रमीकरण, विभाजन अनुपात, अपवाह घनत्व एवं अपवाह आवृत्ति, द्रोणी परिक्रामी अनुपात और द्रोणी रूप, परिच्छेदिकाएँ, ढलान विश्लेषण, प्रवणतादर्शी वक्र, उच्चतादर्शी वक्र, तुंगता बारंबारता आरेख।
इकाई- X : भारत का भूगोल (Geography of India)
भारत के प्रमुख भू-आकृतिक क्षेत्र एवं उनकी विशेषताएँ; अपवाह तंत्र (हिमालय तथा प्रायद्वीप); जलवायु ऋत्विक/मौसमी विशेषताएँ, जलवायु विभाजन, भारतीय मानसून (तंत्र एवं विशेषताएँ), जेट स्ट्रीम एवं हिमालय क्रायोस्फीयर; प्राकृतिक संसाधनों के प्रकार एवं वितरण और मृदा, वनस्पति, जल, खनिज एवं महासागरीय संसाधन; जनसंख्या की विशेषताएँ (वितरण का स्थानिक प्रतिरूप); वृद्धि एवं संरचना (ग्रामीण-नगरीय, आयु, लिंग, व्यावसायिक, शैक्षणिक; नृजातीय एवं धार्मिक)। जनसंख्या के निर्धारक, भारत में जनसंख्या नीति; कृषि (उत्पादन, उत्पादकता और प्रमुख खाद्यान्न फसलों की उपज); प्रमुख फसल प्रदेश, कृषि विकास में प्रादेशिक विविधता; भारतीय कृषि को प्रभावित करने वाले संस्थागत, प्रौद्योगिकीय और पर्यावरणीय कारक; कृषि-जलवायु प्रदेश; हरित क्रांति, खाद्य सुरक्षा एवं भोजन का अधिकार। स्वतंत्रता प्राप्ति से अब तक औद्योगिक विकास, औद्योगिक प्रदेश एवं उनकी विशेषताएँ; भारत में औद्योगिक नीति/परिवहन नेटवर्क का विकास एवं प्रतिरूप (रेल, सड़क, जल मार्ग, वायु परिवहन और पाइपलाइन); आंतरिक एवं बाह्य व्यापार (प्रवृत्ति, संरचना एवं दिशा); भारत में प्रादेशिक विकास आयोजन। वैश्वीकरण का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव; भारत में प्राकृतिक आपदाएँ (भूकंप, सूखा, बाढ़, चक्रवात, सुनामी, हिमालय उच्चभूमि संकट एवं आपदाएँ)।
समाजशास्त्र
समाजशास्त्र की प्रभावी तैयारी करने और इस विषय से UGC-NET उत्तीर्ण करने हेतु विषय का सारतत्त्व व रूपरेखा समझना अनिवार्य है। अपनी तैयारी परखने के लिये अभ्यर्थी को विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों का गहनता से विश्लेषण करना चाहिये। साथ ही, UGC-NET प्रश्नपत्र-2 (समाजशास्त्र) में सफलता हेतु एक समर्पित रणनीति अनिवार्य है, जिसके अंतर्गत पाठ्यक्रम की कवरेज, अधिगम व रिवीज़न के मध्य एक संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया गया हो। इस संदर्भ में रणनीति के कुछ ध्यातव्य बिंदु निम्नलिखित हैं :
1. पाठ्यक्रम का व्यापक मूल्यांकन
रणनीति का सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है कि अभ्यर्थियों को पाठ्यक्रम को अच्छी तरह से समझना चाहिए। उल्लेखनीय है कि UGC-NET समाजशास्त्र के पाठ्यक्रम में कुल 10 इकाइयाँ हैं। इकाई-1 समाजशास्त्रीय परंपराओं और दृष्टिकोणों के तहत वर्गीकृत समाजशास्त्रीय विचारकों द्वारा दिए गए सिद्धांतों से संबंधित है। इकाई-2 शोध पद्धति और समाजशास्त्र में शोध कार्य करने के लिए उपयोग की जाने वाली विधियों को शामिल करती है। इकाई-3 में वे मूलभूत अवधारणाएँ और संस्थान शामिल हैं, जिन्होंने समाजशास्त्र के अकादमिक स्वरूप को विकसित किया है। इकाई-4 ग्रामीण और नगरीय परिवर्तनों को कवर करता है, जो समाज के प्रकारों, यथा– ग्रामीण व खेतिहर समाज और शहरी समाज एवं इनमें परिवर्तनों के संबंध में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। इकाई-5 राज्य, राजनीति और विकास से संबंधित है, जो समाजशास्त्र के लेंसों में से एक है। इसमें भारत में राजनीतिक प्रक्रियाओं, सामाजिक आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों को शामिल किया गया है। इकाई-6 अर्थव्यवस्था और समाज की बात करती है। इकाई-7 पर्यावरण और समाज से संबंधित है। इकाई-8 में परिवार, विवाह और नातेदारी शामिल हैं, जो समाजशास्त्र का एक लेंस भी है। इस इकाई में, हम परिवार, विवाह और नातेदारी के अध्ययन के प्रमुख दृष्टिकोणों को शामिल करते हैं। इकाई-9 विज्ञान, प्रौद्योगिकी और समाज से संबंधित है, जिसमें समय के साथ वैज्ञानिक परिवर्तन की गहन समझ पर चर्चा की गई है। इकाई-10 संस्कृति और प्रतीकात्मक परिवर्तनों के बारे में है, जो धर्म, शिक्षा और भाषाविज्ञान को कवर करती है। यह समाजशास्त्र का एक और लेंस है। इकाई-1 से इकाई-4 तक समग्रतः विषय की व्यापक समझ को शामिल करते हैं। इकाई-6 व इसके बाद की इकाइयाँ विषय के अनुप्रायोगिक भाग से संबंधित है।
2. विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों (PYQs) का महत्त्व
समाजशास्त्र की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों को विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों का गहन विश्लेषण करना चाहिये, जिससे उन्हें परीक्षा की प्रकृति को स्पष्ट रूप से समझने और प्रभावी समय प्रबंधन में सहायता प्राप्त हो। इस तरह के विश्लेषण से अभ्यर्थियों की प्रश्नों के पैटर्न के संदर्भ में समझ में भी सुधार होता है। इसके अतिरिक्त, यह उन्हें विषय के संबंध में उनके मज़बूत व कमज़ोर पक्षों के आत्म-मूल्यांकन करने हेतु भी सक्षम बनाता है।
3. महत्वपूर्ण इकाइयों को प्राथमिकता देना
पाठ्यक्रम और विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों की गहन समझ प्राप्त करने के बाद, अगला कदम महत्त्वपूर्ण इकाइयों को प्राथमिकता देना है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से आप उन इकाइयों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जिनसे परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों की आवृत्ति अधिक होती है। हालाँकि, किन इकाइयों को प्राथमिकता दी जाए, इसका निर्णय करते समय अभ्यर्थियों को प्रत्येक इकाई के साथ अपने सहजता के स्तर को भी ध्यान में रखना चाहिये। प्रत्येक इकाई में अपने सहजता के स्तर को मापने का एक प्रभावी तरीका हालिया प्रश्नपत्रों को हल करना और विभिन्न इकाइयों में अपने प्रदर्शन का मूल्यांकन करना है।
4. रिवीज़न और नियमित मॉक टेस्ट्स का महत्त्व
अभ्यर्थियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी अध्ययन योजना बनाएँ जो प्रत्येक इकाई को उसके महत्व और उसमें अपनी दक्षता के आधार पर समय आवंटित करें। चुनौतीपूर्ण इकाइयों को अधिक समय दें और यह सुनिश्चित करें कि पूरा पाठ्यक्रम कवर हो जाए। नोट्स बनाने और नियमित रिवीज़न पर ध्यान दें। व्यापक कवरेज के लिए अनुशंसित पाठ्यपुस्तकें, नोट्स और अध्ययन सामग्री इकट्ठा करें। मूलभूत समाजशास्त्रीय अवधारणाओं, सिद्धांतों और पश्चिमी व भारतीय संदर्भों में समाजशास्त्र के विकास के अध्ययन से शुरू करें। प्रमुख समाजशास्त्रीय परंपराओं, दृष्टिकोणों, समाज के प्रकारों और प्रमुख अध्ययनों का अध्ययन करें। समाजशास्त्रीय लेंस और अवधारणा अनुप्रयोगों को समझें। सामाजिक मुद्दों, सरकारी नीतियों और समाजशास्त्र के विकास से संबंधित समसामयिक घटनाओं से अपडेट रहें।
रिवीज़न के अलावा, नियमित मॉक टेस्ट हल करना परीक्षा की परिस्थितियों को दुहराने में मदद करता है, जिससे प्रदर्शन का आकलन करने, कमजोर क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने और समय प्रबंधन कौशल को बेहतर बनाने में सहायता मिलती है।
प्रश्नपत्र-II (समाजशास्त्र) का विस्तृत पाठ्यक्रम निम्नलिखित है :
इकाई-1 : समाजशास्त्रीय सिद्धांत
शास्त्रीय समाजशास्त्रीय पंरपराएँ
इमाइल दुर्खीम
मैक्स वेबर
कार्ल मार्क्स
संरचना-प्रकार्यवाद एवं संरचनावाद
ब्रोनिस्लॉ मेलिनॉव्स्की
ए.आर. रेडक्लिफ-ब्राउन
टैल्कॉट पारसंस
रॉबर्ट के. मर्टन
क्लॉड लेवी स्ट्रास
व्याख्यात्मक एवं निर्वचनात्मक परंपराएँ
जी.एच. मीड
कार्ल मैनहाइम
अल्फ्रेड शुट्ज़
हैरॉल्ड गारफिंकल
अर्विंग गॉफमैन
क्लिफर्ड गीर्ट्ज़
उत्तर आधुनिकतावाद, उत्तर संरचनावाद तथा उत्तर उपनिवेशवाद
एडवर्ड सईद
पियरे बोर्दियू
मिशेल फूको
युर्गेन हैबरमास
एंथनी गिडेंस
मैनुअल कैसेल्स
भारतीय चिंतक
एम.के. गांधी
बी.आर. अंबेडकर
राधाकमल मुखर्जी
जी.एस. घुर्ये
एम.एन. श्रीनिवास
इरावती कर्वे
इकाई-2 : शोध प्रविधियाँ और विधियाँ
सामाजिक यथार्थ की अवधारणा
विज्ञान का दर्शन
सामाजिक विज्ञान में वैज्ञानिक विधि और ज्ञानमीमांसा
व्याख्यात्मक परंपराएँ
सामाजिक विज्ञान में वस्तुनिष्ठता तथा परावर्तकता
नीतिशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र
शोध अभिकल्प निरूपण
सामाजिक विज्ञान शोध, डेटा और प्रलेख पठन।
आगमन और निगमन
तथ्य, संबोध और सिद्धांत
प्राक्कल्पना, शोध प्रश्न, उद्देश्य
परिमाणात्मक तथा गुणात्मक विधियाँ
नृजातिवर्णन
सर्वेक्षण विधि
ऐतिहासिक विधि
तुलनात्मक विधि
तकनीकें
निदर्शन
प्रश्नावली और अनुसूची
सांख्यिकीय विश्लेषण
अवलोकन, साक्षात्कार और वैयक्तिक अध्ययन
निर्वचन, आँकड़ा विश्लेषण और प्रतिवेदन लेखन
इकाई-3 : मौलिक अवधारणाएँ और संस्थाएँ
समाजशास्त्रीय अवधारणाएँ
सामाजिक संरचना
संस्कृति
नेटवर्क
प्रस्थिति और भूमिका
पहचान
समुदाय
प्रवासी
मूल्य, मानदंड और नियम
पर्सनहुड, हैबिटस और एजेन्सी
अधिकारी-तंत्र, सत्ता और प्राधिकार
सामाजिक संस्थाएँ
विवाह, परिवार और नातेदारी
अर्थव्यवस्था
राज्य शासनविधि
धर्म
शिक्षा
विधि और रीति-रिवाज
सामाजिक स्तरीकरण
सामाजिक विभेद, पदानुक्रम, असमानता और पार्श्वीकरण
जाति और वर्ग
लिंग, लैंगिकता और दिव्यांगता
प्रजाति, जनजाति और नृजातीयता
सामाजिक परिवर्तन और प्रक्रियाएँ
उद्विकास और प्रसार
आधुनिकीकरण और विकास
सामाजिक रूपांतरण और वैश्वीकरण
सामाजिक गतिशीलता
इकाई-4 : ग्रामीण एवं नगरीय रूपांतरण
ग्रामीण एवं खेतिहर समाज
जाति-जनजाति बस्तियाँ
कृषक सामाजिक संरचना और उभरते वर्ग संबंध
भूस्वामित्व और कृषक संबंध
कृषक अर्थव्यवस्था का ह्रास, विकृषीकरण और प्रवसन
कृषक अंसतोष और खेतिहर आंदोलन
बदलते अंतर-समुदाय संबंध और हिंसा
नगरीय समाज
नगरवाद, नगरीयता और नगरीकरण
कस्बे, शहर और महानगर
उद्योग, सेवा और व्यवसाय
पड़ोस, मलिन बस्तियाँ और नृजातीय अंत:क्षेत्र
मध्यमवर्ग और गेटेड कम्युनिटी
नगरीय आंदोलन और हिंसा
इकाई-5 : राज्य, राजनीति और विकास
भारत में राजनीतिक प्रक्रियाएँ
जनजाति, राष्ट्रराज्य और सरहद
अधिकारीतंत्र
अभिशासन और विकास
लोक नीति: स्वास्थ्य, शिक्षा और आजीविकाएँ
राजनीतिक संस्कृति
तृणमूल प्रजातंत्र
विधि और समाज
लिंग और विकास
भ्रष्टाचार
अंतर्राष्ट्रीय विकास संगठनों की भूमिका
सामाजिक आंदोलन और विरोध
राजनीतिक गुट, दबाव समूह
जाति, नृजातीयता, विचारधारा, लिंग, दिव्यांगता, धर्म और क्षेत्र-आधारित आंदोलन
सिविल सोसाइटी और नागरिकता
गैर-सरकारी संगठन, सक्रियतावाद और नेतृत्व
आरक्षण और राजनीति
इकाई-6 : अर्थव्यवस्था और समाज
विनिमय, उपहार, पूंजी, श्रम और बाज़ार
उत्पादन की विधियों पर बहस
संपत्ति और संपत्ति संबंध
राज्य और बाज़ार: कल्याणवाद और नव-उदारतावाद
आर्थिक विकास के मॉडल
गरीबी और अपवर्जन
कारखाना और उद्योग प्रणालियाँ
श्रम संबंधों की बदलती प्रकृति
लिंग और श्रम प्रक्रिया
कारोबार और परिवार
डिजिटल अर्थव्यवस्था और ई-वाणिज्य
वैश्विक कारोबार और कॉर्पोरेट्स
पर्यटन
उपभोग
इकाई-7 : पर्यावरण और समाज
सामाजिक और सांस्कृतिक पारिस्थितिकी-विविध रूप
प्रौद्योगिकीय परिवर्तन, कृषि और जैव विविधता
देशीय ज्ञान प्रणालियाँ और देशीय औषधि
लिंग और पर्यावरण
वन नीतियाँ, आदिवासी और अपवर्जन
पारिस्थितिकीय ह्रास और प्रवास
विकास, विस्थापन और पुनर्वास
जल और सामाजिक अपवर्जन
आपदा और सामुदायिक प्रतिक्रियाएँ
पर्यावरण प्रदूषण, लोक स्वास्थ्य और दिव्यांगता
जलवायु परिवर्तन और अंतर्राष्ट्रीय नीतियाँ
पर्यावरण-संबंधी आंदोलन
इकाई-8 : परिवार, विवाह और नातेदारी
सैद्धांतिक उपागम: संरचना-प्रकार्यवादी, वैवाहिक बंधन और सांस्कृतिक
लिंग संबंध और शक्ति गतिकी
विरासत, उत्तराधिकार और प्राधिकार
लिंग, लैंगिकता, और प्रजनन
बच्चे, युवा और वयस्क
भावनाएँ और परिवार
परिवार के उभरते रूप
विवाह की बदलती परिपाटियाँ
देखभाल एवं संपोषक प्रणालियों के बदलते स्वरूप
परिवार कानून
घरेलू हिंसा और महिलाओं विरुद्ध अपराध
ऑनर किलिंग
इकाई-9 : विज्ञान, प्रौद्योगिकी और समाज
प्रौद्योगिकीय विकास का इतिहास
समय और स्थान की बदलती धारणाएँ
प्रवाह और सीमाएँ
आभासी समुदाय
मीडिया : मुद्रित और इलेक्ट्रॉनिक, दृश्यात्मक और सोशल मीडिया