- बलबन इल्तुतमिश का तुर्की दास था, जिसे उसने ग्वालियर विजय के बाद खरीदा था।
- बलबन का वास्तविक नाम बहाउद्दीन था। नासिरुद्दीन महमूद ने बलबन को उलूग खां की उपाधि प्रदान की।
- बलबन ने ‘तुर्क-ए-चहलगानी’ को समाप्त कर दिया।
- बलबन ने राजत्व के सिद्धांत का प्रतिपादन किया तथा नियामत-ए-ख़ुदाई (ईश्वर का प्रतिनिधि) और ‘ज़िल्लेइलाही’ (ईश्वर की छाया) की उपाधि ली।
- इसने दरबार में सिज़दा एवं पाबोस (कदम चूमना) जैसी ईरानी पद्धतियों को लागू किया। नौरोज उत्सव को आरंभ करवाया।
- इसने रक्त की शुद्धता पर बल दिया। बलबन अपने को ईरान के पौराणिक योद्धा ‘अफरासियाब’ के वंश से जोड़ता था।
- बलबन ने स्वयं बंगाल का अभियान किया जो उसका प्रथम और आखिरी अभियान था।
- बलबन ने एक सैन्य विभाग ‘दीवान-ए-अर्ज़’ तथा गुप्तचर विभाग की स्थापना की।
- फारसी के प्रसिद्ध कवि अमीर हसन और अमीर खुसरो बलबन के दरबार में रहते थे।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
- जन्म तिथि: 20 मार्च, 1782
- जन्म स्थान: इस्लिंग्टन, लंदन, इंग्लैंड
- कर्नल जेम्स टॉड ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में एक कैडेट के रूप में सेवा शुरू की और बाद में अपने सेवा कार्य और शैक्षणिक रुचियों के कारण उच्च पदों तक पहुँचे।
राजस्थान के इतिहास में योगदान
- टॉड ने 1817 से 1822 तक पश्चिमी राजस्थान के पॉलिटिकल एजेंट के रूप में कार्य किया।
- इस दौरान उनकी राजस्थानी संस्कृति, इतिहास और परंपराओं में गहरी रुचि विकसित हो गई।
- वे अपने प्रसिद्ध ग्रंथ Annals and Antiquities of Rajasthan के लिये प्रसिद्ध हैं, जिसमें उन्होंने राजस्थान के इतिहास, भूगोल, परंपराओं और राजवंशों का विस्तृत वर्णन किया।
- उन्होंने राजपूतों की वीरता और शौर्य की सराहना की और उन्हें प्राचीन राजवंशों का सच्चा उत्तराधिकारी बताया।
- उन्होंने राजस्थान के इतिहास को गौरवपूर्ण और रोमांचक रूप में प्रस्तुत किया है।
मानचित्र और वंशावलियाँ
- टॉड ने राजपूत कुलों की वंशावलियाँ और मानचित्र तैयार किये, जिन्हें आज भी इतिहासकार महत्त्वपूर्ण स्रोत मानते हैं।
- नवंबर 1835 में लंदन में उनकी मृत्यु हो गयी। कर्नल जेम्स टॉड को राजस्थान का प्रथम वास्तविक इतिहासकार माना जाता है, जिनके कार्य ने राजस्थानी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने में एक अमिट भूमिका निभाई।
- इल्तुतमिश ही दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक था।
- वस्तुतः दिल्ली का पहला सुल्तान इल्तुतमिश था, क्योंकि 1229 में उसे बगदाद के अब्बासी ख़लीफा से मान्यता प्राप्त हुई, जिससे सुल्तान के रूप में उसकी स्वतंत्र स्थिति एवं दिल्ली सल्तनत को औपचारिक मान्यता प्राप्त हुई।
- इल्तुतमिश ने राजधानी लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित की।
- तराइन की तीसरी लड़ाई (1215) इल्तुतमिश और याल्दौज के बीच हुई जिसमें याल्दौज पराजित हुआ।
- इल्तुतमिश ने ‘तुर्क-ए-चहलगानी’ (चालीसा दल) नामक संगठन की स्थापना की जिसमें उसके विश्वसनीय लोग थे।
- उसने इक्ता व्यवस्था को संगठित रूप दिया जिसे मुहम्मद गौरी ने प्रारंभ किया था।
- मुद्रा व्यवस्था में सुधार करते हुए चांदी का टंका एवं तांबे का जीतल चलाया।
- इसने दरबार में ‘न्याय का घंटा’ लगवाया।
- इसने रज़िया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।
- चंगेज़ खान से बचने के लिये इल्तुतमिश ने ख्वारिज्म के शासक जलालुद्दीन मंगबरनी को अपने यहाँ शरण नहीं दी।
- इल्तुतमिश को ‘गुलाम का गुलाम’ कहा गया है।
माइक्रोवेव ओवन एक रसोईघर उपकरण है, जो कि खाना पकाने और खाना गर्म करने के काम आता है।
सिद्धांत (Principle)
- माइक्रोवेव गैर-आयनित विकिरण होता है, जो विद्युत-चुंबकीय तरंगों के रूप में संचारित होता है। माइक्रोवेव ओवन में मैग्नेट्रॉन नाम की एक वैक्यूम ट्यूब होती है। इस ट्यूब से लगभग 2.45 गीगाहर्ट्ज (GHz) आवृत्ति की माइक्रोवेव निकलती हैं।
- जब माइक्रोवेव्स किसी पोलर मॉलीक्यूल (जैसे- जल, वसा या शुगर) के संपर्क में आती हैं तो अणुओं में घूर्णन होता है, जिस कारण वे एक-दूसरे से टकराते हैं। चूँकि तापमान गतिज ऊर्जा से संबंधित है इसलिये उसमें वृद्धि होती है। अतः माइक्रोवेव ओवन में खाना पकाने या गर्म करने हेतु इन पोलर मॉलीक्यूल का होना आवश्यक है।
माइक्रोवेव ओवन के लाभ (Advantages of Microwave Oven)
- माइक्रोवेव ओवन केवल खाने को ही गर्म करता है, कंटेनर और आस-पास की हवा को नहीं।
- माइक्रोवेव एक गैस स्टोव की तुलना में खाना गर्म करने के लिये बहुत कम समय लेता है।
- अमेरिकी ऊर्जा दक्षता एजेंसी ने एक शोध में पाया है कि माइक्रोवेव ओवन गैस स्टोव की तुलना में ऊर्जा का प्रयोग करने में तो निश्चित रूप से बेहतर होते हैं, हालाँकि इलेक्ट्रिक हीटिंग या इंडक्शन कुकिंग की तुलना में यह उतने कुशल नहीं हैं।
- इसे गुलाम वंश या ममलूक वंश का संस्थापक माना जाता है।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने सिंहासन पर बैठने के बाद सुल्तान की उपाधि ग्रहण नहीं की बल्कि केवल ‘मलिक’ एवं ‘सिपहसालार’ की पदवियों से संतुष्ट रहा।
- ऐबक ने अपनी राजधानी लाहौर में बनाई।
- ऐबक की उदारता के कारण उसे ‘लालबख्श’ कहा गया।
- 1210 में चौगान (पोलो) खेलते समय अचानक घोड़े से गिर जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।
- ऐबक ने प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाज़ा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर दिल्ली में कुतुबमीनार की नींव रखी। बाद में उसके दामाद इल्तुतमिश ने इसे पूर्ण कराया। तूफान के कारण क्षतिग्रस्त हुई मीनार के कुछ भागों की मरम्मत बाद में फिरोज़शाह तुगलक ने करवाई थी।
- नालंदा विश्वविद्यालय को ध्वस्त करने वाला बख्तियार खिलज़ी, ऐबक का सेनानायक था।
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार ऐबक के पश्चात् आरामशाह (1210) सुल्तान बना।
- मगरमच्छ संरक्षण के लिये 1974 ई. में परियोजना बनाई गई तथा 1978 तक कुल 16 मगरमच्छ प्रजनन केंद्र स्थापित किये गए।
- ओडिशा का ‘भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान’ जो विश्व धरोहर सूची में शामिल है, के लवणयुक्त पानी में रहने वाले मगरमच्छों की संख्या सर्वाधिक है।
- ‘केंद्रीय मगरमच्छ प्रजनन एवं प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान’ हैदराबाद में स्थित है।
- मगरमच्छ अभयारण्यों की सर्वाधिक संख्या आंध्र प्रदेश में है।
- मगरमच्छ प्रजनन एवं प्रबंधन प्रोजेक्ट 1975 में FAO तथा UNDP की सहायता से शुरू किया गया।
- 1970 के दशक में शुरू की गई ‘भागवतपुर मगरमच्छ परियोजना’ (पश्चिम बंगाल) का उद्देश्य खारे पानी में मगरमच्छों की संख्या में वृद्धि करना था।
Polymer शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों ‘पॉली’ अर्थात् अनेक और ‘मर’ अर्थात् इकाई अथवा भाग से हुई है। बहुलकों के बहुत वृहत् अणु की तरह परिभाषित किया जा सकता है जिनका द्रव्यमान अतिउच्च होता है। इन्हें बृहदणु भी कहा जाता है, जो कि पुनरावृत्त संरचनात्मक इकाइयों के बृहद् पैमाने पर जुड़ने से बनते हैं। पुनरावृत्त संरचनात्मक इकाइयाँ कुछ सरल और क्रियाशील अणुओं से प्राप्त होती हैं जो एकलक कहलाती हैं। यह इकाइयाँ एक-दूसरे के साथ सहसंयोजक बंधों द्वारा जुड़ी होती हैं। बहुलकों के संबंधित एकलकों से विरचन के प्रक्रम को बहुलकन कहते हैं।
स्रोत के आधार पर बहुलकों का वर्गीकरण
- प्राकृतिक बहुलक (Natural Polymers)- यह बहुलक पादपों तथा जंतुओं में पाए जाते हैं। उदाहरण के लिये प्रोटीन, सेलुलोज, स्टार्च, कुछ रेजिन और रबर।
- अर्द्ध-संश्लेषित बहुलक (Semi-Synthetic Polymers)- सेलुलोज व्युत्पन्न जैसे सेलुलोज एसीटेट (रेयॉन) और सेलुलोज नाइट्रेट आदि इस उपसंवर्ग के उदाहरण हैं।
- संश्लेषित बहुलक (Synthetic Polymers)- विभिन्न प्रकार के संश्लेषित बहुलक जैसे- प्लास्टिक (पॉलिथीन), संश्लेषित रेशे (नाइलॉन 6,6) और संश्लेषित रबर (ब्यूना-S) मानवनिर्मित बहुलकों के उदाहरण हैं, जो विस्तृत रूप से दैनिक जीवन एवं उद्योगों में प्रयुक्त होते हैं।
बहुलकों को उनकी संरचना, आणविक बलों अथवा बहुलकन की विधि के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है।
- एक सींग वाले गैंडे प्राकृतिक रूप से मुख्यतया भारत व नेपाल में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त ये भूटान, बांग्लादेश व पाकिस्तान में भी पाए जाते हैं।
- इसके सींग का उपयोग औषधि निर्माण में होता है इसलिये इसका अवैध शिकार बड़े पैमाने पर होता है।
- इनकी कम होती संख्या के कारण 1987 में गैंडा परियोजना प्रारंभ की गई।
- असम का मानस अभयारण्य, काजीरंगा उद्यान तथा पश्चिम बंगाल का जलदापाड़ा अभयारण्य गैंडों की मुख्य शरणस्थली है।
- इंडियन राइनो विज़न 2020 का उद्देश्य एक सींग वाले गैंडे का संरक्षण तथा उनकी संख्या में वृद्धि करना है।
- इंडियन राइनो विज़न 2020 को असम के वन विभाग तथा बोडो स्वायत्त परिषद् द्वारा पूर्ण किया जाना है।
- वर्ल्ड वाइड फंड- इंडिया तथा अंतर्राष्ट्रीय राइनो फाउंडेशन द्वारा इस परियोजना को सहयोग दिया जा रहा है।
- मार्च 2019 में भारत व चार अन्य देशों (भूटान, नेपाल, इंडोनेशिया और मलेशिया) ने एशियाई गैंडे व एक सींग वाले गैंडे के लिये संरक्षण के लिये ‘एशियाई गैंडों पर नई दिल्ली घोषणापत्र 2019’ पर हस्ताक्षर किये हैं।
- घोषणापत्र का उद्देश्य प्रत्येक चार वर्ष में एक सींग वाले गैंडे तथा जावा व सुमात्रन गैंडों की जनसंख्या का संरक्षण व समीक्षा करना है ताकि भविष्य में उन्हें सुरक्षित करने के लिये संयुक्त प्रयास किये जा सकें।
पुस्तक |
भाषा |
लेखक |
तुज़ुक-ए-बाबरी (बाबरनामा) |
तुर्की |
बाबर |
हुमायूँनामा |
फारसी |
गुलबदन बेगम |
तारीख़-ए-रशीदी |
फारसी |
मिर्ज़ा हैदर दुगलत |
तजकिरात-उल-वाक्यात |
फारसी |
जौहर आफतावची |
वाक्यात-ए-मुश्ताकी |
फारसी |
रिज़कुल्लाह मुश्ताकी |
तोहफा-ए-अकबरशाही (तारीख़-ए-शेरशाही) |
फारसी |
अब्बास खां शेरवानी |
अकबरनामा |
फारसी |
अबुल फज़ल |
तबकात-ए-अकबरी |
फारसी |
निज़ामुद्दीन अहमद |
तुज़ुक-ए-जहाँगीरी |
फारसी |
जहाँगीर, मौतमिद खां, हादी खां |
पादशाहनामा |
फारसी |
मुहम्मद अमीन काज़विनी |
शाहजहाँनामा |
फारसी |
इनायत खां |
मज़म-उल-बहरीन |
फारसी |
दारा शिकोह |
शासक |
शासनकाल |
बाबर |
1526-1530 ई. |
हुमायूँ |
1530-1540 ई., 1555-1556 ई. |
अकबर |
1556-1605 ई. |
जहाँगीर |
1605-1627 ई. |
शाहजहाँ |
1627-1658 ई. |
औरंगज़ेब |
1658-1707 ई. |
बहादुर शाह प्रथम |
1707-1712 ई. |
जहांदार शाह |
1712-1713 ई. |
फर्रुखसियर |
1713-1719 ई. |
मुहम्मद शाह उर्फ़ रंगीला |
1719-1748 ई. |
अहमद शाह |
1748-1754 ई. |
आलमगीर द्वितीय |
1754-1758 ई. |
शाहआलम द्वितीय |
1759-1806 ई. |
अकबर द्वितीय |
1806-1837 ई. |
बहादुरशाह द्वितीय (बहादुरशाह ज़फर) |
1837-1857 ई. |
- श्री अरबिंदो घोष का जन्म 1872 ई. में कलकत्ता में हुआ था। जिस परिवार में श्री अरबिंदो का जन्म हुआ वहां शिक्षा का विशेष महत्त्व था।
- परिवार के अनेक व्यक्ति विद्वता में परिपूर्ण थे तथा शिक्षा की महत्त्व से पूर्ण परिचित थे। यही कारण है कि मात्र 7 वर्ष की अवस्था में ही इन्हें पढ़ाई के लिये इंग्लैंड भेज दिया गया था जहाँ उन्होंने 14 वर्ष तक विशुद्ध पाश्चात्य तरीके से पढ़ाई की। वहां की संस्कृति, लेखक एवं रचनाकारों की रचनाओं को पढ़ने के लिये ग्रीक, लैटिन, फ्रेंच, जर्मन आदि भाषाओं का अध्ययन किया।
- 1890 ई. में श्री घोष भारतीय सिविल सेवा में चयनित हुए परंतु घुड़सवारी परीक्षण में असफल होने के कारण उन्हें अकादमी से निकाल दिया गया था।
- 1893 ई. में वे भारत लौट आए। भारत आने के बाद 13 वर्षों तक बड़ौदा के गायकवाड़ के यहाँ नौकरी की।
- 1905 ई. में बंगाल विभाजन आंदोलन के दौरान उन्होंने नौकरी छोड़ दी और राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने अपनी रचनाओं को प्रकाशित कर लोगों के बीच राष्ट्रीयता की भावना को जागृत किया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे कई बार जेल भी गए।
- वर्ष 1910 में राजनीति त्यागकर वे आजीवन पुदुच्चेरी में स्थायी रूप से बस गए तथा वहीं पर उन्होंने अरबिंदो आश्रम की स्थापना की जो आज भी विश्वविख्यात है।
- वर्ष 1950 में इस महान दार्शनिक, उच्चकोटि के शिक्षाशास्त्री एवं समाज सुधारक का निधन हो गया।
- इस अभयारण्य का विस्तार लगभग 199.5 वर्ग किमी. है, जिसमें 156.32 वर्ग किमी. क्षेत्रफल दर्रा वन्य जीवन अभयारण्य का, 37.98 वर्ग किमी. जवाहरसागर वन्य जीव अभयारण्य का तथा 5.25 वर्ग किमी. क्षेत्रफल राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य का शामिल है। कोटा, चितौड़गढ़, बूंदी एवं झालावाड़ ज़िलों के क्षेत्र में इस उद्यान का विस्तार देखा जा सकता है।
- राजस्थान सरकार ने वर्ष 2004 में चंबल और दर्रा अभयारण्य को मिलाकर राजीव गाँधी नेशनल पार्क बनाने की घोषणा की थी, परंतु वर्ष 2006 में कैबिनेट की एक बैठक में इसका नाम बदलकर दर्रा राष्ट्रीय अभयारण्य कर दिया गया था। आगे वर्ष 9 जनवरी, 2009 में हाड़ौती के प्रकृति प्रेमी शासक मुकंद सिंह के नाम पर इस क्षेत्र को मुकंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान कर दिया गया।
- इस अभयारण्य की मुकंदरा पहाड़ियों में आदिमानव के शैलाश्रय तथा उनके द्वारा बनाए गए शैल चित्र देखने को मिलते हैं। यह क्षेत्र सघन वनों से ढका होने के कारण यहाँ तेंदुआ, चीता, रीछ, जंगली सूअर, हिरन, सांभर, चीतल, नीलगाय आदि काफी संख्या में पाए जाते हैं।
- यह अभयारण्य गागरोनी तोते के लिये प्रसिद्ध है, जिसका वैज्ञानिक नाम एलेक्जेंड्रिया पैराकीट है। यह तोता हूबहू मानव की आवाज की नकल करने के लिये प्रसिद्ध है। इसे हीरामन तोता और हिंदुओं का आकाश लोचन नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यह तोता विलुप्ति की कगार पर है, अतः इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।
- यह पशुपालन के अंतर्गत एक उपभोग है, जिसमें मांस व अंडों के लिये मुर्गी, पीरू, बत्तख इत्यादि का पालन-पोषण किया जाता है।
- भारत में मुर्गीपालन सिंधु सभ्यता से चला आ रहा है। इसमें कम पूँजी की आवश्यकता होती है।
- कुक्कुट उत्पादन के विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी कम है लेकिन हाल के वर्षों में तेज़ी से इसका विकास किया जा रहा है। परिणामतः भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा अंडा उत्पादक देश बन गया है।
- भारत में कुक्कुटों की सबसे अधिक संख्या आंध्र प्रदेश में है, इसके बाद तमिलनाडु का स्थान आता है।
- एक मुर्गी प्रतिवर्ष औसतन 180-200 अंडे देती है।
- भारत में केंद्रीय कुक्कुट विकास संगठन अपने क्षेत्रीय कार्यालयों के सहयोग से कुक्कुट उत्पादन में सुधार हेतु कार्य करता है।
- ‘ग्रामीण बैकयार्ड कुक्कुट विकास कार्यक्रम’ के तहत घर के आंगन में ही मुर्गीपालन करने वाले BPL परिवारों को वित्तीय सहायता दी जाती है।
रुधिर या रक्त हमारे शरीर में विद्यमान एक तरल पदार्थ है जो पाचित भोज्य पदार्थों को क्षुद्रांत से शरीर के अन्य भागों तक, ऑक्सीजन को फेफड़ों से शरीर की कोशिकाओं तक, साथ ही शरीर के अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने के लिये उनका परिवहन करता है। रक्त, प्लाज़्मा (Plasma) नामक तरल से बना है। यह रक्त प्रोटीनों से निर्मित हल्का पीला द्रव है। प्लाज़्मा में तीन प्रकार की कोशिकाएँ विद्यमान रहती हैं- लाल रक्त कणिकाएँ/कोशिकाएँ (Erythrocytes), श्वेत रक्त कणिकाएँ/कोशिकाएँ (Leukocytes) एवं पट्टिकाणु (Platelets)। ये रुधिर कोशिकाएँ अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में बनती हैं।
- लाल रक्त कोशिकाएँ (Red Blood Cells- RBC) : आरबीसी अत्यंत छोटी कोशिका है जो रक्त में तैरती है, इसीलिये इसे कणिकाएँ (Corpuscles) भी कहते हैं। आरबीसी में लाल रंग का एक वर्णक होता है जिसे हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) कहते हैं। हीमोग्लोबिन के कारण ही रक्त लाल होता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन को स्वयं से जोड़कर शरीर के सभी अंगों तक और अंततः कोशिकाओं तक पहुंचाता है। हीमोग्लोबिन की कमी में सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन ठीक से नहीं पहुँच पाती।
- श्वेत रक्त कोशिकाएँ (White Blood Cells- WBC) : वर्णक रहित ये रंगहीन कोशिकाएँ एंटीबॉडी का निर्माण कर हमारे शरीर में प्रवेश करने वाले रोगाणुओं को नष्ट कर हमें संक्रमण से बचाती हैं।
- पट्टिकाणु (Platelets) : पट्टिकाणु या प्लेटलेट्स नामक कोशिका खंड रक्त का स्कंदन या थक्का बनाने में मददगार होता है जिससे शरीर से रक्त निकलना बंद हो जाता है।
एक्स-रे उपकरण X-किरणों के माध्यम से मानव शरीर के अंदर मौजूद अस्थियों, ऊतकों एवं मांसपेशियों का चित्रण करता है। यह नियंत्रित X-किरणों के बीम का उत्पादन कर उस क्षेत्र में निर्देशित करता है जिसकी जांच की जानी है।
चिकित्सकीय उपयोग
- अस्थियों के टूटने का पता लगाने में।
- जोड़ों में चोट तथा संक्रमण का पता लगाने में।
- धमनियों में ब्लॉकेज का पता लगाने में।
- पेट में दर्द का पता लगाने में।
- कैंसर की जाँच करने में।
- अनियंत्रित रोगाणुओं की वृद्धि होने पर उन्हें शरीर से नष्ट करने में।
- शल्य कर्म में।
- धातु विज्ञान में।
- उद्योगों में।
हानिकारक प्रभाव
X-किरणें सजीव ऊतकों तथा जीवों को हानि पहुँचा सकती हैं। अत्यधिक X-किरणों के प्रयोग से जीवित कोशिकाएँ मृत हो जाती हैं एवं एक ही स्थान पर बार-बार X-किरणों के प्रयोग किये जाने से कैंसर की संभावना बढ़ जाती है, अतः इसके अनावश्यक या अधिक एक्सपोज़र से बचना चाहिये।
भारत निर्वाचन आयोग ने ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से एक ‘राजनीतिक दल पंजीकरण ट्रैकिंग प्रबंधन प्रणाली’ प्रारंभ की है।
प्रमुख बिंदु (Major Points)
- भारत निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों के पंजीकरण की प्रणाली तथा प्रक्रिया की समीक्षा की। इस समीक्षा के आधार पर ही भारत निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों के पंजीकरण की प्रणाली और प्रक्रिया को सरल बनाने के लिये एक ‘राजनीतिक दल पंजीकरण ट्रैकिंग प्रबंधन प्रणाली’ (Political Parties Registration Tracking Management System) लागू की गई है।
- इस पोर्टल के माध्यम से आवेदक दलों के पंजीकरण संबंधी आवेदनों की स्थिति का ऑनलाइन माध्यम से पता लगाया जा सकेगा।
- PPRTMS के माध्यम से 1 जनवरी, 2020 से राजनीतिक दल के पंजीकरण हेतु आवेदन करने वाले आवेदक दल ही अपने आवेदनों की स्थिति का पता लगा सकेंगे।
- आवेदक को अपने आवेदन में दल/आवेदक का मोबाइल नंबर और ई-मेल पता दर्ज करना होगा, जिसके माध्यम से वह अपने आवेदन की अद्यतन स्थिति से SMS एवं ई-मेल के माध्यम से अवगत हो सके।
आवेदन की प्रक्रिया (Application Process)
- राजनीतिक दलों का पंजीकरण जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के प्रावधानों के अंतर्गत होता है।
- उपर्युक्त धारा के तहत भारत निर्वाचन आयोग में पंजीकरण के लिये इच्छुक दल को अपने गठन की तिथि के 30 दिनों के बाद की अवधि में अपने नाम, पता, विभिन्न इकाइयों की सदस्यता का विवरण, पदाधिकारियों के नाम आदि मूलभूत विवरण सहित निर्धारित प्रारूप में आयोग के पास एक आवेदन करना होता है।
भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में डस्टलिक 2025 सैन्य अभ्यास का छठा संस्करण पुणे, भारत में संपन्न हुआ। यह वार्षिक द्विपक्षीय अभ्यास दोनों देशों के बीच सैन्य संबंधों को गहरा करने और अंतर-संचालन (interoperability) को बढ़ाने का माध्यम है।
- अभ्यास की प्रमुख विशेषताएँ :
- अभ्यास का नाम : डस्टलिक (उज़्बेक भाषा में "दोस्ती" का अर्थ)
- छठा संस्करण : वर्ष 2025 में पुणे, भारत में आयोजित।
- पिछला संस्करण : वर्ष 2024 में टर्मेज़, उज़्बेकिस्तान में संपन्न हुआ।
- प्रतिभागी बल :
- भारत : जाट रेजिमेंट की टुकड़ी एवं भारतीय वायु सेना की एक बटालियन।
- उज़्बेकिस्तान : उज़्बेक सेना की चयनित इकाइयाँ।
- अभ्यास का उद्देश्य :
- अर्ध-नगरीय परिदृश्यों में संयुक्त उप-परंपरागत अभियानों पर केंद्रित अभ्यास।
- आतंकवाद विरोधी अभियानों, छापेमारी, खोज और नष्ट मिशन का अनुकरण।
- जनसंख्या नियंत्रण तथा संयुक्त संचालन केंद्र की भूमिका का अभ्यास।
- क्षेत्र पर कब्जे के उद्देश्य से आतंकवादी गतिविधियों की प्रतिक्रिया की रणनीतियाँ।
- दोनों सेनाओं के बीच संचालनात्मक समन्वय और विश्वास निर्माण को बढ़ावा देना।
उज़बेकिस्तान मध्य एशिया में सीर दरिया और अमु दरिया नदियों के बीच स्थित है। इसकी सीमाएँ कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान से मिलती हैं।
विकास के कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों को निम्नलिखित रूप में वर्णित किया जा सकता है-
- विकास का प्रतिरूप- विकास का एक निश्चित प्रतिरूप होता है। मनुष्य का शारीरिक विकास दो दिशाओं, मस्तकाधोमुखी दिशा तथा निकट से दूर दिशा में होता है। प्रथम प्रकार की दिशा में शारीरिक विकास ‘सिर से पैर की ओर’ होता था। वहीं दूसरे प्रकार की दिशा में शारीरिक विकास पहले केंद्रीय भागों में प्रारंभ होता है उसके पश्चात् केंद्र से दूर के भागों में होता है।
- विकास की दिशा- विकास सामान्य से विशेष की ओर होता है। कोई भी बालक विकासक्रम में पहले सामान्य क्रियाएँ संपादित करता है उसके बाद विशेष क्रियाओं की तरफ जाता है। विकास का यह नियम शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक सभी प्रकार के विकास पर लागू होता है।
- विकास अवस्थाओं का पालन- विकास अवस्थाओं के अनुसार होता है। बालक को सामान्य रूप से देखने पर ऐसा मालूम पड़ता है कि उसका विकास रुक-रुक कर हो रहा है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है। उदाहरण के रूप में जब बालक के दूध के दाँत निकलते हैं तो ऐसा महसूस होता है कि दाँत एकाएक निकल आए, परंतु इसकी नींव गर्भावस्था के पाँचवे महीने में पड़ जाती है और ये जन्म के बाद 5-6 महीने में आते हैं।
- विकास में व्यक्तिगत विभेद- विकास में व्यक्तिगत विभेद हमेशा स्थिर होते हैं। जिस बालक में शारीरिक क्रियाएँ जल्दी उत्पन्न होती हैं वह शीघ्रता से बोलने भी लगता है, जिससे उसके भीतर सामाजिकता का विकास तेज़ी से होता है। इसके उलट जिन बालकों के शारीरिक विकास की गति धीमी होती है उनमें मानसिक और अन्य प्रकार का विकास भी विलंब से होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रत्येक बालक में शारीरिक व मानसिक योग्यताओं की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। इस कारण समान आयु के दो बालक व्यवहार में समानता नहीं रखते हैं।
- विकास की गति में विभिन्नता- विकास की गति में तीव्रता और मंदता विद्यमान होती है। व्यक्ति का विकास सदैव एक ही गति से नहीं होता बल्कि उसमें निरंतर उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। उदाहरण के लिये विकास की अवस्था में यह गति तीव्र रहती है उसके पश्चात् मंद पड़ जाती है।
- परिपक्वता और शिक्षण का परिणाम- बालक का विकास परिपक्वता और शिक्षण का परिणाम होता है। परिपक्वता का अर्थ व्यक्ति के वंशानुक्रम द्वारा शारीरिक गुणों का विकास है। बालक के अंदर स्वतंत्र रूप से एक ऐसी क्रिया चलती रहती है, जिसके परिणामस्वरूप उसके शारीरिक अंग अपने-आप परिपक्व हो जाते हैं। उसके लिये उसे वातावरण से मदद नहीं लेनी पड़ती है। वहीं शिक्षण और अभ्यास परिपक्वता के विकास में मदद प्रदान करते हैं। ये सीखने के लिये परिपक्व आधार तैयार करते हैं और सीखने के द्वारा बालक के व्यवहार में प्रगतिशील परिवर्तन आते हैं।
- विकास की प्रक्रिया- विकास एक अविराम प्रक्रिया है। यह निरंतर चलती रहती है। उदाहरण के रूप में शारीरिक विकास गर्भावस्था से लेकर परिपक्वावस्था तक चलता रहता है, लेकिन कालांतर में वह उठने-बैठने, चलने-फिरने और दौड़ने-भागने की क्रियाएँ करने लगता है।
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1995 में उरुग्वे दौर (1986–94) की वार्ताओं के बाद मारकेश समझौते के तहत हुई थी। इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है। WTO एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो वैश्विक व्यापार को अधिक उदार, पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने का कार्य करती है। इसने 1948 से सक्रिय GATT (General Agreement on Tariffs and Trade) का स्थान लिया।
- मुख्य कार्य
- सरकारों को व्यापार समझौते करने के लिये मंच प्रदान करना
- व्यापार विवादों का समाधान करना
- व्यापार नियमों की निगरानी करना
- व्यापार बाधाओं को कम कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देना
- विस्तृत क्षेत्र
GATT केवल वस्तुओं के व्यापार तक सीमित था, जबकि WTO वस्तुओं, सेवाओं और बौद्धिक संपदा (जैसे डिज़ाइन, पेटेंट, आविष्कार) में व्यापार को शामिल करता है।
- सदस्यता
- वर्तमान में WTO के 166 सदस्य हैं जो विश्व व्यापार के 98% का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- भारत वर्ष 1995 से WTO का सदस्य है और 1948 से GATT का हिस्सा रहा है।
- सदस्यता पारस्परिक वार्ताओं के आधार पर दी जाती है, जिससे सभी देशों के अधिकार और दायित्व संतुलित रहते हैं।
- प्रमुख समझौते
- TRIMS: व्यापार-संबंधित निवेश उपाय
- TRIPS: बौद्धिक संपदा अधिकार
- AoA: कृषि पर समझौता
- प्रमुख रिपोर्टें
- वर्ल्ड ट्रेड रिपोर्ट
- ग्लोबल ट्रेड आउटलुक एंड स्टैटिस्टिक्स
- WTO का महत्त्व
- 1995 के बाद से विश्व व्यापार की वास्तविक मात्रा 2.7 गुना बढ़ी है।
- औसत टैरिफ दर 10.5% से घटकर 6.4% रह गई है।
- वैश्विक व्यापार का कुल मूल्य लगभग चार गुना बढ़ा है।
- WTO ने पूर्वानुमानित बाजार परिस्थितियों को बढ़ावा दिया, जिससे ग्लोबल वैल्यू चेन (GVC) का विकास हुआ, जो आज 70% वस्तु व्यापार में योगदान देता है।
- गरीबी उन्मूलन में सहायता करते हुए, 1995 में 33% रही अत्यधिक गरीबी की दर 2020 तक 10% से नीचे आ गई है।
आज के वैश्विक तनावों के बावजूद WTO व्यापार नियमों के लिये एक विश्वसनीय और केंद्रीय संस्थान बना हुआ है। यह ग्लोबल साउथ जैसे विकासशील देशों को समान मतदान अधिकार और विवाद समाधान तक पहुँच प्रदान कर, उन्हें वैश्विक व्यापार वार्ताओं में भागीदारी सुनिश्चित कराता है।
विकास के कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों को निम्नलिखित रूप में वर्णित किया जा सकता है-
- विकास का प्रतिरूप- विकास का एक निश्चित प्रतिरूप होता है। मनुष्य का शारीरिक विकास दो दिशाओं, मस्तकाधोमुखी दिशा तथा निकट से दूर दिशा में होता है। प्रथम प्रकार की दिशा में शारीरिक विकास ‘सिर से पैर की ओर’ होता था। वहीं दूसरे प्रकार की दिशा में शारीरिक विकास पहले केंद्रीय भागों में प्रारंभ होता है उसके पश्चात् केंद्र से दूर के भागों में होता है।
- विकास की दिशा- विकास सामान्य से विशेष की ओर होता है। कोई भी बालक विकासक्रम में पहले सामान्य क्रियाएँ संपादित करता है उसके बाद विशेष क्रियाओं की तरफ जाता है। विकास का यह नियम शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक सभी प्रकार के विकास पर लागू होता है।
- विकास अवस्थाओं का पालन- विकास अवस्थाओं के अनुसार होता है। बालक को सामान्य रूप से देखने पर ऐसा मालूम पड़ता है कि उसका विकास रुक-रुक कर हो रहा है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है। उदाहरण के रूप में जब बालक के दूध के दाँत निकलते हैं तो ऐसा महसूस होता है कि दाँत एकाएक निकल आए, परंतु इसकी नींव गर्भावस्था के पाँचवे महीने में पड़ जाती है और ये जन्म के बाद 5-6 महीने में आते हैं।
- विकास में व्यक्तिगत विभेद- विकास में व्यक्तिगत विभेद हमेशा स्थिर होते हैं। जिस बालक में शारीरिक क्रियाएँ जल्दी उत्पन्न होती हैं वह शीघ्रता से बोलने भी लगता है, जिससे उसके भीतर सामाजिकता का विकास तेज़ी से होता है। इसके उलट जिन बालकों के शारीरिक विकास की गति धीमी होती है उनमें मानसिक और अन्य प्रकार का विकास भी विलंब से होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रत्येक बालक में शारीरिक व मानसिक योग्यताओं की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। इस कारण समान आयु के दो बालक व्यवहार में समानता नहीं रखते हैं।
- विकास की गति में विभिन्नता- विकास की गति में तीव्रता और मंदता विद्यमान होती है। व्यक्ति का विकास सदैव एक ही गति से नहीं होता बल्कि उसमें निरंतर उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। उदाहरण के लिये विकास की अवस्था में यह गति तीव्र रहती है उसके पश्चात् मंद पड़ जाती है।
- परिपक्वता और शिक्षण का परिणाम- बालक का विकास परिपक्वता और शिक्षण का परिणाम होता है। परिपक्वता का अर्थ व्यक्ति के वंशानुक्रम द्वारा शारीरिक गुणों का विकास है। बालक के अंदर स्वतंत्र रूप से एक ऐसी क्रिया चलती रहती है, जिसके परिणामस्वरूप उसके शारीरिक अंग अपने-आप परिपक्व हो जाते हैं। उसके लिये उसे वातावरण से मदद नहीं लेनी पड़ती है। वहीं शिक्षण और अभ्यास परिपक्वता के विकास में मदद प्रदान करते हैं। ये सीखने के लिये परिपक्व आधार तैयार करते हैं और सीखने के द्वारा बालक के व्यवहार में प्रगतिशील परिवर्तन आते हैं।
- विकास की प्रक्रिया- विकास एक अविराम प्रक्रिया है। यह निरंतर चलती रहती है। उदाहरण के रूप में शारीरिक विकास गर्भावस्था से लेकर परिपक्वावस्था तक चलता रहता है, लेकिन कालांतर में वह उठने-बैठने, चलने-फिरने और दौड़ने-भागने की क्रियाएँ करने लगता है।
- केंद्रीय विद्यालय परियोजना- यह परियोजना भारत की केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिये शुरू की गई थी जो पूरे देश में प्रभावी है। भारत सरकार के द्वितीय वेतन आयोग की सिफारिश पर नवंबर 1962 में केंद्रीय विद्यालय परियोजना को सहमति प्रदान की गई तथा वर्ष 1963 में इसे शुरू किया गया। इसमें कर्मचारियों के परिवारों को स्थानांतरित किये जाने के स्थान पर समान गति से समान पाठ्यक्रम का पालन करने वाली संस्थाओं में समान शिक्षा प्रदान करने के लिये व्यवस्था की गई।
- नवोदय विद्यालय- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 ने सुझाव दिया कि बुद्धिमान ग्रामीण विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा का अवसर देने के लिये प्रत्येक ज़िला मुख्यालय में कम-से-कम एक नए नवोदय विद्यालय की स्थापना की जाए। ग्रामीण प्रतिभा का समुचित पोषण करना इन विद्यालयों का उद्देश्य है।
- ओपन स्कूल- मुक्त शिक्षा प्रणाली उन लोगों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये लाई गई जो विभिन्न कारणों से बहुत व्यवस्थित तरीके से शैक्षिक मिशन को पूरा नहीं कर सकते। शिक्षा के उच्च या तृतीयक स्तर की तरह, विद्यालय स्तर में भी शिक्षा की ओपन व्यवस्था में आम लोगों को शैक्षिक अवसर प्रदान करने का प्रावधान है। ओपन सिस्टम की अवधारणा और दूरस्थ शिक्षा ने इस नई अवधारणा को विकसित किया है। जब भी पत्राचार पाठ्यक्रमों के माध्यम से स्कूली शिक्षा ज़रूरतमंद व्यक्तियों को प्रदान की जाती है तो उसे ओपन स्कूल कहा जाता है। NIOS इस तरह के विद्यालयों को संचालन करता है।
- चोल पल्लवों के सामंत थे। इनका इतिहास मुख्यतः अभिलेखों से जाना जाता है जो कि संस्कृत, तमिल, तेलुगू और कन्नड़ भाषाओं में लिखे गए हैं।
- विजयालय (850-887) ने चोल राज्य की स्थापना की और उसने नरकेसरी की उपाधि धारण की थी।
- चोलों की प्रारंभिक राजधानी तंजौर या तंजावुर थी।
- अरमोलिवर्मन (राजराज-I) ने पांड्य, चेर तथा श्रीलंका के गठबंधन को पराजित किया। उसने श्रीलंका के शासक महेंद्र पंचम को पराजित कर लंका के उत्तरी क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
- राजराज-I ने मालदीव पर अपनी शक्तिशाली नौसेना की सहायता से विजय प्राप्त की। यह प्रथम चोल शासक था जिसने भूमि की माप करवाई। अपने जीवनकाल में ही अपने पुत्र राजेंद्र-I को सम्राट घोषित कर दिया। राजराज-I ने तंजौर में ‘बृहदेश्वर (राजराजेश्वर) शिव मंदिर’ बनवाया।
- राजेंद्र-I ने संपूर्ण श्रीलंका को जीत लिया। 1022 में गंगा-घाटी का अभियान किया। पाल शासक महिपाल को पराजित किया। इस उपलक्ष्य में वापस आकर ‘गंगैकोंडचोलपुरम्’ नामक नगर की स्थापना की और ‘गंगैकोंडचोल’ की उपाधि धारण की। राजेंद्र प्रथम ने गंगैकोंडचोलपुरम् को चोल राज्य की नवीन राजधानी बनाया।
- उसने दक्षिण-पूर्व एशिया में सैन्य अभियान किया। उसने शैलेंद्र शासक श्री संग्राम विजय तुंग को पराजित करके कटाहा (कडारम) पर अधिकार कर लिया और ‘कडारकोंड’ की उपाधि धारण की। इस राज्य के अंतर्गत मलय, जावा, सुमात्रा आदि द्वीप थे।
- कुलोतुंग-I चोल-चालुक्य रक्त मिश्रित था। इसने भूमि की दो बार माप कराई।
- कुलोतुंग-II ने चिदंबरम मंदिर में स्थित गोविंदराज (विष्णु) की मूर्ति को समुद्र में फिंकवा दिया। कालांतर में रामानुजाचार्य ने उस मूर्ति का पुनरुद्धार किया और उसे तिरुपति के मंदिर में प्रतिष्ठित किया।
- राजेंद्र-III चोल वंश का अंतिम शासक था।
- प्राचीन भारत में तीन प्रमुख मूर्तिकला शैलियों का विकास हुआ। गांधार शैली, मथुरा शैली और अमरावती शैली।
- गांधार शैली का विकास भारत के पश्चिमोत्तर भाग में कुषाण शासकों के संरक्षण में हुआ। इस पर यूनानी (Hellenistic) कला का प्रभाव रहा है। बौद्ध धर्म से प्रभावित इस कला में बुद्ध की योगी या आध्यात्मिक मुद्रा में मूर्तियाँ बनी हैं। नीले-धूसर बलुआ पत्थर का इस शैली में उपयोग हुआ है।
- मथुरा क्षेत्र में विकसित मथुरा शैली भी कुषाण शासकों के संरक्षण में विकसित हुई। इस पर बौद्ध, जैन, हिंदू तीनों का प्रभाव है। चित्तीदार लाल बलुआ पत्थर से बनी बुद्ध मूर्तियों में ‘पद्मासन मुद्रा’ और सिर के पीछे ‘आभामंडल’ का प्रयोग हुआ है। इस शैली पर विदेशी प्रभाव नगण्य है।
- सातवाहन राजाओं के संरक्षण में कृष्णा-गोदावरी घाटी, नागार्जुन कोंडा आदि क्षेत्रों में विकसित अमरावती शैली भी मुख्यतः बौद्ध धर्म से प्रभावित है। विदेशी प्रभाव से रहित इस शैली में मुख्यतः सफेद संगमरमर का इस्तेमाल हुआ है।
- चोलयुगीन मूर्तियों में नटराज की कांस्य प्रतिमा सर्वोत्कृष्ट है।
- गंग-वंश से संबंधित मंत्री चामुंड राय ने पूर्व-मध्य काल में श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में प्रथम तीर्थंकर के पुत्र बाहुबली की सबसे भव्य और शानदार मूर्ति बनवाई जिसे गोमतेश्वर मूर्ति कहते हैं।
- वह पदार्थ जो दो या दो से अधिक तत्त्वों के नियत अनुपात में रासायनिक तौर पर संयोजन से बना होता है, ‘यौगिक’ कहलाता है।
- उदाहरण- पानी, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन तत्त्वों के नियत अनुपात में रासायनिक संयोजन से बनता है। इसी प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड, अमोनिया इत्यादि यौगिक हैं।
- यौगिकों को मुख्यतः दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है-
- कार्बनिक यौगिक (Organic Compound)
- अकार्बनिक यौगिक (Inorganic Compound)
- कार्बनिक यौगिक- जिन यौगिकों का मुख्य घटक कार्बन होता है और कार्बन, हाइड्रोजन के साथ जुड़ा है, वे ‘कार्बनिक यौगिक’ कहलाते हैं। उदाहरण- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, तेल, मोम आदि।
- अकार्बनिक यौगिक- वे यौगिक जिनका मुख्य घटक कार्बन नहीं है, विशेषतः कार्बन हाइड्रोजन बंध अनुपस्थित होता है, ‘अकार्बनिक यौगिक’ कहलाते हैं। ये यौगिक अजैविक स्रोतों, जैसे- चट्टानों, खनिजों आदि से प्राप्त होते हैं।
- उदाहरण- धावन सोडा (Na2CO3) नमक (NaCl) आदि।
- अलबरूनी का जन्म आधुनिक उज़्बेकिस्तान में स्थित ख़्वारिज़्म में वर्ष 973 में हुआ था। ख़्वारिज़्म शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था और अलबरूनी ने उस समय उपलब्ध सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी।
- वर्ष 1017 ई. में ख़्वारिज़्म पर आक्रमण के पश्चात् सुल्तान महमूद यहाँ के कई विद्वानों तथा कवियों को अपने साथ अपनी राजधानी गज़नी ले गया। अलबरूनी उन्हीं में से एक था। वह बंधक के रूप में गज़नी आया था पर धीरे-धीरे उसे यह शहर पसंद आने लगा और 70 वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु तक उसने अपना बाकी जीवन यहीं बिताया। अलबरूनी ख़्वारिज़्म से भारत आया था। वह कई भाषाओं का ज्ञाता था जिनमें सीरियाई, फारसी, हिब्रू तथा संस्कृत शामिल हैं। उसने संस्कृत, हिंदू धर्म तथा भारतीय दर्शन का अध्ययन किया।
- उसने अनेक पुस्तकों लिखीं, जिसमें ‘तारीख-उल-हिंद’ सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इससे प्रारंभिक 11वीं शताब्दी के हिंदुओं के साहित्य, विज्ञान, धर्म तथा सामाजिक परंपराओं की जानकारी प्राप्त होती है। अरबी में लिखी गई अलबरूनी की कृति की भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून आदि विषयों के आधार पर 80 अध्यायों में विभाजित है।
- अलबरूनी के कई भाषाओं में दक्षता हासिल करने के कारण अलबरूनी भाषाओं की तुलना तथा ग्रंथों का अनुवाद करने में सक्षम रहा। उसने कई संस्कृत कृतियों, जिनमें पतंजलि का व्याकरण पर ग्रंथ भी शामिल है, का अरबी में अनुवाद किया। अपने ब्राह्मण मित्रों के लिये उसने यूक्लिड (एक यूनानी गणितज्ञ) के कार्यों का संस्कृत में अनुवाद किया।
- अलबरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के माध्यम से जाति व्यवस्था को समझने और व्याख्या करने का प्रयास किया। उसने लिखा कि प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता थी- घुड़सवार और शासक वर्ग, भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक, खगोल शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक और अंत में कृषक तथा शिल्पकार। दूसरे शब्दों में, ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे।
- मोबाइल अदालत की अवधारणा का जनक भूतपूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को माना जाता है।
- इस अदालत का उद्देश्य है कि अदालत स्वयं जनता के पास पहुंचे ताकि जनता को न्याय प्राप्ति के लिये धन व समय खर्च न करना पड़े।
- मोबाइल अदालत का पहला प्रयोग 2007 में हरियाणा के मेवात ज़िले में किया गया।
- मोबाइल अदालत एक ‘बस’ के भीतर कार्य करती है। बस के भीतर न्यायालय का ज़रूरी ढांचा उपलब्ध होता है। आवश्यकतानुसार यह अदालत खुले मैदान में लगाई जा सकती है।
- इस अदालत की अध्यक्षता ‘अतिरिक्त सिविक न्यायाधीश सह-अनुमंडल न्यायिक दंडाधिकारी’ (Additional Civil Judge-cum-sub-divisional Judicial Magistrate) स्तर के न्यायाधीश द्वारा की जाती है, जो सिविल तथा आपराधिक दोनों प्रकार के मामलों की सुनवाई करता है।
- शुरुआती सफलता के कारण इस प्रयोग को ‘पहियों पर न्याय’ (Justice on Wheels) नाम से भी पुकारा जाता है।
ब्रिटिश भारत में मद्रास (अब चेन्नई) राजनीतिक गतिविधियों और जागरूकता का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था। 19वीं शताब्दी में, यहाँ कई संगठनों की स्थापना हुई, जिनका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के अधीन भारतीयों के अधिकारों और हितों की रक्षा करना था।
- मद्रास नेटिव एसोसिएशन (1852)
कलकत्ता की ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन की शाखा के रूप में, मद्रास नेटिव एसोसिएशन की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार से भारतीयों के हितों की रक्षा के लिये अपील करना था। हालाँकि, यह संगठन अधिक प्रभावी नहीं हो सका और धीरे-धीरे निष्क्रिय हो गया। - मद्रास महाजन सभा (1884)
मई 1884 में, एम. वीराराघवाचारी, बी. सुब्रह्मण्यम अय्यर और पी. आनंद चार्लू ने मद्रास महाजन सभा की स्थापना की। यह संस्था स्थानीय संगठनों के कार्यों को समन्वित करने और भारतीयों की राजनीतिक आकांक्षाओं को व्यक्त करने के उद्देश्य से बनाई गई थी। - प्रमुख विशेषताएँ :
- यह दक्षिण भारत की पहली महत्त्वपूर्ण राजनीतिक संस्था थी।
- इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की समस्याओं से अवगत कराना था।
- यह संस्था भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन (1885) से पहले की राजनीतिक गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी।
- महत्त्व और प्रभाव
- मद्रास महाजन सभा ने ब्रिटिश नीतियों की आलोचना की और भारतीयों के अधिकारों की मांग की।
- इस संस्था ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में दक्षिण भारत के नेताओं को एक मंच प्रदान किया।
- बाद में, यह संस्था भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गई और स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनी।
मद्रास की ये संस्थाएँ ब्रिटिश भारत में राजनीतिक चेतना जागृत करने में सहायक रहीं और स्वतंत्रता संग्राम में दक्षिण भारत की भूमिका को मज़बूती प्रदान की।
- सूर्य का आकार, दूरी और प्रकाश का संचार:
- सूर्य पृथ्वी की तुलना में लगभग 13 लाख गुना बड़ा है, तथा इसकी औसत दूरी लगभग 15 करोड़ किमी है।
- सूर्य की किरणें 3 लाख किमी/सेकंड (लगभग 186,000 मील/सेकंड) की रफ्तार से पृथ्वी तक पहुँचती हैं, जो प्रकाश की तीव्र चाल को दर्शाता है।
- नाभिकीय संलयन प्रक्रिया:
- सूर्य के क्रोड में हाइड्रोजन परमाणुओं का निरंतर नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) होता है, जिसके दौरान हीलियम में परिवर्तन के साथ बहुत अधिक ऊर्जा मुक्त होती है।
- यही प्रक्रिया सूर्य की आंतरिक ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, जो बाहरी सतह (फोटोस्फेयर) पर लगभग 6000°C के तापमान का निर्माण करती है।
- सौर विकिरण का वितरण एवं सौर स्थिरांक:
- सूर्य निरंतर अंतरिक्ष में ऊष्मा के विकिरण (सौर विकिरण) का उत्सर्जन करता है, जो विद्युत चुम्बकीय तरंगों के विभिन्न भागों – जैसे कि पराबैंगनी, दृश्यमान और अवरक्त किरणों में विभाजित होता है।
- पृथ्वी तक पहुँचने वाले कुल विकिरण का केवल दो अरबवाँ हिस्सा (लगभग 0.0005%) धरातल द्वारा अवशोषित होता है, जिससे प्राप्त ऊर्जा का मापन सौर स्थिरांक (Solar Constant) के रूप में होता है।
- धरातल पर औसत दर से यह ऊर्जा लगभग 2 कैलोरी/वर्ग सेमी./मिनट या 2 लैंजली (Cal/cm²/min.) के रूप में मिलती है, जो पृथ्वी के जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र के लिये महत्त्वपूर्ण है।
प्रत्येक पदार्थ असंख्य सूक्ष्म कणों से निर्मित होता है, जिन्हें 'परमाणु' कहा जाता है। यह पदार्थ की वह सबसे छोटी और आधारभूत इकाई है, जो उसके भौतिक और रासायनिक गुणों को निर्धारित करती है। परमाणु की संरचना में मुख्य रूप से तीन प्रकार के मूलकण पाए जाते हैं:
- इलेक्ट्रॉन (Electron):
- ऋण आवेशित (नकारात्मक आवेश वाले) मूलकण।
- परमाणु के नाभिक के चारों ओर निश्चित ऊर्जा कक्षाओं में निरंतर गति करते हैं।
- रासायनिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
- संख्या में बदलाव आयन निर्माण का कारण बनता है।
- प्रोटॉन (Proton):
- धन आवेशित (सकारात्मक आवेश वाले) मूलकण।
- परमाणु के नाभिक में स्थित होते हैं।
- परमाणु क्रमांक निर्धारित करते हैं।
- परमाणु का भार और स्थिरता प्रभावित होती है।
- न्यूट्रॉन (Neutron):
- उदासीन (निःआवेश) मूलकण।
- परमाणु के नाभिक में प्रोटॉनों के साथ पाए जाते हैं।
- नाभिक को स्थिर बनाए रखने में सहायक।
- समस्थानिकों (Isotopes) का निर्माण न्यूट्रॉन की संख्या पर निर्भर।
इस प्रकार, परमाणु की संरचना और उसके घटकों की भूमिकाएँ पदार्थ के गुणधर्मों को समझने में अहम भूमिका निभाती हैं। परमाणु विज्ञान न केवल भौतिकी और रसायन विज्ञान का आधार है, बल्कि आधुनिक तकनीकी प्रगति की नींव भी है।
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (VTR) बिहार का एकमात्र बाघ अभयारण्य है, जो भारत में हिमालय के तराई वनों की सबसे पूर्वी सीमा का निर्माण करता है। यह टाइगर रिजर्व पश्चिम चंपारण जिले में स्थित है, जिसकी सीमाएँ उत्तर में नेपाल और पश्चिम में उत्तर प्रदेश से मिलती हैं।
- भौगोलिक विशेषताएँ और वनस्पति
यह रिजर्व गंगा के मैदानी जैव-भौगोलिक क्षेत्र में स्थित है। इसकी वनस्पति में भाबर (पत्थरीला और शुष्क क्षेत्र) तथा तराई (निचला, नम और दलदली क्षेत्र) का विशिष्ट संयोजन देखने को मिलता है। यह विविध पारिस्थितिकी तंत्र क्षेत्र के वन्यजीवों के लिये एक अनुकूल आवास प्रदान करता है। - वनाच्छादन और जैव विविधता
- भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 के अनुसार, इसके कुल क्षेत्रफल का 85.71% भाग वनाच्छादित है।
- यहाँ के घने वनों में कई महत्वपूर्ण वन्य स्तनधारी प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें शामिल हैं:
- बाघ (Royal Bengal Tiger)
- स्लॉथ भालू
- तेंदुआ
- जंगली कुत्ता (Dhole)
- बाइसन (Indian Gaur)
- जंगली सूअर (Wild Boar)
- नदी तंत्र
गंडक, पंडई, मनोर, हरहा, मसान तथा भपसा नदियाँ इस अभयारण्य के विभिन्न हिस्सों से प्रवाहित होती हैं। ये नदियाँ न केवल वन्यजीवों के लिये जल स्रोत प्रदान करती हैं, बल्कि क्षेत्रीय पारिस्थितिकी को भी सुदृढ़ बनाती हैं।
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व बिहार की प्राकृतिक धरोहर है, जो जैव विविधता के संरक्षण, पर्यावरणीय संतुलन और पारिस्थितिकीय स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका सतत संरक्षण न केवल बाघों और अन्य वन्यजीवों के लिये, बल्कि मानव जीवन के लिये भी आवश्यक है।
1950 में जयप्रकाश नारायण द्वारा प्रस्तुत सर्वोदय योजना का लक्ष्य समाज के सभी वर्गों के समग्र विकास को सुनिश्चित करना था। यह योजना गांधीवादी सिद्धांतों से प्रेरित थी और सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और विकेंद्रीकृत विकास को बढ़ावा देती थी।
- मुख्य विशेषताएँ
- कृषि और लघु उद्योगों को प्राथमिकता
- बड़े उद्योगों के बजाय कृषि, कुटीर और लघु उद्योगों को प्रोत्साहित करने पर जोर।
- संपत्ति और संसाधनों का समान वितरण
- आर्थिक असमानता को कम करने के लिये धन और संसाधनों का न्यायसंगत बंटवारा।
- सहकारी समितियों का विकास
- कृषि और कुटीर उद्योगों में सहकारी समितियों की स्थापना और विस्तार।
- सामाजिक न्याय और समान अवसर
- श्रमिकों और किसानों के लिये समान अवसर, संसाधन और अधिकारों की गारंटी।
- कृषि और लघु उद्योगों को प्राथमिकता
- महत्व और प्रभाव
- भारत में पंचायती राज और सहकारी आंदोलन के विकास में इस योजना की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
- यह योजना भूमि सुधार और ग्रामीण विकास नीतियों का आधार बनी।
- हालाँकि, इसमें भारी उद्योगों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार की भूमिका को कम आंका गया, जिससे इसकी प्रभावशीलता सीमित रही।
- स्वतंत्रता पूर्व और पश्चात भारत की आर्थिक योजनाएँ विभिन्न दृष्टिकोणों पर आधारित थीं:
- बॉम्बे प्लान – औद्योगीकरण और निजी क्षेत्र के विकास पर केंद्रित।
- गांधीवादी योजना – आत्मनिर्भर ग्राम अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाली।
- जन योजना – समाजवादी आर्थिक ढाँचे पर आधारित थी।
- सर्वोदय योजना – समानता, सामाजिक न्याय और विकेन्द्रीकृत विकास पर केंद्रित।
इन सभी योजनाओं ने भारत की आर्थिक नीतियों, पंचवर्षीय योजनाओं और विकास रणनीतियों की नींव रखी, जिससे भारत समाजवादी लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ सका।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (UNFCCC) के तहत पार्टियों का 29वां सम्मेलन (COP29) 11-22 नवंबर 2024 को बाकू, अज़रबैजान में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में लगभग 200 देशों ने भाग लिया और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये विभिन्न समझौतों पर सहमति बनाई।
- COP29 के प्रमुख निर्णय :
- नया जलवायु वित्त लक्ष्य
- न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल (NCQG) के तहत विकासशील देशों के लिये जलवायु वित्त को 2035 तक 300 अरब डॉलर प्रति वर्ष तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया, जो पहले केवल 100 अरब डॉलर था।
- सार्वजनिक और निजी स्रोतों से जलवायु वित्त को 1.3 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष तक बढ़ाने की अपील की गई, जिससे विकासशील देशों को जलवायु संकट से निपटने में मदद मिले।
- कार्बन बाजार समझौता
- पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6.2 के तहत देशों को कार्बन क्रेडिट का द्विपक्षीय व्यापार करने की अनुमति दी गई।
- अनुच्छेद 6.4 के तहत संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रबंधित कार्बन उत्सर्जन व्यापार प्रणाली विकसित करने पर सहमति बनी।
- मीथेन उत्सर्जन में कटौती पर समझौता
- 30 से अधिक देशों (अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, UAE) ने मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने के लिये COP29 घोषणा का समर्थन किया (भारत ने हस्ताक्षर नहीं किये)।
- यह घोषणा वैश्विक मीथेन उत्सर्जन के 20% के लिये जिम्मेदार कचरा प्रबंधन क्षेत्र को लक्षित करती है।
- यह पहल वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा (Global Methane Pledge) पर आधारित है, जिसका लक्ष्य 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को 30% तक कम करना है।
- स्वदेशी समुदायों और स्थानीय भागीदारी
- COP29 ने "बाकू कार्ययोजना" को अपनाया, जो आदिवासी ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को जोड़ने पर केंद्रित है।
- स्थानीय समुदाय और स्वदेशी लोगों के मंच (LCIPP) के तहत सुविधाजनक कार्य समूह (FWG) का कार्यकाल बढ़ाया गया।
- यह पहल स्वदेशी मूल्यों को जलवायु नीतियों में शामिल करने और स्वदेशी समुदायों की भागीदारी बढ़ाने पर केंद्रित है।
- 2027 में इस कार्ययोजना की समीक्षा की जाएगी।
- लैंगिक समानता और जलवायु परिवर्तन
- लीमा वर्क प्रोग्राम (LWPG) को अगले 10 वर्षों के लिये बढ़ाया गया ताकि जलवायु नीतियों में लैंगिक संतुलन को बढ़ावा दिया जा सके।
- COP30 (बेलेम, ब्राजील) में एक नई लैंगिक कार्ययोजना को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
- यह कार्यक्रम पेरिस समझौते के तहत लैंगिक-संवेदनशील जलवायु नीतियों को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
- किसानों के लिये "बाकू हार्मोनिया जलवायु पहल"
- खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के सहयोग से यह पहल शुरू की गई।
- इसका उद्देश्य किसानों को जलवायु संकट से निपटने के लिये आवश्यक संसाधन और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है।
COP29 ने जलवायु वित्त, कार्बन बाजार, मीथेन कटौती, लैंगिक समानता और स्वदेशी भागीदारी के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की। इस शिखर सम्मेलन में लिये गए निर्णयों की सफलता विकसित देशों की वित्तीय प्रतिबद्धता और प्रभावी कार्यान्वयन पर निर्भर करेगी।
- नया जलवायु वित्त लक्ष्य
केन-बेतवा लिंक परियोजना भारत की नदी जोड़ो योजना (Interlinking of Rivers - ILR) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका उद्देश्य केन और बेतवा नदी घाटियों के बीच जल संसाधनों का उचित वितरण करना और जल संकट को दूर करना है।
- केन नदी
केन नदी की उत्पत्ति मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में स्थित कैमूर पहाड़ियों की उत्तर-पश्चिमी ढलानों पर अहिरगाँव गाँव के पास होती है। यह नदी बुंदेलखंड क्षेत्र से होकर बहती है और अंततः उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में चिल्ला गाँव के पास यमुना नदी में मिल जाती है। केन नदी दुर्लभ शज़र पत्थर के लिये प्रसिद्ध है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में बावस, देवर, कैथ, कोपरा और बेयरमा शामिल हैं। - बेतवा नदी
बेतवा नदी की उत्पत्ति मध्य प्रदेश के विंध्य पर्वत श्रृंखला में होती है। यह नदी बुंदेलखंड क्षेत्र से होकर बहती है और अंततः उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यमुना नदी में मिल जाती है। प्राचीन काल में इसे वेत्रवती के नाम से जाना जाता था। बेतवा की प्रमुख सहायक नदियाँ नुआन, उर और धसान हैं। - भारत में नदी जोड़ो परियोजनाओं का इतिहास
- सर आर्थर कॉटन (19 वीं शताब्दी) : नदियों को जोड़ने का विचार सर्वप्रथम ब्रिटिश इंजीनियर सर आर्थर कॉटन द्वारा प्रस्तावित किया गया था, जिसका उद्देश्य नौवहन और सिंचाई के लिये गंगा और कावेरी को जोड़ना था।
- पेरियार परियोजना, जिसका निर्माण वर्ष 1895 में किया गया था, एक प्रमुख सिंचाई परियोजना है जो केरल में पेरियार नदी बेसिन से जल को तमिलनाडु में वैगई नदी बेसिन तक ले जाती है।
- राष्ट्रीय जल ग्रिड : तत्कालीन केंद्रीय सिंचाई मंत्री डॉ. के.एल. राव ने 1970 के दशक में राष्ट्रीय जल ग्रिड के निर्माण का प्रस्ताव रखा था।
- इसका उद्देश्य जल-अधिशेष क्षेत्रों से जल-कमी वाले क्षेत्रों में जल स्थानांतरित करना है।
- गारलैंड नहर : कैप्टन दिनशॉ जे दस्तूर ने एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जल के पुनर्वितरण के लिये गारलैंड नहर का प्रस्ताव रखा।
- राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (1980) : वर्ष 1980 में तैयार की गई, जिसका उद्देश्य अंतर-बेसिन जल हस्तांतरण था।
- वर्ष 1982 में नदियों को जोड़ने के लिये जल संतुलन और व्यवहार्यता अध्ययन करने के लिये राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) की स्थापना की गई थी।
केन-बेतवा लिंक परियोजना बुंदेलखंड जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्र में सिंचाई, पेयजल आपूर्ति और जलविद्युत उत्पादन के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- वर्ष 1982 में नदियों को जोड़ने के लिये जल संतुलन और व्यवहार्यता अध्ययन करने के लिये राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) की स्थापना की गई थी।
- सर आर्थर कॉटन (19 वीं शताब्दी) : नदियों को जोड़ने का विचार सर्वप्रथम ब्रिटिश इंजीनियर सर आर्थर कॉटन द्वारा प्रस्तावित किया गया था, जिसका उद्देश्य नौवहन और सिंचाई के लिये गंगा और कावेरी को जोड़ना था।
जब किसी विद्युत चालक को परिवर्तित चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो उसमें विद्युतवाहक बल (Electromotive Force - EMF) या विभवांतर उत्पन्न होता है। इस प्रभाव को विद्युत चुंबकीय प्रेरण कहा जाता है।
- मुख्य बिंदु :
- किसी परिवर्तित चुंबकीय क्षेत्र में विद्युत चालक रखने पर उसमें EMF या विभवांतर उत्पन्न होता है।
- यदि चालक बंद परिपथ में हो, तो उसमें विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है।
- विद्युत चुंबकीय प्रेरण का मात्रक टेस्ला (Tesla) होता है।
- सन् 1831 में माइकल फैराडे ने इस सिद्धांत की खोज की।
- यह सिद्धांत यह दर्शाता है कि गतिशील चुंबक की सहायता से विद्युत धारा उत्पन्न की जा सकती है।
- प्रयोग और अनुप्रयोग :
- डायनमो (Dynamo) – यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
- ट्रांसफार्मर (Transformer) – विद्युत ऊर्जा के वोल्टेज स्तर को परिवर्तित करता है।
- विद्युत जनित्र (Electric Generator) – विद्युत धारा उत्पन्न करने के लिये प्रयुक्त होता है।
विद्युत चुंबकीय प्रेरण विद्युत उत्पादन और वितरण प्रणालियों की नींव है और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स तथा विद्युत इंजीनियरिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सेवा सदन की स्थापना 1908 में प्रसिद्ध पारसी समाज सुधारक बहरामजी एम. मालाबारी (1853-1912) और उनके सहयोगी दीवान दयाराम गिडूमल ने की। इस संस्था का उद्देश्य भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना था।
- सेवा सदन की प्रमुख विशेषताएँ :
- महिला अधिकारों की रक्षा :
- बाल विवाह के खिलाफ और विधवा पुनर्विवाह के समर्थन में सक्रिय रूप से कार्य किया।
- ऐज ऑफ कंसेंट एक्ट पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे महिलाओं की सहमति की न्यूनतम आयु निर्धारित हुई।
- सामाजिक सेवा और उत्थान :
- समाज द्वारा उपेक्षित, शोषित एवं तिरस्कृत महिलाओं को सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन प्रदान किया।
- जाति और धर्म की परवाह किये बिना सभी महिलाओं को सामाजिक सेवाएँ प्रदान की ।
- शिक्षा और कौशल विकास :
- महिलाओं को साक्षर बनाने के साथ-साथ उन्हें विभिन्न व्यावसायिक कौशल भी सिखाए, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें।
- महिलाओं को सामाजिक मान्यता दिलाने और उन्हें सार्वजनिक जीवन में भागीदारी के लिये प्रेरित किया।
- चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाएँ :
- महिलाओं के लिये निःशुल्क चिकित्सा सेवाएँ और स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराईं।
- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया।
- महिला अधिकारों की रक्षा :
- सेवा सदन का प्रभाव और विरासत :
- सेवा सदन महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ।
- इसके प्रयासों से महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और सामाजिक अधिकार मिलने लगे।
- इसकी प्रेरणा से आगे चलकर कई अन्य सामाजिक सुधार आंदोलन भी आरंभ हुए।
बहरामजी मालाबारी और उनकी संस्था सेवा सदन ने लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में ऐतिहासिक योगदान दिया। यह संस्था आज भी महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण के लिये कार्यरत है और प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
आर्य समाज 19वीं शताब्दी का सबसे प्रभावशाली धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलन था, जिसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 ई. में की थी। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य प्राचीन वैदिक धर्म की पुनः स्थापना, समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों का उन्मूलन तथा एक न्यायसंगत, समानतापूर्ण और वैज्ञानिक सोच पर आधारित समाज की स्थापना करना था। आर्य समाज ने शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और धर्मांतरण विरोधी गतिविधियों पर विशेष ध्यान दिया और हिंदू समाज में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की भावना को पुनर्जीवित किया।
- आर्य समाज के प्रमुख सिद्धांत
- वेद ही ज्ञान के सर्वोच्च स्रोत हैं, इसलिये वेदों का अध्ययन अनिवार्य है।
- मूर्तिपूजा का खंडन और अवतारवाद का विरोध।
- कर्म, पुनर्जन्म और आत्मा की अमरता में विश्वास।
- केवल एक निराकार ईश्वर में आस्था।
- स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देना और उन्हें समान अधिकार देना।
- बाल विवाह और बहुविवाह का विरोध।
- जाति व्यवस्था को जन्म नहीं बल्कि कर्म आधारित बनाने का समर्थन।
- विधवा विवाह को कुछ परिस्थितियों में मान्यता।
- हिन्दी और संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा।
- सभी राष्ट्रों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध और सामाजिक न्याय की स्थापना।
- सामाजिक सुधार और प्रभाव
- शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने के लिये गुरुकुल प्रणाली को पुनर्जीवित किया।
- प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाई।
- हिंदू धर्म की रक्षा के लिये ‘शुद्धि आंदोलन’ चलाया, जिससे धर्मांतरण कर चुके लोग पुनः हिंदू धर्म में लौट सकें।
- धार्मिक समानता और मानवतावादी मूल्यों को बढ़ावा दिया।
- विभाजन और प्रमुख योगदान
1893 में आर्य समाज दो गुटों में विभाजित हो गया:- ‘कल्चरड पार्टी’ –पश्चिमी शिक्षा और मांसाहार का समर्थन करने वाला गुट (नेता: महात्मा हंसराज)।
- ‘महात्मा गुट’ –गुरुकुल शिक्षा और शाकाहार प्रणाली का समर्थन करने वाला गुट (नेता: स्वामी श्रद्धानंद)।
- महात्मा हंसराज – 1886 में लाहौर में ओरिएंटल एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की।
- स्वामी श्रद्धानंद – 1901 में हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना की।
आर्य समाज ने भारतीय समाज में आत्मगौरव और जागरूकता का संचार किया। इसके प्रयासों से हिंदू धर्म को बाहरी प्रभावों से बचाने और आधुनिक विचारों के साथ जोड़ने में सफलता मिली। स्वामी दयानंद सरस्वती के आदर्शों को लाला हंसराज, पंडित गुरुदत्त, लाला लाजपत राय और स्वामी श्रद्धानंद जैसे नेताओं ने आगे बढ़ाया। उनका आंदोलन आज भी समाज सुधार की दिशा में प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है।
केंद्रीय वित्त मंत्री ने बजट 2025 में बिहार के लिये कई महत्वपूर्ण योजनाओं की घोषणा की, जिनमें कृषि, विशेष रूप से मखाना उत्पादन, को बढ़ावा देने के लिये विशेष प्रयास किये गए हैं। मखाना, जिसे फॉक्स नट के नाम से भी जाना जाता है, काँटेदार वॉटर लिली (Euryale Ferox) का सूखा हुआ बीज है।
- मखाना खेती को प्रोत्साहन
- मखाना बोर्ड की स्थापना : बिहार में मखाना की खेती को बढ़ावा देने और इसके प्रसंस्करण को सरल बनाने के लिये मखाना बोर्ड की स्थापना की जाएगी। यह बोर्ड मखाना के उत्पादन, मूल्य संवर्धन और विपणन को बढ़ावा देगा, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिलेगा।
- मिथिला मखाना को GI टैग : 2022 में मिथिला मखाना को भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्राप्त हुआ, और भारत दुनिया का लगभग 90 प्रतिशत मखाना उत्पादित करता है और इस उत्पादन में बिहार का योगदान 85 प्रतिशत से भी अधिक है। यह टैग मखाना के वैश्विक बाजार में पहचान और मान्यता को बढ़ावा देगा।
- लाभार्थी क्षेत्र : इस पहल का लाभ मुख्य रूप से बिहार के उन क्षेत्रों को मिलेगा, जो मखाना उत्पादन में प्रमुख हैं। इसमें दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, सुपौल और मधेपुरा जैसे जिले शामिल हैं। इससे पाँच लाख से अधिक किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद है।
- कृषि क्षेत्र में सुधार : इस कदम से मखाना उत्पादकों के लिये कृषि को और अधिक लाभकारी बनाया जाएगा। मखाना के प्रसंस्करण और विपणन के लिये बेहतर अवसंरचना विकसित की जाएगी, जिससे स्थानीय किसानों की आमदनी बढ़ेगी।
केंद्रीय बजट 2025 में मखाना खेती को बढ़ावा देने के लिये की गई घोषणा से बिहार के मखाना उत्पादक किसानों को लाभ होगा। मखाना के वैश्विक विपणन के साथ, राज्य में कृषि के क्षेत्र में नया उत्साह आएगा, जिससे रोजगार, व्यापार और स्थानीय अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। यह पहल राज्य के किसानों को सशक्त बनाएगी और मखाना उत्पादन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
- कानपुर : चमड़ा उद्योग
- बरेली : बाँस का उत्पादन, ज़री साड़ियाँ
- मुरादाबाद : ब्रासवेयर हैंडीक्राफ्ट, धातुपत्र निर्माण
- तिरुपुर : हौज़री एवं बुनाई उद्योग
- सहारनपुर : काष्ठ नक्काशी
- लुधियाना : भारी मशीनरी, हौज़री निर्माण, ऊनी वस्त्र निर्माण
- पानीपत : हथकरघा उद्योग
- सूरत : रत्न और आभूषण निर्माण, वस्त्र उद्योग, ज़री एवं रेशम साड़ी निर्माण
- भोपाल : कीटनाशक उद्योग
- मोदीनगर : रबर उद्योग
- जालंधर : खेल का सामान निर्माण
- रानीपेट : चमड़ा उद्योग
- नलवाड़ी (असम) : बाँस पर आधारित वस्तुओं का निर्माण
- गुरुग्राम : ऑटोमोबाइल निर्माण
- नेपानगर : अखबारी कागज उत्पादन
- टीटागढ़ (पश्चिम बंगाल) : जूट से बने सामान
- भदोही (उत्तर प्रदेश) : ऊनी कालीन निर्माण
- बाराबंकी : पॉली फाइबर उत्पादन
- मूरी : एल्युमीनियम उद्योग
- पीलीभीत : काष्ठ पादुका निर्माण
- नागपुर : हस्त उपकरण निर्माण
- विशाखापत्तनम : स्टील उत्पादन, मछली उत्पादन, पोत निर्माण
- मेरठ : खेल का सामान निर्माण
- अलीगढ़ : पीतल के ताले
- आगरा : चमड़ा फुटवियर, पर्यटन
- कांचीपुरम् : रेशम वस्त्र उद्योग, पारंपरिक साड़ी निर्माण
- सेलम : हस्त उपकरण, कपड़ा उद्योग
- खुर्जा : मिट्टी के बर्तन निर्माण
- शिवकाशी : पटाखे, माचिस निर्माण
- अंबाला : वैज्ञानिक उपकरण, हथकरघा उद्योग
- उन्नाव : चमड़ा उद्योग
- जामनगर : ब्रास पार्ट्स, पेट्रोकेमिकल्स
- राजकोट : इंजन पंप, गियर सिस्टम निर्माण
- चंदेरी : पारंपरिक हाथ से बुनी साड़ी उत्पादन
- यमुना नगर, गुवाहाटी, बल्लारपुर : कागज उद्योग
- पनकी, आँवला : उर्वरक निर्माण
- कोयंबटूर : सूती वस्त्र उद्योग
- कपूरथला : रेल डिब्बा निर्माण
- मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12-35)
ये अधिकार सभी नागरिकों को दिये गए हैं:- समानता का अधिकार – भेदभाव रहित समाज (अनुच्छेद 14-18)।
- स्वतंत्रता का अधिकार – अभिव्यक्ति, आवागमन आदि की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19-22)।
- शोषण के विरुद्ध अधिकार – जबरन श्रम और मानव तस्करी पर रोक (अनुच्छेद 23-24)।
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – किसी भी धर्म को मानने और प्रचार करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25-28)।
- सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार – अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा (अनुच्छेद 29-30)।
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार – अपने अधिकारों के उल्लंघन पर अदालत जाने का अधिकार (अनुच्छेद 32)।
- राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP) (अनुच्छेद 36-51)
- सरकार के लिये कल्याणकारी राज्य बनाने के दिशा-निर्देश।
- आयरलैंड के संविधान से प्रेरित।
- कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं, लेकिन सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक।
- मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51A)
- 42वें संशोधन (1976) के तहत जोड़े गए।
- सोवियत संविधान से प्रेरित।
- इनमें संविधान का सम्मान करना, राष्ट्रीय ध्वज और गान का आदर करना, और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना शामिल हैं।
- स्वतंत्र न्यायपालिका
- सुप्रीम कोर्ट – सर्वोच्च न्यायिक निकाय।
- उच्च न्यायालय और निचली अदालतें – विभिन्न स्तरों पर न्याय सुनिश्चित करती हैं।
- न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) – असंवैधानिक कानूनों को रद्द करने की शक्ति।
- आपातकालीन प्रावधान (अनुच्छेद 352-360)
राष्ट्रपति तीन प्रकार की आपात स्थिति घोषित कर सकते हैं:- राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) – युद्ध या बाहरी आक्रमण की स्थिति में।
- राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356) – किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता होने पर राष्ट्रपति शासन।
- वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) – देश की वित्तीय स्थिरता संकट में होने पर।
- संशोधन और लचीलापन
- अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन किया जा सकता है।
- 100 से अधिक संशोधन किये गए हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- 42वाँ संशोधन (1976) – केंद्र सरकार को मजबूत किया।
- 44वाँ संशोधन (1978) – मौलिक अधिकारों को बहाल किया।
- 73वाँ और 74वाँ संशोधन (1992) – पंचायती राज और नगर पालिका को सशक्त किया।
भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज है, जो समय के साथ बदलता रहता है और न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को सुनिश्चित करता है। यह सात दशकों से भारतीय लोकतंत्र की सफलता का आधार बना हुआ है और विश्व में एक आदर्श संविधान के रूप में प्रतिष्ठित है।
महासागरों के गहरे तल में महाद्वीपीय उत्थान के बाद मिलने वाले समतल और विस्तृत भू-भाग को महासागरीय नितल मैदान कहा जाता है। इन मैदानों की गहराई आमतौर पर 3,000 से 6,000 मीटर के बीच होती है और ये महासागर के लगभग 40% भाग में फैले होते हैं। ये मैदान प्रशांत महासागर में अटलांटिक महासागर की तुलना में अधिक विस्तृत होते हैं, क्योंकि अटलांटिक महासागर में महाद्वीपीय तट रेखा संकीर्ण और कम विस्तृत होती है।
- महासागरीय नितल मैदान की प्रमुख विशेषताएँ :
- समतल संरचना : नितल मैदान अपनी लगभग समतल संरचना और अत्यंत मामूली ढाल (1 :100 से भी कम) के लिये जाने जाते हैं।
- अवसाद और जीवाश्म : इन मैदानों पर स्थलजनित अवसाद और समुद्री जीवों के अवशेष जैसे अस्थि-पंजर जमा होते हैं।
- स्थान : नितल मैदान उन क्षेत्रों में अधिक होते हैं जहाँ स्थलजनित अवसादों की मात्रा अधिक होती है।
- भू-आकृतिक विविधता : नितल मैदानों में कई भू-आकृतिक विशेषताएँ पाई जाती हैं जैसे :
- महासागरीय कटक
- ज्वालामुखीय पर्वत
- गाईऑट (समतल शीर्ष वाले ज्वालामुखी)
- गहरे गर्त और खाइयाँ
- विभंग क्षेत्र
- महासागरीय नितल मैदान का महत्व :
- जैविक दृष्टि से महत्व : ये महासागरों के तल पर पोषण चक्र और अवसादन प्रक्रियाओं के प्रमुख क्षेत्र होते हैं। यहाँ का जीवन महासागर के पारिस्थितिकी तंत्र के लिये आवश्यक है।
- भूवैज्ञानिक महत्व : नितल मैदानों पर पाए जाने वाले स्थलजनित अवसाद महासागरों के भू-आकृतिक और पर्यावरणीय इतिहास को समझने में मदद करते हैं।
- समुद्री प्रक्रियाएँ : नितल मैदानों की संरचना और वितरण समुद्री प्रक्रियाओं और टेक्टोनिक गतिविधियों के प्रभावों का परिणाम हैं।
संक्षेप में, महासागरीय नितल मैदान केवल भौतिक विशेषताओं के लिये ही महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि ये जैविक और भूवैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये महासागर पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा होते हैं और पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक इतिहास को समझने में सहायक हैं।
महाराष्ट्र में 1849 में स्थापित परमहंस मंडली के प्रमुख संस्थापकों में दादोबा पांडुरंग, मेहताजी दुर्गाराम और अन्य समाज सुधारक शामिल थे। प्रारंभ में इसे एक गुप्त समाज के रूप में स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य हिंदू धर्म और समाज में सुधार लाना था।
- मुख्य विचारधारा और उद्देश्य
परमहंस मंडली की विचारधारा "मानव धर्म सभा" से गहराई से जुड़ी थी। इस मंडली के सदस्य केवल एक ईश्वर में विश्वास करते थे और समाज में प्रचलित जाति प्रथा को समाप्त करना चाहते थे।
मंडली की सबसे महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी गतिविधियों में से एक था सामूहिक भोज का आयोजन। इस भोज में निम्न जाति के लोगों द्वारा तैयार भोजन सभी सदस्यों को परोसा जाता था, चाहे वे किसी भी उच्च जाति से संबंध रखते हों। यह सामाजिक समानता और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था। - मंडली द्वारा किये गए सामाजिक सुधार प्रयास
परमहंस मंडली ने कई सामाजिक सुधारों की वकालत की, जिनमें प्रमुख थे:- स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देना ताकि महिलाओं को ज्ञान और सामाजिक समानता प्राप्त हो सके।
- विधवा पुनर्विवाह को समर्थन देकर समाज में व्याप्त कुरीतियों को चुनौती देना।
- समाज में व्याप्त अंधविश्वास और रूढ़ियों का खंडन कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने पर बल देना।
- प्रसार और प्रभाव
समय के साथ, परमहंस मंडली की शाखाएँ महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों जैसे पुणे और सतारा में स्थापित की गईं। इस आंदोलन ने धीरे-धीरे समाज में अपनी पकड़ मजबूत की और आगे चलकर प्रार्थना समाज जैसे सुधारवादी आंदोलनों को भी प्रेरित किया। परमहंस मंडली का योगदान 19वीं सदी के सामाजिक सुधार आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने भारतीय समाज में नवजागरण की नींव रखी।
- प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current - AC)
प्रत्यावर्ती धारा वह विद्युत धारा है जिसमें निश्चित समयांतराल के बाद प्रवाह की दिशा उलट जाती है। यह धारा विद्युत शक्ति संयंत्रों में उत्पन्न होती है और इसका उपयोग घरेलू और औद्योगिक उपकरणों में व्यापक रूप से किया जाता है।- आवृत्ति (Frequency) : भारत में प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति 50 Hz है, अर्थात यह प्रति सेकंड 50 बार अपनी दिशा बदलती है।
- विशेषताएँ :
- यह ट्रांसफार्मर के माध्यम से वोल्टेज को कम या अधिक करने में सक्षम है।
- बड़े पैमाने पर विद्युत ऊर्जा का संचरण (Transmission) सुदूर स्थानों तक कम ऊर्जा क्षय के साथ किया जा सकता है।
- उदाहरण : घरेलू उपकरण जैसे पंखा, रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन, और औद्योगिक मशीनें प्रत्यावर्ती धारा का उपयोग करती हैं।
- दिष्ट धारा (Direct Current - DC)
दिष्ट धारा वह विद्युत धारा है जिसमें प्रवाह की दिशा सदैव एक समान रहती है। यह स्थिर और नियमित प्रवाह प्रदान करती है और आमतौर पर बैटरियों और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग की जाती है।- स्रोत (Sources) : बैटरियाँ, सौर पैनल, और डायनेमो।
- प्रयोग :
- इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे मोबाइल फोन, लैपटॉप, और अन्य संवेदनशील सर्किट दिष्ट धारा पर कार्य करते हैं।
- बैटरियों को चार्ज करने के लिये भी दिष्ट धारा का प्रयोग होता है।
- रूपांतरण और उपकरण :
- प्रत्यावर्ती धारा से दिष्ट धारा (AC to DC) : इसके लिये दिष्टकारी (Rectifier) का उपयोग किया जाता है।
- उदाहरण : मोबाइल चार्जर।
- दिष्ट धारा से प्रत्यावर्ती धारा (DC to AC) : इसके लिये इन्वर्टर (Inverter) का उपयोग होता है।
- उदाहरण : घरेलू इन्वर्टर।
AC और DC दोनों की अपनी विशेषताएँ और उपयोग के क्षेत्र हैं, और आवश्यकता के अनुसार इनका रूपांतरण दिष्टकारी या इन्वर्टर के माध्यम से किया जा सकता है।
- उदाहरण : घरेलू इन्वर्टर।
- प्रत्यावर्ती धारा से दिष्ट धारा (AC to DC) : इसके लिये दिष्टकारी (Rectifier) का उपयोग किया जाता है।
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA):
मुक्त व्यापार समझौता (FTA) दो या दो से अधिक देशों के बीच एक व्यापक और समग्र समझौता है, जिसका उद्देश्य व्यापारिक बाधाओं जैसे कि टैरिफ और कोटा को कम करना है। FTA के तहत, साझीदार देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान में आसानी होती है, जिससे व्यापार के मार्ग खुलते हैं। भारत ने श्रीलंका और आसियान जैसे व्यापारिक समूहों सहित कई देशों के साथ FTA पर चर्चा की है, ताकि व्यापार संबंधों को प्रोत्साहन मिल सके। - अधिमान्य व्यापार समझौता (PTA):
अधिमान्य व्यापार समझौता (PTA) एक ऐसा समझौता है, जिसमें साझीदार देश विशेष वस्तुओं पर टैरिफ को कम करके उन पर अधिमान्य पहुँच प्रदान करते हैं। इसके तहत, कुछ टैरिफों को पूरी तरह से समाप्त भी किया जा सकता है, जिससे विशिष्ट उत्पादों की व्यापार प्रक्रिया को आसान किया जा सके। FTA की तुलना में, PTA सामान्यतः कम व्यापक होते हैं और केवल कुछ उत्पादों को ही कवर करते हैं। भारत ने अफगानिस्तान के साथ PTA पर हस्ताक्षर किये हैं, जो दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने के लिये एक महत्वपूर्ण कदम है। - व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA):
व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) FTA से अधिक विस्तृत और समग्र है, जिसमें व्यापार, निवेश और व्यापक आर्थिक सहयोग शामिल हैं। CEPA का उद्देश्य न केवल वस्तुओं का व्यापार बल्कि सेवाओं में भी सहयोग को बढ़ावा देना है। भारत ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ CEPA स्थापित किया है, जिससे इन देशों के बीच व्यापारिक और आर्थिक संबंध मजबूत हुए हैं। - व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA):
व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA) एक ऐसा समझौता है जो मुख्य रूप से व्यापार शुल्क और टैरिफ दर कोटा (TRQ) पर केंद्रित है। हालाँकि यह CEPA के मुकाबले कम व्यापक है, फिर भी यह व्यापार के लिये महत्वपूर्ण है। भारत ने मलेशिया के साथ CECA पर हस्ताक्षर किये हैं, जो दोनों देशों के व्यापार और आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिये एक महत्वपूर्ण कदम है।
इन व्यापार समझौतों के माध्यम से, भारत अपने वैश्विक व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करता है और विभिन्न देशों के साथ अपने आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये प्रयासरत है।
- फ्लोरिडा जलसंधि
- स्थिति: संयुक्त राज्य अमेरिका-क्यूबा
- जोड़ती है: मैक्सिको की खाड़ी और अटलांटिक महासागर
- महत्त्व: कैरीबियाई क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण जल मार्ग, जो खाड़ी और अटलांटिक के बीच परिवहन के लिये ज़रूरी है।
- होर्मुज़ जलसंधि
- स्थिति: ईरान-ओमान
- जोड़ती है: फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी
- महत्त्व: तेल परिवहन के लिये विश्व का एक महत्त्वपूर्ण जल मार्ग, विशेषकर मध्य-पूर्व क्षेत्र के लिये।
- हडसन जलसंधि
- स्थिति: कनाडा
- जोड़ती है: हडसन की खाड़ी और अटलांटिक महासागर
- महत्त्व: कनाडा के उत्तर में समुद्री मार्ग, जो आर्कटिक जलमार्ग के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- जिब्राल्टर जलसंधि
- स्थिति: स्पेन-मोरक्को
- जोड़ती है: भूमध्य सागर और अटलांटिक महासागर
- महत्त्व: यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका के लिये एक प्रमुख व्यापार मार्ग, जो भूमध्य सागर और अटलांटिक महासागर को जोड़ता है।
- मैगलन जलसंधि
- स्थिति: चिली
- जोड़ती है: प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर
- महत्त्व: ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण जलसंधि, जो दक्षिण अमेरिका के आसपास जहाजों के सुरक्षित मार्ग के रूप में इस्तेमाल होती थी।
- मकास्सार जलसंधि
- स्थिति: इंडोनेशिया
- जोड़ती है: जावा सागर और सेलीबीज़ सागर
- महत्त्व: दक्षिण-पूर्व एशिया में समुद्री मार्गों के लिये एक महत्त्वपूर्ण जलमार्ग।
- सुगारू जलसंधि
- स्थिति: जापान
- जोड़ती है: जापान सागर और प्रशांत महासागर
- महत्त्व: जापान और उसके आस-पास के देशों के लिये एक महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग।
- तातार जलसंधि
- स्थिति: रूस
- जोड़ती है: जापान सागर और ओखोटस्क सागर
- महत्त्व: रूस के सुदूर पूर्व क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण जल मार्ग।
- ताइवान जलसंधि
- स्थिति: चीन-ताइवान
- जोड़ती है: पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर
- महत्त्व: पूर्वी एशिया में व्यापार मार्गों के लिये महत्त्वपूर्ण जलमार्ग।
20वीं सदी के आरंभिक वर्षों में, महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने और उन्हें सामाजिक अन्याय से बचाने के लिये कई कानूनी सुधार किये गए। इन सुधारों की शुरुआत समाज सुधारकों और संगठनों, जैसे कि ऑल इंडिया वुमन काउंसिल (AIWC), द्वारा की गई, जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिये कड़ी मेहनत की।
- मुख्य कानूनी सुधार:
- शारदा अधिनियम (1929): इस कानून ने बाल विवाह को रोकने के लिये लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 14 वर्ष निर्धारित की। यह महिलाओं के खिलाफ होने वाली सामाजिक कुप्रथाओं को खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था।
- हिंदू महिला संपत्ति अधिकार अधिनियम (1937): इस अधिनियम ने हिंदू महिलाओं को संपत्ति का अधिकार दिया, जिससे महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार मिलने लगे।
- कारखाना अधिनियम (1947): इस कानून ने महिलाओं के लिये फैक्ट्रियों में बेहतर कामकाजी परिस्थितियाँ सुनिश्चित कीं, जिसमें काम करने का समय सीमित करना और मातृत्व लाभ सुनिश्चित करना शामिल था।
- हिंदू विवाह और विवाह-विच्छेद अधिनियम (1954): इस कानून ने हिंदू समुदाय में विवाह और तलाक को कानूनी रूप से मान्यता दी और महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार दिया।
- विशेष विवाह अधिनियम (1954): इस अधिनियम ने विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच विवाह की अनुमति दी, जिससे महिलाओं को उनके धर्म से परे विवाह करने का अधिकार मिला।
- हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षक अधिनियम (1956): इस अधिनियम ने महिलाओं को बच्चों के अभिभावक के रूप में अधिकार दिया, जिससे माताओं को कानूनी मामलों में बच्चों की देखभाल का अधिकार मिला।
- हिंदू दत्तक और प्रबंध अधिनियम (1956): इस कानून ने महिलाओं को बच्चों को गोद लेने और पति से अलग होने पर जीवन यापन के लिये भत्ते का अधिकार दिया।
- महिला अनैतिक व्यापार निरोधक अधिनियम (1958): इस कानून का उद्देश्य महिलाओं के अवैध व्यापार और शोषण को रोकना था, जिससे उन्हें तस्करी और अनैतिक धंधों से बचाया जा सके।
- मातृत्व लाभ अधिनियम (1961): इस अधिनियम ने महिलाओं को कार्यस्थल पर मातृत्व अवकाश की सुविधा दी, जिससे वे बच्चे को जन्म देने के बाद आर्थिक रूप से सुरक्षित रह सकें।
- दहेज निषेध अधिनियम (1961): इस कानून ने दहेज देने और लेने को अवैध कर दिया, जिससे महिलाओं को दहेज के कारण होने वाले शोषण से बचाया गया।
- समान पारिश्रमिक अधिनियम (1976): इस कानून ने पुरुषों और महिलाओं को समान काम के लिये समान वेतन देने का प्रावधान किया, जिससे कार्यस्थल पर लिंग आधारित भेदभाव को कम किया गया।
ये सभी कानून महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और समानता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम थे। इन सुधारों ने स्वतंत्रता संग्राम के बाद महिलाओं की स्थिति को मजबूत किया और उन्हें कानूनी अधिकार प्रदान किये।
खेल एवं युवा मंत्रालय ने राष्ट्रीय खेल पुरस्कार 2024 की घोषणा की। भारत की राष्ट्रपति 17 जनवरी को राष्ट्रपति भवन में एक विशेष समारोह में विजेताओं को सम्मानित करेंगी।
- अर्जुन पुरस्कार 2024
अर्जुन पुरस्कार उन खिलाड़ियों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने अपने खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर देश को गौरवान्वित किया है। 2024 में, यह सम्मान 29 खिलाड़ियों को उनके असाधारण योगदान और सफलता के लिये प्रदान किया गया।- एथलेटिक्स
- सुश्री ज्योति याराजी
- सुश्री अन्नू रानी
- मुक्केबाजी (बॉक्सिंग)
- सुश्री नीतू
- सुश्री स्वीटी
- शतरंज
- सुश्री वंतिका अग्रवाल
- हॉकी
- सुश्री सलीमा टेटे
- श्री अभिषेक
- श्री संजय
- श्री जरमनप्रीत सिंह
- श्री सुखजीत सिंह
- पैरा खेल (Para Sports)
- श्री राकेश कुमार (पैरा-आर्चरी)
- सुश्री प्रीति पाल (पैरा एथलेटिक्स)
- श्री सचिन सरजेराव खिलारी (पैरा एथलेटिक्स)
- श्री धर्मबीर (पैरा एथलेटिक्स)
- श्री प्रणव सूरमा (पैरा एथलेटिक्स)
- श्री एच होकाटो सेमा (पैरा एथलेटिक्स)
- सिमरन जी (पैरा एथलेटिक्स)
- श्री नवदीप (पैरा एथलेटिक्स)
- श्री नितेश कुमार (पैरा बैडमिंटन)
- सुश्री तुलसीमथी मुरुगेसन (पैरा बैडमिंटन)
- सुश्री नित्या श्री सुमति सिवान (पैरा बैडमिंटन)
- सुश्री मनीषा रामदास (पैरा बैडमिंटन)
- श्री कपिल परमार (पैरा जूडो)
- सुश्री मोना अग्रवाल (पैरा शूटिंग)
- सुश्री रुबीना फ्रांसिस (पैरा शूटिंग)
- अन्य खेल (Other Sports)
- श्री स्वप्निल सुरेश कुसाले (शूटिंग)
- श्री सरबजोत सिंह (शूटिंग)
- श्री अभय सिंह (स्क्वैश)
- श्री साजन प्रकाश (तैराकी)
- श्री अमन सहरावत (कुश्ती)
- एथलेटिक्स
- अर्जुन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार 2024
अर्जुन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार इस वर्ष सुश्री सुचा सिंह (एथलेटिक्स) और श्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर (पैरा तैराक) को उनके जीवन भर के योगदान और खेल में विशेष उपलब्धियों के लिये प्रदान किया गया।
ये पुरस्कार खिलाड़ियों की कड़ी मेहनत और समर्पण का प्रतीक हैं, और देश में खेल संस्कृति को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण कदम हैं। इन पुरस्कारों से न केवल प्रतिभाओं को प्रोत्साहन मिलता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा मिलती है, जिससे एक मजबूत और एकजुट भारत की नींव रखी जा सकती है।
प्रकाश के साथ जुड़ी विभिन्न परिघटनाएँ प्राकृतिक घटनाओं का हिस्सा हैं, जो प्रकाश के विभिन्न गुणों जैसे परावर्तन, अपवर्तन, प्रकीर्णन, और विवर्तन के कारण उत्पन्न होती हैं। ये घटनाएँ हमें हमारे रोजमर्रा के जीवन में विभिन्न रूपों में दिखाई देती हैं।
- पानी में बुलबुले का चमकना (पूर्ण आंतरिक परावर्तन): जब पानी में बुलबुले बनते हैं, तो वे प्रकाश को अंदर से परावर्तित करते हैं, जिससे बुलबुले में चमकने का प्रभाव उत्पन्न होता है। यह पूर्ण आंतरिक परावर्तन का परिणाम होता है।
- हीरे का चमकना (पूर्ण आंतरिक परावर्तन): हीरे की सतह पर प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है, जिससे हीरा चमकता है। यह प्रकाश की विशेषता है कि वह हीरे की क्रिस्टल संरचना में परावर्तित होकर बाहर की ओर चमकता है।
- मरीचिका (पूर्ण आंतरिक परावर्तन): गर्म सड़कों पर मरीचिका का दृश्य पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण उत्पन्न होता है, जब गर्म सतह से उठने वाली गर्म हवा ठंडी हवा के संपर्क में आती है और प्रकाश के फैलने का प्रभाव उत्पन्न करती है।
- सूर्योदय से पहले सूर्य का दिखना (अपवर्तन): वास्तविक सूर्योदय से पहले सूर्य का आकाश में दिखना अपवर्तन का परिणाम होता है, जब पृथ्वी की वायुमंडलीय परतें प्रकाश को मोड़ देती हैं।
- आकाश और समुद्र का नीला रंग (प्रकीर्णन): आकाश और समुद्र का नीला रंग प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है, जब वायुमंडल में छोटे कणों द्वारा नीले रंग के प्रकाश को प्रकीर्णित किया जाता है।
- सूर्योदय और सूर्यास्त में सूर्य का लाल रंग (प्रकीर्णन और अपवर्तन): सूर्य के लाल रंग का कारण है अन्य रंगों की तुलना में लाल प्रकाश का न्यूनतम प्रकीर्णन और अपवर्तन। इस कारण से सूर्य के लाल रंग का दिखना संभव होता है।
- साबुन के बुलबुले का रंग-बिरंगा दिखना (व्यतिकरण): साबुन के बुलबुले पर रंग-बिरंगा प्रभाव व्यतिकरण (interference) के कारण होता है, जिसमें प्रकाश की तरंगों के मिलन से विभिन्न रंग उत्पन्न होते हैं।
- इंद्रधनुष का दिखना (वर्ण-विक्षेपण, परावर्तन, अपवर्तन): इंद्रधनुष विभिन्न रंगों के प्रकाश के विक्षेपण, परावर्तन और अपवर्तन के कारण बनता है, जब सूरज की रोशनी पानी की बूंदों से गुजरती है।
- तारों का टिमटिमाना (अपवर्तन): तारों का टिमटिमाना अपवर्तन के कारण होता है, जब पृथ्वी की वायुमंडलीय परतें दूर स्थित तारों से आने वाले प्रकाश को मोड़ देती हैं।
- दरवाजे के झरोखे से प्रकाश का फैलना (विवर्तन): जब प्रकाश दरवाजे की झरोखे से गुजरता है, तो वह विवर्तन (diffraction) के कारण फैलता है, जिससे प्रकाश की तरंगें एक विस्तृत क्षेत्र में फैल जाती हैं।
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि प्रकाश के विभिन्न गुणों जैसे परावर्तन, अपवर्तन, प्रकीर्णन और विवर्तन के कारण हम अपने चारों ओर प्रकृति में आश्चर्यजनक दृश्य देख पाते हैं।
पौधों की जड़ों व मूल रोम में जल परासरण (Osmosis) की प्रक्रिया के माध्यम से प्रवेश करता है। पौधों की जड़ों का मुख्य कार्य मिट्टी से जल और आवश्यक पोषक तत्वों को अवशोषित करना है, साथ ही पौधे को संरचनात्मक स्थिरता प्रदान करना। यदि किसी पेड़ की छाल उसके आधार से पूरी तरह हटा दी जाए, तो पेड़ धीरे-धीरे सूखने लगता है और अंततः मर जाता है। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि जड़ों तक आवश्यक पोषक तत्व और नमी नहीं पहुंच पाती। यह पेड़ों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में छाल की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
- जड़ों के प्रकार (Types of Roots)
पौधों में जड़ों को उनकी उत्पत्ति और संरचना के आधार पर तीन मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है।- मुख्य जड़ (Tap Root)
- उत्पत्ति: प्राथमिक जड़ (Primary Root) से विकसित होती है।
- संरचना: एक मोटी जड़, जिसमें पार्श्व शाखाएँ होती हैं।
- उदाहरण: सरसों।
- रेशेदार जड़ (Fibrous Root)
- उत्पत्ति: अल्पकालिक प्राथमिक जड़ के स्थान पर बनती है।
- संरचना: पतली, धागेनुमा जड़ों का गुच्छा।
- उदाहरण: गेहूं।
- प्रकंद जड़ (Adventitious Root)
- उत्पत्ति: बीजपत्र (Radicle) से इतर पौधे के अन्य भागों से उत्पन्न होती है।
- संरचना: इसके कार्य के अनुसार भिन्न हो सकती है।
- उदाहरण: घास, बरगद।
- मुख्य जड़ (Tap Root)
महत्त्वपूर्ण तथ्य :
- मुख्य जड़ें (Tap Roots): मिट्टी में गहराई तक जाकर पौधे को मजबूती प्रदान करती हैं।
- रेशेदार जड़ें (Fibrous Roots): सतह के पास पोषक तत्वों को सोखने में सहायक होती हैं।
- प्रकंद जड़ें (Adventitious Roots): अतिरिक्त समर्थन या भंडारण जैसे विशेष कार्यों को पूरा करती हैं।
ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासी प्रतिरोध
1. मुंडा विद्रोह (1860–1920)
मुंडा विद्रोह, जिसे उलगुलान या "महान हलचल" के नाम से भी जाना जाता है, बिरसा मुंडा द्वारा छोटा नागपुर पठार (वर्तमान झारखंड) में ब्रिटिश साम्राज्य और स्थानीय शोषण के खिलाफ नेतृत्व किया गया था।
- कारण :
- भूमि का विस्थापन : खुंटकट्टी भूमि व्यवस्था की जगह जमींदारी व्यवस्था को लागू किया गया, जिसके कारण भूमि पर अंग्रेज़ों और गैर-आदिवासी ज़मींदारों का कब्जा हो गया।
- बलात श्रम और आर्थिक शोषण : मुंडा समुदाय को जमींदारों और साहूकारों द्वारा जबरन श्रम और शोषण का सामना करना पड़ा।
- सांस्कृतिक दमन : अंग्रेजों और ईसाई मिशनरियों ने मुंडा की परंपराओं और विश्वासों को दबाने की कोशिश की, जिससे नाराजगी बढ़ी।
- नेतृत्व :
बिरसा मुंडा , एक महान नेता, ने पारंपरिक मुंडा प्रथाओं और सांस्कृतिक पुनरुद्धार के लिये आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने मुंडा , उरांव और संथाल समुदायों को एकजुट किया। - घटनाएँ :
विद्रोह 1899 में शुरू हुआ, जिसमें ब्रिटिश अधिकारियों, पुलिस थानों और ईसाई मिशनरियों पर हमले किये गए। हालाँकि प्रारंभिक सफलता के बाद, ब्रिटिश सरकार ने 1900 के मध्य में विद्रोह को कुचल दिया, और बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया, जिनकी जून 1900 में जेल में रहकर मृत्यु हो गई। - परिणाम :
- छोटानागपुर किरायेदारी अधिनियम (1908) पारित हुआ, जो आदिवासी भूमि अधिकारों की रक्षा करने के लिये था।
- बिरसा मुंडा प्रतिरोध के प्रतीक बने और आदिवासी अधिकारों के नायक के रूप में याद किये जाते हैं।
मुंडा विद्रोह ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ आदिवासी प्रतिरोध का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने भविष्य में आदिवासी स्वायत्तता और भूमि अधिकारों के लिये संघर्ष को प्रेरित किया।
2.हो विद्रोह
नेता: राजा परहत ने हो जनजातियों को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित किया।
मुख्य कारण:
- ब्रिटिश क्षेत्रीय अधिग्रहण: अंग्रेजों ने सिंहभूम और छोटा नागपुर के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।
- ब्रिटिश कृषि नीति: 1831 में लागू की गई अंग्रेजों की नई कृषि राजस्व नीति ने स्थानीय जनजातियों पर नकारात्मक प्रभाव डाला।
- बंगाली घुसपैठ: अंग्रेजों ने बंगालियों को इन जनजातीय क्षेत्रों में प्रवेश की अनुमति दी, जिससे तनाव और बढ़ गया।
विद्रोह की अवधि: यह विद्रोह 1820 में शुरू हुआ और 1827 तक चला। इसे 1831 में फिर से उठाया गया और 1837 तक इसके प्रभाव रहे, हालाँकि समय के साथ इसका प्रभाव धीरे-धीरे कमजोर हो गया।
साहित्य के समृद्ध इतिहास में कई कवियों और लेखकों ने अपनी अनमोल रचनाओं से भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है। नीचे कुछ प्रमुख कवियों और लेखकों की सूची दी गई है और उनके महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्यों का विवरण है। ये रचनाएँ न केवल उनके समय की संस्कृति और समाज को प्रदर्शित करती हैं, बल्कि मानवता, धर्म और समाज के विभिन्न पहलुओं पर भी गहरी समझ प्रदान करती हैं।
कवि/लेखक |
रचनाएँ |
सूरदास |
सूरसागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, सूर पचीसी |
तुलसीदास |
रामचरितमानस, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, दोहावली, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, हनुमा बाहुक |
मलिक मुहम्मद जायसी |
पद्मावत, कन्हावत, आखिरी सलाम |
मैथिली शरण गुप्त |
साकेत, जयद्रथवध, भारत-भारती, यशोधरा |
हरिवंशराय बच्चन |
निशा निमंत्रण, मधुशाला, मधुबाला |
रामधारी सिंह 'दिनकर' |
उर्वशी, रश्मिरथी, हुँकार, कुरुक्षेत्र |
महादेवी वर्मा |
यामा, नीहार, नीरजा, रश्मि |
सुमित्रानंदन पंत |
ग्राम्या, चिदम्बरा, गुंजन |
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला |
अलका, अनामिका, तुलसीदास, राग-विराग |
जयशंकर प्रसाद |
कामायनी, आँसू, लहर, झरना |
सुभद्राकुमारी चौहान |
त्रिधारा, मुकुल, झाँसी की रानी |
सोहनलाल द्विवेदी |
मुक्तिगंधा, कुणाल, युगधारा, दूध बतासा |
माखनलाल चतुर्वेदी |
बन्दी और कोकिला, पुष्प की अभिलाषा, हिमतरंगिणी |
दलपति विजय |
खुमानरासो |
नरपति नाल्ह |
बीसलदेव रासो |
जगनिक |
परमालरासो |
सारंगधर |
हम्मीर रासो |
चंदबरदाई |
पृथ्वीराज रासो |
कबीरदास |
रमैनी, सबद, साखी |
बिहारी |
बिहारी सतसई |
इन कवियों और लेखकों ने भारतीय साहित्य को न केवल समृद्ध किया, बल्कि अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को चित्रित किया। इनकी रचनाएँ समय के साथ और अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही हैं, जो न केवल साहित्यिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।
दर्पण वह वस्तु है जिसकी परावर्तक सतह इतनी चिकनी और चमकीली होती है कि वह आपतित किरण का प्रतिबिंब बनाकर उसकी प्रतिकृति उत्पन्न करती है। दर्पण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
- समतल दर्पण (Plane Mirror): जिसमें परावर्तक सतह समतल होती है।
- गोलीय दर्पण (Spherical Mirror): जिसमें परावर्तक सतह गोलाकार होती है।
- समतल दर्पण (Plane Mirror)
समतल दर्पण द्वारा निर्मित प्रतिबिंब में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं:- प्रतिबिंब हमेशा आभासी (Virtual) और सीधा (Erect) होता है।
- प्रतिबिंब का आकार वस्तु के आकार के बराबर होता है।
- प्रतिबिंब दर्पण के पीछे, वस्तु से दर्पण की दूरी के बराबर दूरी पर बनता है।
- किसी वस्तु का पूरा प्रतिबिंब देखने के लिये, दर्पण की ऊँचाई वस्तु की ऊँचाई की आधी होनी चाहिये।
- यदि कोई वस्तु दर्पण के सामने V चाल से गति करती है, तो वस्तु और उसके प्रतिबिंब की सापेक्ष गति 2V होगी।
- यदि कोई वस्तु 90° कोण पर रखे दो समतल दर्पणों के बीच हो, तो प्रतिबिंबों की संख्या 3 होगी। यदि दर्पण समानांतर हों, तो प्रतिबिंबों की संख्या अनंत होगी।
- समतल दर्पण से प्राप्त प्रतिबिंब पार्श्व-परिवर्तित (Lateral Inverted) होता है। यही कारण है कि एंबुलेंस पर "AMBULANCE" को उल्टा लिखा जाता है, ताकि इसे वाहनों के रियर व्यू मिरर में सीधा पढ़ा जा सके।
- समतल दर्पण के उपयोग (Uses of Plane Mirror)
- दैनिक जीवन में आइने के रूप में।
- बहुदर्शी (Kaleidoscope) में रंगीन आकृतियाँ बनाने के लिये।
- परिदर्शी (Periscope) में, जो सैनिकों को बंकर से और पनडुब्बी में पानी की सतह के बाहर देखने में मदद करता है।
समतल दर्पण हमारी दैनिक आवश्यकताओं और वैज्ञानिक उपकरणों का अभिन्न अंग है।
भूमिगत जल द्वारा कार्स्ट स्थलरूपों का निर्माण
कार्स्ट स्थलरूप भूमिगत जल की घुलन क्रिया और अपरदन से निर्मित होते हैं। इन आकृतियों के निर्माण के लिये कई महत्वपूर्ण शर्तें होती हैं।
- चट्टानों की प्रकृति :
- कार्स्ट स्थलरूपों का निर्माण मुख्य रूप से चूना पत्थर (Limestone) या डोलोमाइट (Dolomite) जैसी घुलनशील चट्टानों पर निर्भर करता है।
- ये चट्टानें जल के साथ रासायनिक अभिक्रिया करती हैं और धीरे-धीरे घुल जाती हैं।
- स्थलाकृतिक उच्चावच :
- कार्स्ट स्थलरूपों के विकास के लिये क्षेत्र में पर्याप्त ऊँचाई और ढलान होना आवश्यक है।
- ऊँचाई के कारण जल के प्रवाह में ऊर्जा बनी रहती है, जिससे घुलन और अपरदन क्रियाएँ तेज होती हैं।
- पर्याप्त वर्षा :
- कार्स्ट स्थलरूपों के निर्माण के लिये अच्छी मात्रा में वर्षा आवश्यक होती है।
- वर्षा जल चट्टानों पर घुलन क्रिया करता है, जिससे संरचनाएँ विकसित होती हैं।
- संरचना :
- चट्टानों में दरारें और संधियाँ घुलन क्रिया को तेज करती हैं।
- ये संधियाँ जल को भीतर प्रवेश करने का मार्ग देती हैं, जिससे चट्टानें घुलती हैं और स्थलरूप बनते हैं।
- भूमिगत जल द्वारा निर्मित स्थलरूप :
- कार्स्ट स्थलरूपों में लैपीज, घोलरंध्र, कन्दराएँ, अंधी घाटियाँ और टेरा रोसा प्रमुख हैं।
- इन स्थलरूपों का आकार और प्रकृति जल की मात्रा, चट्टानों की संरचना, और भू-भाग की स्थितियों पर निर्भर करती है।
कार्स्ट स्थलरूप अद्वितीय हैं और प्राकृतिक विविधता के प्रतीक हैं। ये न केवल भौगोलिक अध्ययन के लिये महत्वपूर्ण हैं, बल्कि जल संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
आर्थिक मंदी एक ऐसी स्थिति है जब एक देश की अर्थव्यवस्था में व्यापक गिरावट आती है। यह आमतौर पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगातार कमी, उच्च बेरोजगारी दर, और उद्योगों में उत्पादन और निवेश की गिरावट के रूप में प्रकट होती है। आर्थिक मंदी का असर समाज के विभिन्न वर्गों पर गहरा और दूरगामी होता है।
- आर्थिक मंदी के कारण
- आर्थिक मंदी के कई कारण हो सकते हैं, जैसे :
- वैश्विक बाजार में गिरावट
- आर्थिक नीतियों की विफलता
- वित्तीय संकट
- प्राकृतिक आपदाएँ
- इतिहास में कई बड़े आर्थिक मंदी के दौर आए हैं जिन्होंने वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इनमें प्रमुख उदाहरण हैं :
- महान मंदी (Great Depression) 1929 :
यह मंदी अब तक की सबसे गंभीर मंदी मानी जाती है। अमेरिकी स्टॉक मार्केट क्रैश के बाद, वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में भारी गिरावट आई। बेरोजगारी दर में वृद्धि और औद्योगिक उत्पादन में भारी कमी हुई। इसने लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित की और वैश्विक आर्थिक ढाँचे को संकट में डाल दिया। - तेल संकट (Oil Crisis) 1973 :
1973 में OPEC के सदस्य देशों द्वारा तेल उत्पादन में कटौती की गई, जिससे तेल की कीमतों में भारी उछाल आया। इसने तेल आयातक देशों की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ी और आर्थिक गतिविधियाँ धीमी पड़ीं। - एशियाई वित्तीय संकट (Asian Financial Crisis) 1997 :
यह संकट दक्षिण-पूर्व एशिया से शुरू हुआ और विश्वभर में फैल गया। मुद्रा अवमूल्यन, बैंकिंग प्रणाली की विफलता और आर्थिक अस्थिरता ने कई एशियाई देशों को संकट में डाला। - वैश्विक वित्तीय संकट (Global Financial Crisis) 2008 :
यह संकट अमेरिकी सबप्राइम मॉर्टगेज मार्केट के पतन से उत्पन्न हुआ और पूरी दुनिया में फैल गया। बैंकों की विफलताओं और वित्तीय संस्थानों के संकट ने वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया, जिससे बेरोजगारी बढ़ी और क्रय शक्ति में गिरावट आई।
- महान मंदी (Great Depression) 1929 :
- आर्थिक मंदी के कई कारण हो सकते हैं, जैसे :
- आर्थिक मंदी से निपटने के उपाय
- सरकारें मंदी से निपटने के लिये विभिन्न उपाय करती हैं :
- ब्याज दरों में कमी : वित्तीय तरलता बढ़ाने के लिये ब्याज दरों को घटाना।
- वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज : सरकार द्वारा वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन योजनाएँ।
- कर राहत : करों में छूट और राहत देने से उपभोक्ता खर्च को बढ़ावा मिलता है।
- रोजगार सृजन कार्यक्रम : जैसे मनरेगा योजना, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करती है।
आर्थिक मंदी एक गंभीर चुनौती होती है, जो समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करती है। हालाँकि, इसके प्रभावों को पूरी तरह समाप्त करना कठिन होता है, लेकिन उचित नीतियों और सुधारात्मक उपायों से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। वित्तीय अनुशासन, सुधारात्मक नीतियाँ, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से मंदी से उत्पन्न चुनौतियों का सामना किया जा सकता है।
- सरकारें मंदी से निपटने के लिये विभिन्न उपाय करती हैं :
गडकरी विद्रोह 1844 में हुआ, जब अंग्रेजों ने मराठा क्षेत्र पर अपना शासन स्थापित किया। गडकरी पहले मराठा शासन के तहत सैनिक के रूप में काम करते थे और बदले में उन्हें करमुक्त भूमि दी जाती थी। लेकिन अंग्रेजों के शासन के बाद, गडकरी समुदाय को न केवल बेगार के काम में लगाया गया, बल्कि उनकी भूमि पर कर भी लगाया गया। यह परिवर्तन गडकरी समुदाय के लिये असहनीय था, और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करना शुरू कर दिया।
- विद्रोह के प्रमुख बिंदु :
- भूमि और अधिकारों का उल्लंघन : गडकरी सैनिकों को जो भूमि दी गई थी, वह अंग्रेजों के शासन में कर के अधीन कर दी गई। इस नए कर और बेगार व्यवस्था के कारण गडकरी समुदाय में भारी असंतोष फैल गया।
- विद्रोह की शुरुआत : इस असंतोष ने 1844 में गडकरी विद्रोह का रूप लिया। विद्रोह के प्रमुख केंद्र सामानगढ़, कोल्हापुर जैसे क्षेत्र बने, जहां गडकरी समुदाय ने सामूहिक रूप से ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया।
- नेतृत्व : इस विद्रोह के प्रमुख नेता बाबाजी अहीरेकर थे। उन्होंने गडकरी समुदाय को संगठित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व किया।
- स्थानीय संघर्ष और प्रभाव : यह विद्रोह मराठा क्षेत्र में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण संघर्ष था। इसने स्थानीय लोगों के बीच ब्रिटिश सरकार के प्रति गहरी नाराजगी और असंतोष को उजागर किया।
गडकरी विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण प्रतिरोध था, जो मराठा क्षेत्र में जन जागरूकता और संघर्ष का कारण बना। यह विद्रोह गडकरी समुदाय के अधिकारों की रक्षा और ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ स्थानीय संघर्ष का प्रतीक बन गया।
इंदिरा प्वाइंट अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के ग्रेट निकोबार द्वीप पर स्थित है, जो भारत का सबसे दक्षिणतम बिंदु है। इसके निर्देशांक 6°45' उत्तर अक्षांश और 93°49' पूर्व देशांतर हैं। पहले इसे पिगमैलियन प्वाइंट के नाम से जाना जाता था, जिसे 1982 में इंदिरा गांधी के सम्मान में इंदिरा प्वाइंट नाम दिया गया।
- महत्व:
- भौगोलिक महत्व: इंदिरा प्वाइंट भारत के भारतीय महासागर में स्थित दक्षिणी सीमा का प्रतीक है, जो नौवहन और भौगोलिक अध्ययन के लिये महत्वपूर्ण है।
- पारिस्थितिकीय महत्व: आसपास का क्षेत्र वनस्पति और जीव-जंतुओं की विविधता से भरपूर है और संरक्षण के लिये महत्वपूर्ण है।
- रणनीतिक स्थान: यह बिंदु निकोबार द्वीप समूह में स्थित होने के कारण समुद्री दृष्टिकोण से रणनीतिक महत्व रखता है।
- लाइटहाउस :
इंदिरा प्वाइंट लाइटहाउस, का निर्माण वर्ष 1972 में हुआ था, यह इस क्षेत्र में जहाजों के लिये नौवहन में सहायता प्रदान करता है। 2004 में आई भारतीय महासागर सुनामी के बाद यह लाइटहाउस अस्थायी रूप से जलमग्न हो गया था, लेकिन बाद में इसे फिर से बनाया गया। - स्मरणीय तथ्य :
- नाम : इंदिरा प्वाइंट
- स्थान : ग्रेट निकोबार द्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
- निर्देशांक : 6°45' उत्तर, 93°49' पूर्व
- नामकरण : 1982
- लाइटहाउस : इंदिरा प्वाइंट लाइटहाउस
- ताप का प्रभाव
- ताप में वृद्धि :
- किसी भी माध्यम का ताप बढ़ने पर उस माध्यम में ध्वनि की चाल भी बढ़ जाती है।
- उदाहरण स्वरूप, वायु में हर 1°C ताप वृद्धि पर ध्वनि की चाल 0.61 मीटर/सेकंड बढ़ जाती है।
- ऊँचाई के साथ ताप का परिवर्तन :
- सामान्यत : समुद्र तल के निकट तापमान अधिक होता है, जबकि ऊँचाई पर तापमान कम होता है।
- ऐसे में क्षोभमंडल (Troposphere) में ऊँचाई के साथ ध्वनि की चाल घटती जाती है।
- उदाहरण के लिये, 15 किमी ऊँचाई पर मैक संख्या 1 का मान समुद्र स्तर के मुकाबले कम होगा।
- ताप में वृद्धि :
- दाब का प्रभाव
- ताप समान रहने पर दाब का कोई प्रभाव नहीं :
- यदि तापमान समान रहे तो गैसों में ध्वनि की चाल पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
- क्योंकि दाब बढ़ने से गैस का घनत्व बढ़ता है, लेकिन तापमान के साथ इसकी स्थिति संतुलित रहती है, जिससे ध्वनि की चाल अपरिवर्तित रहती है।
- ताप समान रहने पर दाब का कोई प्रभाव नहीं :
- गैसों में ध्वनि की चाल
- गैसों में ध्वनि की न्यूनतम चाल :
- गैसों में ध्वनि की चाल अन्य पदार्थों की तुलना में न्यूनतम होती है।
- उदाहरण के लिये, वायु में 0°C पर ध्वनि की चाल 332 मीटर/सेकंड होती है।
- विभिन्न गैसों में ध्वनि की चाल का अंतर :
- अलग-अलग गैसों में ध्वनि की चाल अलग-अलग होती है। हल्की गैसों (जैसे हाइड्रोजन) में ध्वनि की चाल अधिक होती है, जबकि भारी गैसों में यह कम होती है।
- गैसों में ध्वनि की न्यूनतम चाल :
- घनत्व का प्रभाव
- प्रत्यास्थता और घनत्व पर निर्भरता :
- ध्वनि की चाल, माध्यम की प्रत्यास्थता और घनत्व पर निर्भर करती है।
- ध्वनि की चाल प्रत्यास्थता के वर्गमूल के समानुपाती होती है और घनत्व के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
- यदि दो माध्यमों की प्रत्यास्थता समान हो, तो वह माध्यम जिसका घनत्व कम होगा, उसमें ध्वनि की चाल अधिक होगी।
- गैसों में ध्वनि की चाल और घनत्व :
- गैसों में ध्वनि की चाल उनके अणुभार या घनत्व के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
- उदाहरण के लिये, हाइड्रोजन गैस में ध्वनि की चाल अन्य गैसों की तुलना में अधिक होती है, क्योंकि हाइड्रोजन सबसे हल्की गैस है।
- प्रत्यास्थता और घनत्व पर निर्भरता :
- आर्द्रता का प्रभाव
- जलवाष्प का घनत्व :
- जलवाष्प का घनत्व शुष्क वायु के घनत्व से कम होता है, और इसलिये नमी युक्त वायु का घनत्व भी शुष्क वायु से कम होता है।
- इस कारण से, जब वायु में आर्द्रता बढ़ती है, तो ध्वनि की चाल भी बढ़ जाती है।
- यही कारण है कि बरसात के मौसम में सीटियों की आवाज दूर तक सुनाई देती है।
- जलवाष्प का घनत्व :
- माध्यम के वेग का प्रभाव
- माध्यम के वेग के अनुसार ध्वनि की चाल :
- यदि ध्वनि उसी दिशा में यात्रा करती है, जिस दिशा में माध्यम का वेग है, तो ध्वनि की चाल बढ़ जाती है।
- यदि ध्वनि विपरीत दिशा में यात्रा करती है, तो उसकी चाल घट जाती है।
ध्वनि की चाल कई भौतिक राशियों से प्रभावित होती है, जैसे ताप, दाब, घनत्व, और आर्द्रता। ताप और आर्द्रता के बढ़ने से ध्वनि की चाल में वृद्धि होती है। हल्की गैसों में ध्वनि की चाल अधिक होती है, और गैसों की ध्वनि की चाल उनके घनत्व के प्रतिकूल होती है। इन प्रभावों को समझना ध्वनि विज्ञान, मौसम विज्ञान और वायुगतिकी जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है।
- माध्यम के वेग के अनुसार ध्वनि की चाल :
अपक्षय (Weathering)
अपक्षय चट्टानों के अपने स्थान पर कमजोर होने, टूटने-फूटने और विखंडित होने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया तब शुरू होती है जब चट्टानें धरातल पर अनावृत होकर मौसमी प्रभावों से प्रभावित होती हैं। अपक्षय को तीन प्रमुख प्रकारों में बाँटा जाता है:
- अपक्षय के प्रकार:
- भौतिक या यांत्रिक अपक्षय (Physical or Mechanical Weathering):
- तापमान के कारण चट्टानों का छोटे-बड़े टुकड़ों में टूटना।
- तुषार-चीरण, जिसमें जल चट्टानों में प्रवेश करता है।
- घर्षण, जब चट्टानें एक-दूसरे से टकराती हैं।
- दवाव, जब किसी चट्टान पर बाहरी दबाव पड़ता है और वह टूट जाती है।
- रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering):
- ऑक्सीकरण (Oxidation): धातु या खनिजों का जल और वायुमंडलीय ऑक्सीजन से रासायनिक प्रतिक्रिया।
- कार्बोनेशन (Carbonation): जल में कार्बन डाइऑक्साइड घुलकर चट्टानों को कमजोर करना।
- जलयोजन (Hydration): चट्टानों में जल के घुलन से उनकी संरचना में बदलाव।
- प्राणिवर्गीय अपक्षय (Biological Weathering):
- वानस्पतिक अपक्षय (Plants Weathering): पौधों की जड़ों द्वारा चट्टानों में दरार डालना।
- जैविक अपक्षय (Animal Weathering): जानवरों द्वारा चट्टानों को खोदना या तोड़ना।
- मानवीय क्रियाएँ (Human Activities): मनुष्यों द्वारा भूमि उपयोग या निर्माण कार्यों से अपक्षय में वृद्धि।
- भौतिक या यांत्रिक अपक्षय (Physical or Mechanical Weathering):
जंतु या प्राणि जगत को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। प्रमुख वर्गीकरण के आधार निम्नलिखित हैं:
1. संगठन के स्तर (Levels of Organisation)
सभी प्राणी बहुकोशिक होते हैं, लेकिन उनके कोशिकाओं के संगठन का स्तर अलग-अलग हो सकता है। कुछ प्राणी कोशिकीय स्तर पर संगठन दिखाते हैं, जबकि अन्य में ऊतक स्तर या अंग स्तर का संगठन होता है। उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे एनेलिडा, आर्थोपोडा, मोलस्का, इकाइनोडर्मेटा, और रज्जुकी में अंग मिलकर तंत्र के रूप में कार्य करते हैं, जिसे अंगतंत्र के स्तर का संगठन कहा जाता है।
2. सममिति (Symmetry)
सममिति के आधार पर भी प्राणियों को श्रेणीबद्ध किया जाता है:
- असममिति (Asymmetry): जैसे स्पंज में सममिति नहीं पाई जाती, जहाँ कोई भी केंद्रीय अक्ष प्राणी के शरीर को समान भागों में विभाजित नहीं करता।
- अरीय सममिति (Radial Symmetry): जैसे सीलेंटरेट, टीनोफोर, और इकाइनोडर्मेटा में, जहाँ एक केंद्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा शरीर को समान भागों में विभाजित करती है।
- द्विपार्श्व सममिति (Bilateral Symmetry): जैसे एनेलिडा और आर्थोपोडा में, जहाँ शरीर एक केंद्रीय अक्ष से दाएँ और बाएँ समरूप भागों में विभाजित होता है।
3. द्विकोरिक और त्रिकोरकी संगठन (Diploblastic and Triploblastic Organisation)
- द्विकोरिक संगठन: सिलेंटरेट जैसे प्राणियों में केवल दो भ्रूणीय स्तर होते हैं - बाह्य एक्टोडर्म और आंतरिक एक्टोडर्म, जिन्हें द्विकोरिक कहा जाता है।
- त्रिकोरकी संगठन: वे प्राणी जिनके भ्रूण में एक और भ्रूणीय स्तर मीसोडर्म होता है, इन्हें त्रिकोरकी प्राणी कहा जाता है। जैसे- प्लेटीहेल्मिंथीज़ से लेकर रज्जुकी तक के प्राणी।
4. शरीर की गुहा या प्रगुहा (Coelom)
- प्रगुहा: जब शरीर में गुहा की उपस्थिति होती है, जो मध्य त्वचा से आच्छादित होती है, तो उसे प्रगुहा कहते हैं। प्रगुही प्राणी, जैसे एनेलिडा, मोलस्का, आर्थोपोडा, और रज्जुकी में यह गुहा पाई जाती है।
- कूटगुहा (Pseudocoelom): कुछ प्राणियों में शरीर गुहा मीसोडर्म से आच्छादित नहीं होती, बल्कि बाह्य और अंत: त्वचा के बीच एक खोखली थैली के रूप में पाई जाती है, जैसे- ऐस्केल्मिंथीज़।
- अगुहीय (Acoelomates): जिन प्राणियों में शरीर गुहा नहीं होती, उन्हें अगुहीय कहा जाता है, जैसे- प्लेटीहेल्मिंथीज़।
5. खंडीकरण (Segmentation)
कुछ प्राणियों में शरीर खंडों में विभाजित होता है, जिसमें अंगों की पुनरावृत्ति होती है। इसे खंडीकरण कहा जाता है, जैसे केंचुए का शरीर।
6. पृष्ठरज्जु (Notochord)
पृष्ठरज्जु मध्य त्वचा से उत्पन्न होती है, जो भ्रूण विकास के समय पृष्ठ सतह में बनती है। पृष्ठरज्जु वाले प्राणियों को रज्जुकी (Chordates) और जिनमें पृष्ठरज्जु नहीं होती, उन्हें अरज्जुकी (Non-Chordates) कहा जाता है।
- टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO)
- स्थान: जमशेदपुर, झारखंड
- वर्ष: 1907
- इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी (IISCO)
- स्थान: कुल्टी, हीरापुर और बंपुर, पश्चिम बंगाल
- वर्ष: 1864 (कुल्टी), 1908 (हीरापुर), 1937 (बंपुर)
- विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील लिमिटेड (पूर्व में MISCO)
- स्थान: भद्रावती, कर्नाटक
- वर्ष: 1923
- भिलाई स्टील प्लांट
- स्थान: भिलाई, छत्तीसगढ़
- वर्ष: 1957
- राउरकेला स्टील प्लांट
- स्थान: राउरकेला, ओडिशा
- वर्ष: 1959
- दुर्गापुर स्टील प्लांट
- स्थान: दुर्गापुर, पश्चिम बंगाल
- वर्ष: 1959
- बोकारो स्टील प्लांट
- स्थान: बोकारो, झारखंड
- वर्ष: 1972
- सलेम स्टील प्लांट
- स्थान: सलेम, तमिलनाडु
- वर्ष: 1982
- विजयनगर स्टील प्लांट
- स्थान: होस्पेट, बेल्लारी, कर्नाटक
- वर्ष: 1990 के दशक में स्थापित
- विशाखापत्तनम स्टील प्लांट (VSP)
- स्थान: विशाखापत्तनम, आंध्र प्रदेश
- वर्ष: 1972 में नींव रखी गई, उत्पादन 1991-92 में शुरू
- दैतारी स्टील प्लांट
- स्थान: दैतारी, पराद्वीप, ओडिशा
- वर्ष: 1990 के दशक में योजना बनाई गई
- टाटा स्टील कलिंगनगर
- स्थान: कालींगानगर, ओडिशा
- वर्ष: 2000 के दशक की शुरुआत में परियोजना शुरू
- डोलवी स्टील प्लांट
- स्थान: डोलवी, महाराष्ट्र
- वर्ष: 1990 के दशक में स्थापित
सन्यासी विद्रोह (1770-1820 ई.)
सन्यासी विद्रोह एक नागरिक विद्रोह था, जो सैन्य विद्रोह से अलग था। नागरिक विद्रोहों में सैन्य विद्रोह को छोड़कर सभी प्रकार के विद्रोह शामिल होते हैं। इसमें मुख्य रूप से अपदस्थ शासक, उनके वंशज, जमींदार, भूमिपति, पोलिगर (दक्षिण भारत में एक क्षेत्र के मालिक), और विजित प्रदेशों के अधिकारी या धार्मिक नेता शामिल होते हैं।
- जनसमर्थन
इस विद्रोह में मुख्य रूप से खेतिहर किसान, बेरोजगार शिल्पकार, और अपदस्थ सैनिक जनसमर्थन में थे, लेकिन विद्रोह के केंद्र में भूतपूर्व सत्ताधारी वर्ग था, जैसे कि संन्यासी वर्ग और उनसे जुड़े लोग। - प्रारंभ और कारण
सन्यासी विद्रोह 1770 ई. में बंगाल में प्रारंभ हुआ और यह 1820 ई. तक जारी रहा। इस विद्रोह का मुख्य कारण तीर्थयात्रियों के लिये तीर्थ स्थलों पर यात्रा करने पर अंग्रेजों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध थे। - संन्यासी वर्ग
यह विद्रोह मुख्य रूप से हिन्दू नागा और गिरी संन्यासियों द्वारा किया गया, जो पहले मराठों, राजपूतों, और बंगाल तथा अवध के नवाबों की सेनाओं में सैनिक रह चुके थे। - बंगाल का अकाल
1770 ई. में बंगाल में एक भयंकर अकाल आया, जिससे यहाँ के निवासियों की स्थिति बहुत खराब हो गई। अकाल के बाद संन्यासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र विद्रोह शुरू किया। - संन्यासियों का संघर्ष
संन्यासियों ने अंग्रेजों के व्यापारिक केंद्रों पर लूटपाट और हमला किया, और बलपूर्वक धन एकत्र किया। वे अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे, जो उनकी धार्मिक स्वतंत्रता और जीविका के लिये एक बड़ा खतरा बन गए थे। - अंग्रेजों द्वारा दमन
- अंग्रेजों ने इस विद्रोह को कुचलने के लिये अत्यधिक दमन किया और 1820 तक आंदोलन को दबा दिया।
- महत्वपूर्ण नेता और योगदान
इस विद्रोह में प्रमुख नेता मजनूम शाह, चिराग अली, मूसा शाह, भवानी पाठक, और देवी चौधरानी थे। विशेष रूप से देवी चौधरानी का योगदान इस विद्रोह में महिलाओं की भागीदारी को दर्शाता है। - हिंदू और मुसलमानों की साझेदारी
इस आंदोलन में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने समान रूप से भाग लिया, जिससे इसे कभी-कभी "फकीर विद्रोह" भी कहा जाता है। - साहित्यिक उल्लेख
इस विद्रोह का उल्लेख बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपनी काव्य रचना आनंदमठ में किया, जिसमें उन्होंने ‘वन्देमातरम’ की रचना की थी, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरणास्त्रोत बना।
जब किसी वस्तु को गर्म किया जाता है, तो उसका आयतन बढ़ता है, जिससे स्वाभाविक रूप से उसका घनत्व घटता है। इसके विपरीत, जब वस्तु ठंडी होती है, तो उसका आयतन संकुचित होता है और घनत्व बढ़ता है।
जल का विशेष गुण
सामान्यतः अधिकांश पदार्थों को गर्म करने पर उनका तापीय प्रसार होता है, और ठंडा करने पर उनका संकुचन होता है, लेकिन जल इसका एक महत्वपूर्ण अपवाद है। जल 4°C तक ठंडा होने पर संकुचित होता है, जिससे उसका आयतन घटता है और घनत्व बढ़ता है। लेकिन 4°C से नीचे, जल का आयतन बढ़ने लगता है और घनत्व घटता है। जब जल 0°C पर बर्फ में परिवर्तित होता है, तो उसका आयतन बढ़कर अधिक हो जाता है और घनत्व न्यूनतम हो जाता है।
मुख्य बिंदु:
- जल का आयतन 4°C पर न्यूनतम होता है।
- जल का घनत्व 4°C पर अधिकतम होता है।
- बर्फ का आयतन जल से अधिक होता है।
- बर्फ का घनत्व जल से कम होता है।
यह परिघटना विशेष रूप से ठंडे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण होती है। झीलों और तालाबों के पानी में 4°C का जल तल पर चला जाता है, और सतह पर बर्फ जम जाती है। बर्फ ऊष्मा की कुचालक होती है, जिससे बर्फ के नीचे का पानी जमने से बच जाता है और जलीय जीवन सुरक्षित रहता है।
इसका एक और परिणाम यह है कि ठंडे मौसम में पानी की पाइपों के फटने की संभावना होती है। इसके अलावा, शुद्ध जल के बर्फ का घनत्व जल के घनत्व का 9/10 हिस्सा होता है, जिससे 90% बर्फ पानी में तैरती रहती है और 10% पानी के बाहर रहती है। जब बर्फ किसी पात्र में डाली जाती है, तो उसके गलने के बाद भी जलस्तर वही रहता है, जो पहले था।
तुषार या पाला तब बनता है जब धरातल का तापमान हिमांक (0°C या 32°F) से नीचे गिर जाता है। इस प्रक्रिया में, वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प सीधे बर्फ के कणों में परिवर्तित हो जाती है, जिससे तुषार का निर्माण होता है, न कि जल-बूँदों का।
- तुषार बनने की परिस्थितियाँ
तुषार के निर्माण के लिये निम्नलिखित वायुमंडलीय परिस्थितियाँ आवश्यक हैं :- नमी : उच्च नमी स्तर वायुमंडल में जलवाष्प की उपलब्धता बढ़ाता है।
- स्पष्ट आकाश : बादल रहित रातें धरती को तेजी से ठंडा करने में सहायक हैं, जिससे सतह का तापमान गिरता है।
- जमने का तापमान : तुषार का निर्माण केवल तब होता है जब तापमान हिमांक पर या उससे नीचे हो।
- भौगोलिक वितरण
तुषार विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में सामान्य बात है :- उच्च और मध्य अक्षांश : इन क्षेत्रों में तापमान में कमी के कारण तुषार सामान्यतः देखने को मिलता है।
- उष्णकटिबंधीय क्षेत्र : यहाँ तुषार या पाला केवल ऊँचाई पर ही बनता है।
- ध्रुवीय क्षेत्र : इन क्षेत्रों में तुषार के लिये अनुकूल स्थितियाँ लगभग पूरे वर्ष बनी रहती हैं।
- कृषि पर प्रभाव
तुषार का खड़ी फसलों और वनस्पतियों पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है :- कोशिका क्षति : तुषार पौधों की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे उपज में गिरावट आती है।
- फसल हानि : अधिक तुषारपात संवेदनशील फसलों को नष्ट कर सकता है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है।
- निवारण उपाय
फसलों को तुषार से बचाने के लिये किसान निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं :- सिंचाई : फसलों को पानी देना तुषार के प्रभाव को कम करने में सहायक हो सकता है।
- फ्रॉस्ट कवर : पौधों की रक्षा के लिये सुरक्षात्मक आवरण का उपयोग किया जा सकता है।
- बुवाई का समय : तुषार-प्रवण अवधि से बचने के लिये बुवाई के समय को समायोजित करना भी लाभकारी हो सकता है।
ऐतिहासिक नवाचार और महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ
- वनों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश : नॉर्वे
- धातु के खनन पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश : एल सल्वाडोर
- जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने वाला पहला देश : आयरलैंड
- पुस्तक मुद्रित करने वाला पहला देश : चीन
- कागज़ी मुद्रा जारी करने वाला पहला देश : चीन
- सिविल सेवा प्रतियोगिता शुरू करने वाला पहला देश : चीन
- संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रथम महासचिव : ट्रिग्वे ली (नॉर्वे)
- शिक्षा को अनिवार्य करने वाला पहला देश : प्रशा
- संविधान बनाने वाला पहला देश : संयुक्त राज्य अमेरिका
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रथम सम्मेलन का आयोजन स्थल : बेलग्रेड (सर्बिया)
- विश्व के चारों ओर समुद्री यात्रा करने वाला प्रथम व्यक्ति : फर्डीनेंड मैगलन
- कृत्रिम उपग्रह का अंतरिक्ष में प्रक्षेपण करने वाला पहला देश : रूस
- ओलंपिक खेलों का आयोजन करने वाला पहला देश : यूनान
- प्रथम नगर, जहाँ परमाणु बम गिराया गया : हिरोशिमा (जापान)
- सर्वाधिक पशुओं वाला देश : भारत
- बैंक नोट जारी करने वाला पहला देश : स्वीडन
- प्रथम विश्वविद्यालय : तक्षशिला विश्वविद्यालय
- चंद्रमा पर मानव भेजने वाला प्रथम देश : संयुक्त राज्य अमेरिका
- अंतरिक्ष भेजा गया प्रथम अंतरिक्ष शटल : कोलंबिया
- वह देश, जहाँ व्यक्ति को ऐच्छिक मृत्यु का अधिकार दिया गया : नीदरलैंड
जनजाति एक विशिष्ट सामाजिक समूह है जो मानव विकास के प्रारंभिक चरणों से अस्तित्व में है। ये समुदाय आमतौर पर अपने जीवन के लिये जंगलों और भूमि पर निर्भर रहते हैं और आत्मनिर्भर जीवनशैली अपनाते हैं। यहाँ भारत में महत्वपूर्ण जनजातियों की एक सूची दी गई है, जो राज्य और संघ क्षेत्र के अनुसार व्यवस्थित की गई हैं -
राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के आधार पर जनजातियों का वितरण |
|
राज्य/संघ राज्य क्षेत्र |
जनजातियाँ |
लद्दाख |
बाल्टी, बेडा, गर्रा, चांगपा, ब्रोकपा |
केरल |
कुरूम्बा, अलार, इरुला, मोपला |
तमिलनाडु |
टोडा, कुरूम्बा, इरुला, कोटा |
आंध्र प्रदेश |
चेंचू, लंबाडिस, बंजारा |
कर्नाटक |
राथावा, टोडा, चेंचू, पनियन, सिद्दी |
बिहार |
बैगा, असुर, खोंड, उरांव, बिरहोर, बंजारा |
उत्तर प्रदेश |
जोनसारी, बुक्सा, भोटिया, थारू, राजी, चेरो |
उत्तराखंड |
भोटिया, थारू, जोनसारी, बुक्सा |
गुजरात |
राथावा, सिद्दी, बरदा, डाफर |
महाराष्ट्र |
अंध, खैरवार, पटेलिया, बेगा |
तेलंगाना |
बगता, परांगी, रेना |
ओडिशा |
बगता, भूमिज, कोल, डोंगरिया कोंध, बोंडा |
झारखंड |
संथाल, मुंडा, बिरहोर, हो, मल-पहाड़िया, असुर |
छत्तीसगढ़ |
अगारिया, खैरिया, मुंडा, धनवार, कोडाकू |
मध्य प्रदेश |
भील, अगारिया, कोल, गोंड, कोरकू |
राजस्थान |
गरासिया, भील, पटेलिया, सहरिया, मीना |
सिक्किम |
लेपचा, भूटिया, शेरपा, लिम्बू |
असम |
चकमा, दीमासा, सिथेंग, हाजोंग, कचारी, गारो |
मेघालय |
गारो, खासी, जयंतिया, मिकिर, दिमासा |
त्रिपुरा |
लुसाई, रियांग, त्रिपुरी, ओरांग |
मिज़ोरम |
रियांग, मीजो, चकमा, हाजोंग, हम्मार |
मणिपुर |
अंगामी, कूकी, माओ, कोम, लामगांग |
अरुणाचल प्रदेश |
डाफला, मिश्मी, सिंगफो, अबोर, अपतानी |
नागालैंड |
नागा, कूकी, मिकिर, कचारी |
जम्मू-कश्मीर |
बकरवाल, गुज्जर, छांग्पा, गद्दी, सिप्पी |
हिमाचल प्रदेश |
स्वांगला, गद्दी, किनौर, गुज्जर, जोबा |
गोवा |
धोडिया, वरली |
दादरा व नगर हवेली |
वारली, धोडिया, कोकना, नायक |
दमन व दीव |
सिद्दी, धोडिया, वारली |
- अंडमान व निकोबार की जनजातियाँ-
जनजाति |
द्वीप समूह |
ओंग |
लघु अंडमान |
जारवा |
मध्य एवं दक्षिणी अंडमान |
सेंटिनली |
सेंटीनल द्वीप |
शोम्पेन |
ग्रेट निकोबार |
निकोबारी |
ग्रेट निकोबार |
नृत्य मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति का एक सार्वभौमिक माध्यम है और यह प्राचीन समय से ही भारत में प्रचलित एक महत्वपूर्ण कला है। बिहार में राजगीर और वैशाली जैसे शहरों में महात्मा बुद्ध के समय से नर्तक और गायक होने के प्रमाण मिलते हैं। महात्मा बुद्ध ने वैशाली की राजनर्तकी आम्रपाली को भी दीक्षा दी थी।
बिहार के प्रमुख लोकनृत्य
- कर्मा नृत्य (कर्मा नाच): यह आदिवासी समुदायों का एक प्रमुख समूह नृत्य है, जो फसल की बुवाई और कटाई के समय कर्मा देवता की पूजा के अवसर पर किया जाता है।
- करिया झूमर नृत्य: यह मिथिला क्षेत्र का एक लोकप्रिय महिलाओं का लोकनृत्य है, जो त्यौहारों और शुभ अवसरों पर बड़े धूमधाम से किया जाता है।
- धोबिया नृत्य: यह नृत्य बिहार के धोबी समुदाय द्वारा विशेष रूप से भोजपुर क्षेत्र में मनाया जाता है और सामुदायिक आयोजनों में प्रस्तुत किया जाता है।
- जोगीरा नृत्य: यह हास्य से भरा नृत्य होली के अवसर पर किया जाता है।
- लौंडा नाच: यह नृत्य लड़कों द्वारा लड़कियों का रूप धारण कर शुभ अवसरों पर किया जाता है और भोजपुर क्षेत्र में अधिक प्रचलित है।
- झरनी नृत्य: यह मुस्लिम समुदाय का एक पारंपरिक नृत्य है, जो मुहर्रम के अवसर पर किया जाता है और इसमें शोक गीत गाए जाते हैं।
- विद्यापति नृत्य: मिथिला क्षेत्र का यह नृत्य महान कवि विद्यापति की स्तुति करते हुए उनके गीतों में वर्णित भावनाओं को प्रदर्शित करता है।
- कठघोड़ा नृत्य: विवाह समारोहों में किया जाने वाला यह नृत्य लकड़ी के घोड़े के बीच में रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर किया जाता है।
- झिंझिया नृत्य: यह महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है, जिसमें सिर पर दीपक रखकर नृत्य किया जाता है, यह त्यौहारों पर मनाया जाता है।
किसी द्रव्य की सही स्थिति, उचित मात्रात्मक स्थिति, या किसी परिघटना की सटीक व्याख्या के लिये जिन पदों का उपयोग किया जाता है, उन्हें भौतिक राशियाँ कहते हैं। भौतिक राशियाँ दो प्रकार की होती हैं :
- अदिश राशियाँ
- सदिश राशियाँ
- अदिश राशियाँ (Scalar Quantities)
वे भौतिक राशियाँ, जिन्हें व्यक्त करने के लिये केवल परिमाण की आवश्यकता होती है, अदिश राशियाँ कहलाती हैं। इन राशियों के लिये दिशा का कोई महत्व नहीं होता। अदिश राशियों को सामान्य बीजगणितीय विधि से जोड़ा जा सकता है और ये त्रिभुज नियम का पालन नहीं करती हैं। उदाहरण : दूरी, चाल, शक्ति, ऊर्जा, लंबाई, क्षेत्रफल, आयतन, द्रव्यमान, घनत्व, तापमान, कार्य, विद्युत धारा, दाब आदि। - सदिश राशियाँ (Vector Quantities)
सदिश राशियाँ वे भौतिक राशियाँ होती हैं जिन्हें व्यक्त करने के लिये परिमाण के साथ-साथ दिशा की भी आवश्यकता होती है। गणितीय क्रियाओं में सदिश राशियों के परिमाण और दिशा दोनों का ध्यान रखना अनिवार्य होता है। ये राशियाँ त्रिभुज नियम का पालन करती हैं। उदाहरण : विस्थापन, वेग, बल, संवेग, त्वरण, भार, विद्युत क्षेत्र, चुंबकीय क्षेत्र, विद्युत तीव्रता, विद्युत धारा घनत्व आदि।
यहाँ, सदिश राशियों को व्यक्त करने के लिये परिमाण के साथ दिशा की भी आवश्यकता होती है, जैसे :- वेग : 5 कि.मी./सेकंड पूर्व की ओर
- विस्थापन : 10 कि.मी. पश्चिम की ओर
- बल : 5 न्यूटन नीचे की ओर
- संवेग : 5 कि.ग्रा. मी./सेकंड दाईं तरफ
दादा साहब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (DPIFF) की स्थापना 2012 में हुई और 2016 में इसे स्वर्गीय श्री धुंडीराज गोविंद फाल्के, जिन्हें प्यार से दादा साहब फाल्के (भारतीय सिनेमा के जनक ) कहा जाता है, की विरासत को आगे बढ़ाने के लिये स्थापित किया गया। यह भारत का एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव है, जिसका उद्देश्य फिल्म जगत की प्रतिभाशाली व नवोदित हस्तियों को सिनेमा के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिये सम्मानित तथा प्रोत्साहित करना है।
यह भारतीय सिनेमा के क्षेत्र में देश की महत्वपूर्ण पहल "वोकल फॉर लोकल" पहल का समर्थन करता है और विविधता में एकता को बढ़ावा देता है। DPIFF भारत की सांस्कृतिक समृद्धि को लोक कलाओं, भारतीय व्यंजनों व विभिन्न शिल्प कलाओं के माध्यम से प्रदर्शित करता है। यह 10 प्रमुख भारतीय राज्यों के पर्यटन विभागों के साथ साझेदारी करते हुए, सिनेमा का सांस्कृतिक पर्यटन के साथ अनोखा मिश्रण प्रस्तुत करता है, जो भारतीय सिनेमा और उसकी रचनात्मकता को वैश्विक पटल पर पहचान दिलाने वाला एक प्रमुख मंच बन गया है।
DPIFF 2024 के आधिकारिक विजेता निम्नलिखित हैं :
- सर्वश्रेष्ठ फिल्म : जवान
- सर्वश्रेष्ठ अभिनेता : शाहरुख खान (जवान)
- सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री : रानी मुखर्जी (मिसेज चटर्जी vs नॉर्वे)
- सर्वश्रेष्ठ निर्देशक : संदीप रेड्डी वांगा (एनिमल)
- सर्वश्रेष्ठ छायाकार : ज्ञाना शेखर वी.एस. (IB71)
- सर्वश्रेष्ठ फिल्म (क्रिटिक्स) : 12th फेल
- सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक : अनिरुद्ध रविचंदर (जवान)
- सर्वश्रेष्ठ गीतकार : जावेद अख्तर ("निकले थे कभी हम घर से")
- सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक : वरुण जैन (ज़रा हटके ज़रा बचके फिल्म से "तेरे वास्ते")
- सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका : शिल्पा राव (पठान फिल्म से "बेशरम रंग")
- संगीत उद्योग में उत्कृष्ट योगदान : के.जे. येसुदास
- फिल्म उद्योग में उत्कृष्ट योगदान : मौसमी चटर्जी
- वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म : सालार : पार्ट 1 – सीज़फायर
- वर्ष का सर्वश्रेष्ठ टेलीविजन धारावाहिक : गुम है किसी के प्यार में
- टेलीविजन सिरीज़ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता : नील भट्ट (गुम है किसी के प्यार में)
- टेलीविजन सिरीज़ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री : रुपाली गांगुली (अनुपमा)
- सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (क्रिटिक्स) : विक्की कौशल (सैम बहादुर)
- सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (क्रिटिक्स) : करीना कपूर खान (जाने जान)
- सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (क्रिटिक्स) : एटली कुमार (जवान)
- सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता : अनिल कपूर (एनिमल)
- सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री : डिंपल कपाड़िया (पठान)
- नकारात्मक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता : बॉबी देओल (एनिमल)
- हास्य भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता : आयुष्मान खुराना (ड्रीम गर्ल 2)
- हास्य भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री : सान्या मल्होत्रा (कठल)
- वर्ष की सबसे बहुमुखी अभिनेत्री : नयनतारा
- सबसे होनहार अभिनेता : विक्रांत मैसी (12वीं फेल)
- सबसे होनहार अभिनेत्री : अदा शर्मा (द केरला स्टोरी)
- सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय फीचर फिल्म : ओपेनहाइमर
- सर्वश्रेष्ठ वेब सिरीज़ : फर्जी
- वेब सिरीज़ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता : शाहिद कपूर (फर्जी)
- वेब सिरीज़ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री : सुष्मिता सेन (आर्या सीज़न 3)
- सर्वश्रेष्ठ वेब सिरीज़ (क्रिटिक्स) : द रेलवे मेन
- वेब सिरीज़ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (क्रिटिक्स) : आदित्य रॉय कपूर (द नाइट मैनेजर)
- वेब सिरीज़ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (क्रिटिक्स) : करिश्मा तन्ना (स्कूप)
- सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म : गुड मॉर्निंग
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- मुद्रा: अमेरिकी डॉलर (USD)
- चीन
- मुद्रा: चीनी युआन रेनमिन्बी (CNY)
- जर्मनी
- मुद्रा: यूरो (EUR)
- जापान
- मुद्रा: जापानी येन (JPY)
- भारत
- मुद्रा: भारतीय रुपया (INR)
- यूनाइटेड किंगडम
- मुद्रा: ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग (GBP)
- फ्रांस
- मुद्रा: यूरो (EUR)
- इटली
- मुद्रा: यूरो (EUR)
- ब्राजील
- मुद्रा: ब्राज़ीलियाई रियल (BRL)
- कनाडा
- मुद्रा: कनाडाई डॉलर (CAD)
- रूस
- मुद्रा: रूसी रूबल (RUB)
- मेक्सिको
- मुद्रा: मैक्सिकन पेसो (MXN)
- ऑस्ट्रेलिया
- मुद्रा: ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (AUD)
- दक्षिण कोरिया
- मुद्रा: दक्षिण कोरियाई वॉन (KRW)
- ताइवान
- मुद्रा: न्यू ताइवान डॉलर (TWD)
- स्पेन
- मुद्रा: यूरो (EUR)
- इंडोनेशिया
- मुद्रा: इंडोनेशियाई रुपिया (IDR)
- नीदरलैंड्स
- मुद्रा: यूरो (EUR)
- तुर्की
- मुद्रा: तुर्की लीरा (TRY)
- सऊदी अरब
- मुद्रा: सऊदी रियाल (SAR)
केंद्र और राज्यों के बीच का संबंध भारत के संघीय ढाँचे का एक मौलिक पहलू है। इस संबंध को तीन प्राथमिक दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है : विधायी संबंध, प्रशासनिक संबंध, और वित्तीय संबंध। इनमें से प्रत्येक पहलू भारतीय संवि
धान में विशेष प्रावधानों द्वारा शासित होता है, जो विभिन्न स्तरों के शासन और सहयोग के लिये एक संरचित दृष्टिकोण सुनिश्चित करते हैं।
- विधायी संबंध
- संविधानिक प्रावधान : संविधान के भाग XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र और राज्यों के बीच कानूनी संबंधों का वर्णन किया गया है।
- शक्ति का वितरण :
- संविधान कुछ विषयों पर केंद्र को विशेष कानूनी शक्तियाँ देता है।
- राज्यों को अपने अधिकार क्षेत्र वाले विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है।
- शक्ति का संतुलन : कानूनी शक्तियों का यह विभाजन केंद्र और राज्यों के बीच एक संतुलन बनाए रखता है, जिससे दोनों स्तरों की सरकारें अपनी जिम्मेदारियों का प्रभावी रूप से निर्वहन कर सकें।
- प्रशासनिक संबंध
- संविधानिक प्रावधान : संविधान के भाग XI में अनुच्छेद 256 से 263 तक केंद्र और राज्यों के बीच प्रशासनिक संबंधों को परिभाषित किया गया है।
- जिम्मेदारियाँ और शक्तियाँ :
- अनुच्छेद 256 राज्यों को कुछ मामलों में केंद्र के निर्देशों का पालन करने का आदेश देता है।
- अनुच्छेद 263 विभिन्न मुद्दों पर समन्वय के लिये एक अंतर्राज्यीय परिषद के गठन की अनुमति देता है।
- सहयोग और समन्वय :
- प्रभावी शासन सुनिश्चित करने के लिये सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
- प्रशासनिक कार्यों में क्रम और दक्षता बनाए रखने का लक्ष्य।
- वित्तीय संबंध
- संविधानिक प्रावधान : संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 तक वित्तीय संबंधों का प्रावधान है।
- कराधान शक्तियाँ :
- केंद्र आय, कस्टम ड्यूटी, और उत्पाद शुल्क पर कर लगा सकता है।
- राज्य बिक्री कर, संपत्ति कर, और अन्य स्थानीय कर लगा सकते हैं।
- राजस्व साझेदारी :
- करों से प्राप्त राजस्व का केंद्र और राज्यों के बीच वितरण।
- अनुदान :
- केंद्र विशेष परियोजनाओं और विकासात्मक आवश्यकताओं के लिये राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
शक्तियों और जिम्मेदारियों का स्पष्ट विभाजन केंद्र और राज्यों के बीच एक संतुलन बनाए रखने के साथ-साथ प्रभावी शासन सुनिश्चित करता है। इन संबंधों को समझना भारत के संघीय प्रणाली ढाँचे की जटिलताओं और केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय को समझने के लिये आवश्यक है।
उद्गम, विशेषताएँ और महत्व
बिहार, भारत का एक प्रमुख कृषि-आधारित राज्य है, जो अपनी कृषि आवश्यकताओं और अर्थव्यवस्था के लिये नदियों पर निर्भर है। इस राज्य में कई मौसमी और बारहमासी नदियाँ हैं, जो सतही जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा नदी बिहार को दो भागों में विभाजित करती है, जिससे नदियों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है : उत्तर बिहार की नदियाँ और दक्षिण बिहार की नदियाँ।
- उत्तर बिहार की नदियाँ
गंगा के उत्तर स्थित उत्तरी मैदानों में कई महत्वपूर्ण नदियाँ हैं। इस क्षेत्र में प्रमुख नदियाँ हैं :- बुढ़ी गंडक
- गंडक
- महानंदा
- कोसी
- घाघरा
- कमला-बालन
- बागमती-अध्वारा
ये नदियाँ मुख्य रूप से हिमालयी क्षेत्र से निकलती हैं तथा तिब्बत और नेपाल के क्षेत्रों से गुजरती हैं। मानसून के दौरान भारी वर्षा के कारण इनके जल प्रवाह में अत्यधिक वृद्धि होती है। इन नदियों के बदलते मार्ग भी ऑक्सबो झीलों का निर्माण करते हैं। हालाँकि अधिक जलस्तर, तीव्र ढलान और उच्च सिल्टेशन के कारण बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है, जो आस-पास के समुदायों के जनजीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करती है।
- दक्षिण बिहार की नदियाँ
दक्षिण बिहार के मैदानी भागों में प्रमुख नदियाँ :- कियुल
- सोन
- बादुआ चंदन
- कर्मनासा
ये नदियाँ विंध्याचल पहाड़ियों या छोटानागपुर और राजमहल पहाड़ियों से निकलती हैं। गंगा का दक्षिणी तट जल निकासी में बाधा उत्पन्न करता है, जिसके परिणामस्वरूप "ताल" नामक निम्नभूमि का निर्माण होता है।
- बिहार की प्रमुख नदियाँ
- गंगा नदी :
गंगा नदी बिहार में बक्सर जिले के चौसा गाँव से प्रवेश करती है और सारण तथा भोजपुर जिलों के बीच एक प्राकृतिक सीमा निर्मित करती है। यह पश्चिमी हिमालय से उत्पन्न होती है और बिहार में कृषि के लिये एक स्थायी जल स्रोत है।-
- प्रमुख सहायक नदियाँ : कोसी, काली, बागमती और गंडक
- बाईं ओर की सहायक नदियाँ : घाघरा, कोसी, गंडक, महाकाली और कर्णाली
- दाहिनी ओर की सहायक नदियाँ : चंबल, महानंदा, सोन,पुनपुन और यमुना
- महात्मा गांधी सेतु उत्तर और दक्षिण बिहार को जोड़ता है।
-
- गंडक नदी :
यह नदी तिब्बत के उत्तर धौलागिरी से निकलती है और उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मध्य प्राकृतिक सीमा निर्मित करती है। इसके पश्चात सोनपुर के पास गंगा नदी में मिल जाती है। - घाघरा नदी :
यह नदी तिब्बत से उत्पन्न होती है और बिहार में गोपालगंज जिले से प्रवेश करती है। यह नदी गंगा में छपरा जिले के पास मिलती है और गंगा की दूसरी सबसे बड़ी बाईं ओर से मिलने वाली सहायक नदी है। - कोसी नदी :
कोसी नदी को इसके विनाशकारी बाढ़ के कारण "बिहार का शोक" कहा जाता है। यह नदी नेपाल में हनुमान नगर के पास से भारत में प्रवेश करती है और कटिहार में गंगा से मिलती है।- बाईं ओर की सहायक नदियाँ : धेमाना धार और फरियानी धार
- दाहिनी ओर की सहायक नदियाँ : त्रिजुगी, बागमती, भुतही बालन और कमला-बालन
- पुनपुन नदी :
यह नदी छोटानागपुर पठार से उत्पन्न होती है और पटना जिले में स्थित फतुहा के पास गंगा में मिलती है। यह एक मौसमी नदी है, जो ग्रीष्म ऋतु के दौरान लगभग सूख जाती है।
बिहार राज्य की नदियाँ कृषि, सिंचाई, पेयजल और जलविद्युत के लिये महत्वपूर्ण हैं। एक स्थल-रुद्ध राज्य होने के बावजूद, ये नदियाँ आवश्यक संसाधन प्रदान करती हैं जो इसकी अर्थव्यवस्था के विकास तथा लोगों की आजीविका के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- गंगा नदी :
- संघ की स्थापना :
- मीर कासिम, जो बंगाल का नवाब था, अंग्रेजों से पराजित होकर अवध आ गया।
- उसने अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ एक संघ बनाया ताकि अंग्रेजों का मुकाबला किया जा सके।
- युद्ध की तैयारी :
- 22 अक्टूबर, 1764 को बक्सर में अंग्रेजों और मीर कासिम के गठबंधन के बीच निर्णायक युद्ध हुआ।
- यह युद्ध प्लासी की तरह छल-प्रपंच पर आधारित नहीं था, बल्कि दोनों पक्षों ने पूरी तैयारी और अपनी पूरी सैन्य क्षमता के साथ युद्ध किया।
- अंग्रेजों का युद्ध कौशल :
- अंग्रेजों ने युद्ध में अपने बेहतरीन सैन्य कौशल का प्रदर्शन किया।
- दक्षिण भारत में फ्राँसीसी सेना के विरुद्ध अभियान का अनुभव अंग्रेजों के लिये काफी सहायक साबित हुआ।
- विशेष रूप से 1760 में वांडीवाश की लड़ाई में अंग्रेजों ने फ्राँसीसी सेना को हराया था, जिसका अनुभव बक्सर के युद्ध में उनके काम आया।
- मीर कासिम की हार :
- मीर कासिम, शुजाउद्दौला और शाह आलम द्वितीय के संघ को अंग्रेजों ने बुरी तरह पराजित कर दिया।
- इस हार ने उत्तर भारत में अंग्रेजी सत्ता की संभावनाओं को मजबूत किया।
- मुगल साम्राज्य की शेष बची हुई शक्ति और प्रतिष्ठा भी इस युद्ध के बाद समाप्त हो गई।
- क्लाइव की वापसी और संधियाँ :
- बक्सर युद्ध के बाद, 1765 में रॉबर्ट क्लाइव दूसरी बार बंगाल का गवर्नर बनकर लौटा।
- क्लाइव ने बक्सर युद्ध के बाद मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय से संधि की और बंगाल, बिहार और उड़ीसा का दीवानी अधिकार प्राप्त किया।
- मीर जाफर की मृत्यु :
- क्लाइव के लौटने से पहले, मीर जाफर की फरवरी 1765 में मृत्यु हो चुकी थी।
- मीर जाफर के बेटे नजीमुद्दौला को अंग्रेजों ने कठपुतली नवाब बनाया और उसके साथ संधि कर ली।
- ब्रिटिश सत्ता का विस्तार :
- इस संधि के बाद नवाब की सेना को लगभग भंग कर दिया गया।
- बंगाल में एक नायब सूबेदार की व्यवस्था की गई, जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी नियुक्त करती थी।
- मोहम्मद रजा खाँ को बंगाल का पहला और अंतिम नायब सूबेदार नियुक्त किया गया।
इस निर्णायक युद्ध के बाद ब्रिटिश सत्ता का प्रभाव पूरे उत्तर भारत में फैल गया। मुगल साम्राज्य की बची-खुची प्रतिष्ठा भी खत्म हो गई और अंग्रेजों का भारतीय उपमहाद्वीप पर वर्चस्व स्थापित हो गया।
भारत में बैंकिंग का इतिहास (भाग -1)
भारत में बैंकिंग प्रणाली देश के आर्थिक विकास की नींव है। पिछले कुछ वर्षों में, प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ बैंकिंग प्रणाली और प्रबंधन में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। भारत में बैंकिंग का इतिहास 1947 में स्वतंत्रता मिलने से पहले का है और यहाँ हम भारत में बैंकिंग क्षेत्र के विकास के तीन प्रमुख चरणों पर चर्चा करेंगे।
- चरण I: प्रारंभिक चरण (1770-1969)
भारत में बैंकिंग का प्रारंभ वर्ष 1770 में हुआ, जब "बैंक ऑफ़ हिंदुस्तान" की स्थापना की गई। यह बैंक भारतीय राजधानी कलकत्ता में स्थित था, लेकिन यह बैंक सफल नहीं रहा और वर्ष 1832 में बंद हो गया। स्वतंत्रता पूर्व काल में 600 से अधिक बैंक पंजीकृत थे, लेकिन उनमें से कुछ ही कार्यरत रहे।
बैंक ऑफ हिंदुस्तान की तर्ज पर देश में कई अन्य बैंक स्थापित किये गए, जैसे:- जनरल बैंक ऑफ इंडिया (1786-1791)
- अवध कमर्शियल बैंक (1881-1958)
- बैंक ऑफ बंगाल (1809)
- बैंक ऑफ बॉम्बे (1840)
- बैंक ऑफ मद्रास (1843)
ब्रिटिश शासन के दौरान, ईस्ट इंडिया कंपनी ने तीन प्रमुख बैंकों की स्थापना की: बैंक ऑफ बंगाल, बैंक ऑफ बॉम्बे, और बैंक ऑफ मद्रास। 1921 में इन तीनों को मिलाकर "इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया" बनाया गया, जिसे 1955 में राष्ट्रीयकरण कर "भारतीय स्टेट बैंक" का नाम दिया गया। स्वतंत्रता पूर्व काल के दौरान अन्य स्थापित बैंकों में शामिल हैं:- इलाहाबाद बैंक (1865)
- पंजाब नेशनल बैंक (1894)
- बैंक ऑफ इंडिया (1906)
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (1911)
- केनरा बैंक (1906)
- बैंक ऑफ बड़ौदा (1908)
स्वतंत्रता पूर्व काल में कई प्रमुख बैंकों का अस्तित्व में न रह पाने के कारणों में धोखाधड़ी, प्रौद्योगिकी की कमी, मानवीय त्रुटियाँ, और उचित प्रबंधन कौशल की कमी शामिल हैं।
उत्सवों के माध्यम से भारतीय परंपराओं का संगम
भारत, अपनी समृद्ध और विविध सांस्कृतिक धरोहर के लिये जाना जाता है, जहाँ सभी राज्यों में विशिष्ट त्यौहार मनाए जाते हैं। प्रत्येक क्षेत्र के त्यौहार स्थानीय परंपराओं, रीति-रिवाजों और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं। ये त्यौहार न केवल प्रत्येक राज्य की सांस्कृतिक विविधता को उजागर करते हैं, बल्कि भारत के पारंपरिक ज्ञान का अनुभव भी प्रदान करते हैं। यहाँ राज्य-विशिष्ट प्रमुख त्यौहारों की जानकारी दी गई है-
राज्य-विशिष्ट प्रमुख भारतीय त्यौहार
- आंध्र प्रदेश
- दशहरा
- उगादि
- दक्कन महोत्सव
- ब्रह्मोत्सवम
- अरुणाचल प्रदेश
- रेह
- बूरी बूट
- मायोको
- ड्री
- पोंगटू
- लोस्सार
- मुरुंग
- सोलुंग
- मोपिन
- मोनपा उत्सव
- असम
- अंबुबाशी
- भोगाली बिहू
- बैशागू
- देहिंग पटकाई
- बिहार
- छठ पूजा
- बिहुला
- छत्तीसगढ़
- माघी पूर्णिमा
- बस्तर दशहरा
- गोवा
- सनबर्न उत्सव
- लादेन
- मांडो
- गुजरात
- नवरात्रि
- जन्माष्टमी
- रण उत्सव
- उत्तरायण
- हिमाचल प्रदेश
- राखदुमनी
- गोची महोत्सव(गोत्सी)
- हरियाणा
- बैसाखी
- जम्मू और कश्मीर
- हर नवमी
- छड़ी
- बहु मेला
- दोसमोचे
- झारखंड
- करमा उत्सव
- होली
- रोहिणी
- टुसू
- कर्नाटक
- मैसूर दशहरा
- गुड़ी पड़वा
- केरल
- ओणम
- विशु
- मध्य प्रदेश
- लोकरंग उत्सव
- तेजाजी
- खजुराहो उत्सव
- मेघालय
- नोंग्क्रेम त्योहार
- खासी त्योहार
- वांगला
- साजिबू चेइराओबा
- महाराष्ट्र
- गणेश उत्सव
- गुड़ी पड़वा
- मणिपुर
- याओशांग
- पोराग
- चवांग कुट
- मिजोरम
- चपचारकुट महोत्सव
- नगालैंड
- हॉर्नबिल उत्सव
- मोआत्सू उत्सव
- ओडिशा
- रथयात्रा
- राजा परबा
- नुकाहाई
- पंजाब
- लोहड़ी
- बैसाखी
- राजस्थान
- गणगौर
- तीज
- बूंदी
- सिक्किम
- लोसार
- सागा दावा
- तमिलनाडु
- पोंगल
- थाईपुसम
- नाट्यांजलि महोत्सव
- तेलंगाना
- बोनालु
- बथुकम्मा
- त्रिपुरा
- खर्ची पूजा
- पश्चिम बंगाल
- दुर्गा पूजा
- उत्तराखंड
- गंगा दशहरा
- उत्तर प्रदेश
- रामनवमी
- गंगा महोत्सव
- नवरात्रि
- खिचड़ी
त्यौहार भारत की सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो प्रत्येक राज्य की विविध परंपराओं और प्रथाओं को उजागर करते हैं। गुजरात के नवरात्रि के जीवंत उत्सव से लेकर केरल के ओणम की शांतिपूर्ण खुशियों तक, प्रत्येक त्यौहार भारत की विविधता और एकता का प्रतीक है। इन राज्य-विशिष्ट त्यौहारों से परिचित होकर, हम भारत की सांस्कृतिक विविधता और स्थानीय विशेषताओं को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। चाहे शैक्षिक उद्देश्यों के लिये हो या व्यक्तिगत रुचि के लिये, इन त्यौहारों की समझ हमें भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं से जोड़ती है।
भाग III का अवलोकन: नागरिक-विशिष्ट और सार्वभौमिक अधिकार
संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35 तक) में मौलिक अधिकारों का विवरण है। संविधान के भाग III को ‘भारत का मैग्नाकार्टा’ की संज्ञा दी गई है। मैग्नाकार्टा' अधिकारों का वह प्रपत्र है, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में सामंतों के दबाव में जारी किया गया था। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित पहला लिखित प्रपत्र था।
- मौलिक अधिकार जो केवल भारतीय नागरिकों को उपलब्ध हैं (विदेशियों के लिये नहीं):
- अनुच्छेद 15: धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध।
- अनुच्छेद 16: लोक नियोजन में अवसर की समानता।
- अनुच्छेद 19: छह स्वतंत्रताएँ:
- वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
- शांतिपूर्ण सभा का अधिकार।
- संघ बनाने का अधिकार।
- देश के भीतर कहीं भी स्वतंत्र रूप से घूमने या निवास करने का अधिकार।
- देश के किसी भी हिस्से में निवास करने का अधिकार।
- कोई वृत्ति, उपजीविका या कारोबार करने की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार।
- अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यक वर्गों द्वारा शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार।
- नागरिकों और विदेशियों दोनों के लिये उपलब्ध मौलिक अधिकार (शत्रु देशों के नागरिकों को छोड़कर):
- अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समानता और विधियों का समान संरक्षण।
- अनुच्छेद 20: अपराधों के लिये दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण।
- अनुच्छेद 21: प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण।
- अनुच्छेद 21A: प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार (हालाँकि, यह मुख्य रूप से भारतीय नागरिकों से संबंधित है)।
- अनुच्छेद 22: कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण।
- अनुच्छेद 23: बलात श्रम और मानव व्यापार का निषेध।
- अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के कारखानों में नियोजन का निषेध।
- अनुच्छेद 25: धर्म की अभिव्यक्ति, आचरण, और प्रचार की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 26: धार्मिक मामलों के संचालन की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 27: किसी विशेष धर्म के प्रचार के लिये करों के संबंध में स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 28: कुछ शिक्षा संस्थानों में धार्मिक शिक्षा और पूजा में शामिल होने से स्वतंत्रता।
यह सूची भारतीय संविधान के तहत उपलब्ध मौलिक अधिकारों का स्पष्ट और सटीक विभाजन करती है।
वाद्य यंत्रों का वर्गीकरण और विविध प्रकार
- तार वाद्य (String Instruments)
- सितार (Sitar) :
- भारतीय तंतुवाद्य यंत्र, जिसमें 7 मुख्य और 11 सहायक तार होते हैं। सितार पूर्ण भारतीय वाद्य है क्योंकि इसमें भारतीय वाद्योँ की तीनों विशेषताएं हैं, जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है।
- वायलिन (Violin) :
- एक bowed तार वाद्य यंत्र, जिसमें चार तार होते हैं। इसे आर्च (bow) से बजाया जाता है और यह शास्त्रीय, जैज़ और अन्य शैलियों में उपयोग होता है।
- गिटार (Guitar) :
- एक तार वाद्य यंत्र, जिसमें 6 तार होते हैं। इसे प्लकिंग या स्ट्रमिंग द्वारा बजाया जाता है और यह कई संगीत शैलियों में प्रयोग होता है।
- संतूर (Santoor) :
- एक भारतीय तार वाद्य यंत्र, जिसमें 72 तार होते हैं। इसे हिटर्स से बजाया जाता है, और यह मुख्य रूप से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रयोग होता है।
- यूकुलेले (Ukulele) :
- गिटार जैसा दिखने वाला एक छोटा हवाई वाद्य यंत्र, जिसमें 4 तार होते हैं। इसे स्ट्रमिंग से बजाया जाता है और यह अपने छोटे आकार और विशिष्ट ध्वनि के लिये प्रसिद्ध है।
- बैंजो (Banjo) :
- एक तंतुवाद्य यंत्र, जिसका गोलाकार आकार और फ्रीटेड नेक होता है। इसमें 4 से 6 तार होते हैं और यह विशेषकर फोक और ब्लूग्रास संगीत में उपयोग होता है।
- सुरबहार (Surbahar) :
- सितार का बड़ा संस्करण, जिसे धीमे रागों के लिये प्रयोग किया जाता है। इसमें गहरा और संगीनी स्वर होता है और यह वाद्य यंत्र संगीत में गहराई प्रदान करता है।
- सितार (Sitar) :
- ताल वाद्य (Percussion Instruments)
- तबला (Tabla) :
- एक भारतीय पर्कशन यंत्र (आघात द्वारा बजाया जाने वाला यंत्र), जिसमें दो ड्रम होते हैं। एक ड्रम बायां और दूसरा दायां होता है, और इसे हाथों से बजाया जाता है।
- संगीत ड्रम्स (Drums) :
- एक पर्कशन वाद्य यंत्र(आघात द्वारा बजाया जाने वाला यंत्र) का समूह, जिसमें विभिन्न आकार के ड्रम और साइम्बल्स होते हैं। यह ताल और बीट को बनाए रखने के लिये उपयोग होता है।
- खँजड़ी/खँजरी (Tambourine) :
- एक हाथ से पकड़ा जाने वाला पर्कशन वाद्य यंत्र(आघात द्वारा बजाया जाने वाला यंत्र), जिसमें धातु की जिंगल्स होती हैं। इसे झटका या हिला कर बजाया जाता है, और यह संगीत में ताल जोड़ने के लिये प्रयोग होता है।
- तबला (Tabla) :
- वायु वाद्य (Wind Instruments)
- शहनाई (Shehnai) :
- एक भारतीय वायु वाद्य यंत्र, जिसका एक लंबा, नली जैसा आकार होता है। इसे वायु द्वारा बजाया जाता है और यह पारंपरिक भारतीय संगीत में उपयोग होता है।
- फ्लूट (Flute) :
- एक वुडविंड वाद्य यंत्र, जिसे एक छिद्र के पार हवा फेंक कर बजाया जाता है। इसकी हल्की और मीठी ध्वनि को कई संगीत शैलियों में प्रयोग किया जाता है।
- शेफर्ड (Saxophone) :
- एक ब्रास वायु वाद्य यंत्र, जिसमें सिंगल-रीड माउथपीस होता है। इसका उपयोग जैज़, क्लासिकल और पॉप संगीत में होता है।
- हर्न (Horn) :
- एक ब्रास वायु वाद्य यंत्र, जिसमें गोलाकार आकार होता है। इसका उपयोग ओर्केस्ट्रा में गहरे और समृद्ध ध्वनि के लिये किया जाता है।
- शहनाई (Shehnai) :
- कीबोर्ड वाद्य (Keyboard Instruments)
- पियानो (Piano) :
- एक कीबोर्ड वाद्य यंत्र, जिसमें स्ट्रिंग्स को हैमर्स द्वारा बजाया जाता है। यह विभिन्न शैलियों में एकल और समूह संगीत के लिये उपयोग होता है।
- हारमोनियम (Harmonium) :
- एक कीबोर्ड वाद्य यंत्र, जिसमें हवा को रीट्स के माध्यम से पास होने पर ध्वनि उत्पन्न होती है। यह भारतीय शास्त्रीय और भक्ति संगीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- पियानो (Piano) :
पोषक तत्वों की आवश्यकता, स्रोत और उनके लाभ
पोषण मानव शरीर के संचालन और स्वास्थ्य के लिये महत्वपूर्ण है। यह शरीर को आवश्यक ऊर्जा, विकास, मरम्मत, और रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। पोषण की आवश्यकता को संतुलित आहार के माध्यम से पूरा किया जा सकता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं। पोषण की प्रमुख आवश्यकताएँ निम्नलिखित हैं :
- कार्बोहाइड्रेट्स :
- ऊर्जा का मुख्य स्रोत
- स्रोत : अनाज, फल, सब्जियाँ, दालें
- प्रोटीन :
- शरीर की वृद्धि, मरम्मत, एंजाइम व हार्मोन के उत्पादन में सहायक
- स्रोत : दालें, बीन्स, मांस, मछली, अंडे, डेयरी उत्पाद
- वसा :
- ऊर्जा का प्रमुख स्रोत, शरीर के अंगों की सुरक्षा में सहायक
- स्रोत : तेल, घी, मक्खन, नट्स, बीज
- विटामिन्स :
- शरीर के विभिन्न कार्यों के लिये आवश्यक कार्बनिक यौगिक
- स्रोत : फल, सब्जियाँ, डेयरी उत्पाद, अनाज
- मिनरल्स :
- हड्डियों, दाँतों, और कोशिकाओं के सही संचालन के लिये आवश्यक
- स्रोत : डेयरी उत्पाद, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, मीट, अनाज
- पानी :
- शरीर के प्रत्येक कोशिका, ऊतक, और अंग के सही कार्य के लिये आवश्यक
- भूमिका : शरीर को हाइड्रेटेड रखना, जैविक प्रक्रियाओं में शामिल
- फाइबर :
- पाचन तंत्र के सही संचालन और कब्ज की समस्या को दूर करने में सहायक
- स्रोत : साबुत अनाज, फल, सब्जियाँ, दालें
संतुलित आहार के माध्यम से इन सभी पोषक तत्वों की पूर्ति करना आवश्यक है ताकि शरीर स्वस्थ रहे और सभी जैविक प्रक्रियाएँ सही ढंग से संचालित हो सकें। उचित पोषण से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य सुधरता है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा तंत्र भी मजबूत होता है।
- राजकीय प्रतीक
- राजकीय प्रतीक : बोधिवृक्ष, जो दो स्वास्तिक के बीच में स्थित है।
- राजकीय पशु : बैल, जो बिहार की कृषि और ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक है।
- राजकीय पुष्प : गेंदा, जो अपने रंग और सौंदर्य के लिये जाना जाता है।
- राजकीय पक्षी : गौरैया, जो साधारणता और अपनापन का प्रतीक है।
- राजकीय वृक्ष : पीपल, जो विभिन्न संस्कृतियों में धार्मिक और औषधीय महत्व रखता है।
- राजकीय मछली : मांगुर मछली, जो बिहार की जल जीव विविधता का हिस्सा है।
- आधिकारिक भाषा : हिंदी
- द्वितीय आधिकारिक भाषा : उर्दू
- सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
- प्रमुख चित्रकला : मधुबनी चित्रकला, मिथिला क्षेत्र की पारंपरिक कला, जिसे विश्वभर में सराहा गया है।
- पवित्र पर्व : छठ पूजा, जो सूर्य देवता के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का प्रमुख हिंदू पर्व है।
- राज्य गीत : "मेरे भारत के कंठहार, तुझको शत-शत वंदन बिहार" जो बिहार की सांस्कृतिक समृद्धि और गर्व को दर्शाता है।
- राज्य प्रार्थना : "मेरे रफ्तार पे सूरज की किरणें राज करे" जो राज्य के लोगों की आकाँक्षाओं और आशाओं को व्यक्त करता है।
- जनसांख्यिकीय जानकारी
- जनसंख्या संरचना : बिहार की जनसंख्या में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) का महत्वपूर्ण योगदान है।
- अनुसूचित जातियाँ (SC) : कुल जनसंख्या का 15.9%, जिसमें गया जिले में सबसे अधिक SC जनसंख्या है।
- अनुसूचित जनजातियाँ (ST) : कुल जनसंख्या का 1.3%, पश्चिमी चंपारण जिले में सबसे अधिक ST जनसंख्या है।
- लिंगानुपात : कुल लिंगानुपात 918 है, जिसमें गोपालगंज में सबसे अधिक (1021) और मुंगेर में सबसे कम (876) है।
- साक्षरता दर : बिहार की साक्षरता दर लगभग 61.80% है, जिसमें पुरुष साक्षरता (71.20%) और महिला साक्षरता (51.50%) शामिल हैं। रोहतास में सबसे उच्च साक्षरता दर (73.37%) और पूर्णिया में सबसे कम (51.08%) है।
- स्थानीय शासन
- प्रशासनिक विभाजन : राज्य में 38 जिले, 101 अनुमंडल, और 534 प्रखंड हैं, जो एक संगठनात्मक शासन प्रणाली के माध्यम से प्रबंधित होते हैं।
- विधानमंडल : बिहार में एक द्विसदनीय विधानमंडल है, जिसमें विधान परिषद और विधानसभा शामिल हैं, जो राज्य की कानून व्यवस्था और शासन के लिये जिम्मेदार हैं।
हमारी वैश्विक विरासत का सांस्कृतिक और वास्तुकला की दृष्टि से महत्त्व
- ग्रेट वॉल ऑफ चाइना
- देश : चीन
- महत्त्वपूर्ण तथ्य : चीन की महान दीवार जिसे क्ज़ियांग्नू और अन्य खानाबदोश जनजातियों के आक्रमणों से चीनी राज्यों की रक्षा के लिये निर्मित किया गया था। यह दीवार 13,000 मील से अधिक लंबी है और विभिन्न राजवंशों के दौरान बनाई गई थी। सबसे अच्छी तरह से संरक्षित भाग मिंग वंश (1368–1644) के दौरान बनाए गए थे। यह चीन का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल और एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
- गीज़ा के पिरामिड
- देश : मिस्र
- महत्त्वपूर्ण तथ्य : गीजा के पिरामिड, जिसमें ग्रेट पिरामिड ऑफ गीजा भी शामिल है, प्राचीन विश्व के सात अजूबों में से एक हैं। ये पिरामिड मिस्र के पुरातन साम्राज्य के चौथे वंश (लगभग 2580–2560 ईसा पूर्व) के दौरान फ़राओ के लिये मकबरे के रूप में बनाए गए थे। इन पिरामिडों को इनकी इंजीनियरिंग और अद्भुत वास्तु कला के लिये जाना जाता है।
- ताज महल
- देश : भारत
- महत्त्वपूर्ण तथ्य : ताज महल एक सफेद संगमरमर का मकबरा है जिसे मुगल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में बनवाया था। आगरा में स्थित यह स्मारक अपनी वास्तुकला की सुंदरता के लिये प्रसिद्ध है और इसे अक्सर "भारत में इस्लामी कला का रत्न" के रूप में वर्णित किया जाता है। यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल और शाश्वत प्रेम का प्रतीक है।
- कोलोसियम
- देश : इटली
- महत्त्वपूर्ण तथ्य : कोलोसियम, जिसे फ्लेवियन एम्फीथियेटर भी कहा जाता है, प्राचीन रोम का एक ग्लैडीएटोरियल एरेना है। 80 ईस्वी में पूरा हुआ, इसमें 80,000 तक दर्शक समा सकते थे और यह अपनी भव्य वास्तुकला के लिये प्रसिद्ध है। यह रोम साम्राज्य का एक प्रतीकात्मक स्मारक है।
- एफिल टॉवर
- देश : फ्राँस
- महत्त्वपूर्ण तथ्य : फ्राँसीसी क्रांति की शताब्दी के अवसर पर 1886 में एक भव्य प्रवेश द्वार बनाने के लिये 'एक्सपोजिशन यूनिवर्सल' ने डिज़ाइन प्रतियोगिता आयोजित की। गुस्ताव एफिल द्वारा प्रस्तुत डिज़ाइन को चुना गया। इसे तैयार करने में दो साल, दो महीने और पांच दिन लगे। इसकी ऊँचाई 324 मीटर है और यह फ्राँस का एक वैश्विक सांस्कृतिक प्रतीक बन गया है।
- माचू पिच्चू
- देश : पेरू
- महत्त्वपूर्ण तथ्य : माचू पिच्चू एक 15वीं सदी का इंका किला है, क्वेशुआ भाषा में माचू पिच्चू का अर्थ 'पुरानी चोटी' होता है। माचू पिच्चू का निर्माण इंका साम्राज्य के लोगों ने 15वीं शताब्दी के मध्य में एक शाही संपत्ति या पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में किया था, जो एंडीज़ पर्वतों में स्थित है। पहले इंका सम्राट पचकुटेक (Pachacuteq) ने माचू पिच्चू के निर्माण का आदेश दिया था। प्राचीन होने के बाद भी इसकी वास्तुकला और इंजीनियरिंग बेहद शानदार हैं जिसमें सीढ़ियां, रैंप, छत और दीवारें शामिल हैं जिनका निर्माण पहाड़ के किनारे किया गया है ताकि भूस्खलन के खतरे से बचा जा सके। यह एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
- क्राइस्ट द रिडीमर
- देश : ब्राज़ील
- महत्त्वपूर्ण तथ्य : ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में एक पहाड़ी पर स्थित 130 फुट ऊँची 'क्राइस्ट द रिडीमर' एक मूर्ति है, जो उद्धारकर्ता ईसा मसीह का प्रतीक है। क्रॉस के आकार की यह मूर्ति 1931 में कंक्रीट और सोपस्टोन से बनाई गई थी, और इसे जनता द्वारा प्राप्त दान से निर्मित किया गया था। यह दुनिया की सबसे बड़ी और ऊँची ईसा मसीह की मूर्तियों में से एक है।
- पेट्रा
- देश : जॉर्डन
- महत्त्वपूर्ण तथ्य : पेट्रा, जिसे रोज़ सिटी भी कहा जाता है, एक पुरातात्विक स्थल है जो अपनी रॉक-कट वास्तुकला और जल-मार्ग प्रणाली के लिये प्रसिद्ध है। इसे 5वीं सदी ईसा पूर्व के आसपास निर्मित किया गया था और यह नबातियन साम्राज्य की राजधानी थी। यह अपने गुलाबी बलुआ पत्थर की चट्टानों के लिये प्रसिद्ध है। पेट्रा एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
- अल-अक्सा मस्जिद
- देश : इज़राइल
- महत्त्वपूर्ण तथ्य : अल-अक्सा मस्जिद एक महत्वपूर्ण इस्लामी स्थल है जो येरूशलम में टेंपल माउंट पर स्थित है। यह मक्का और मदीना के बाद इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है, । यह स्थान यहूदी परंपरा में भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे प्राचीन यहूदी मंदिरों का स्थल माना जाता है।
- स्टोनहेंज
- देश : यूनाइटेड किंगडम
- महत्त्वपूर्ण तथ्य : स्टोनहेंज एक प्रागैतिहासिक स्मारक है जो इंग्लैंड के विल्टशायर काउंटी में स्थित है। इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि इसका निर्माण पाषाण युग और कांस्य युग में 3000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व में सम्पन्न हुआ।, इसका धार्मिक या खगोलीय उद्देश्यों के लिये उपयोग किए जाने की संभावना है। स्टोनहेंज एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
ये स्मारक न केवल अपने ऐतिहासिक और अद्भुत वास्तुशिल्प महत्व के लिये जाने जाते हैं, बल्कि उनका सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक महत्त्व भी है।
पृथ्वी के वायुमंडल की संरचना और परतें
पृथ्वी गैसीय परतों के रूप में उपस्थित वायुमंडल की परतों से आवृत है, जो ऊँचाईयों तथा विशिष्ट गुणधर्मों के आधार पर वर्गीकृत हैं। ये परतें पृथ्वी की सतह से लेकर अंतरिक्ष तक फैली हुई हैं और प्रत्येक परत का अपना विशेष महत्व है। वायुमंडल को पाँच प्रमुख परतों में बाँटा गया है, जो पृथ्वी की सतह से आरंभ होती हैं: क्षोभमंडल, समतापमंडल, मध्यमंडल, तापमंडल, और बहिर्मंडल। इन परतों का विवरण इस प्रकार है-
1. क्षोभमंडल (Troposphere)
- ऊँचाई: पृथ्वी की सतह से लगभग 8 से 15 किलोमीटर तक।
- विशेषताएँ: यह परत वायुमंडल की सबसे निचली परत है और पृथ्वी के मौसम और जलवायु की अधिकांश गतिविधियाँ यहीं पर होती हैं, जैसे कि बादल, वर्षा, तूफान आदि। यहाँ तापमान ऊँचाई के साथ कम होता जाता है।
- महत्व: यह परत पृथ्वी पर जीवन के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हवा, जलवाष्प और गैसों की अधिकतम मात्रा पाई जाती है।
2. समतापमंडल (Stratosphere)
- ऊँचाई: लगभग 15 से 50 किलोमीटर।
- विशेषताएँ: इस परत में तापमान ऊँचाई के साथ बढ़ता है, जो ओजोन परत के कारण होता है। ओजोन परत सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती है।
- महत्व: ओजोन परत जीवों को सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाती है और समतापमंडल में विमान यात्रा भी होती है क्योंकि यहाँ मौसम स्थिर रहता है।
3. मध्यमंडल (Mesosphere)
- ऊँचाई: लगभग 50 से 85 किलोमीटर।
- विशेषताएँ: इस परत में तापमान ऊँचाई के साथ कम होता है।
- महत्व: मध्यमंडल पृथ्वी को उल्का पिंडों से बचाता है, क्योंकि यहाँ वायुगतिकीय घर्षण के कारण अधिकांश उल्काएँ जल जाती हैं।
4. तापमंडल (Thermosphere)
- ऊँचाई: लगभग 85 से 600 किलोमीटर।
- विशेषताएँ: इस परत में तापमान ऊँचाई के साथ तेजी से बढ़ता है। तापमंडल में आयनीकरण की प्रक्रिया होती है, जिससे आभामंडल (Auroras) उत्पन्न होते हैं।
- महत्व: इस परत में रेडियो तरंगों का परावर्तन होता है, जो संचार के लिये उपयोगी है। यहाँ अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) भी स्थित है।
5. बहिर्मंडल (Exosphere)
- ऊँचाई: लगभग 600 किलोमीटर से लेकर अंतरिक्ष तक फैला है।
- विशेषताएँ: यह वायुमंडल की सबसे बाहरी परत है और यहाँ गैसों का घनत्व बहुत कम होता है।
- महत्व: बाह्य वायुमंडल से आगे पृथ्वी का वायुमंडल धीरे-धीरे अंतरिक्ष में परिवर्तित होता है।
वायुमंडल की ये परतें न केवल पृथ्वी के मौसम और जलवायु में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, बल्कि ये पृथ्वी पर जीवन के लिये आवश्यक सुरक्षा और संतुलन भी प्रदान करती हैं। वायुमंडल की संरचना और उसकी विविध परतें हमें इस बात का संकेत देती हैं कि कैसे हमारा ग्रह बाहरी अंतरिक्ष के प्रभावों से सुरक्षित रहता है और कैसे यह जीवन के लिये उपयुक्त पर्यावरण प्रदान करता है।
ग्रह, उपग्रह, और आकाशीय घटनाएँ
- नग्न आँखों से देखे जाने योग्य ग्रह :
- बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, और शनि ग्रह नंगी आँखों से देखे जा सकते हैं।
- उपग्रह विहीन ग्रह :
- बुध और शुक्र ग्रहों के कोई उपग्रह नहीं हैं।
- विपरीत दिशा में परिक्रमा करने वाले ग्रह :
- शुक्र और अरुण ग्रह अन्य ग्रहों की तुलना में विपरीत दिशा (पूर्व से पश्चिम) में परिक्रमा करते हैं।
- पृथ्वी से निकटतम ग्रह :
- शुक्र पृथ्वी से सबसे नजदीक ग्रह है।
- सबसे तेज़ घूर्णन वाला ग्रह :
- बृहस्पति अपने अक्ष पर सबसे कम समय में एक पूर्ण चक्कर लगाता है।
- सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह :
- बृहस्पति सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है।
- लाल ग्रह :
- मंगल को "लाल ग्रह" भी कहा जाता है।
- पृथ्वी का आकार :
- पृथ्वी के आकार को Geoid कहा जाता है।
- पृथ्वी पर जीवन :
- पृथ्वी एकमात्र ज्ञात ग्रह है जिस पर जीवन मौजूद है। जल की उपस्थिति के कारण इसे "नीला ग्रह" भी कहते हैं।
- अरुण - हरा ग्रह :
- अरुण को "हरा ग्रह" और अधिक अक्षीय झुकाव के कारण "लेट हुआ ग्रह" भी कहते हैं।
- बौना ग्रह - प्लूटो :
- प्लूटो को 2006 से बौने ग्रह का दर्जा प्राप्त है।
- सुपरमून :
- सुपरमून तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और अधिक बड़ा और चमकीला दिखाई देता है।
- ब्लू मून :
- एक कैलेंडर माह में जब दो पूर्णिमा होती है, तो दूसरी पूर्णिमा का चाँद ब्लू मून कहलाता है।
- ब्लड मून :
- लगातार चार पूर्ण चंद्रग्रहणों को ब्लड मून कहा जाता है।
- गोल्डीलॉक्स ज़ोन :
- गोल्डीलॉक्स ज़ोन उस क्षेत्र को कहते हैं जहाँ एक तारे के चारों ओर जीवन के लिए उपयुक्त तापमान होता है, जिससे पानी तरल रूप में मौजूद रह सकता है।
- धूमकेतु :
- धूमकेतु सौर मंडल के छोटे पत्थर, धूल, और गैस के बने पिंड होते हैं जो चमकदार पूंछ के साथ दिखाई देते हैं। हैली एक प्रसिद्ध धूमकेतु है।
- उल्का :
- उल्का आकाश में चमकदार धारी के रूप में दिखाई देते हैं, जो क्षणभर के लिए दमकते हैं और फिर लुप्त हो जाते हैं। इन्हें "टूटता तारा" भी कहते हैं।
विभिन्न वैज्ञानिक और तकनीकी इकाइयों का परिचय
- दाब (Pressure)
- मापन इकाई : पास्कल (Pa)
- विवरण :
- पास्कल दाब की मापन इकाई है जो एक न्यूटन प्रति वर्ग मीटर के बराबर होती है।
- यह तरल और गैसीय दाब को मापने में उपयोग की जाती है।
- ध्वनि की प्रबलता (Sound Intensity)
- मापन इकाई : डेसीबल (dB)
- विवरण :
- डेसीबल ध्वनि की तीव्रता को मापने की इकाई है।
- इसे ध्वनि की तुलना एक संदर्भ स्तर से करने के लिये प्रयोग किया जाता है, जो आमतौर पर 0 dB होता है।
- प्रकाश की तरंगदैर्ध्य (Wavelength of Light)
- मापन इकाई : एंग्सट्राम (Å)
- विवरण :
- एंग्सट्राम प्रकाश और सूक्ष्म तरंगों की तरंगदैर्ध्य को मापने की एक छोटी इकाई है।
- एक एंग्सट्राम 10⁻¹⁰ मीटर के बराबर होता है।
- नौसंचालन में दूरी (Navigational Distance)
- मापन इकाई : नॉटिकल मील (NM)
- विवरण :
- नॉटिकल मील समुद्री और हवाई यात्रा में दूरी मापने की इकाई है।
- यह पृथ्वी की सतह पर एक मिनट के आर्क के बराबर होती है, जो लगभग 1.852 किलोमीटर होती है।
- ऊष्मा (Heat)
- मापन इकाई : कैलोरी (Cal)
- विवरण :
- कैलोरी ऊष्मा ऊर्जा की मापन इकाई है, जो 1 ग्राम पानी के तापमान को 1°C बढ़ाने के लिये आवश्यक ऊर्जा की मात्रा दर्शाती है।
- विद्युत विभवांतर (Electric Potential Difference)
- मापन इकाई : वोल्ट (V)
- विवरण :
- वोल्ट विद्युत विभवांतर की मापन इकाई है, जो दो बिंदुओं के बीच विभवांतर को दर्शाती है।
- तापमान (Temperature)
- मापन इकाई : सेल्सियस (°C)
- विवरण :
- सेल्सियस तापमान मापने की सामान्य इकाई है, जिसका उपयोग मौसम विज्ञान और दैनिक जीवन में किया जाता है।
- आवृत्ति (Frequency)
- मापन इकाई : हर्ट्ज (Hz)
- विवरण :
- हर्ट्ज आवृत्ति की मापन इकाई है, जो एक सेकंड में घटने वाली घटनाओं की संख्या को दर्शाती है।
- जल का बहाव (Water Flow)
- मापन इकाई : क्यूसेक (Cusec)
- विवरण :
- क्यूसेक जल के प्रवाह की माप है, जो प्रति सेकंड क्यूबिक फीट के रूप में व्यक्त की जाती है।
- ओजोन परत की मोटाई (Thickness of Ozone Layer)
- मापन इकाई : डॉब्सन इकाई (Du)
- विवरण :
- डॉब्सन इकाई ओजोन की सांद्रता को मापने की इकाई है।
- ज्योति फ्लक्स (Luminous Flux)
- मापन इकाई : ल्यूमेन (lm)
- विवरण :
- ल्यूमेन प्रकाश स्रोत से उत्पन्न कुल दृश्य प्रकाश की मात्रा को मापता है।
- चुंबकीय प्रेरण (Magnetic Induction)
- मापन इकाई : टेस्ला (T)
- विवरण :
- टेस्ला चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता की मापन इकाई है।
- समतल कोण (Plane Angle)
- मापन इकाई : रेडियन (rad)
- विवरण :
- रेडियन कोण मापने की इकाई है, जिसे वृत्त के केंद्र में समकोण के रूप में परिभाषित किया गया है।
- घन कोण (Solid Angle)
- मापन इकाई : स्टेरेडियन (Sr)
- विवरण :
- स्टेरेडियन त्रिविमीय अंतरिक्ष में कोण मापने की इकाई है।
ISRO के प्रमुख केंद्र और उनके कार्य
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भारत में अंतरिक्ष मिशनों को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिये विभिन्न संस्थानों के माध्यम से शोध कार्यों, प्रक्षेपण यानों, उपग्रहों एवं अन्य संबंधित तकनीकों का निर्माण एवं विकास तथा उनका संचालन करता है। इसरो(ISRO) से संबद्ध प्रमुख संस्थान और उनके स्थान एवं कार्य निम्नलिखित हैं :
- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC)
- स्थान : तिरुवनंतपुरम, केरल
- कार्य : रॉकेट एवं प्रक्षेपण यान का विकास और परीक्षण।
- सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC)
- स्थान : श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश
- कार्य : उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र, उपग्रहों के प्रक्षेपण का प्रबंधन।
- इसरो उपग्रह केंद्र (ISAC)
- स्थान : बेंगलुरु, कर्नाटक
- कार्य : उपग्रहों का विकास और निर्माण।
- लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (LPSC)
- स्थान : वलियमला, (तिरुवनंतपुरम्, केरल) तथा बंगलूरू (कर्नाटक)
- कार्य : तरल प्रणोदक इंजनों का विकास और परीक्षण।
- स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (SAC)
- स्थान : अहमदाबाद, गुजरात
- कार्य : अंतरिक्ष अनुप्रयोगों और मौसम विज्ञान से संबंधित पेलोड का विकास, जैसे संचार और रिमोट सेंसिंग।
- इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (ISTRAC)
- स्थान : बेंगलुरु, कर्नाटक
- कार्य : उपग्रह ट्रैकिंग और कमांड ऑपरेशन्स।
- इसरो नोदन कॉम्प्लेक्स (IPRC)
- स्थान : महेंद्रगिरी, तमिलनाडु
- कार्य : उपग्रहों एवं प्रक्षेपणयान के लिये तरल प्रणोदन (Liquid Propulsion) प्रणाली के लिये शोध।
- उत्तर-पूर्व अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (NE-SAC)
- स्थान : री भोई जिला, मेघालय
- कार्य : उत्तर-पूर्वी भारत के लिये अंतरिक्ष आधारित अनुप्रयोग।
- राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC)
- स्थान : हैदराबाद, तेलंगाना
- कार्य : रिमोट सेंसिंग डेटा का संग्रहण और विश्लेषण।
- एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ACL)
- स्थान : बेंगलुरु, कर्नाटक
- कार्य : इसरो की वाणिज्यिक और विपणन शाखा के रूप में, एंट्रिक्स दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को अंतरिक्ष उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करती है।
ये संस्थान ISRO के विभिन्न प्रोजेक्ट्स और मिशनों को सफलतापूर्वक संपन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अपवर्तन, प्रकीर्णन और उनके अनुप्रयोग
प्रिज़्म एक ज्यामितीय ठोस है जिसकी सटीक कोण और सपाट सतहें होती हैं, जिसका उपयोग प्रकाश का विश्लेषण और परावर्तन के लिये किया जाता है। यह सफेद प्रकाश को विभिन्न तरंगदैर्ध्यों में मोड़कर उसके घटक रंगों या स्पेक्ट्रम में विभाजित करता है। छोटी तरंगदैर्ध्य (बैंगनी) अधिक मोड़ी जाती हैं, जबकि लंबी तरंगदैर्ध्य (लाल) कम मोड़ी जाती हैं। प्रिज़्म स्पेक्ट्रोस्कोप में प्रमुख घटक होते हैं, जो प्रकाश का विश्लेषण करके पदार्थों के गुणों की पहचान करते हैं।
- प्रिज़्म में प्रकाश का संचलन और रंगों पर प्रभाव
- प्रकाश का संचलन :
- जब प्रकाश प्रिज़्म की पारदर्शी सतह से प्रवेश करता है, तो उसकी गति और दिशा में परिवर्तन होता है, जिसे अपवर्तन (Refraction) कहा जाता है।
- प्रिज़्म के अंदर प्रकाश विभिन्न कोणों पर मुड़ता है और अंत में दूसरी पारदर्शी सतह से बाहर निकलता है।
- अपवर्तन के कारण प्रकाश की तरंगदैर्ध्य (wavelength) अलग-अलग होती है, जिससे प्रकाश के विभिन्न रंग अलग-अलग कोणों पर फैलते हैं।
- रंगों पर प्रभाव :
- जब सफेद प्रकाश (जो सभी रंगों का मिश्रण होता है) प्रिज़्म से गुजरता है, तो प्रकाश के विभिन्न रंग अलग-अलग कोणों पर विचलित होते हैं।
- यह प्रभाव प्रकीर्णन (Dispersion) कहलाता है। उदाहरण के लिये, सूर्य की रोशनी प्रिज़्म से गुजरने पर इंद्रधनुषी रंगों में विभाजित हो जाती है।
- प्रकाश का संचलन :
- प्रकाश के विभिन्न रंगों की अपवर्तन श्रृंखला
प्रिज़्म में प्रकाश के विभिन्न रंगों का अपवर्तन विभिन्न तरंगदैर्ध्यों के कारण भिन्न-भिन्न होता है। प्रत्येक रंग की तरंगदैर्ध्य और प्रिज़्म के माध्यम से उसकी अपवर्तन क्षमता अलग होती है :- लाल (Red) :
- तरंगदैर्ध्य : लगभग 620-750 नैनोमीटर।
- अपवर्तन : न्यूनतम, इसलिये यह सबसे कम कोण पर मुड़ता है।
- नारंगी (Orange) :
- तरंगदैर्ध्य : लगभग 590-620 नैनोमीटर।
- अपवर्तन : लाल से थोड़ा अधिक, लेकिन अभी भी कम।
- पीला (Yellow) :
- तरंगदैर्ध्य : लगभग 570-590 नैनोमीटर।
- अपवर्तन : नारंगी से अधिक।
- हरा (Green) :
- तरंगदैर्ध्य : लगभग 495-570 नैनोमीटर।
- अपवर्तन : पीले से अधिक।
- नीला (Blue) :
- तरंगदैर्ध्य : लगभग 450-495 नैनोमीटर।
- अपवर्तन : हरे से अधिक।
- इंडिगो (Indigo) :
- तरंगदैर्ध्य : लगभग 425-450 नैनोमीटर।
- अपवर्तन : नीले से थोड़ा अधिक।
- बैंगनी (Violet) :
- तरंगदैर्ध्य : लगभग 380-425 नैनोमीटर।
- अपवर्तन : अधिकतम, इसलिये यह सबसे अधिक कोण पर मुड़ता है।
- लाल (Red) :
- प्रिज़्म के अनुप्रयोग
- प्रकाश विज्ञान :
- प्रिज़्म का प्रयोग : प्रकाश के वर्णक्रम को अलग करने के लिये।
- उपयोग : सफेद प्रकाश को विभिन्न रंगों में विभाजित करने के लिये, जैसे इंद्रधनुष निर्माण में।
- आर्किटेक्चर और निर्माण :
- प्रिज़्म का प्रयोग : वास्तुकला में संरचनात्मक डिज़ाइन और सजावट के लिये।
- उपयोग : अनूठे डिज़ाइन और आकार बनाने में।
- शिक्षा और प्रयोगशाला :
- प्रिज़्म का प्रयोग : विज्ञान प्रयोगशालाओं में प्रकाश के गुणों का अध्ययन करने के लिये।
- उपयोग : प्रकाश और भौतिकी के सिद्धांतों को समझने में।
- ऑप्टिकल डिवाइसेज़ :
- प्रिज़्म का प्रयोग : लेंस और प्रिज़्म आधारित दृष्टि उपकरणों में।
- उपयोग : दूरबीन और अन्य ऑप्टिकल उपकरणों में चित्रण को सुधारने के लिये।
- पदार्थ विज्ञान :
- प्रिज़्म का प्रयोग : विश्लेषणात्मक उपकरणों में, जैसे कि प्रिज़्म रिफ्रेक्टोमीटर।
- उपयोग : पदार्थों के गुणों और उनके प्रकाशीय गुणों की जांच के लिये।
- प्रकाश विज्ञान :
प्रिज़्म का अध्ययन और उपयोग भौतिकी, गणित, और इंजीनियरिंग में व्यापक है, और यह विभिन्न विज्ञान और तकनीकी अनुप्रयोगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- ऑर्नीथोलॉजी (Ornithology) : पक्षियों का अध्ययन।
- एंटोमोलॉजी (Entomology) : कीड़ों का अध्ययन।
- हर्पेटोलॉजी (Herpetology) : सरीसृप और उभयचर का अध्ययन।
- इथियोलॉजी (Ichthyology) : मछलियों का अध्ययन।
- मैमलॉजी (Mammalogy) : स्तनधारियों का अध्ययन।
- वनस्पति विज्ञान (Botany) : पौधों का अध्ययन।
- माइकोलॉजी (Mycology) : कवकों का अध्ययन।
- पैलियोन्टोलॉजी (Paleontology) : जीवाश्म और प्राचीन जीवों का अध्ययन।
- प्राणी विज्ञान (Zoology) : जानवरों का सामान्य अध्ययन।
- पारिस्थितिकी (Ecology) : जीवों और उनके पर्यावरण के बीच की अंतःक्रियाओं का अध्ययन।
- पैरासिटोलॉजी (Parasitology) : परजीवियों और उनके मेजबानों का अध्ययन।
- सूक्ष्म जीवविज्ञान (Microbiology) : सूक्ष्म जीवों का अध्ययन।
- समुद्री जीवविज्ञान (Marine Biology) : समुद्री जीवों और पारिस्थितिक तंत्रों का अध्ययन।
- एथोलॉजी (Ethology) : जानवरों के व्यवहार का अध्ययन।
- हेल्मिंथोलॉजी (Helminthology) : परजीवी कृमियों का अध्ययन।
प्रमुख उद्योगों का समग्र अवलोकन
बिहार का औद्योगिक क्षेत्र तेजी से विकास कर रहा है, जिसमें प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSUs) और फैक्ट्रियां अहम भूमिका निभा रही हैं। यहां बिहार के प्रमुख उद्योगों, उनके स्थानों, जिलों और संबंधित प्रमुख PSUs और फैक्ट्रियों का विस्तृत विवरण दिया गया है :
- कृषि और खाद्य प्रसंस्करण
- पटना : राजधानी शहर में कई खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ हैं, जिनमें चावल मिल और आटा मिल शामिल हैं। प्रमुख फैक्ट्रियों में पटना डेयरी प्रोजेक्ट, जो बिहार राज्य दुग्ध सहकारी संघ (COMFED) का हिस्सा है, शामिल है।
- मुजफ्फरपुर : अपने लीची उत्पादन के लिये प्रसिद्ध, इस जिले में कई लीची प्रसंस्करण और पैकेजिंग प्लांट हैं। यहां सुधा डेयरी प्लांट, जो COMFED का हिस्सा है, भी स्थित है।
- भागलपुर : अपने रेशम उद्योग के अलावा, भागलपुर में चावल, मक्का और दालों से संबंधित विभिन्न खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ हैं।
- वस्त्र और हथकरघा
- भागलपुर : "सिल्क सिटी" के रूप में जाना जाने वाला भागलपुर अपने रेशम बुनाई उद्योग के लिये प्रसिद्ध है। प्रमुख इकाइयों में भागलपुर हथकरघा क्लस्टर और भागलपुर सिल्क सिटी मिल्स शामिल हैं।
- गया : इस जिले में महत्वपूर्ण हथकरघा उद्योग है, जो पारंपरिक कपड़े और वस्त्र तैयार करता है। गया वस्त्र क्लस्टर यहां की प्रमुख इकाई है।
- चमड़ा उद्योग
- मुजफ्फरपुर : इस जिले में कई टेनरियां और चमड़ा प्रसंस्करण इकाइयाँ हैं। मुजफ्फरपुर लेदर क्लस्टर इन उद्योगों को सहायता प्रदान करता है।
- सीमेंट उद्योग
- रोहतास : बनजारी में डालमिया सीमेंट भारत लिमिटेड प्लांट है, जो राज्य की प्रमुख सीमेंट उत्पादन इकाइयों में से एक है।
- चीनी उद्योग
- पश्चिम चंपारण : इस जिले में कई चीनी मिलें हैं, जिनमें हरिनगर शुगर मिल्स लिमिटेड शामिल हैं। अन्य उल्लेखनीय मिलों में मजौलिया शुगर इंडस्ट्रीज और नरकटियागंज शुगर मिल्स शामिल हैं।
- पूर्वी चंपारण : मोतीलाल नेहरू शुगर मिल और अन्य छोटी चीनी प्रसंस्करण इकाइयाँ यहां स्थित हैं।
- ऊर्जा
- कैमूर : इस जिले में कैमूर थर्मल पावर स्टेशन है, जो राज्य की विद्युत आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
- बरौनी (बेगूसराय) : बिहार राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड (BSPGCL) द्वारा संचालित बरौनी थर्मल पावर स्टेशन, क्षेत्र को बिजली प्रदान करने वाला प्रमुख पावर प्लांट है।
- ऑटोमोबाइल और विनिर्माण
- पटना : राजधानी शहर में कई छोटे और मध्यम उद्यम (SMEs) हैं, जो ऑटोमोबाइल पार्ट्स निर्माण और असेंबली में लगे हुए हैं। प्रमुख कंपनियों में बिहार ऑटो स्पेयर्स और पटना टूल्स शामिल हैं।
- रसायन और उर्वरक उद्योग
- बरौनी (बेगूसराय) : इस जिले में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) द्वारा संचालित बरौनी रिफाइनरी स्थित है। रिफाइनरी में एक पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स भी शामिल है। इसके अलावा, बरौनी उर्वरक संयंत्र, जो हिंदुस्तान उर्वरक कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HFCL) द्वारा संचालित है, रसायन और उर्वरक उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
- आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स
- पटना : शहर का औद्योगिक विकास आईटी क्षेत्र को भी शामिल करता है, जिसमें विभिन्न आईटी पार्क और सॉफ्टवेयर कंपनियां अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। आगामी इलेक्ट्रॉनिक्स सिटी परियोजना का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना है।
- पर्यटन और आतिथ्य
- राजगीर (नालंदा) : अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिये जाना जाता है, राजगीर में कई होटल, रिसॉर्ट और पर्यटन से संबंधित व्यवसाय हैं। प्रमुख आतिथ्य श्रृंखलाओं में बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम (BSTDC) द्वारा संचालित होटल शामिल हैं।
- बोधगया (गया) : बौद्धों के लिये एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में, बोधगया में एक समृद्ध आतिथ्य उद्योग है। उल्लेखनीय होटलों में होटल बोधगया रीजेंसी और होटल सुजाता शामिल हैं, साथ ही BSTDC के तहत विभिन्न प्रतिष्ठान हैं।
ये उद्योग, सार्वजनिक और निजी दोनों उपक्रमों द्वारा संचालित, बिहार की आर्थिक वृद्धि के लिये महत्वपूर्ण हैं। राज्य सरकार ने निवेश को आकर्षित करने और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न नीतियों और पहलों को लागू किया है, जिससे क्षेत्र में निरंतर आर्थिक प्रगति सुनिश्चित हो सके।
- साधारण विधेयकों के संबंध में
- जब कोई विधेयक अधिनियम बनाने के लिये राज्यपाल के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है तो अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास निम्नलिखित विकल्प होते हैं-
- वह विधेयक को स्वीकृति देने की घोषणा कर सकता है।
- वह विधेयक पर स्वीकृति रोक सकता है।
- वह विधेयक को विधानमंडल को पुनर्विचार के लिये भेज सकता है। यदि विधानमंडल उस विधेयक को राज्यपाल द्वारा सुझाए गए संशोधनों के साथ या उनके बिना पुन: पारित कर देता है तो राज्यपाल को उसे स्वीकृति देनी पड़ती है।
- अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिये आरक्षित भी रख सकता है। इसकी स्वीकृति के लिये कोई समय-सीमा निर्दिष्ट नहीं है। इस आरक्षित विधेयक के मामले में राष्ट्रपति राज्यपाल को निर्देश देकर विधेयक को (धन विधेयक को छोड़कर) पुनर्विचार हेतु विधायिका को लौटा सकता है, लेकिन यदि विधायिका पुन: विधेयक को संशोधन के साथ या संशोधन बिना राष्ट्रपति को भेजती है तो भी राष्ट्रपति अनुमति देने के लिये बाध्य नहीं होगा।
- यदि राज्यपाल की राय में कोई ऐसा विधेयक जिसके विधि बन जाने पर वह संविधान में परिकल्पित उच्च न्यायालय की शक्तियों में कमी कर देगा तो ऐसे विधेयक को राज्यपाल, राष्ट्रपति के लिये अनिवार्य रूप से आरक्षित रखेगा।
- अनुच्छेद-200 के तहत आरक्षित विधेयक पर राष्ट्रपति द्वारा अनुमति देने या अनुमति रोक देने की घोषणा का वर्णन अनुच्छेद-201 में किया गया है।
- धन विधेयकों के संबंध में
- वह विधेयक को स्वीकृति देने की घोषणा कर सकता है, जिससे वह अधिनियम बन जाता है। प्राय: वह स्वीकृति ही देता है क्योंकि विधानसभा में धन विधेयक पेश किये जाने से पहले उसकी पूर्व सहमति ली जा चुकी होती है या फिर वह धन विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित कर सकता है।
- राज्यपाल की वित्तीय शक्तियाँ व अध्यादेश की शक्तियाँ (अनु. 213) राज्य स्तर पर लगभग वे ही हैं, जो केंद्र स्तर पर राष्ट्रपति को प्राप्त हैं।
- विवेकाधीन शक्तियाँ
- व्यक्त रूप में राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ-
- किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना। (अनुच्छेद 200)
- राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करना।
- अतिरिक्त प्रभार की स्थिति में पड़ोसी केंद्र शासित राज्य में बतौर प्रशासक के रूप में कार्य करते समय शक्तियाँ।
- असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के राज्यपाल द्वारा खनिज उत्पादन की रॉयल्टी के रूप में जनजातीय ज़िला परिषद् को देय राशि का निर्धारण।
- राज्य के प्रशासनिक मामलों में मुख्यमंत्री से जानकारी प्राप्त करना।
नोट: 104 वें संविधान संशोधन अधिनियम (126 वाँ संविधान संशोधन विधेयक), 2019 के द्वारा लोकसभा और राज्य की विधान सभाओं में नामनिर्देशन द्वारा आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्रतिनिधित्व संबंधी प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।
‘राज्यपाल’ राज्य विधानमंडल का अभिन्न अंग है, राज्य की कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान है तथा केंद्र सरकार का प्रतिनिधि भी है। संविधान के अनुच्छेद 155 के अंतर्गत राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
- ‘7वें संशोधन, 1956’ के बाद एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल बनाया जा सकता है।
राज्यपाल नियुक्त होने के लिये अर्हताएँ
कोई व्यक्ति राज्यपाल बनने के लिये तभी पात्र होगा, अगर वह-
(i) भारत का नागरिक है;
(ii) उसने 35 वर्ष की आयु पूरी कर ली है।
राज्यपाल पद के लिये शर्तें
- उस व्यक्ति को संसद के किसी सदन या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होना चाहिये। यदि सदन का कोई सदस्य राज्यपाल नियुक्त होता है तो सदन में उसका स्थान पद ग्रहण की तारीख से रिक्त हो जाएगा।
- राज्यपाल पद पर आसीन व्यक्ति लाभ का कोई पद धारण नहीं करेगा।
पदावधि (Term of office)
अनुच्छेद-156 में राज्यपाल की पदावधि से संबंधित उपबंध दिये गए हैं। इनमें 3 बातें बताई गई हैं-
- राज्यपाल राष्ट्रपति के ‘प्रसादपर्यंत’ अपना पद धारण करेगा
- वह राष्ट्रपति को संबोधित कर त्याग पत्र द्वारा अपना पद छोड़ सकेगा
- उपर्युक्त दोनों उपबंधों के अधीन रहते हुए वह 5 वर्षों की अवधि तक अपने पद पर रहेगा।
अंत में यह भी कहा गया है कि वह अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद धारण करता रहेगा, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले। इस उपबंध का प्रयोजन यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी कारण से राज्यपाल का पद खाली न हो।
- वेतन, सुविधाएँ तथा विशेषाधिकार
- अनुच्छेद-158 के अनुसार- राज्यपाल को वह वेतन, भत्ते और विशेषाधिकार प्राप्त होंगे, जो संसद विधि द्वारा निर्धारित करे।
- अगर किसी व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है तो वे राज्य राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित अनुपात के अनुसार उसके वेतन व भत्तों का खर्च वहन करेंगे।
- राज्यपाल के वेतन और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किये जा सकेंगे।
- राज्यपाल अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और अपने कर्तव्यों के पालन के लिये किये गए किसी कार्य के लिये किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा।
- अपनी पदावधि के दौरान राज्यपाल को आपराधिक मामले की सुनवाई से छूट प्राप्त होगी। इस दौरान न तो ऐसी कार्रवाई शुरू की जा सकेगी और न ही (यदि पहले ही शुरू हो चुकी थी तो) चालू रखी जा सकेगी।
- कार्यकाल के दौरान राज्यपाल की गिरफ्तारी या कारावास के लिये आदेश देने की अधिकारिता किसी भी न्यायालय को नहीं होगी।
- विशेष परिस्थितियों में राज्यपाल को 2 माह की अग्रिम नोटिस देकर उसके खिलाफ सिविल मामलों (निजी कृत्य) की न्यायालय में सुनवाई की जा सकती है।
भारत में कई प्रमुख बाँध हैं जो सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, जल आपूर्ति और बाढ़ नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहाँ भारत के प्रमुख बाँधों की सूची दी गई है :
- भाखड़ा नांगल बाँध
- स्थान : सतलुज नदी, हिमाचल प्रदेश और पंजाब
- ऊँचाई : 226 मीटर
- उद्देश्य : मुख्य रूप से सिंचाई और जल विद्युत उत्पादन। यह विश्व के सबसे ऊँचे गुरुत्वाकर्षण बाँधों में से एक है और उत्तरी भारत में जल आपूर्ति और बिजली का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- टिहरी बाँध
- स्थान : भागीरथी नदी, उत्तराखंड
- ऊँचाई : 260.5 मीटर
- उद्देश्य : बहुउद्देशीय, जिसमें सिंचाई, नगर जल आपूर्ति और 1,000 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन शामिल है। यह भारत का सबसे ऊँचा बाँध और विश्व के सबसे ऊँचे बाँधों में से एक है।
- सरदार सरोवर बाँध
- स्थान : नर्मदा नदी, गुजरात
- ऊँचाई : 163 मीटर
- उद्देश्य : सिंचाई, पेयजल और जल विद्युत उत्पादन। यह चार राज्यों : गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान को जल आपूर्ति करता है।
- नागार्जुन सागर बाँध
- स्थान: कृष्णा नदी, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना
- ऊँचाई: 124 मीटर
- उद्देश्य: भारत के सबसे बड़े और प्रारंभिक बहुउद्देशीय परियोजनाओं में से एक, यह सिंचाई, जल आपूर्ति और जल विद्युत उत्पादन प्रदान करता है।
- हीराकुंड बाँध
- स्थान : महानदी नदी, ओडिशा
- ऊँचाई : 60.96 मीटर
- उद्देश्य : बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और जल विद्युत उत्पादन। यह विश्व के सबसे लंबे बाँधों में से एक है, जिसकी लंबाई लगभग 25.8 किलोमीटर है।
- इंदिरा सागर बाँध
- स्थान : नर्मदा नदी, मध्य प्रदेश
- ऊँचाई : 92 मीटर
- उद्देश्य : मुख्य रूप से सिंचाई और 1,000 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन। इसमें भारत का सबसे बड़ा जलाशय है।
- भवानीसागर बाँध
- स्थान : भवानी नदी, तमिलनाडु
- ऊँचाई : 32.5 मीटर
- उद्देश्य : सिंचाई और जल आपूर्ति। यह देश के सबसे बड़े मिट्टी के बाँधों में से एक है।
- रिहंद बाँध
- स्थान : रिहंद नदी (सोन नदी की सहायक नदी), उत्तर प्रदेश
- ऊँचाई : 91.44 मीटर
- उद्देश्य : विद्युत उत्पादन और सिंचाई। यह गोविंद बल्लभ पंत सागर नामक भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील बनाता है।
- मेट्टूर बाँध
- स्थान : कावेरी नदी, तमिलनाडु
- ऊँचाई : 120 फीट
- उद्देश्य : सिंचाई, जल विद्युत और जल आपूर्ति। यह क्षेत्र की कृषि अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- कृष्णराज सागर (KRS) बाँध
- स्थान: कावेरी नदी, कर्नाटक
- ऊँचाई: 39.8 मीटर
- उद्देश्य: सिंचाई, जल आपूर्ति और जल विद्युत। यह एक बड़ा जलाशय बनाता है जो राज्य के लिये जल का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- तुंगभद्रा बाँध
- स्थान: तुंगभद्रा नदी, कर्नाटक
- ऊँचाई: 49.5 मीटर
- उद्देश्य: सिंचाई, जल विद्युत और बाढ़ नियंत्रण। यह क्षेत्र में कृषि गतिविधियों का समर्थन करता है।
- इडुक्की बाँध
- स्थान : पेरियार नदी, केरल
- ऊँचाई : 168.91 मीटर
- उद्देश्य : जल विद्युत उत्पादन। यह एशिया के सबसे ऊँचे आर्क बाँधों में से एक है और केरल राज्य के लिये एक महत्त्वपूर्ण बिजली स्रोत है।
ये बाँध भारत के कृषि, औद्योगिक और आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, जिससे जल, विद्युत की आपूर्ति और बाढ़ व सूखे की रोकथाम में मदद मिलती है।
1857 के विद्रोह में विभिन्न क्षेत्रों से कई प्रमुख नेता उभर कर सामने आए। यह विद्रोह भारत के अलग-अलग हिस्सों में फैला हुआ था और विभिन्न नेताओं ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहाँ 1857 के विद्रोह के प्रमुख नेता और उनके क्षेत्र का विवरण दिया गया है:
- बहादुर शाह जफ़र – दिल्ली :
- बहादुर शाह जफ़र मुगल सम्राट थे और विद्रोह के दौरान उन्हें विद्रोहियों ने अपना नेतृत्व स्वीकार किया था। वह विद्रोह का प्रतीक बन गए थे।
- रानी लक्ष्मीबाई – झाँसी :
- रानी लक्ष्मीबाई झाँसी की रानी थीं और उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी।
- नाना साहब – कानपुर :
- नाना साहब (धोंडू पंत) पेशवा बाजीराव II के दत्तक पुत्र थे। उन्होंने कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया और अंग्रेजों के खिलाफ महत्त्वपूर्ण लड़ाई लड़ी।
- तात्या टोपे - कानपुर और अन्य क्षेत्र :
- तात्या टोपे स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे और उन्होंने नाना साहब के साथ मिलकर कानपुर और अन्य क्षेत्रों में विद्रोह का संचालन किया।
- बेगम हजरत महल - अवध (लखनऊ) :
- बेगम हजरत महल नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी थीं। उन्होंने लखनऊ में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया।
- कुंवर सिंह – बिहार :
- कुंवर सिंह बिहार के जगदीशपुर के एक जमींदार थे। उन्होंने अपने क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया और महत्त्वपूर्ण युद्ध लड़े।
- अजीमुल्ला खान – कानपुर :
- अजीमुल्ला खान नाना साहब के सलाहकार थे और उन्होंने विद्रोह के दौरान महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- मौलवी अहमदुल्लाह शाह – फैजाबाद :
- मौलवी अहमदुल्लाह शाह फैजाबाद के एक धार्मिक नेता थे और उन्होंने अवध क्षेत्र में विद्रोह का नेतृत्व किया।
- खान बहादुर खान – बरेली :
- खान बहादुर खान रोहिलखंड (बरेली) के एक नेता थे। उन्होंने अपने क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया।
1857 का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है और इन नेताओं ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है, जिसे 2005 में प्रारंभ किया गया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना और टिकाऊ ग्रामीण विकास को प्रोत्साहित करना है। इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को साल में 100 दिनों का रोजगार देने की गारंटी दी जाती है।
- मनरेगा का मुख्य लक्ष्य ग्रामीण गरीबों को रोजगार प्रदान करना है ताकि वे अपने जीवनयापन के लिये आवश्यक धन कमा सकें। इस योजना के तहत किये जाने वाले कार्यों में जल संरक्षण, सूखा प्रबंधन, भूमि विकास, बागवानी, सड़कों का निर्माण, और अन्य ग्रामीण अधोसंरचना का विकास शामिल है। इससे न केवल ग्रामीणों को रोजगार मिलता है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में आवश्यक सुविधाओं का भी विकास होता है।
- इस योजना के तहत रोजगार पाने के लिये ग्रामीण परिवारों को ग्राम पंचायत में आवेदन करना होता है। यदि 15 दिनों के भीतर उन्हें काम नहीं मिलता है, तो सरकार उन्हें बेरोजगारी भत्ता प्रदान करती है। इस प्रकार, यह योजना ग्रामीण परिवारों के लिये एक सुरक्षा कवच का काम करती है।
- मनरेगा की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी पारदर्शिता और जवाबदेही है। काम की निगरानी के लिये ग्राम सभाओं का आयोजन किया जाता है, जिससे योजनाओं के कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार कम होता है। इसके अलावा, मनरेगा की सभी जानकारी ऑनलाइन पोर्टल पर उपलब्ध होती है, जिससे कोई भी व्यक्ति इसकी प्रगति को देख सकता है।
- मनरेगा ने ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को भी बढ़ावा दिया है। इस योजना के अंतर्गत, महिलाओं को रोजगार का अधिकार दिया गया है और वे इसका सक्रिय रूप से लाभ उठा रही हैं। इससे महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है और उन्हें समाज में एक नया स्थान मिला है।
- हालांकि, मनरेगा के क्रियान्वयन में कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जैसे कि भ्रष्टाचार, भुगतान में देरी, और कुछ क्षेत्रों में योजना का सही तरीके से लागू न होना। फिर भी, सरकार लगातार इन समस्याओं के समाधान के लिये प्रयासरत है।
- कुल मिलाकर, मनरेगा ग्रामीण भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण योजना है जो न केवल आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है, बल्कि ग्रामीण विकास को भी प्रोत्साहित करती है। यह योजना गरीबों के जीवन में सुधार लाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
आहार नाल :
मानव पाचन तंत्र, जिसे जठरांत्र संबंधी मार्ग भी कहते हैं, एक 30 फीट लंबी सतत नलिका है जो निम्नलिखित भागों में विभाजित होती है- इसमें मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रासनली, आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत (कोलन), मलाशय और गुदा शामिल होते हैं।
मुखगुहा :
- यह पाचन तंत्र का पहला भाग है जिसमें जीभ, दाँत (कृंतक, रदनक, अग्रचवर्णक और चवर्ण ), लार ग्रंथियां शामिल होती हैं।
- भोजन दांतों द्वारा चबाया जाता है और यांत्रिक रूप से छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है तथा लार में एमाइलेज जैसे एंजाइम होते हैं जो कार्बोहाइड्रेट को तोड़ने में मदद करते हैं।
ग्रसनी और ग्रासनली :
- मुखगुहा से निगला हुआ भोजन ग्रसनी से होकर ग्रासनली में पहुँचता है।
- क्रामकुंचन क्रिया द्वारा भोजन ग्रासनली से होते हुए आमाशय तक पहुँचता है।
आमाशय :
- भोजन पेट में गैस्ट्रिक जूस (हाइड्रोक्लोरिक एसिड और पेप्सिन) के साथ मिल जाता है।
- प्रोटीन छोटे पेप्टाइड्स में टूट जाते हैं और मांसपेशियों के संकुचन भोजन को मथते हैं।
छोटी आंत :
- यह पाचन और पोषक तत्वों के अवशोषण के लिए मुख्य होती है।
- इसमें डुओडेनम, जेजुनम और इलियम शामिल होते हैं, जहां अग्नाशयी एंजाइम (एमाइलेज, लाइपेज, प्रोटीज) और पित्त पोषक तत्वों को और अधिक तोड़ते हैं।
बड़ी आंत :
- छोटी आंत से अपचित पदार्थ प्राप्त करती है और काइम से पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स को अवशोषित करती है।
- बैक्टीरिया कार्बोहाइड्रेट को किण्वित करती हैं, जिससे विटामिन (जैसे, विटामिन K, B विटामिन) बनते हैं।
- मल मलाशय में जमा होता है और शौच के दौरान गुदा के माध्यम से बाहर निकाला जाता है।
- महत्व :
- भोजन से आवश्यक पोषक तत्वों को निकालकर समग्र स्वास्थ्य का समर्थन करता है।
- यह ऊर्जा उत्पादन, विकास, और ऊतकों की मरम्मत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सामान्य विकार :
- गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी), पेप्टिक अल्सर, चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम (आईबीएस), कब्ज, इत्यादि आम समस्याएं हैं जो पोषण स्वास्थ्य के लिए व्यायाम, नियमित आहार, और जलयोजन के माध्यम से प्रबंधित की जा सकती हैं।
मुगल साम्राज्य, भारतीय इतिहास के सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली साम्राज्यों में से एक था, जिसकी स्थापना बाबर ने 1526 में की थी और यह मध्य 19वीं सदी तक चला। यहां सभी प्रमुख मुगल शासकों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है-
प्रारंभिक मुगल शासक
- बाबर (1526-1530):
- मुगल साम्राज्य के संस्थापक।
- पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराया।
- हुमायूँ (1530-1540, 1555-1556):
- बाबर के पुत्र, जिन्होंने को शेर शाह सूरी से हारकर साम्राज्य खो दिया, लेकिन पुनः युद्ध जीतकर साम्राज्य वापस प्राप्त किया।
- उनकी मृत्यु के बाद अकबर का उदय हुआ।
- अकबर (1556-1605):
- महान मुगल शासक, जिसने धार्मिक सहिष्णुता और महत्वपूर्ण प्रशासनिक सुधारों को लागू किया।
- साम्राज्य का व्यापक विस्तार किया और केंद्रीकृत शासन प्रणाली स्थापित की।
- जहांगीर (1605-1627):
- अकबर के पुत्र, कला और संस्कृति के संरक्षक।
- आंतरिक विद्रोहों और बाहरी चुनौतियों का सामना किया।
- शाहजहां (1628-1658):
- ताज महल के निर्माता।
- उनके शासनकाल में मुगल वास्तुकला अपने शिखर पर पहुंची।
- औरंगजेब (1658-1707):
- अंतिम शक्तिशाली मुगल शासक, विस्तारवादी नीतियों और धार्मिक रूढ़िवाद के लिये जाने जाते हैं।
- उनके शासनकाल में साम्राज्य का पतन शुरू हुआ।
उत्तरवर्ती मुगल शासक (1712-1857)
- जहांदार शाह (1712-1713):
- कमजोर व विलासी शासक।
- फर्रुखसियर द्वारा हत्या।
- फर्रुखसियर (1713-1719):
- सैयद भाइयों द्वारा सत्ता में लाया गया।
- सैयद भाइयों द्वारा हत्या।
- रफी उद-दर्जत(1719):
- कुछ महीनों के लिये शासक।
- बीमारी से मृत्यु।
- रफी उद-दौला (1719):
- कुछ महीनों के लिये शासक।
- बीमारी से मृत्यु।
- मुहम्मद शाह (1719-1748):
- कला और संस्कृति का संरक्षण।
- नादिर शाह के आक्रमण ने साम्राज्य को कमजोर किया।
- अहमद शाह बहादुर (1748-1754):
- कमजोर शासक, मराठों और अफगानों के हमले से साम्राज्य की रक्षा में असमर्थ।
- वजीर ग़ज़ी उद-दिन द्वारा अपदस्थ।
- आलमगीर II (1754-1759):
- नासिर जंग और मराठों का प्रभाव।
- हत्या।
- शाहजहाँ III (1759-1760):
- मराठों द्वारा स्थापित अल्पकालिक शासक बाद में अपदस्थ।
- शाह आलम II (1760-1806):
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का उदय।
- ब्रिटिश संरक्षकता स्वीकार।
- अकबर शाह II (1806-1837):
- ब्रिटिश प्रभाव के अधीन रहकर प्रतीकात्मक शासन।
- बहादुर शाह II (1837-1857):
- अंतिम मुगल शासक, 1857 विद्रोह का नेतृत्व।
- ब्रिटिशों द्वारा अपदस्थ, निर्वासन।
मुगल साम्राज्य का उदय और पतन एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रक्रिया थी। प्रारंभिक शासकों ने साम्राज्य की नींव रखी और इसे विस्तार किया, जबकि उत्तरवर्ती शासकों की अयोग्यता व कमजोर नेतृत्व और आंतरिक संघर्षों के कारण साम्राज्य धीरे-धीरे पतन की ओर बढ़ा। अंततः, ब्रिटिशों ने 1857 में अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह II को अपदस्थ कर मुगल साम्राज्य का अंत कर दिया।
अनुच्छेद 64 के अनुसार उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होगा। उपराष्ट्रपति राज्यसभा की कार्यवाहियों की अध्यक्षता करता है। उसे निर्णायक मत देने का भी अधिकार है। हालाँकि वह सदन का सदस्य नहीं होता है।
- उपराष्ट्रपति आकस्मिक स्थितियों, यथा-राष्ट्रपति की मृत्यु, पद-त्याग या पद से हटाए जाने की स्थिति में राष्ट्रपति पद के दायित्वों का निर्वाह करता है। इस दौरान उसे राष्ट्रपति की परिलब्धियाँ प्राप्त होंगी।
- उपराष्ट्रपति अपना त्याग पत्र राष्ट्रपति को देकर पदमुक्त हो सकता है।
भारत के उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति |
महत्त्वपूर्ण तथ्य |
निर्वाचन वर्ष |
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
दार्शनिक/निर्विरोध चुने गए |
1952 |
डॉ. ज़ाकिर हुसैन |
भूतपूर्व राजनयिक |
1962 |
वी.वी. गिरि |
कार्यवाहक राष्ट्रपति |
1967 |
जी.एस. पाठक |
भूतपूर्व कानून मंत्री |
1969 |
बी.डी. जत्ती |
कार्यवाहक राष्ट्रपति |
1974 |
एम. हिदायतुल्ला |
निर्विरोध चुने गए |
1979 |
आर. वेंकटरमण |
संविधानसभा सदस्य |
1984 |
डॉ. शंकर दयाल शर्मा |
निर्विरोध चुने गए |
1987 |
के.आर. नारायणन |
भूतपूर्व राजनयिक |
1992 |
कृष्णकांत |
कार्यकाल के दौरान निधन |
1997 |
बी.एस. शेखावत |
पूर्व मुख्यमंत्री |
2002 |
मो. हामिद अंसारी |
भूतपूर्व राजनयिक |
2007 |
वेंकैया नायडू |
भूतपूर्व शहरी विकास मंत्री |
2017 |
जगदीप धनखड़ |
पूर्व राज्यपाल पश्चिम बंगाल |
2022 |
डॉ. एस. राधाकृष्णन व मोहम्मद हामिद अंसारी ने लगातार दो बार इस पद पर कार्य किया। |
- 26 जनवरी, 1950 को संविधान के अस्तित्व में आने के साथ ही देश ने 'संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य' के रूप में नई यात्रा शुरू की। परिभाषा के मुताबिक गणराज्य (रिपब्लिक) का आशय होता है कि राष्ट्र का मुखिया निर्वाचित होगा, जिसको राष्ट्रपति कहा जाता है। संविधान में राष्ट्रपति के शपथ का प्रारूप अनुच्छेद 60 में दिया गया है जबकि अन्य पदाधिकारियों तथा संसद तथा राज्य विधानमंडल के सदस्यों के शपथ का प्रारूप तीसरी अनुसूची में दिया गया है।
- राष्ट्रपति अपना त्याग पत्र उपराष्ट्रपति को देकर पदमुक्त हो सकता है।
- अनुच्छेद-65 राष्ट्रपति की मृत्यु, त्याग पत्र या पद से हटाए जाने की स्थिति में राष्ट्रपति का पद उपराष्ट्रपति द्वारा सँभालने का प्रावधान करता है। द प्रेसीडेंट (डिस्चार्ज ऑफ पंक्शन्स) एक्ट 1969 के अनुसार यदि उपराष्ट्रपति का पद खाली है तो भारत का मुख्य न्यायाधीश इस पद पर आसीन होगा और उसका पद भी रिक्त होने पर सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठम न्यायाधीश राष्ट्रपति का पद सँभालेगा, ऐसी एक परिस्थिति वर्ष 1969 में उत्पन्न हुई थी, जब भारत के मुख्य न्यायाधीश मो. हिदायतुल्ला ने राष्ट्रपति का पद सँभाला था।
- राष्ट्रपति अपना त्याग पत्र उपराष्ट्रपति को देकर पदमुक्त हो सकता है।
राष्ट्रपति की मुख्य शक्तियाँ :
- अनुच्छेद 53 : संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी। वह इसका उपयोग संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करेगा। इसकी अपनी सीमाएँ भी हैं ;
- यह संघ की कार्यपालिका शक्ति (राज्यों की नहीं) होती है, जो उसमें निहित होती है।
- संविधान के अनुरूप ही उन शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है।
- सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर की हैसियत से की जाने वाली शक्ति का उपयोग विधि के अनुरूप होना चाहिये।
- अनुच्छेद 72 द्वारा प्राप्त क्षमादान की शक्ति के तहत राष्ट्रपति, किसी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, निलंबन, लघुकरण और परिहार कर सकता है। मृत्युदंड पाए अपराधी की सज़ा पर भी फैसला लेने का उसको अधिकार है।
- अनुच्छेद 75 के मुताबिक, 'प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। चुनाव में किसी भी दल या गठबंधन को जब स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो राष्ट्रपति अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए ही सरकार बनाने के लिये लोगों को आमंत्रित करता है। ऐसे मौकों पर उसकी भूमिका निर्णायक होती है
- अनुच्छेद 80 के तहत प्राप्त शक्तियों के आधार पर राष्ट्रपति, साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले 12 व्यक्तियों को राज्य सभा के लिये मनोनीत कर सकता है।
- अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति, युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में आपातकाल की घोषणा कर सकता है।
- अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति द्वारा किसी राज्य के संवैधानिक तंत्र के विफल होने की दशा में राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
- वहीं अनुच्छेद 360 के तहत भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग में वित्तीय संकट की दशा में वित्तीय आपात की घोषणा का अधिकार राष्ट्रपति को है।
- राष्ट्रपति कई अन्य महत्त्वपूर्ण शक्तियों का भी निर्वहन करता है, जो अनुच्छेद 74 के अधीन करने के लिये वह बाध्य नहीं है। वह संसद के दोनों सदनों द्वारा पास किये गए बिल को अपनी सहमति देने से पहले 'रोक' सकता है। वह किसी बिल (धन विधेयक को छोड़कर) को पुनर्विचार के लिये सदन के पास दोबारा भेज सकता है।
राष्ट्रपति की ‘वीटो’ या ‘निषेधाधिकार’ शक्ति
- आत्यंतिक वीटो (Absolute Veto)– ऐसा वीटो जो विधायिका द्वारा पारित विधेयक को पूरी तरह खारिज कर सकता हो।
- विशेषित वीटो (Qualified Veto)– ऐसी वीटो शक्ति, जिसे एक विशेष बहुमत से विधायिका द्वारा खारिज किया जा सकता है। भारतीय राष्ट्रपति के पास ऐसी वीटो शक्ति नहीं है।
- निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto)– कार्यपालिका के प्रमुख द्वारा किये गए वीटो को विधायिका पुनर्विचार करके साधारण बहुमत से पुन: पारित करके खारिज कर सकती है।
- पॉकेट वीटो (Pocket Veto)– कार्यपालिका के प्रमुख द्वारा विधेयक पर स्वीकृति या अस्वीकृति देने के बजाय उसे अपने पास पड़े रहने देना। 1986 में भारतीय डाकघर संशोधन अधिनियम पर राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इस वीटो का प्रयोग किया था।
किसी राज्य में मुख्यमंत्री की वही स्थिति है जो संघ में प्रधानमंत्री की। राज्यपाल राज्य का मुखिया होता है, वहीं मुख्यमंत्री सरकार का।
अनुच्छेद 164(1) में बताया गया है, ‘‘मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा।’’
राज्य की मंत्रिपरिषद्
- अनुच्छेद 164(1) में निहित है, ‘‘मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यंत अपने पद धारण करेंगे।’’ इसका तात्पर्य है कि मंत्री सामूहिक रूप से भले ही विधानसभा के प्रति उत्तरदायी हों, वे व्यक्तिगत तौर पर कार्यपालिका के प्रमुख के प्रति उत्तरदायी होते हैं। ‘राज्यपाल के प्रसादपर्यंत’ पद धारण करने का वास्तविक अर्थ ‘मुख्यमंत्री के प्रसादपर्यंत’ पद धारण करना है।
- नोट : किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदस्य की निर्हता से सबंधित निर्णय चुनाव आयोग की सलाह पर राज्यपाल करता है। (अनुच्छेद 192)
मंत्रिपरिषद् का आकार
संविधान के ‘91वें संशोधन अधिनियम, 2003’ के माध्यम से अनुच्छेद 164(1)(d) को अंत:स्थापित करके यह उपबंध किया गया है कि मंत्रिपरिषद् में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी, परंतु किसी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या 12 से कम नहीं होगी।
दलबदल-विरोध से संबंधित प्रावधान
- दलबदल संबंधी 10वीं अनुसूची 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 द्वारा अंत:स्थापित की गई थी।
- दलबदल की स्थिति में अब (91वें संविधान संशोधन के बाद से) कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा किसी अन्य दल में किया गया ‘विलय’ (Merger) ही कानूनी तौर पर मान्य है। यदि उससे कम सदस्य दल छोड़ने का पैसला करते हैं तो वे सदन के सदस्य नहीं रहते हैं और उन्हें जनता से पुन: निर्वाचित होना पड़ता है।
- राष्ट्रपति भारत का वैधानिक (De-Jure) प्रमुख है, जबकि प्रधानमंत्री ‘वास्तविक’ (De-facto) प्रमुख होता है। प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- अनुच्छेद-75 में प्रधानमंत्री के पद का प्रावधान है। जिसके अनुसार राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिये एक मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा।
प्रधानमंत्री | कार्यकाल |
1.जवाहरलाल नेहरू | 1947 – 1964 |
2.गुलज़ारीलाल नंदा (कार्यवाहक) | 27 मई, 1964- 9 जून, 1964 |
3.लाल बहादुर शास्त्री | 1964 – 1966 |
4.गुलज़ारीलाल नंदा (कार्यवाहक) | 11 जनवरी, 1966- 24 जनवरी, 1966 |
5.इंदिरा गांधी | 1966 – 1977 |
6.मोरारजी देसाई | 1977 – 1979 |
7.चौधरी चरण सिंह | 1979 – 1980 |
8.इंदिरा गांधी | 1980 – 1984 |
9.राजीव गांधी | 1984 – 1989 |
10.वी.पी. सिंह | 1989 – 1990 |
11.चंद्रशेखर | 1990 – 1991 |
12.पी.वी. नरसिम्हा राव | 1991 – 1996 |
13.अटल बिहारी वाजपेयी | 16 मई, 1996- 1 जून, 1996 |
14.एच. डी. देवगौड़ा | 1996 – 1997 |
15. आई.के. गुजराल | 1997 – 1998 |
16.अटल बिहारी वाजपेयी | 1998 – 2004 |
17.डॉ. मनमोहन सिंह | 2004 – 2014 |
18. नरेंद्र मोदी | 2014 से अब तक |
- संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन का सदस्य हो सकता है। इंदिरा गांधी (1966), एच.डी. देवगौड़ा (1996), डॉ. मनमोहन सिंह (2004, 2009) राज्यसभा के सदस्य थे।
- मोरारजी देसाई, चौ. चरण सिंह, वी.पी. सिंह, पी.वी. नरसिम्हा राव, एच.डी. देवगौड़ा, नरेंद्र मोदी वे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया।
प्रधानमंत्री के दायित्व
- वह राष्ट्रपति को सिफारिश करे कि किन व्यक्तियों को मंत्री पद पर नियुक्त किया जाए।
- वह मंत्रियों को विभिन्न मंत्रालयों का आवंटन करता है और आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन करता है।
- राष्ट्रपति को संसद सत्र आहूत करने या सत्रावसान करने या लोकसभा के विघटन की सलाह दे सकता है।
- प्रधानमंत्री का कार्यकाल सामान्यत: पाँच वर्षों का होता है। प्रधानमंत्री द्वारा त्याग पत्र देना या उसकी मृत्यु होना दोनों ही परिस्थितियों में मंत्रिपरिषद् को स्वत: समाप्त हो जाती है।
- प्रधानमंत्री ‘नीति आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद्, अंतर-राज्यीय परिषद्, राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद् एवं राष्ट्रीय एकता परिषद् का अध्यक्ष होता है।