ध्वनि ऊर्जा का एक प्रकार है, जो तरंगों के रूप में संचरित होती है और हमारे कानों में श्रवण का अनुभव उत्पन्न करती है। ध्वनि का स्रोत वस्तुओं के कंपन्न में होता है, लेकिन सभी कंपन ध्वनि नहीं उत्पन्न करते। वे कंपन, जो हमारे कानों द्वारा महसूस किये जा सकते हैं और जिन्हें हम सुन सकते हैं, ‘ध्वनि’ कहलाते हैं।
- ध्वनि तरंगें (Sound Waves)
ध्वनि तरंगें यांत्रिक और अनुदैर्ध्य तरंगें होती हैं, जिन्हें संचरण के लिये किसी माध्यम (जैसे ठोस, द्रव या गैस) की आवश्यकता होती है। यह निर्वात में संचरण नहीं कर सकती क्योंकि वहाँ कोई माध्यम नहीं होता। यही कारण है कि चंद्रमा पर वायुमंडल की अनुपस्थिति में अंतरिक्ष यात्री एक-दूसरे की आवाज़ नहीं सुन सकते।
- ध्वनि तरंगों के प्रकार
- अवश्रव्य तरंगें (Infrasonic Waves)
वे तरंगें, जिनकी आवृत्ति 20 Hz से कम होती है, ‘अवश्रव्य तरंगें’ कहलाती हैं। इनका तरंगदैर्ध्य बड़ा होता है, और ये ज्वालामुखी, भूस्खलन, उल्कापिंड जैसी बड़ी घटनाओं से उत्पन्न होती हैं। मनुष्य इन्हें सुनने में असमर्थ होते हैं। - श्रव्य तरंगें (Audible Waves)
20 Hz से 20,000 Hz के बीच की आवृत्ति वाली तरंगें ‘श्रव्य तरंगें’ कहलाती हैं। मनुष्य इन्हें सुन सकते हैं। - पराश्रव्य तरंगें (Ultrasonic Waves)
20,000 Hz से अधिक आवृत्ति वाली तरंगें ‘पराश्रव्य तरंगें’ कहलाती हैं। मनुष्य इन्हें सुन नहीं सकते, परंतु कुत्ते, बिल्लियाँ, और चमगादड़ जैसी कुछ प्रजातियाँ इन्हें सुन सकती हैं।- पराश्रव्य तरंगों के अनुप्रयोग
- सोनार (SONAR): समुद्र की गहराई मापने और पनडुब्बी नौवहन में।
- सफाई: कीमती कपड़ों, हवाई जहाज के पुर्जों और घड़ियों से धूल हटाने में।
- औद्योगिक उपयोग: फैक्ट्रियों की चिमनियों से कालिख हटाने में।
- चिकित्सा तकनीक: अल्ट्रासाउंड, सोनोग्राफी, और इकोकार्डियोग्राफी में।
- पेस्ट कंट्रोल: कीड़े-मकौड़ों को नष्ट करने में।
- खोज और निरीक्षण: छिपी हुई वस्तुओं की पहचान में।
- स्वचालित दरवाज़े: इन्हें खोलने और बंद करने में।
- द्रव को गर्म करना: तरल पदार्थों को तेजी से गर्म करने में।
पराश्रव्य तरंगों की उच्च आवृत्ति और ऊर्जा के कारण, वे वैज्ञानिक और औद्योगिक क्षेत्रों में बेहद उपयोगी हैं।
- पराश्रव्य तरंगों के अनुप्रयोग
- अवश्रव्य तरंगें (Infrasonic Waves)
- ऋषभदेव (आदिनाथ)
- प्रतीक- वृषभ
- अजितनाथ
- प्रतीक- गज
- संभवनाथ
- प्रतीक- अश्व
- अभिनंदननाथ
- प्रतीक- कपि
- सुमतिनाथ
- प्रतीक- क्रौंच
- पद्मप्रभु
- प्रतीक- पद्म
- सुपार्श्वनाथ
- प्रतीक- स्वास्तिक
- चंद्रप्रभु
- प्रतीक- चंद्र
- सुविधिनाथ
- प्रतीक- मकर
- शीतलनाथ
- प्रतीक- श्रीवत्स
- श्रेयांसनाथ
- प्रतीक- गैंडा
- वसुपूज्य
- प्रतीक- महिष
- विमलनाथ
- प्रतीक- वराह
- अनंतनाथ
- प्रतीक- श्येन
- धर्मनाथ
- प्रतीक- वज्र
- शांतिनाथ
- प्रतीक- मृग
- कुंथुनाथ
- प्रतीक- अज
- अरनाथ
- प्रतीक- मीन
- मल्लिनाथ
- प्रतीक- कलश
- मुनिसुव्रत
- प्रतीक- कूर्म
- नेमिनाथ
- प्रतीक- नीलोत्पल
- अरिष्टनेमि
- प्रतीक- शंख
- पार्श्वनाथ
- प्रतीक- सर्पफण
- महावीर
- प्रतीक- सिंह
यह प्रतीक जैन तीर्थंकरों की विशेषताओं, शिक्षाओं और उनकी आध्यात्मिक महत्ता को दर्शाते हैं।
A pronoun is a word that replaces a noun in a sentence to avoid repetition.
- Example:
- Without pronoun: Alex is my friend. Alex is kind.
- With pronoun: Alex is my friend. He is kind.
Here, "he" is the pronoun that replaces the noun "Alex".
Pronouns make sentences shorter, clearer, and more natural. Instead of repeating names or things, we use words like he, she, it, they, this, that, etc.
- Grammar Rules for Using Pronouns:
- A pronoun must match the noun it replaces in number (singular/plural) and gender (male/female/neuter).
- Example: Sara is reading. She loves books.
- Use subject pronouns when the pronoun is doing the action.
- I, you, he, she, it, we, they
- Use object pronouns when the pronoun receives the action.
- me, you, him, her, it, us, them
- Avoid confusion: Make sure it's clear what the pronoun refers to.
- A pronoun must match the noun it replaces in number (singular/plural) and gender (male/female/neuter).
- Types of Pronouns (with examples)
No. |
Type of Pronoun |
Examples |
1. |
Personal Pronouns |
I, you, he, she, it, we, they → They are happy. |
2. |
Possessive Pronouns |
mine, yours, his, hers, ours, theirs → That bag is mine. |
3. |
Reflexive Pronouns |
myself, yourself, himself, herself, itself, ourselves, themselves → He hurt himself. |
4. |
Demonstrative Pronouns |
this, that, these, those → This is my book. |
5. |
Relative Pronouns |
who, whom, whose, which, that → The girl who called is my cousin. |
6. |
Interrogative Pronouns |
who, what, which, whom, whose → Who is at the door? |
7. |
Indefinite Pronouns |
someone, anyone, nobody, everything, each → Someone is waiting for you. |
8. |
Reciprocal Pronouns |
each other, one another → They trust each other. |
9. |
Distributive Pronouns |
each, either, neither → Each student was present. |
- How to Identify a Pronoun in a Sentence?
Look for a word that:- Replaces a noun
- Refers to people or things already mentioned
- Avoids repeating names or nouns
Examples:
- Tom is tired. He needs rest. → "He" replaces "Tom"
- This pen is mine. → "Mine" shows possession
- Who is knocking? → "Who" is a question word (interrogative pronoun)
- They help each other. → "Each other" is reciprocal
समुद्र पृथ्वी पर विशालतम जलीय निकाय हैं। पिछले कुछ दशकों से मानवीय क्रियाओं के कारण समुद्र गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। मानव द्वारा समुद्र में हानिकारक पदार्थों, जैसे- प्लास्टिक, औद्योगिक एवं कृषि अपशिष्टों, तेल एवं रासायनिक पदार्थों के निक्षेपण से समुद्र प्रदूषित हुए हैं।
समुद्री प्रदूषण के कारण
- नदियों एवं वर्षा जल द्वारा लाया गया सीवेज, कृषि अपशिष्ट, कूड़ा-करकट, कीटनाशक एवं उर्वरक, भारी धातुएं, प्लास्टिक आदि समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करते हैं।
- समुद्र में तेल एवं पेट्रोलियम पदार्थों का विसर्जन एवं रेडियोएक्टिव अपशिष्टों की डंपिंग से भी समुद्री प्रदूषण में वृद्धि होती है।
- विषाक्त रसायन एवं भारी धातुएँ, जो औद्योगिक अपशिष्टों के साथ आकर समुद्र में मिल जाती हैं, समुद्री पारिस्थितिकी को नष्ट करती हैं।
- वहां गहरे सागर एवं सागर तल में खनन से भारी धातुओं का जमाव हो जाता है। इसके कारण उस स्थान पर विषाक्त प्रभाव पड़ता है एवं सागरीय पारिस्थितिक तंत्र के लिये स्थायी एवं गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता है।
- वायु प्रदूषण के परिणामस्वरूप अम्ल वर्षा होती है। यह अम्ल वर्षा समुद्र में हो तो समुद्री जीवों की मृत्यु हो जाती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण सागरीय जल का तापमान भी बढ़ रहा है जिससे सागरीय जल की जैव विविधता का ह्रास हो रहा है।
समुद्री प्रदूषण के प्रभाव
- तेल आप्लाव/तेल रिसाव (Oil Spills) सागरीय जीवों के गिल्स (Gills) एवं पंखों पर आवरण बनाकर उनके श्वसन एवं गति में बाधा उत्पन्न करते हैं।
- तेल रिसाव के कारण सागरीय जीव प्रवाल (Coral) के छिद्र बंद हो जाने से उनकी मृत्यु हो जाती है। प्रवाल भित्ति जैव विविधता से संपन्न होती है, अतः प्रवाल की मृत्यु से वहां की जैव विविधता नष्ट होने लगती है।
- समुद्री प्रदूषकों के अपघटन में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। प्रदूषकों के कारण सागरीय जल में ऑक्सीजन का स्तर गिर जाता है। जिसके परिणामस्वरूप, सागरीय जीवों की संख्या में कमी आती है।
- कुछ विशेष औद्योगिक एवं कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाले कीटनाशक एवं उर्वरक सागरीय जल में पहुंचकर सागरीय जीवों के वसा ऊतकों में संगृहीत होकर उनकी जनन क्षमता पर नकारात्मक असर डालते हैं। इससे उनकी संख्या में तीव्रता से कमी आती है।
- ये प्रदूषक सागरीय जीवों के शरीर में जमा हो जाते हैं। इस प्रकार ये खाद्य शृंखला में प्रवेश कर जाते हैं, जिसके कारण इन जीवों के सेवन से मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
- विषैली धातु, प्रदूषित जल, अपशिष्ट तथा उर्वरकों का अप्रवाह नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा को बढ़ा देता है।
- नाइट्रोजन की अधिक मात्रा शैवाल की तीव्र वृद्धि करती है जो कि सूर्या के प्रकाश को रोकती है जिससे उपयोगी समुद्री घास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 (Solid Waste Management Rules, 2016) ने वर्ष 2000 में अधिसूचित किये गए म्युनिसिपल ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन एवं निपटान) नियम का स्थान लिया है।
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार स्रोत पर ही सूखे कचरे और गीले कचरे को अलग करना होगा।
- इस नियम का प्रभाव सभी स्थानीय निकायों एवं नगरीय संकुलों (Urban Agglomerations) पर होगा।
- इसके तहत प्रदूषणकर्त्ता को संपूर्ण अपशिष्ट को तीन प्रकारों यथा- जैव निम्नीकरणीय, गैर-जैव निम्नीकरणीय एवं घरेलू खतरनाक अपशिष्टों के रूप में वर्गीकृत कर इन्हें स्थानीय निकाय द्वारा निर्धारित अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता को ही देना होगा।
- स्थानीय निकायों द्वारा निर्धारित यूज़र्स शुल्क का भुगतान प्रदूषणकर्त्ता द्वारा किया जाएगा। ये शुल्क स्थानीय निकायों द्वारा निर्मित विनियमों से निर्धारित किये जाएँगे।
- इसके अतिरिक्त, इस नियम के अंतर्गत विभिन्न पक्षकारों यथा- भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों जैसे पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, रसायन उर्वरक मंत्रालय, कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय, ज़िला मजिस्ट्रेट, ग्राम पंचायत, स्थानीय निकाय, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आदि के कर्त्तव्यों का उल्लेख भी किया गया है।
- स्थानीय निकायों के भी कुछ उत्तरदायित्व जैसे- घर-घर से अपशिष्ट संग्रहण, विनियमन निर्माण, यूज़र्स शुल्क निर्धारण तथा बायोमिथनेशन, माइक्रोबियल कंपोस्टिंग, वर्मी कंपोस्टिंग जैसी तकनीकों को अपनाना निर्धारित किये गए हैं।
- जल निकायों का संरक्षण (Conservation of Water Bodies)- भारत की अधिकतर नदियाँ तथा झीलें प्रदूषण की शिकार हैं तथा इनका जल पीने योग्य नहीं रह गया है। यहाँ की नदियों एवं तालाबों के जल प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत असंसाधित मल-जल प्रवाह है। जल शक्ति मंत्रालय के अधीन कार्यरत ‘राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय’ का कार्य केंद्र प्रायोजित स्कीमों ‘राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP)’ एवं ‘जलीय पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण हेतु राष्ट्रीय योजना’ (NPCA) के तहत नदियों, झीलों एवं नम भूमियों के संरक्षण के लिये राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
- गंगा कार्य योजना (Ganga Action Plan–GAP)- देश की प्रमुख नदियों में से एक तथा स्वयं का निर्मलीकरण (गंगा में पाए जाने वाले वायरस जैसे Bacteriophage वगैरह जीवाणुओं को खा जाते हैं।) करने वाली गंगा आज लगभग अपने अपवाह के आधे भाग में प्रदूषित हो गई है। वर्तमान में लगभग 50,000 से अधिक आबादी वाले 100 से अधिक शहरों का असंसाधित मल-अपशिष्ट गंगा में अपवाहित किया जाता है तथा हज़ारों की संख्या में लाशों व जले हुए अवशेषों को इसमें प्रवाहित किया जाता है। गंगा बेसिन में भारत की लगभग 40% जनसंख्या निवास करती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा ‘केंद्रीय गंगा प्राधिकरण’ (CGA) का गठन कर 1985 में गंगा एक्शन प्लान (GAP) की शुरुआत की गई।
- राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (National River Conservation Plan)- 1995 में केंद्रीय गंगा प्राधिकरण (CGA) का नाम बदलकर ‘राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण’ (NRCA) कर दिया गया था। गंगा कार्य योजना का विलय NRCP के साथ कर दिया गया।
- नमामि गंगे कार्यक्रम (Namami Gange Project)- केंद्र सरकार द्वारा जून 2014 में नमामि गंगे नामक फ्लैगशिप कार्यक्रम के लिये 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गए। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गंगा नदी का संरक्षण, जीर्णोद्धार एवं प्रदूषण को खत्म करना है। नमामि गंगे कार्यक्रम के निम्नलिखित मुख्य स्तंभ हैं-
- सीवरेज ट्रीटमेंट
- रिवर फ्रंट डेवलपमेंट
- वनीकरण
- जैव विविधता का विकास
- जन-जागरूकता
- गंगा ग्राम योजना
- नदी सतह की सफाई
- औद्योगिक प्रवाह निगरानी
भारत में विभिन्न प्रकार के आर्द्र व अनूप आवास पाए जाते हैं। इसके 70% भाग पर चावल की खेती की जाती है। भारत में लगभग 39 लाख हेक्टेयर भूमि आर्द्र है। ओडिशा में चिल्का और भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय पार्क अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों के अधिवेशन (रामसर अधिवेशन) के अंतर्गत रक्षित जलकुक्कुट आवास हैं।
हमारे देश में आर्द्रभूमि को 8 वर्गों में रखा गया है, जो इस प्रकार हैं-
- दक्षिण में दक्कन पठार के जलाशय और दक्षिण-पश्चिमी तटीय क्षेत्र की लैगून व अन्य आर्द्रभूमि।
- राजस्थान, गुजरात और कच्छ की खारे पानी वाली भूमि।
- गुजरात-राजस्थान से पूर्व (केवलादेव) और मध्य प्रदेश की ताज़े पानी वाली झीलें व जलाशय।
- भारत के पूर्वी तट पर डेल्टाई आर्द्रभूमि व लैगून (चिल्का झील आदि)।
- गंगा के मैदान में ताज़ा जल वाले कच्छ क्षेत्र।
- ब्रह्मपुत्र घाटी में बाढ़ के मैदान व उत्तर-पूर्वी भारत और हिमालय गिरिपद के कच्छ एवं मैंग्रोव क्षेत्र।
- कश्मीर और लद्दाख की पर्वतीय झीलें और नदियाँ।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के द्वीप चापों के मैंग्रोव वन और दूसरे आर्द्र क्षेत्र।
मैंग्रोव वन लवण, ज्वारीय संकरी खाड़ी, पंक मैदानों और ज्वारनदमुख के तटीय क्षेत्रों पर पाए जाते हैं। इसमें बहुत से लवण से न प्रभावित होने वाले पेड़-पौधे होते हैं। बंधे जल व ज्वारीय प्रवाह की संकरी खाड़ियों से आड़े-तिरछे ये वन विभिन्न किस्म के पक्षियों को आश्रय प्रदान करते हैं। ये वन चक्रवातों से तटीय क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
भारत में मैंग्रोव वन 4975 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है। ये अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पश्चिम बंगाल के सुंदरबन डेल्टा तथा गुजरात में अत्यधिक विकसित हैं। इसके अलावा ये महानदी, गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टाई भाग में पाए जाते हैं। इन वनों में बढ़ते अतिक्रमण के कारण इनका संरक्षण करना आवश्यक हो गया है।
- 17 अगस्त, 1965 को इस संस्थान की स्थापना यूनेस्को की सहायता से हुई थी। यह भारत का प्रमुख मीडिया स्कूल है, जिसे भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा संचालित किया जाता है। यह एक स्वायत्तशासी संस्थान है। इसे सोसायटीज़ पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत किया गया है।
- भारतीय जनसंचार संस्थान का मुख्यालय नई दिल्ली में है और इसके पांच क्षेत्रीय कार्यालय आइज़ोल (मिज़ोरम), अमरावती (महाराष्ट्र), ढेकनाल (ओडिशा), कोट्टायम (केरल) और जम्मू व कश्मीर में हैं।
- यह संस्थान अनुभवी एवं स्थायी संकाय सदस्यों और बेहतर आधारभूत सुविधाओं के कारण देश का अग्रणी मीडिया स्कूल है। यहाँ संकाय और विद्यार्थी का अनुपात 1:8 है, जो किसी भी मीडिया स्कूल से बेहतर है।
- यह संस्थान प्रिंट मीडिया, फोटो पत्रकारिता, रेडियो पत्रकारिता, टेलीविज़न पत्रकारिता, संचार अनुसंधान, विज्ञापन और जन संपर्क सहित तमाम मीडिया विषयों पर प्रशिक्षण देता है।
- इसके द्वारा एक वर्ष के लिये स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं, जिनमें हिंदी, अंग्रेज़ी तथा उड़िया भाषा में पत्रकारिता के साथ-साथ विज्ञापन व जन संपर्क, रेडियो व टीवी पत्रकारिता एवं फोटो पत्रकारिता के पाठ्यक्रम शामिल हैं।
- भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों को यहाँ प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके साथ-साथ यहाँ गुटनिरपेक्ष और अन्य विकासशील देशों के लिये विकास पत्रकारिता के पाठयक्रम भी संचालित किये जाते हैं।
- विधि एवं न्याय मंत्रालय ने न्याय प्रणाली को आम जनमानस के निकट ले जाने के लिये ‘ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008’ संसद में पारित किया। इसके तहत 2 अक्टूबर, 2009 से कुछ राज्यों में ग्राम न्यायालय कार्य करने लगे।
- ग्राम न्यायालय में प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट स्तर का न्यायाधीश होता है, जिसे ‘न्यायाधिकारी’ कहा जाता है। इसकी नियुक्ति संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्य सरकार करती है।
- ग्राम न्यायालय सिविल तथा आपराधिक दोनों मामले देखता है। ऐसे मामलों की सूची ‘ग्राम न्यायालय अधिनियम’ की अनुसूची में दी गई है।
- एक तरफ जहाँ यह 2 वर्षों की अधिकतम सज़ा वाले आपराधिक मामले को देखता है, तो वहीं दूसरी तरफ सिविल मामलों के अंतर्गत वह ‘न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948’, ‘सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955’, ‘बंधुआ मज़दूरी (उन्मूलन) अधिनियम, 1976’, ‘घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005’ के अंतर्गत आने वाले मामले भी देखता है।
- इसमें सिविल मामलों में आपसी समझौते से मामला निपटाने की कोशिश की जाती है तो आपराधिक मामलों में ‘प्ली बार्गेनिंग’ (Plea Bargaining) के माध्यम से अभियुक्तों को अपना अपराध स्वीकार करने का मौका दिया जाता है।
- जब स्वतंत्र भारत में परमाणु ऊर्जा के संबंध में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अनुसंधान कार्य आरंभ करवाया, तब डॉ. होमी जहाँगीर भाभा ‘परमाणु ऊर्जा आयोग’ (Atomic Energy Commission) के प्रथम अध्यक्ष बने। प्रारंभ में परमाणु शक्ति के संबंध में ‘शांति के लिये परमाणु’ (Atoms for Peace) सिद्धांत को अपनाया गया अर्थात् केवल शांतिपूर्ण कार्यों के लिये परमाणु शक्ति के विकास का लक्ष्य रखा गया।
- बांग्लादेश के संकट (वर्ष 1971) के पश्चात् जब यह स्पष्ट होने लगा कि चीन अपने मित्र पाकिस्तान की परमाणु शक्ति के निर्माण में सहायता कर सकता है, तब भारत को गंभीरता से अपने परमाणु कार्यक्रम पर विचार करना पड़ा। इससे पूर्व ही वर्ष 1964 में चीन अपना प्रथम परमाणु विस्फोट करके परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बन चुका था।
- चीन और अमेरिका के मध्य बढ़ते राजनीतिक संबंधों को देखते हुए भारत ने 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण (ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा : पोखरण-I) किया, परंतु विश्व समुदाय द्वारा इस विषय पर उठाए गए सवालों के संदर्भ में भारत ने यह स्पष्ट किया कि यह उसका शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट (Peaceful Nuclear Explosion- PNE) था।
- वर्ष 1968 की परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty- NPT) पर हस्ताक्षर करने से भारत सदा इनकार करता रहा है। वास्तव में भारत इस संधि को भेदभाव पर आधारित मानता है क्योंकि इसमें केवल पांच देशों (ब्रिटेन, अमेरिका, सोवियत संघ, फ्रांस और चीन) को ही परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र (Nuclear Weapon States) स्वीकार किया गया है।
- वर्ष 1991-96 के अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव गंभीरता से विचार करते रहे कि परमाणु परीक्षण किया जाए, परंतु उन्होंने परीक्षण के आदेश नहीं दिये।
- मई 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने साहसिक कदम उठाकर परमाणु परीक्षण (पोखरण-II) करवाए। परमाणु परीक्षण अत्यंत गोपनीय रूप से किये गए। फलस्वरूप भारत ने स्वयं को परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र (Nuclear Weapon States) घोषित कर दिया।
- भारत ने न तो ‘परमाणु अप्रसार संधि’ (NPT) पर हस्ताक्षर किये हैं और न ही ‘व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि’ (Comprehensive Nuclear Test Ban Treaty- CTBT) को स्वीकृति दी है।
- भारत ने अपनी परमाणु नीति के तहत मुख्य रूप से तीन तत्त्वों को प्राथमिकता दी है- पारदर्शिता, जवाबदेहिता और सुदृढ़ता; जो एक लोकतांत्रिक संप्रभु देश की भावना को प्रकट करता है।
भारत की परमाणु नीति के प्रमुख बिंदु निम्नवत हैं-
- विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण एवं रखरखाव।
- परमाणु हथियारों से रहित किसी भी राष्ट्र के विरुद्ध परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं करना तथा परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों पर भी पहले आक्रमण नहीं करना।
- परमाणु आक्रमण होने पर जवाबी कार्यवाही इतनी सशक्त होगी कि दुश्मन की प्रतिक्रिया करने की शक्ति पूर्णतः नष्ट हो जाएगी।
- जवाबी परमाणु हमले का आदेश देने का अधिकार ‘परमाणु कमान प्राधिकरण’ (Nuclear Command Authority) के माध्यम से केवल राजनीतिक शक्ति होगा।
- भारत विश्व स्तर पर बिना भेदभाव वाले परमाणु नि:शस्त्रीकरण के द्वारा विश्व को परमाण्विक हथियारों से मुक्त कराने के अपने लक्ष्य के प्रति सदैव सजग रहेगा।
- भारतीय सेना पर जैविक या परमाण्विक हथियारों से भारत पर या किसी स्थान पर हमले से नाभिकीय हथियारों के प्रयोग का विकल्प खुला रहेगा।
- भारत अपनी परमाणु एवं प्रक्षेपास्त्र संबंधी सामग्री तथा प्रौद्योगिकी के निर्यात पर सख्त नियंत्रण बनाए रखेगा।
- कोई भी चीज जिसे डिजिटल रूप में बदला जा सकता है वह NFTs हो सकती हैं।
- ड्राइंग, फोटो, वीडियो, GIF, संगीत, इन-गेम आइटम, सेल्फी और यहाँ तक कि एक ट्वीट, सबकुछ एक NFT में बदला जा सकता है, जिससे बाद में क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करके ऑनलाइन कारोबार किया जा सकता है।
- अगर कोई व्यक्ति अपनी डिजिटल संपत्ति को NFTs में परिवर्तित करता है, तो उसे ब्लॉकचैन द्वारा संचालित स्वामित्व का प्रमाण मिलेगा।
- NFTs नॉन-फंजिबल टोकेंस हैं, जिसका अर्थ है कि एक NFT का मूल्य दूसरे के बराबर नहीं है।
- नॉन-फंजिबल का अर्थ है कि NFT परस्पर विनिमेय नहीं हैं। प्रत्येक NFT की UNIQUE पहचान होती है, जो इसे नॉन-फंजिबल और अद्वितीय बनाती है।
- रामानुजन अद्वितीय गणितीय प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। उन्होंने सिर्फ 33 वर्ष के अल्पकाल में विश्व को अपनी गणित की समझ और शोधों से न केवल आश्चर्यचकित किया, अपितु भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ होने का गौरव भी प्राप्त किया।
- किसी भी तरह की औपचारिक शिक्षा न लेने के बावजूद रामानुजन ने उच्च गणित के क्षेत्र में ऐसी विलक्षण खोजें कीं, कि इस क्षेत्र में उनका नाम अमर हो गया। उन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवन भर में गणित की लगभग 3900 प्रमेयों का संकलन किया।
- इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। हाल ही में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है।
- रामानुजन एक शांत-चित्त और सात्विक प्रवृत्ति वाले आध्यात्मिक पुरुष थे। जीवन के कठिन दौर में भी उन्होंने कभी गणित को नहीं छोड़ा।
- 1911 में उन्होंने ‘जर्नल ऑफ द इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी’ में ‘बरनौली संख्याओं के कुछ गुण’ विषय पर एक शोध-पत्र प्रकाशित किया। इस पत्र से उन्हें मद्रास के शिष्टजनों के मध्य एक गणित विषयक विशिष्ट प्रतिभा के रूप में विशेष पहचान मिली।
- विश्व प्रसिद्ध ब्रिटिश गणितज्ञ जी.एच. हार्डी ने उनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय बुला लिया। उन्होंने हार्डी और जे.ई. लिटिलवुड के साथ मिलकर गणित में शोध किया और गणित जगत को आश्चर्यजनक परिणाम दिये।
- उन्होंने लंदन में अनेक शोध-पत्र जारी किये। वह लंदन की ‘रॉयल सोसायटी’ के फेलो चुने जाने वाले दूसरे और ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो चुने जाने वाले प्रथम भारतीय थे।
- उनका जन्मदिवस 22 दिसंबर को भारत में ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
- मौर्य काल में वैदिक धर्म, बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म सहित आजीवक संप्रदाय का प्रचलन था। मौर्य सम्राटों में चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म का, बिंदुसार आजीवक का तथा अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी था।
- सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपने शासनकाल में राजकीय संरक्षण दिया था।
- मौर्य काल में भी वैदिक धर्म प्रचलित था, परंतु कर्मकांड प्रधान वैदिक धर्म अभिजात ब्राह्मण तथा क्षत्रियों तक ही सीमित था।
- जनसाधारण में नागपूजा का प्रचलन था। मूर्तिपूजा भी की जाती थी।
- पतंजलि के अनुसार, मौर्य काल में देवमूर्तियों को बेचा जाता था। देवमूर्तियों को बनाने वाले शिल्पियों को ‘देवताकारू’ कहा जाता था।
- अशोक तथा उसके पौत्र दशरथ ने कुछ गुफाएँ आजीवकों को दान में दी थीं।
- अशोक के समय में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ।
- चंद्रगुप्त मौर्य ने श्रवणबेलगोला में जाकर जैन प्रथा ‘सल्लेखना’ के अनुसार प्राण त्याग दिये।
- मेगस्थनीज ने धार्मिक व्यवस्था में डायोनिसस एवं हेराक्लीज की चर्चा की है, जिसकी पहचान क्रमशः ‘शिव’ एवं ‘कृष्ण’ से की गई है।
- मेगस्थनीज ने मंडनिस एवं सिकंदर के बीच वार्तालाप का वृत्तांत दिया है।
- माओ का जन्म 1893 में चीन के हुनान प्रांत के शाऊशन में हुआ था।
- माओ ने मार्क्सवाद की चीनी परिस्थितियों के अनुरूप व्याख्या की।
- चीन में 1949 की साम्यवादी क्रांति की सफलता का श्रेय माओ को प्राप्त है। उसने समाजवादी राज्य की स्थापना की और आजीवन चीनी साम्यवादी दल (Communist Party of China) का प्रमुख बना रहा।
- माओ ने साम्यवादी क्रांति में ‘कृषकों’ को शामिल करके इसे एक नया रूप दिया।
- माओ ने अपने समकालीन ‘सोवियत संघ प्रमुख- स्टालिन’ की नीतियों की आलोचना की।
- सोवियत संघ ने औद्योगीकरण को प्राथमिकता दी, जबकि कृषि क्षेत्र की ओर ध्यान नहीं दिया।
- स्टालिन की केंद्रीयकृत अर्थव्यवस्था में जनसहभागिता अनुपस्थित थी। माओ के अनुसार, दीर्घकालिक आर्थिक विकास स्वैच्छिक जनभागीदारी से ही प्राप्त किया जा सकता है।
- माओ के समाजवादी विचारों के अंतर्गत आर्थिक तत्त्वों की तुलना में ‘राजनीति और चेतना’ को विशेष महत्त्व दिया गया।
- माओ केवल ‘उत्पादन के साधनों मात्र के राष्ट्रीयकरण’ को समाजवाद नहीं मानता है। माओ के लिये समाजवाद का आशय है कि उत्पादन-प्रक्रिया में स्वैच्छिक जनसहभागिता बढ़े तथा व्यक्ति के विचारों में परिवर्तन किया जा सके।
- हुनान प्रांत के अनुभवों के आधार पर माओ ने क्रांति में किसानों की भूमिका को विशेष महत्त्व दिया। साथ ही, घोषणा की, “क्रांति का केंद्र शहर नहीं, गाँव होंगे।”
- माओ पर बाल्यकाल से ही ‘The Water Margin’ और ‘The Romance of the Three Kingdoms’ नामक उपन्यासों का गहरा प्रभाव पड़ा था।
- माओ की कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं-
- On Practice (1937)
- On Contradiction (1937)
- On the Correct Handling of Contradictions among the People (1957)
- On People’s Democratic Rule (1949)
- On New Democracy (1940)
- On Coalition Government (1945)
- The Present Position and The Task Ahead (1947)
विवाह एक ऐसा सामाजिक और कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त संबंध है जो दो व्यक्तियों के बीच अधिकार और कर्त्तव्यों की स्थापना करता है। विवाह के माध्यम से प्रजनन और संपत्ति के उत्तराधिकार की सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है। विभिन्न समाजों में सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओं के अनुसार विवाह के कई प्रकार विकसित हुए हैं।
- एकपत्नीत्व (Monogamy)
- एकपत्नीत्व सबसे सामान्य और व्यापक रूप से स्वीकार किया जाने वाला विवाह प्रकार है।
- इसमें एक व्यक्ति का एक ही जीवनसाथी होता है।
- यह अधिकतर समाजों में आदर्श माना जाता है और कई देशों में यह कानूनी रूप से अनिवार्य भी होता है।
- बहुपत्नीत्व (Polygamy)
- बहुपत्नीत्व वह व्यवस्था है जिसमें कोई व्यक्ति एक समय में एक से अधिक जीवनसाथियों से विवाह करता है। इसके दो प्रमुख प्रकार हैं:
- बहुपत्नीत्व (Polygyny): एक पुरुष का एक से अधिक स्त्रियों से विवाह।
- बहुपतित्व (Polyandry): एक स्त्री का एक से अधिक पुरुषों से विवाह। यह दुर्लभ है और मुख्यतः हिमालयी क्षेत्रों के कुछ जनजातीय समाजों में पाया जाता है, जहाँ यह जनसंख्या नियंत्रण और संपत्ति संरक्षण में सहायक होता है।
- बहुपत्नीत्व वह व्यवस्था है जिसमें कोई व्यक्ति एक समय में एक से अधिक जीवनसाथियों से विवाह करता है। इसके दो प्रमुख प्रकार हैं:
- स्वजातीय विवाह (Endogamy)
- इसमें व्यक्ति अपनी ही जाति, वर्ग या समुदाय के भीतर विवाह करता है।
- इसका उद्देश्य सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखना होता है।
- बहिर्जातीय विवाह (Exogamy)
- इसमें व्यक्ति अपनी जाति, वर्ग या कुल से बाहर विवाह करता है।
- यह विवाह सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है और सामाजिक नेटवर्क को विस्तृत करता है।
विवाह के ये प्रकार मानव समाज की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं और इन्हें समझना सामाजिक ढांचे के विश्लेषण में सहायक होता है।
कथक का उद्भव ‘कथा’ शब्द से हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- कथा कहना। प्राचीन समय में कथावाचक गानों के रूप में इसे बोलते थे तथा अपनी कथा को नया रूप देने के लिये नृत्य करते थे। इसी से दक्षिण भारत में कथा कलाक्षेपम/हरिकथा का रूप बना और यही उत्तर भारत में कथक के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
- वस्तुतः कथक उत्तर प्रदेश की ब्रजभूमि की रासलीला परंपरा से जुड़ा हुआ है तथा इस नृत्य के केंद्र में राधा-कृष्ण की अवधारणा मौजूद है।
- इसमें पौराणिक गाथाओं के साथ ही ईरानी एवं उर्दू कविता से ली गई विषय-वस्तुओं का नाटकीय प्रस्तुतीकरण किया जाता है।
- यद्यपि कथक का जन्म उत्तर भारत में हुआ, किंतु ईरानी और मुस्लिम प्रभाव के कारण यह मंदिर की रीति से दरबारी मनोरंजन तक पहुँच गया।
- इसे ‘नटवरी नृत्य’ के नाम से भी जाना जाता है।
- मुगलों के आगमन के पश्चात् यह नृत्य दरबार में पहुँचा तथा इसके पश्चात् इस नृत्य में धर्म की अपेक्षा सौंदर्यबोध पर अधिक बल दिया जाने लगा।
- अवध के नवाब वाज़िद अली शाह के समय ठाकुर प्रसाद एक उत्कृष्ट नर्तक थे, जिन्होंने नवाब को नृत्य सिखाया तथा ठाकुर प्रसाद के तीन पुत्रों- बिंदादीन, कालका प्रसाद एवं भैरव प्रसाद ने कथक को लोकप्रिय बनाया।
- आगे चलकर कालका प्रसाद के तीन पुत्रों- अच्छन, लच्छू तथा शंभू ने इस पारिवारिक शैली को आगे बढ़ाया।
- कथक नृत्य की खास विशेषता इसके पद संचालन एवं घिरनी खाने (चक्कर काटने) में है। इसमें घुटनों को नहीं मोड़ा जाता।
- इसमें हस्तमुद्राओं तथा पद-ताल पर अधिक ध्यान दिया जाता है, जो नृत्य को प्रभावी बनाता है।
- कथक नृत्य को ध्रुपद एवं ठुमरी गायन के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
- 19वीं सदी में अवध के अंतिम नवाब वाज़िद अली शाह के संरक्षण के तहत इसका स्वर्णिम रूप देखने को मिलता है।
- भारत के शास्त्रीय नृत्यों में केवल कथक का ही संबंध मुस्लिम संस्कृति से भी रहा है।
- कथक नृत्य शैली को संगीत के कई घरानों, जैसे- जयपुर घराना, लखनऊ घराना, बनारस घराना तथा रायगढ़ घराना, का समर्थन भी मिला।
- संघ में प्रविष्ट होने को ‘उपसंपदा’ कहा जाता था। संघ की सदस्यता लेने वालों को पहले ‘श्रमण’ का दर्ज़ा मिलता था और 10 वर्षों बाद जब उसकी योग्यता स्वीकृत हो जाती थी, तब उसे ‘भिक्षु’ का दर्जा मिलता था।
- संघ में अल्पवयस्क (15 वर्ष से कम आयु), चोर, हत्यारा, ऋणी व्यक्ति, दास तथा रोगी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित था।
- आनंद के बहुत अनुनय-विनय के बाद बुद्ध ने संघ में स्त्रियों को अनुमति दी थी।
- बौद्ध संघ की संरचना गणतंत्र प्रणाली पर आधारित थी। बौद्ध संघ का दरवाज़ा हर जाति के लिये खुला था। अतः बौद्ध धर्म ने वर्ण व्यवस्था एवं जाति प्रथा का विरोध किया।
- संघ की सभा में प्रस्ताव (नत्ति) का पाठ होता था। प्रस्ताव पाठ को ‘अनुसावन’ कहा जाता था। सभा की वैध कार्यवाही के लिये न्यूनतम संख्या (कोरम) 20 थी।
- अमावस्या, पूर्णिमा तथा दो चतुर्थी दिवस को बौद्ध धर्म में ‘उपोसथ’ (व्रत) कहा जाता है।
- पातिमोक्ख- भिक्षुओं की सभा में किये जाने वाले विधि-निषेधों का पाठ।
- इस सभा में प्रत्येक सदस्य इसके माध्यम से स्वयं नियमों के उल्लंघन को स्वीकार करता था। गंभीर अपराध पर वयस्कों एवं वृद्धों की समिति विचार करती थी और सदस्यों को प्रायश्चित करने या संघ से निकालने की आज्ञा देती थी।
- वर्षा ऋतु के दौरान मठों में प्रवास के समय भिक्षुओं द्वारा अपराध स्वीकारोक्ति समारोह ‘पवरन’ कहलाता था।
- बौद्धों का सबसे पवित्र एवं महत्त्वपूर्ण दिन या त्योहार वैशाख की पूर्णिमा है, जिसे ‘बुद्ध पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। इस दिन का अत्यधिक महत्त्व है, क्योंकि इसी दिन बुद्ध का जन्म, उन्हें ज्ञान एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई।
- बौद्ध धर्म के अनुयायी दो वर्गों में विभाजित थे- भिक्षु एवं भिक्षुणी तथा उपासक एवं उपासिकाएं। गृहस्थ जीवन में रहकर बौद्ध धर्म मानने वाले लोगों को ‘उपासक’ कहा जाता था।
- भोज मालवा के परमार वंश का यशस्वी राजा था। उदयपुर प्रशस्ति के अनुसार, उसने तुरुष्कों (तुर्कों) को पराजित किया तथा धारा को अपनी राजधानी बनाया।
- राजा भोज ने ‘नवसाहसांक’ अर्थात् ‘नवविक्रमादित्य’ की पदवी धारण की। उसने 1008 ई. में महमूद गज़नवी के विरुद्ध शाही शासक आनंदपाल को सैनिक सहायता दी थी।
- सर्वप्रथम भोज को चालुक्य नरेश सोमेश्वर द्वितीय ने परास्त कर, उसकी राजधानी धारा नगरी को जला डाला तथा भोज वहाँ से भाग खड़ा हुआ और आक्रमणकारी के लौट जाने के बाद ही वह अपनी राजधानी पर अधिकार कर सका था।
- भोज के शासन काल के अंत में चालुक्यों एवं चेदियों ने उसके विरुद्ध एक संघ बनाया। इस संघ का नेता कलचुरि नरेश लक्ष्मीकर्ण था। भोज इस संघ से चिंतित होकर बीमार पड़ गया तथा उसकी मृत्यु हो गई। उसके मरते ही कर्ण धारा पर टूट पड़ा तथा उसे लूट लिया। दूसरी ओर से चालुक्य नरेश भीम ने भी आक्रमण कर धारा नगरी को ध्वस्त कर दिया। इस प्रकार परमार साम्राज्य का अंत हो गया था।
- भोज अपनी विद्वता के कारण ‘कविराज’ की उपाधि से विख्यात था। कहा जाता है कि उसने विविध विषयों- चिकित्साशास्त्र, खगोलशास्त्र, धर्म, व्याकरण, स्थापत्यशास्त्र आदि पर बीस से अधिक ग्रंथों की रचना की थी।
- भोज द्वारा लिखित ग्रंथों में चिकित्साशास्त्र पर आयुर्वेदसर्वस्व एवं शालिहोत्र तथा स्थापत्यशास्त्र पर समरांगणसूत्रधार विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सरस्वतीकंठाभरण, सिद्धांतसंग्रह, योगसूत्रवृत्ति, विद्याविनोद, नाममालिका अन्य प्रसिद्ध ग्रंथ हैं।
- भोज ने अपने नाम पर भोजपुर नगर बसाया तथा एक बड़े भोजसर नामक तालाब को निर्मित करवाया था।
- भोज ने चितौड़ में ‘त्रिभुवन नारायण मंदिर’ का निर्माण करवाया था।
- सर्वप्रथम शून्य का अभिलेखीय प्रमाण भोजदेव के ग्वालियर अभिलेख में मिलता है।
खनिज |
विशेषताएँ |
यूरेनियम |
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थोरियम |
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बेरिलियम |
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एंटीमनी |
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जिरकान |
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इल्मेनाइट |
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- जल का इसके विभिन्न भौतिक रूपों (तरल, गैस एवं ठोस) में स्थलमंडल एवं जलमंडल, महाद्वीपों एवं महासागरों, धरातल एवं भूमिगत, वायुमंडल एवं जैवमंडल आदि के मध्य निरंतर प्रवाह एवं आदान-प्रदान को ‘जलीय चक्र’ कहते हैं।
- जल एक चक्रीय एवं नवीकरणीय संसाधन है अर्थात् प्राकृतिक रूप से इसकी प्रकृति इस तरह की है कि इसे प्रयोग एवं पुनः प्रयोग किया जा सकता है।
- यह पृथ्वी पर वायुमंडल एवं जलमंडल के विकास से लेकर कभी न समाप्त होने वाली व्यवस्था है। यह जैवमंडल का महत्त्वपूर्ण घटक है।
- जल चक्र यह उद्घाटित करता है कि जिस मात्रा एवं अनुपात में जल का वाष्पन (Evaporation) एवं वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration) होता है, उसी मात्रा एवं अनुपात में ‘वर्षण’ (Precipitation) होता है। अर्थात् पृथ्वी पर नियमित कई भौगोलिक संतुलनकारी प्रक्रियाओं के अंतर्गत जल चक्र एक अतिमहत्त्वपूर्ण संतुलनकारी प्रक्रिया है।
- पृथ्वी पर तीव्र जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण, उपभोग वृद्धि, पर्यावरणीय ह्रास एवं ताज़े सीमित जलीय संसाधन की कमी से जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
घटक |
जल चक्र संबंधी प्रक्रियाएँ |
महासागर, सागर, खाड़ियाँ, नदियाँ |
वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन, ऊर्ध्वपातन |
वायुमंडलीय नमी |
संघनन, वर्षण |
हिम रूप में |
हिम पिघलने पर नदी-नालों के रूप में बहना |
धरातलीय बहाव |
जलधाराएँ, ताज़ा जल संग्रहण, जल रिसाव |
भूमिगत जल |
भौम जल का विसर्जन, झरनों के रूप में बहाव |
जैवमंडल में जल |
वनस्पतियों से वाष्पोत्सर्जन, जीवों द्वारा प्रयोग एवं पुनः प्रयोग |
- प्रगति या प्रोएक्टिव गवर्नेंस तथा समयबद्ध कार्यान्वयन (PRAGATI- Proactive Governance and Timely Implementation) नामक प्लेटफॉर्म का उद्देश्य समयानुकूल संस्कृति एवं सतर्क प्रशासन की शुरुआत करना अथवा इसे बढ़ावा देना है। इसकी शुरुआत 25 मार्च, 2015 को हुई थी तथा यह सरकार एवं विभिन्न हितधारकों के मध्य ई-जवाबदेहिता तथा ई-पारदर्शिता लाने वाली एक महत्त्वपूर्ण एवं सुदृढ़ प्रणाली है। ‘प्रगति’ प्लेटफॉर्म अपनी प्रकृति में संवादमूलक एवं मल्टी मॉडल प्लेटफॉर्म तथा ई-गवर्नेंस और सुशासन हेतु अभिनवकारी योजना है।
- इसका उद्देश्य आमजन की शिकायतों का समाधान करना तथा साथ ही केंद्र सरकार के मुख्य कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं तथा राज्य सरकार की परियाजनाओं की समीक्षा एवं निगरानी करना है। यह प्लेटफॉर्म वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, डिजिटल डाटा मैनेजमेंट और भू-आकाशीय टेक्नोलॉजी को एक साथ प्रयोग में लाकर भारत सरकार के सचिवों एवं राज्यों के मुख्य सचिवों को एक स्थान प्रदान करते हुए सरकारी संघवाद की दिशा में कार्य करता है। इसके माध्यम से प्रधानमंत्री किसी विषय से संबंधित केंद्रीय तथा राज्य के अधिकारियों से संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। अतः इस प्लेटफॉर्म के द्वारा ज़मीनी स्तर पर स्थिति का उचित आकलन भी प्राप्त हो सकता है।
प्रमुख बिंदु
- यह प्रधानमंत्री कार्यालय, सचिव (केंद्र सरकार), मुख्य सचिव (राज्य) को समेकित करती हुई त्रिस्तरीय प्रणाली है।
- इसके द्वारा लोक शिकायत, लंबित परियोजनाओं और चालू कार्यक्रमों संबंधी डाटाबेस में उपलब्ध मामले प्रधानमंत्री के समक्ष आ पाते हैं।
- यह प्लेटफॉर्म इस प्रकार डिज़ाइन किया गया है, जिससे प्रधानमंत्री द्वारा विषय का परीक्षण करते हुए स्क्रीन पर विषय से संबंधित सूचना, ताज़ा जानकारी और संबंधित विजुअल प्राप्त किये जा सकते हैं।
- इसकी बैठक प्रत्येक महीने के चौथे रविवार को आयोजित की जाती है। दिसंबर 2024 में ‘प्रगति’ प्लेटफॉर्म की 45वीं बैठक आयोजित की गई।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा खाद्य संरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के अधीन 2008 में स्थापित ‘भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण’ विभिन्न मंत्रालयों तथा विभागों में खाद्य संबद्ध विषयों को निपटाने वाले अधिनियमों एवं आदेशों को समेकित करता है। इस प्राधिकरण की स्थापना खाद्य वस्तुओं की शुद्धता जांचने के उद्देश्य से की गई है। FSSAI का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के कार्य
- दिशा-निर्देश से संबद्ध कार्य- FSSAI का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य खाद्य वस्तुओं से जुड़े दिशा-निर्देशों को बनाना है और यह सुनिश्चित करना है कि उनके द्वारा बनाए गए दिशा-निर्देशों का पालन देश में किया जा रहा है या नहीं। यह प्रयोगशालाओं के प्रत्यायन हेतु प्रक्रिया तथा दिशा-निर्देशों को भी निर्धारित करता है।
- प्रमाणन से संबद्ध कार्य- प्राधिकरण व्यवसायियों द्वारा निर्मित खाद्य वस्तुओं की गुणवत्ता की जाँच सुनिश्चित कर खाद्य संरक्षा प्रबंधन प्रणाली के प्रमाणन निकायों हेतु तंत्र एवं दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
- वैज्ञानिक सलाह देने का कार्य- प्राधिकरण खाद्य संरक्षा तथा पोषण को प्रभावित करने वाली नीति तथा नियमों के सृजन के विषय में केंद्र व राज्य सरकारों को वैज्ञानिक सलाह तथा तकनीकी सहयोग देता है।
- आंकड़ा संग्रहण से संबद्ध कार्य- प्राधिकरण खाद्य उपभोग, जैविकीय जोखिम की घटना एवं उनका प्रचालन, खाद्य में संदूषक, विभिन्न अपशिष्टों, प्रकट हो रहे जोखिम सहित द्रुत सतर्कता प्रणाली को शामिल करने वाले आंकड़ों का संग्रह एवं मिलान करता है।
- तकनीकी मानकों के विकास से संबद्ध कार्य- प्राधिकरण खाद्य स्वच्छता तथा पादप स्वच्छता हेतु अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी मानकों के विकास में सहयोग करता है, साथ ही खाद्य संरक्षा व खाद्य मानकों के बारे में लोगों को जागरूक करता है।
- सूचना नेटवर्क निर्माण से संबद्ध कार्य- प्राधिकरण खाद्य संरक्षा आदि से संबद्ध सूचनाओं को आम उपभोक्ताओं, पंचायतों आदि तक पहुँचाने हेतु देश भर में सूचना नेटवर्क तैयार करता है।
- प्रशिक्षण संबद्ध कार्य- यह प्राधिकरण खाद्य व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिये प्रशिक्षण सेवा भी उपलब्ध कराता है।
- मानव एवं जैवमंडल (MAB) कार्यक्रम 1971 में UNESCO द्वारा शुरू किया गया एक अंतर-सरकारी वैज्ञानिक कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य मानव एवं पर्यावरण के बीच संबंधों में सुधार के लिये एक वैज्ञानिक आधार स्थापित करना है।
- MAB का उद्देश्य प्राकृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक शिक्षा के एकीकरण द्वारा मानव जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाकर प्रकृति एवं पर्यावरण पारितंत्र को सुरक्षित करना है जिससे विश्व भर में आर्थिक विकास को सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से दीर्घकालिक बनाया जा सके। यह वर्तमान में हो रहे जैव विविधता ह्रास एवं पर्यावरण असंतुलन से भविष्य पर पड़ने वाले प्रभाव को बताता है। यह मानव को पर्यावरण एवं जैव विविधता को संतुलित करने और आने वाले भविष्य के खतरे से निपटने के लिये मानव संसाधन को दक्ष करने की तकनीकी सहायता भी देता है।
MAB के कार्य
- MAB मानव एवं प्रकृति द्वारा आरक्षित क्षेत्र में परिवर्तन के कारण मानव एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करता है।
- MAB पर्यावरण संकट एवं सतत विकास के लिये पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा देता है। यह तेज़ी से बढ़ रहे शहरीकरण और ऊर्जा उपभोग (जो कि पर्यावरण असंतुलन के सबसे बड़े कारक हैं) से मानव को होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिये मानव कल्याण कार्यक्रम चलाता है।
- MAB प्राकृतिक अथवा मानवजनित कारकों का पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन एवं बढ़ती पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिये जैव विविधता के संरक्षण के लिये तकनीकी अध्ययन और आकलन को प्रोत्साहित करता है।
- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) की स्थापना 12 जुलाई, 1982 को शिवरमन सिंह समिति की संस्तुति के आधार पर की गई। यह देश में कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु वित्त उपलब्ध कराने वाली शीर्ष संस्था है।
- नाबार्ड का मुख्यालय मुंबई में है।
- ग्रामीण साख के क्षेत्र में वे सारे कार्य जो पहले भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किये जाते थे, अब राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक द्वारा किये जाते हैं।
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक
- ग्रामीण साख के क्षेत्र में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक शीर्ष संस्था के रूप में कार्य करता है।
- समन्वित ग्रामीण विकास के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये नाबार्ड, कृषि एवं संबंद्ध क्षेत्रों, छोटे उद्योगों, हस्तशिल्पों एवं ग्रामीण दस्तकारियों और अन्य संबंधित क्रियाओं के सभी प्रकार के उत्पादन एवं निवेश के लिये पुनर्वित्त संस्थान के रूप में कार्य करता है।
- यह राज्य सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, भूमि विकास बैंकों एवं भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मान्यताप्राप्त वित्तीय संस्थानों को अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराता है।
- केंद्रीय व राज्य सहकारी बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के निरीक्षण की ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक को सौंपी गई है। इसके साथ ही केंद्रीय भूमि विकास बैंक एवं अन्य सहकारी संस्थाएँ भी स्वेच्छा से इस बैंक का निरीक्षण करवा सकती हैं।
- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अनुसंधान एवं विकास फंड रखता है, ताकि कृषि व ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जा सके तथा विभिन्न क्षेत्रों की आवश्यकतानुसार परियोजनाओं का निर्माण किया जा सके।
NAFED
- NAFED का पूरा नाम National Agricultural Co-operative Marketing Federation of India Ltd. है।
- कृषि उपजों के विपणन हेतु सहकारी क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर NAFED की स्थापना 2 अक्टूबर, 1958 को की गई।
- NAFED की स्थापना का मुख्य उद्देश्य कृषि उत्पादों के सहकारी विपणन को बढ़ावा देकर किसानों को लाभ पहुँचाना है।
- NAFED का उद्देश्य कृषि, बागवानी और वन उपजों का विपणन, प्रसंस्करण और भंडारण करना है।
- यह आवश्यक कृषि मशीनरी का वितरण करता है और किसानों को आवश्यक आदान, जैसे- बीज, उर्वरक, कीटनाशक आदि प्रदान करता है। यह कृषि उत्पादों के अंतर्राज्यीय व्यापार और आयात-निर्यात को व्यवस्थित करता है।
TRIFED
- TRIFED का पूरा नाम Tribal Co-operative Marketing Development Federation of India Ltd. है।
- जनजातीय लोगों को शोषणकारी निजी व्यापारियों से छुटकारा दिलाने और उनके द्वारा तैयार की गई वस्तुओं का अच्छा मूल्य दिलाने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा 1987 में TRIFED की स्थापना की गई।
- अप्रैल, 1988 से कार्यरत TRIFED को पेड़ों तथा वनों के उत्पादों के एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, भंडारण और विकास की प्रमुख एजेंसी घोषित किया गया है।
- गेहूँ और धान की सरकारी खरीद के लिये TRIFED भारतीय खाद्य निगम के एजेंट तथा मोटे अनाजों, दालों और तिलहनों की खरीद में कृषि एवं सहकारिता विभाग के एजेंट के रूप में काम करता है। कृषि उत्पादों के मूल्यों के उतार-चढ़ाव से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिये कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय इसे अनुदान देता है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- देश की कुल सिंचित भूमि के 61.58% भाग की सिंचाई कुओं एवं नलकूपों से होती है। वर्तमान में ये भारत की सिंचाई के सर्वप्रमुख साधन हैं।
- गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में ये सिंचाई के प्रमुख साधन हैं। इसके अलावा हरियाणा, बिहार, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक राज्यों में भी कुओं एवं नलकूपों की सहायता से सिंचाई की जाती है।
- नलकूपों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है। इसका सर्वाधिक विस्तार सरयू पार के मैदानों में है। इस क्षेत्र को भारत का सबसे बड़ा सिंचाई क्षेत्र भी कहते हैं।
कुआँँ एवं नलकूप सिंचाई के लाभ
- निर्धन कृषकों के लिये कुएँ द्वारा सिंचाई अधिक सुगम एवं सस्ता साधन है।
- कुआँं एवं नलकूप सिंचाई से मृदा के लवणीय होने का खतरा नहीं रहता है।
- आवश्यकतानुसार जल के उपयोग के कारण ही नहरों की अपेक्षा इसमें जल की बर्बादी कम होती है।
कुआँँ एवं नलकूप सिंचाई से समस्याएँ
- कुआँं एवं नलकूप सिंचाई के द्वारा केवल सीमित क्षेत्रों की ही सिंचाई की जा सकती है।
- इसके द्वारा सिंचाई के लिये अधिक जल निकालने के कारण गर्मी के मौसम में भूमिगत जल का स्तर अत्यधिक नीचे चला जाता है, जिसके कारण पेयजल की उपलब्धता में समस्या उत्पन्न हो जाती है।
- बिजली की कमी के कारण, बिजली से चलने वाले नलकूपों द्वारा समय पर सिंचाई में बाधा उत्पन्न होती है।
- कठोर चट्टानों वाले क्षेत्रों में खासकर प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्रों में कुआँँ खोदना अत्यंत कठिन कार्य है।
- भयानक तड़ितझंझा से कभी-कभी वायु हाथी की सूंड की तरह सर्पिल रूप में नीचे उतरती है, जिसके केंद्र में निम्न वायुदाब होता है। यह व्यापक रूप से विनाशकारी होता है, इस परिघटना को ही ‘टॉरनेडो’ कहते हैं। इसका विकास सामान्यतः मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में होता है। समुद्र पर टॉरनेडो को ‘जलस्तंभ’ (Waterspouts) कहते हैं।
- टॉरनेडो की तीव्रता मापने के लिये ‘फुजीटा स्केल’ का प्रयोग किया जाता है। टॉरनेडो मुख्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया में उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा यह फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, अर्जेंटीना, दक्षिण अफ्रीका, चीन, भारत आदि में भी आते हैं। भारत में इन्हें ‘बवंडर’ कहते हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में टॉरनेडो प्रभावित वृहत् मैदानी भाग Tornado Alley/Twister कहलाता है। इस टॉरनेडो एली में मुख्यतः मिसीसिपी-मिसौरी घाटी के टेक्सास, ओक्लाहोमा, कंसास और नेब्रास्का राज्य सम्मिलित हैं।
- मध्यमंडल का विस्तार सागर तल से 50 से 80 किमी. की ऊँचाई तक समतापमंडल के ठीक ऊपर पाया जाता है।
- इस संस्तर में भी क्षोभमंडल की तरह ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में कमी होने लगती है।
- मध्यमंडल की निचली सीमा अर्थात् समताप सीमा के पश्चात् तापमान में अंततः कमी आने लगती है।
- मध्यमंडल की ऊपरी सीमा अर्थात् 80 किमी. की ऊँचाई पर तापमान लगभग -100०C तक हो जाता है। इस न्यूनतम तापमान की सीमा को Mesopause कहते हैं, जो आयनमंडल को मध्यमंडल से अलग करती है। इसके ऊपर जाने पर तापमान में पुनः वृद्धि होती है, जोकि ‘तापीय प्रतिलोमन’ की स्थिति को दर्शाता है, क्योंकि इसके नीचे कम तापमान तथा ऊपर अधिक तापमान रहता है।
- यह वायुमंडल की सबसे ठंडी परत है।
- इस मंडल में गर्मियों के दिनों में ध्रुवों के ऊपर ‘नॉक्टीलुसेंट बादलों’ अथवा ‘निशादीप्त बादलों’ का निर्माण होता है। इन बादलों का निर्माण उल्कापिंड के धूलकणों तथा संवहनीय प्रक्रिया द्वारा ऊपर लाई गई आर्द्रता के सहयोग से संघनन द्वारा होता है।
- कंपनी के व्यापारिक अधिकारों को 20 वर्षों के लिये और बढ़ा दिया गया।
- परिषद् के निर्णयों को रद्द करने की शक्ति (1786 के अधिनियम में निहित) आने वाले गवर्नर जनरलों को भी दे दी गई।
- मुख्य सेनापति को गवर्नर जनरल की परिषद् का स्वतः ही (Ipso Facto) सदस्य होने का अधिकार नहीं था।
- गवर्नर जनरल जब कभी बंगाल से बाहर जाएगा तो उसे अपनी परिषद् के असैनिक सदस्यों में से किसी एक को उप-प्रधान नियुक्त करना होगा, ताकि वह उसके स्थान पर कार्य कर सके।
- नियंत्रण बोर्ड (Board of Control) के अधिकारियों का वेतन भारतीय कोष से दिया जाने लगा। यह परंपरा 1919 तक चलती रही।
- 1793 में ही एक विनियम द्वारा ज़िला कलेक्टर को उसकी न्यायिक शक्तियों से वंचित कर दिया गया। इसका कारण लॉर्ड कॉर्नवालिस का मानना था कि किसी एक व्यक्ति में इतनी परम शक्ति होना अवांछनीय है।
महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा सरकारी और निजी संगठनों में कार्यरत महिलाओं के लिये कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करवाने के लिये व्यापक शी-बॉक्स ‘SHE-Box’ (Sexual Harassment Electronic Box) ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन प्रणाली की शुरुआत की गई है। यह कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करेगा।
प्रमुख बिंदु
- नए शी-बॉक्स पोर्टल पर सरकारी और निजी कर्मचारियों सहित देश की सभी महिला कर्मियों के लिये कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की सुविधा है।
- यौन उत्पीड़न अधिनियम के अंतर्गत गठित संबंधित आंतरिक शिकायत समिति (ICC) या स्थानीय शिकायत समिति (LCC) में पहले से ही लिखित शिकायत दर्ज करवाने वाली महिलाएं भी इस पोर्टल के ज़रिये अपनी शिकायत दर्ज करवा सकती हैं।
- महिला और बाल विकास मंत्रालय ने सभी कार्यस्थलों पर आंतरिक कार्य समितियाँ गठित करने का प्रयास किया है। मंत्रालय ने आंतरिक शिकायत समितियों के लिये निर्देशिका जारी की है और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये हैं।
- महिला और बाल विकास मंत्रालय इन शिकायतों की निगरानी करेगा।
- पोर्टल पर शिकायत दर्ज करवाने पर यह सीधे संबंधित नियोक्ता की ICC/LCC को भेज दी जाएगी।
- इस पोर्टल के ज़रिये मंत्रालय के साथ ही शिकायतकर्त्ता भी ICC/LCC द्वारा की जा रही जाँच की प्रगति की निगरानी कर सकती है।
- शी-बॉक्स का उपयोग करने वालों के लिये समय-सीमा के भीतर प्रतिक्रिया मिलने के आश्वासन के साथ इस पोर्टल के ज़रिये महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से बातचीत करने का भी विकल्प है।
- कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मुद्दे पर प्रशिक्षण/कार्यशालाएं आयोजित करने के लिये मंत्रालय द्वारा सूची में सम्मिलित किये गए 112 संस्थानों की जानकारी भी इस पोर्टल पर उपलब्ध है। विभिन्न संगठनों में इस विषय पर प्रशिक्षण में योगदान देने के इच्छुक व्यक्तियों और संस्थानों के लिये अपने आवेदन जमा कराने के भी विकल्प हैं।
- शी-बॉक्स इस सूचियों में शामिल संस्थानों/संगठनों को अपनी क्षमता निर्माण गतिविधियों को मंत्रालय के साथ साझा करने के लिये मंच उपलब्ध कराएगा जिससे देश भर की सूची में शामिल इन संस्थाओं/संगठनों की गतिविधियों की निगरानी की जा सकेगी।
- मंत्रालय ने यौन उत्पीड़न अधिनियम के प्रावधानों की जानकारी प्रदान करने के लिये इस अधिनियम पर पुस्तिका और प्रशिक्षण निर्देशिका भी प्रकाशित की है ताकि इनका व्यावहारिक रूप में आसानी से इस्तेमाल किया जा सके।
भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य संरक्षण की दिशा में प्रयास करते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 0-18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये यह कार्यक्रम (फरवरी 2013) शुरू किया गया।
- यह कार्यक्रम ‘राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन’ का हिस्सा है जिसकी शुरुआत महाराष्ट्र के पालघर में की गई है।
- इस कार्यक्रम को ‘बाल स्वास्थ्य परीक्षण एवं शीघ्र निदान सेवा’ के रूप में भी जाना जाता है जिसका लक्ष्य बच्चों की मुख्य बीमारियों का शीघ्र पता लगाना और उनक निदान करना है। इन बीमारियों में जन्मजात विकृतियों, बाल रोग, कमियों के लक्षणों और दिव्यांगताओं सहित विकास संबंधी देरी शामिल है।
- बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिये संचालित स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम को विस्तारित कर इसमें जन्म से लेकर 18 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को शामिल किया गया है।
- इन सुविधाओं का लक्ष्य सरकारी और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों में पहली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक में पंजीकृत बच्चों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी झुग्गी बस्तियों के जन्म से लेकर 6 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को शामिल करना है।
- इस कार्यक्रम में शीघ्र परीक्षण व शीघ्र निदान के लिये कुल 30 बीमारियों की पहचान की गई है। ये बीमारियां जन्म दोष, कमियां, बाल्यावस्था बीमारियाँ, विकासात्मक विलंब एवं आवश्यकता तथा अन्य प्रमुख स्वास्थ्य हालातों के आधार पर तय की गई हैं।
- गुजराल सिद्धांत भारत की उस विदेश नीति की अभिव्यक्ति थी, जिसका सूत्रपात देवेगौड़ा सरकार में विदेश मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री रहे श्री इंद्र कुमार गुजराल ने किया था।
- गुजराल सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य भारत का अपने पड़ोसी राष्ट्रों से बेहतर संबंध स्थापित करने का प्रयास करना था। ध्यातव्य है कि 1996-97 में बांग्लादेश के साथ गंगा नदी के जल के बंटवारे का समाधान गुजराल सिद्धांत की ही देन थी।
इसके प्रमुख पांच सिद्धांत हैं, जो निम्नलिखित हैं-
- भारत को अपने पड़ोसी देशों बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव तथा श्रीलंका के साथ विश्वास एवं संबंधों की प्रगाढ़ता का प्रयास करना चाहिये।
- किसी भी दक्षिण एशियाई राष्ट्र को अपने क्षेत्र का प्रयोग किसी अन्य देश के विरुद्ध करने की अनुमति नहीं देनी चाहिये।
- किसी भी देश को अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।
- सभी दक्षिण एशियाई देशों को एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना चाहिये।
- सभी देशों को अपने विवाद शांतिपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाने चाहिये।
- नेपाल, चीन व भारत के मध्य ‘बफर स्टेट’ के रूप में हिमालय की गोद में स्थित एक पर्वतीय देश है।
- इसकी सीमा भारत के उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम व पश्चिम बंगाल राज्यों से लगी हुई है।
- कोसी, बागमती, गंडक, काली, करनाली, अरुण आदि यहाँ की सदावाहिनी नदियाँ हैं।
- जलविद्युत उत्पादन क्षमता की दृष्टि से यहाँ अपार संभावनाएँ हैं, परंतु वर्तमान में नेपाल इस क्षमता का अल्प अंश ही उपयोग कर पा रहा है।
- नेपाल में हिमालय की वृहत्, लघु एवं शिवालिक तीनों श्रेणियों का विस्तार है।
- यहाँ की महत्त्वपूर्ण चोटियों- माउंट एवेरेस्ट, धौलागिरि, कंचनजंगा (नेपाल व सिक्किम के सीमावर्ती क्षेत्र में), मकालू, अन्नपूर्णा, गौरीशंकर आदि हैं। मध्य हिमालय (धौलाधर) को नेपाल में ‘महाभारत श्रेणी’ कहते हैं।
- नेपाली, नीवार, गोरखा, शेरपा, भूटिया यहाँ की मुख्य जनजातियां हैं।
- यहाँ की राष्ट्रीय भाषा ‘नेपाली’ है। काठमांडू यहाँ की राजधानी होने के साथ-साथ सबसे बड़ा नगर भी है।
- ‘विराटनगर’ नेपाल का एकमात्र औद्योगिक नगर है। मिट्टी के बर्तन के लिये ‘थिमी’ प्रसिद्ध है। पर्यटन नेपाल का प्रमुख उद्योग है।
- भारत सरकार की मदद से नेपाल में त्रिशूली, कोसी, पंचेश्वर, सप्तकोशी व नाऊमूरे जैसी परियोजनाएँ विकसित की गई हैं।
- नेपाल की काठमांडू घाटी, लुंबिनी, चितवन नेशनल पार्क और सागरमाथा नेशनल पार्क को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है।
- उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित ‘मलेशिया’ मलाया प्रायद्वीप का एक भाग है। बोर्नियो द्वीप पर मलेशिया के दो राज्य ‘सरावाक’ और ‘सबाह’ स्थित है।
- प्रायद्वीपीय मलेशिया, मलक्का जलसंधि द्वारा इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप से तथा दक्षिणी चीन सागर द्वारा सरावाक और सबाह से अलग होता है। ‘किनाबलू’ इस क्षेत्र का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर है।
- मलेशिया की जलवायु उष्णकटिबंधीय है। साथ ही, समुद्री प्रभाव से यहाँ पर सम तापमान व अधिक वर्षा होती है। यहाँ पर सदाबहार वनों का विस्तार पाया जाता है।
- प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से मलेशिया संपन्न राष्ट्र है। यहाँ पर खनिज संसाधनों में टिन, तांबा, यूरेनियम, बॉक्साइट, कोयला, खनिज तेल व प्राकृतिक गैस प्रमुख रूप से पाए जाते हैं।
- यहाँ की ‘किन्ता-केलांग’ घाटी में स्थित ‘इपोह’ टिन उत्पादन का प्रमुख केंद्र है। ‘गोपेन खान’ विश्व की सबसे बड़ी टिन उत्पादक खान है।
- रबर उत्पादन में मलेशिया विश्व में अग्रणी देशों में से एक है। यहाँ रबर के बड़े-बड़े बागों को ‘रबर एस्टेट’ कहते हैं।
- मलेशिया ताड़तेल का भी एक बड़ा उत्पादक है।
- कुआलालंपुर यहाँ की राजधानी तथा सबसे बड़ा शहर है। मलेशिया मुस्लिम बाहुल्य देश है, किंतु यहाँ बौद्ध, ईसाई तथा हिंदू धर्म के लोग भी रहते हैं।
- मृदा (मिट्टी) पृथ्वी की ऊपरी परत है जो पौधों की वृद्धि के लिये प्राकृतिक स्रोत के रूप में पोषक तत्त्व, जल एवं अन्य खनिज लवण प्रदान करती है। पृथ्वी की यह ऊपरी परत खनिज कणों तथा जीवांश का एक मिश्रण है जो लाखों वर्षों में निर्मित हुई है।
- सामान्यतः मिट्टी की कई परतें होती हैं, जिसमें सबसे ऊपरी परत में छोटे मिट्टी के कण, सड़े-गले हुए पेड़-पौधों एवं जीवों के अवशेष होते हैं। यह परत फसलों की पैदावार के लिये बहुत उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण होती है।
- इस तरह मृदा शैलों के अपक्षयण व विघटन से उत्पन्न भू-पदार्थों, मलवा और विविध जैव सामग्रियों का सम्मिश्रण होती है, जो पृथ्वी की सतह (भू-पर्पटी की सतह) पर विकसित होती है।
- दूसरी परत महीन कणों (जैसे- चिकनी मिट्टी) की होती है, जिसके नीचे विखंडित चट्टानें एवं मिट्टी का मिश्रण होता है तथा इसके नीचे अविखंडित सख्त चट्टानें होती हैं। यह कुछ सेमी. से लेकर कई मीटर तक हो सकती है।
- पौधों की वृद्धि सामान्यतः 6.0-7.0 pH मान वाली मृदा में होती है। इसी pH मान के मध्य पौधे अपनी सारी क्रियाएँ करते हैं। अधिक अम्लीय अथवा क्षारीय मृदा पौधों के लिये हानिकारक होती है।
- ह्यूमस, खनिज तत्त्व, जल एवं वायु मृदा के मुख्य घटक होते हैं। इस घटकों का ही संयोजन (अनुपात) मृदा के प्रकार को निर्धारित करता है।
- मृदा के संघटन में सम्मिलित पदार्थ
- ह्यूमस अथवा कार्बनिक पदार्थ- लगभग 5 से 10 प्रतिशत
- खनिज पदार्थ- लगभग 40 से 45 प्रतिशत
- मृदा जल- लगभग 25 प्रतिशत
- मृदा वायु- लगभग 25 प्रतिशत
- मृदा जीव
कोशिका में केंद्रक की खोज रॉबर्ट ब्राउन ने 1831 ई. में की थी। केंद्रक कोशिका का नियंत्रण केंद्र होता है। केंद्रक में क्रोमोसोम तथा जीन उपस्थित रहते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं (बैक्टीरिया यथा नील हरित शैवाल) आदि में केंद्रक पूर्ण विकसित नहीं होता है। इसी कारण इसे इनसिपिएंट न्यूक्लियस (Incipient Nucleus) कहते हैं। केंद्रक निम्नलिखित चार भागों से मिलकर बनता है-
- केंद्रक झिल्ली (Nuclear Membrane)- यह दोहरी परत की एक झिल्ली है जो केंद्रक को चारों ओर से घेरे रहती है। इसके द्वारा केंद्रक कोशिका द्रव्य से पृथक् रहता है। बाहरी झिल्ली अंतःप्रद्रव्यी जालिका से जुड़ी होती है, जिस पर राइबोसोम्स भी पाए जाते हैं।
- केंद्रक द्रव्य (Nucleoplasm)- केंद्रक के अंदर गाढ़ा, अर्द्धतरल व पारदर्शी द्रव पाया जाता है, जिसे केंद्रक द्रव्य कहते हैं।
- केंद्रिका (Nucleolus)- केंद्रक के अंदर केंद्रक द्रव्य में एक छोटी गोलाकार झिल्ली रहित रचना पाई जाती है जिसे केंद्रिका कहते हैं। कोशिका विभाजन में केंद्रिका का विशेष महत्त्व होता है। यह राइबोसोमल RNA का संश्लेषण स्थल है, अतः इसे ‘RNA भंडारगृह’ कहा जाता है। सक्रिय रूप से प्रोटीन संश्लेषण करने वाली कोशिकाओं में केंद्रिका की संख्या अधिक व उनका आकार भी बड़ा होता है।
- क्रोमेटिन जालिका (Chromatin Network)- केंद्रक द्रव्य में अत्यधिक महीन व विस्तृत धागेनुमा रचनाएँ पाई जाती हैं, जिन्हें क्रोमेटिन जाल कहा जाता है। विभाजन के समय यही क्रोमेटिन जाल संघनित व व्यवस्थित होकर मोटी छड़ (Rod) जैसी हो जाती है, जिसे गुणसूत्र कहा जाता है। क्रोमेटिन DNA एवं प्रोटीन से बनी रचना होती है।
सूर्य नारायण स्वामी मंदिर, अरसवल्ली
- यह मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम ज़िले में स्थित है।
- ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में कलिंग के राजा देवेंद्र वर्मा द्वारा करवाया गया था।
- मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति के साथ तीन देवियों- ऊषा, छाया और पद्मिनी की मूर्तियाँ भी देखने को मिलती हैं। भगवान सूर्य को रथ पर सवार दिखाया गया है। इन आकृतियों को बड़े ही सुंदर ढंग से अच्छी तरह से पॉलिश्ड एकल ग्रेनाइट पत्थर पर उकेरा गया है।
सूर्य पहर मंदिर (असम)
- यह मंदिर गुवाहाटी में गोलपारा के समीप सूर्य पहर नामक पर्वत पर स्थित है।
- यह प्राचीन मंदिर लगभग 12वीं सदी का है, जो पत्थरों को काटकर निर्मित किया गया है।
- यहाँ पर पुरात्तात्विक उत्खनन से टेराकोटा कला की वस्तुएँ एवं पत्थर की वस्तुएँ संगृहीत की गई हैं।
दक्षिणार्क सूर्य मंदिर, गया (बिहार)
- यह प्राचीन सूर्य मंदिर बिहार के गया ज़िले में स्थित है।
- इस मंदिर में सूर्य देव की प्रतिमा के अलावा विभिन्न देवी तथा देवताओं की भी प्रतिमाएं (शिव, ब्रह्मा, विष्णु, दुर्गा) हैं।
- इस मंदिर में निर्माण की तिथि को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वान इसे मौर्य युग से पूर्व का मानते हैं, तो कुछ इसे 13वीं सदी का मानते हैं।
- इस मंदिर में एक बड़ा सभा मंडप है तथा मंदिर के मध्य भाग के विपरीत दूसरा मंडप शामिल है।
कोणार्क का सूर्य मंदिर (ब्लैक पैगोडा)
- कोणार्क के सूर्य मंदिर (पुरी, ओडिशा) का निर्माण गंग वंश के शासक नरसिंह देव ने करवाया था।
- संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के आकार में बनाया गया है।
- इस मंदिर को लाल बलुआ पत्थर एवं ग्रेनाईट पत्थर से निर्मित किया गया है।
- मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है। इस प्रकार की आकृतियां मुख्यतः द्वारमंडप के द्वितीय स्तर पर मिलती हैं।
- कोणार्क के सूर्य मंदिर को 1984 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।
मोढेरा का सूर्य मंदिर
- मोढेरा का सूर्य मंदिर गुजरात के मोढेरा में स्थित है। यह मंदिर आज भग्नावस्था में है।
- यह मंदिर स्थापत्य कला एवं शिल्प का एक बेजोड़ नमूना है। इसके निर्माण में हिंदू-ईरानी शैली का प्रयोग किया गया है।
- सोलंकी राजा भीमदेव ने इस मंदिर को दो हिस्सों में बनवाया था। इसके प्रथम भाग में गर्भगृह तथा द्वितीय भाग में सभामंडप है।
- मोढेरा के इस सूर्य मंदिर को गुजरात का खजुराहो के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस मंदिर की शिलाओं पर भी खजुराहो जैसी ही नक्काशीदार अनेक शिल्प कलाएँ मौजूद हैं। इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर की स्थापत्य कल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पूरे मंदिर के निर्माण में जुड़ाई के लिये कहीं भी चूने का प्रयोग नहीं हुआ है।
मार्तंड सूर्य मंदिर
- मार्तंड सूर्य मंदिर जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में स्थित है। यह मंदिर ललितादित्य मुक्तापीड द्वारा बनवाया गया था।
- यह मंदिर 220 फीट लंबे तथा 142 फीट चौड़े प्रांगण में बना है। इस प्रांगण को परकोटे से घेरा गया है, जिसके लिये 84 स्तंभों को थोड़ी-थोड़ी दूर पर खड़ा करके घेरा बनाया गया है। स्तंभों के मध्य एक प्रवेश द्वार है, जिससे प्रांगण में प्रवेश किया जाता है।
- इस मंदिर को बनाने के लिये चूने पत्थर की चौकोर ईंटों का प्रयोग किया गया है जो उस समय के कलाकारों की कुशलता को दर्शाता है। इस मंदिर से कश्मीर घाटी का मनोरम दृश्य भी देखा जा सकता है।
चर्चा के अनिवार्य घटक -
- अध्यापक- अध्यापक चर्चा का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। चर्चा का आयोजन, विषयवस्तु का चयन एवं गठन सब कुछ अध्यापक को स्वयं करना होता है। चर्चा के दौरान अध्यापक सावधानीपूर्वक निरीक्षण करता है व विद्यार्थियों की कठिनाइयों का समाधान कर चर्चा के सफल आयोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- विद्यार्थी- विद्यार्थी चर्चा का एक दूसरा महत्त्वपूर्ण घटक है। यह चर्चा में भाग लेकर किसी निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास करता है।
- समस्या- यह चर्चा का मूल विषय होता है। इसके समाधान के लिये ही चर्चा का आयोजन किया जाता है। समस्या यथासंभव स्पष्ट व विद्यार्थियों की बोधक्षमता की सीमा में होनी चाहिये। समस्या का चयन अध्यापक को विद्यार्थियों के सहयोग से करना चाहिये।
- विषय सामग्री- चर्चा के लिये विषय सामग्री का होना आवश्यक है। यदि किसी समस्या पर विचार-विमर्श करके उसका समाधान ढूंढ़ना हो तो विषय सामग्री अतिआवश्यक हो जाती है। विषय सामग्री के आधार पर ही समस्या का समाधान प्राप्त किया जाता है।
चर्चा के उद्देश्य-
चर्चा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- किसी भी विषय का विस्तृत रूप और ज्ञान प्रस्तुत करना।
- किसी समस्या से संबंधित विभिन्न पहलुओं की जानकारी देना तथा उसका उपयुक्त हल निकालना।
- अवधारणाओं की स्थापना एवं निर्माण में सहायता देना और उनका संवर्द्धन करना।
- विद्यार्थियों में व्यक्तिगत उत्तरदायित्व की भावना का विकास करना तथा तथ्यात्मक स्रोतों के आधार पर किसी समस्या का हल निकालना।
- उपलब्धियों का दूसरों के विभिन्न विचारों द्वारा मूल्यांकन करना तथा उच्चस्तरीय ज्ञानात्मक और भावनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करना।
चर्चा की विशेषताएँ-
- चर्चा की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- चर्चा किसी समस्या में निहित सभी संबंधों का विचारपूर्ण चिंतन है।
- चर्चा में विचारों का विनिमय होता है और तथ्यों के आधार पर खोज की जाती है।
- यह विचारों का आदान-प्रदान कर विद्यार्थियों को चिंतन का महत्त्वपूर्ण प्रशिक्षण प्रदान करती है।
- यह एक लोकतांत्रिक पद्धति है। यह प्रश्न पूछने और उत्तर देने के समान अवसर के सिद्धांत पर कार्य करती है।
- चर्चा के माध्यम से विद्यार्थियों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाया जाता है। इसमें गलत उपागमों को हतोत्साहित किया जाता है।
माइक्रोफाइनेंस वित्तीय समावेशन का वह उपकरण है जिससे छोटे-छोटे ऋणों के माध्यम से अर्थव्यवस्था के पिछड़े हुए क्षेत्रों तथा समाज के गरीब एवं वंचित वर्गों को वित्तीय सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है।
- अप्रैल, 2015 में माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी बैंक (Mudra Bank) का शुभारंभ किया गया जिसे ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’ के नाम से जाना जाता है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य सूक्ष्म तथा लघु उद्योगों के वित्तपोषण पर अपना ध्यान केंद्रित करना एवं युवा, शिक्षित और प्रशिक्षित उद्यमियों को मदद देकर उन्हें मुख्यधारा में लाना है। यह एजेंसी विनिर्माण, व्यापार और सेवा गतिविधियों में लगी सूक्ष्म/लघु व्यापारिक इकाइयों को ऋण प्रदान करने वाले वित्तीय संस्थानों का समर्थन करने के साथ ही पुनर्वित्तपोषण करने के लिये भी ज़िम्मेदार होगी।
इस योजना की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
- इस योजना के तहत छोटे उद्यमियों को कम ब्याज दर पर 50 हज़ार से 10 लाख रुपये तक का ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
- इसके तहत तीन श्रेणियों के अंतर्गत ऋणों का आवंटन किया जाता है-
- शिशु ऋण- 50 हज़ार रुपये तक,
- किशोर ऋण- 50 हज़ार रुपये से 5 लाख रुपये तक,
- तरुण ऋण- 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक
उद्देश्य
- छोटी इकाइयों को कम लागत पर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना;
- रोज़गार एवं स्वरोज़गार के अवसरों को बढ़ाना;
- उद्यमशीलता को बढ़ावा देना आदि।
- पारसी धर्म के पैगंबर ज़रथ्रुस्ट (ईरानी) थे।
- पारसियों का धार्मिक ग्रंथ ‘जेंद अवेस्ता’ है, जिनमें इनकी शिक्षाओं का संकलन है।
- पारसियों का प्रमुख त्योहार नवरोज़ है।
- पारसी धर्म एकैकाधिदेववादी धर्म है, जिसका तात्पर्य यह है कि पारसी लोग एक ईश्वर ‘अहुर मज़्दा’ में आस्था रखते हुए भी अन्य देवताओं की सत्ता को नहीं नकारते हैं। यद्यपि अहुर मज़्दा उनके सर्वोच्च देवता हैं, परंतु दैनिक जीवन के अनुष्ठानों व कर्मकांडों में ‘अग्नि’ उनके प्रमुख देवता के रूप में दृष्टिगत होते हैं।
- इस धर्म में मनुष्य के शव की अंत्येष्टि एक विशेष प्रकार से की जाती है। शव को खुले आसमान में काफी ऊँचाई पर (दाख्मा में) रख दिया जाता है ताकि चील-गिद्ध उसे खा जाएँ। मान्यता है कि ऐसा करने से पृथ्वी, जल व अग्नि की शुद्धता बची रहती है।
इलाहाबाद की संधि वर्ष 1765 में रॉबर्ट क्लाइव द्वारा मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय तथा अवध के नवाब शुजा-उद-दौला के साथ दो चरणों में संपन्न हुई थी।
इलाहाबाद की प्रथम संधि (12 अगस्त, 1765)
- यह संधि मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय तथा अंग्रेज़ गवर्नर क्लाइव के मध्य संपन्न हुई। इस संधि के तहत-
- कंपनी को मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय से स्थायी रूप से बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई। इसके बदले में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुगल सम्राट को 26 लाख रुपये वार्षिक देना स्वीकार किया।
- कंपनी ने अवध के नवाब से कड़ा और इलाहाबाद के क्षेत्र लेकर मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय को सौंप दिये।
इलाहाबाद की द्वितीय संधि (16 अगस्त, 1765)
- यह संधि क्लाइव और अवध के नवाब शुजा-उद-दौला के मध्य संपन्न हुई थी। इस संधि के तहत-
- इलाहाबाद और कड़ा को छोड़कर अवध का शेष क्षेत्र नवाब को वापस कर दिया गया।
- अवध के नवाब द्वारा युद्ध हर्ज़ाने के रूप में कंपनी को 50 लाख रुपये दिये जाने की बात स्वीकार की गई।
- कंपनी द्वारा अवध की सुरक्षा हेतु नवाब के खर्च पर एक अंग्रेज़ी सेना अवध में रखी गई।
- कंपनी को अवध में कर मुक्त व्यापार करने की छूट प्रदान की गई।
बनारस और गाज़ीपुर के क्षेत्र में अंग्रेज़ों के संरक्षण में जागीरदार बलवंत सिंह को अधिकार दिया गया। हालाँकि यह अवध के नवाब के अधीन ही माना गया।
- केरल में काली मिर्च, इलायची, अदरक, लहसुन, हल्दी, मिर्च आदि का वृहद् स्तर पर उत्पादन होता है। इसे ‘मसालों का बागान’ भी कहा जाता है।
- काली मिर्च को मसालों का राजा तथा इलायची को ‘मसालों की रानी’ कहा जाता है। काली मिर्च को ‘काला सोना’ की उपमा दी गई है।
- हल्दी में करक्यूमिन के कारण एंटीऑक्सिडेंट गुण पाया जाता है। हल्दी का पीला रंग भी इसी कारण होता है।
- लौंग की सूखी पुष्प कलिकाओं के वाष्प आसवन द्वारा प्राप्त तेल के प्रमुख घटक- यूजीनॉल, यूजीनाइल एसिटेट एवं β-कैरियोफिलीन हैं।
- अदरक से प्राप्त तेल के प्रमुख अवयव सेस्क्वीटर्पीन व जिंजीबरीन है। अदरक का तीखा स्वाद जिंजीबरीन के कारण होता है।
- जायफल एवं जावित्री को जायफल के पेड़ से प्राप्त किया जाता है। जायफल एक बीज/गुठली है एवं जावित्री एरिल होता है जो बीज को चारों तरफ से घेरे रहता है। जावित्री से मिरिस्टीसन प्राप्त किया जाता है जिसका दवाइयों के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।
- दालचीनी (सूखी छाल), लौंग (बंद पुष्प कलिकाएँ) तेजपत्ता (पत्तियां), जीरा (सूखे फल)
- सौंफ के बीजों के तेल में फेनकोन एवं लिमोनेन नामक मुख्य घटक उपस्थित रहते हैं। फेनकोन के कारण ही सौंफ मीठा लगता है।
- धनिये के तेल का मुख्य घटक कोरिएंड्राल (लिनालूल) है।
- वनिला स्वाद को वनिला बीज से प्राप्त किया जाता है।
- जीरा अंबैलीफैरी कुल के अंतर्गत आता है।
- भू-पटल के वे स्थलमंडल जिनकी कम-से-कम एक ढाल समीपवर्ती तट या सतह से ऊँची व खड़ी ढाल वाली हो तथा ऊपरी भाग मेज के आकृति की तरह समतल हो, पठार कहलाता है।
- पठार का निर्धारण ऊँचाई के आधार पर न होकर उसके शिखर या चोटी का सपाट या चपटा होने से होता है। पठार भू-पटल पर द्वितीय श्रेणी के उच्चावच के अंतर्गत सम्मिलित किये जाते हैं।
- कुछ पठार 100 मीटर तक ऊंचे हो सकते हैं तथा कुछ पठार कई हज़ार मीटर तक हो सकते हैं।
- ऊँचाई की दृष्टि से पर्वतों के बाद तथा क्षेत्रीय विस्तार के दृष्टिकोण से मैदान के पश्चात् पठार का स्थान है। भू-पटल के लगभग 33% भागों में पठार विद्यमान हैं।
- अप्लेशियन का पठार 1000 मीटर, कोलोराडो का पठार 2500 मीटर तथा तिब्बत का पठार 5000 मीटर तक ऊँचा है। वहीं राँची का पठार भी (600 मीटर) एक उत्तम उदाहरण है। इस प्रकार पठारों की ऊँचाई में भिन्नता पाई जाती है।
पठार की विशेषताएँ
- कुछ पठार पर्वतों से घिरे होते हैं तथा कुछ पठार एक ओर पर्वत तथा दूसरी ओर मैदान या तटीय भाग से घिरे होते हैं।
- मैदान की अपेक्षा पठारों पर उच्चावाचों की अधिकता होती है।
- पठारों पर छोटी-छोटी पहाड़ियाँ भी होती हैं तथा नदियों की घाटी कम गहरी होती है।
- श्यामजी कृष्ण वर्मा (1857-1930) ने 1905 में लंदन में इंडियन होमरूल सोसाइटी (IHRS) की स्थापना की। इन्होंने 1905 में भारत से ब्रिटेन जाने वाले विद्यार्थियों एवं क्रांतिकारियों के आश्रय हेतु लंदन में ‘इंडिया हाउस’ की स्थापना की।
- इंडिया हाउस क्रांतिकारी नेताओं, जैसे- पी.एम. बापट, वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, लाला हरदयाल, भाई परमानंद, मदनलाल ढींगरा, मैडम भीकाजी कामा, विनायक दामोदर सावरकर आदि के आश्रय एवं नीति-निर्माण का अड्डा बना गया।
- इंडिया हाउस के सदस्य मदनलाल ढींगरा ने 1909 में लंदन में विलियम कर्ज़न वाइली की हत्या कर दी। तत्पश्चात् मदनलाल को गिरफ्तार कर लंदन में ही फांसी दे दी गई।
- मासिक पत्रिका ‘The Indian Sociologist’ के संपादक श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म गुजरात के मांडवी कस्बे (कच्छ) में हुआ। ये बॉम्बे आर्य समाज के प्रथम अध्यक्ष चुने गए। इनकी मृत्यु 1930 में स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में हुई।
- ‘अनुसूचित बैंक’ वे होते हैं जो भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में सम्मिलित हों, साथ ही जिनकी प्रदत्त पूंजी तथा आरक्षित कोष का योग कम से कम 5 लाख रुपये के बराबर हो तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के निर्देशानुसार ये अपनी जमा का निर्धारित प्रतिशत नकद आरक्षित अनुदान (CRR) के रूप में उसके पास रखें एवं वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) के अनुसार अपने पास पूंजी की पर्याप्त मात्रा रखें। अनुसूचित बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से बैंक दर पर ऋण प्राप्त करने के लिये अधिकृत हो जाते हैं।
- इसी तरह गैर-अनुसूचित बैंक वे हैं जो दी गई शर्तों को पूरा न करने के कारण भारतीय रिज़र्व बैंक की दूसरी अनुसूची में शामिल नहीं होते हैं।
चर्चा एक ऐसी व्यूह रचना है जिसमें विद्यार्थियों व शिक्षक के मध्य होने वाले पारस्परिक वाद-विवाद, विचारों के आदान-प्रदान तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को मुख्य आधार बनाने का प्रयास किया जाता है। इसका प्रयोग निर्धारित शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु किया जाता है। चर्चा में शिक्षक और विद्यार्थी दोनों को पूरी तरह सक्रिय साझीदारी निभानी होती है। चर्चा गतिविधियों के नियोजन एवं संगठन पर इस तरह ध्यान देना होता है कि निर्धारित शिक्षण अधिगम उद्देश्यों को उचित तरीके से प्राप्त किया जा सके।
चर्चा की परिभाषाएँ (Definitions of Discussion)-
- ए.एच. ह्यूज के अनुसार, ‘‘यह एक सहयोगी कार्य है जिसमें प्रत्येक सहभागी समस्या को समझने का प्रयास करता है और सत्य की खोज करना चाहता है। इसे व्यवस्थित वार्तालाप से भी संबोधित किया जाता है।’’
- ली के अनुसार, ‘‘चर्चा शैक्षिक समूह क्रिया है। इसमें विद्यार्थी सहयोगपूर्वक एक-दूसरे से किसी समस्या पर विचार-विमर्श करते हैं।’’
- वेबस्टर के अनुसार, ‘‘चर्चा का तात्पर्य किसी प्रश्न, प्रकरण तथा समस्या के विभिन्न पहलुओं पर विचार करना, उनका परीक्षण तथा उनकी जाँच करना है।’’
- रिस्क के अनुसार, ‘‘चर्चा का अर्थ है अध्ययन अधीन प्रकरण अथवा समस्या में निहित सभी संबंधों पर पूर्णता से विचार करना। इसमें संबंधों का विश्लेषण किया जाता है, उनकी तुलना की जाती है और निष्कर्ष निकाले जाते हैं।’’
- गुड की डिक्शनरी ऑफ एजुकेशन के अनुसार, ‘‘चर्चा का अर्थ उस क्रिया से है जो किसी प्रकरण, प्रश्न या समस्या के साथ संबंधित होती है और उसमें भाग लेने वाले किसी निर्णय अथवा निष्कर्ष पर पहुँचने की सच्ची इच्छा रखती है।’’
चर्चा के प्रकार (Type of Discussion)-
- औपचारिक चर्चा- यह पूर्व निर्धारित कार्यक्रम तथा उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु आयोजित की जाती है। इस प्रकार की चर्चा के अपने निर्धारित नियम और उद्देश्य होते हैं। यह शिक्षक और विद्यार्थियों के मध्य आयोजित की जाती है।
- अनौपचारिक चर्चा- इसमें निर्धारित नियम एवं सिद्धांतों का प्रयोग नहीं होता है। यह शिक्षक एवं शिक्षार्थियों तथा विद्यार्थी और विद्यार्थी के मध्य भी आयोजित हो सकती है।
- न्यायपालिका द्वारा अपने परंपरागत न्यायिक भूमिका का अतिक्रमण कर विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों में दखल देना।
- भारत में न्यायिक सक्रियता के अंतर्गत न्यायपालिका के निम्नलिखित कदमों को शामिल किया जाता है-
- संविधान की मौलिक व्याख्याएँ इस प्रकार करना कि संविधान का अर्थ बदल जाए और विधायिका तथा कार्यपालिका इस नए अर्थ के अनुसार कार्य करने को बाध्य हो जाए। उदाहरण के लिये, अनुच्छेद-21 में दी गई शब्दावली ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ (Procedure established by law) की जैसी व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय ने ‘मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)’ मामले में की, वह इस दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है। इसी प्रकार, अनुच्छेद-21 में दिये गए ‘जीवन के अधिकार’ के अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा, आजीविका, एकांतता जैसे अधिसंख्य अधिकारों को शामिल कर देना भी एक अर्थ में न्यायिक सक्रियता का उदाहरण है।
- न्यायिक सक्रियता का दूसरा उदाहरण उन मामलों में दिखता है जिनमें न्यायपालिका ने सीधे-सीधे कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में दखल देते हुए महत्त्वपूर्ण मामलों पर नीति-निर्देश दिये हैं। उदाहरण के लिये, ‘एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य’ (1996) मामले में न्यायालय ने बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने के लिये, तो ‘विशाखा बनाम राजस्थान राज्य’ (1997) मामले में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने के लिये विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये।
न्यायिक सक्रियता का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण जनहित याचिकाओं या लोकहित वादों (PILs- Public Interest Litigations) को स्वीकार करना है।
- सदन का नेता (Leader of the House) : इसकी चर्चा संविधान में नहीं, सदनों की नियमावलियों में है। सामान्यत: लोकसभा में सदन के नेता का अर्थ प्रधानमंत्री होता है। कभी प्रधानमंत्री राज्यसभा से हो तो वह अपनी मंत्रिपरिषद के किसी ऐसे मंत्री को, जो लोकसभा का सदस्य है, लोकसभा में सदन के नेता की भूमिका के लिये मनोनीत करता है।
- विपक्ष का नेता (Leader of the Opposition) : संसद के दोनों सदनों में एक-एक ‘विपक्ष का नेता’ होता है। विपक्ष के नेता का दर्जा प्राप्त करने के लिये सबसे बड़े विपक्षी दल के पास सदन की कुल सदस्य संख्या का 1/10 भाग होना चाहिये।
- सचेतक (Whip) : ‘सचेतक’ का कार्य संसद में अपने राजनीतिक दल के सदस्यों को अनुशासन में रखना होता है। इसके अलावा यदि किसी मुद्दे पर संसद में मतदान होना हो तो वह अपने दल के सदस्यों को निर्देश जारी करता है कि उन्हें मतदान में प्रस्ताव का समर्थन करना है, विरोध करना है या तटस्थ रहना है।
जैन धर्म के पतन के निम्नलिखित कारण थे-
- आत्मपीड़न, कठोर व्रत एवं तपस्या पर बल; जाति व्यवस्था के दर्शन को बनाए रखना।
- अहिंसा पर अत्यधिक बल (कृषि करने एवं युद्ध में संलग्न होने से मना किया) के कारण सामान्य जन के लिये नियम धारण कर पाना काफी असहज साबित हुआ।
- जैन दर्शन में अत्यधिक क्लिष्टता होने के कारण इसके स्यादवाद, अनेकांतवाद, द्वैतवादी तत्त्वज्ञान आदि को समझना साधारण जनता के वश की बात न थी। परिणामस्वरूप जैन धर्म तपस्वियों तक ही सीमित रहा।
- प्रारंभ में जैन धर्म एक सशक्त आंदोलन था, किंतु बाद में जैन मतावलंबियों में आंतरिक मतभेद प्रारंभ हो गए। परिणामस्वरूप जैन धर्म दो संप्रदायों- दिगंबर और श्वेतांबर में विभाजित हो गया। जैन धर्म का यह सांप्रदायिक विभाजन जैन धर्म के लिये अत्यधिक घातक सिद्ध हुआ और जैन धर्म पतन की ओर अग्रसर हो गया।
- चूँकि प्रारंभ में जैन साहित्य का लेखन प्राकृत भाषा में किया गया। अतः जनसाधारण ने इसे आसानी से समझा, क्योंकि उस समय जनसाधारण की भाषा प्राकृत थी, किंतु बाद में जब से जैन साहित्य संस्कृत में लिखा जाने लगा तब से जनसाधारण के लिये जैन साहित्य को समझना दुष्कर हो गया। परिणामतः जनसाधारण का जैन धर्म के प्रति दृष्टिकोण उदासीन होता चला गया।
- बौद्ध धर्म का विस्तार एवं ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान।
- जैन धर्म के उत्कर्ष में तत्कालीन नरेशों का महत्त्वपूर्ण योगदान था किंतु बाद में जैन धर्म को राजकीय आश्रय प्राप्त न हो सका। फलतः राजाश्रय के अभाव से जैन धर्म के अनुयायियों की संख्या धीरे-धीरे घटने लगी।
- किसी धर्म के प्रसार में उसके प्रचारकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। कालांतर में जैन धर्म में अच्छे धर्मप्रचारकों का अभाव हो गया। फलतः जैन धर्म के प्रसार का मार्ग अवरुद्ध हो गया।
बौद्ध धर्म के पतन के निम्नलिखित कारण थे-
- बौद्ध धर्म में ब्राह्मणवादी क्रियाकलापों का समावेश हो गया, क्योंकि बुद्ध को ब्राह्मणों ने विष्णु का अवतार मानकर वैष्णव धर्म में समाहित कर लिया। अतः बौद्ध धर्म ने अपनी विशिष्ट पहचान खो दी।
- बौद्ध धर्म में कर्मकांडों का प्रारंभ हो गया था।
- बौद्ध भिक्षुओं का आम लोगों से दूर जाना।
- पालि भाषा त्यागकर संस्कृत को अपनाना।
- बौद्ध मठ एवं विहार कुरीतियों के केंद्र बन गए।
- बौद्ध मठों में अत्यधिक धन संचय होने के कारण यह आक्रमणकारियों के भी शिकार हुए।
- राजकीय संरक्षण का अंत (शुंग, कण्व, आंध्र-सातवाहन तथा गुप्त वंशीय शासकों ने ब्राह्मण धर्म को संरक्षण प्रदान किया, बौद्ध धर्म को नहीं। परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म एक राष्ट्रीय धर्म न रहा और इस धर्म का पतन होने लगा।)
- शैव धर्म से बौद्ध धर्म की प्रतिद्वंद्विता हुई। बंगाल के शैव शासक शशांक ने बोधगया के बोधि वृक्ष को कटवा दिया था।
- आर्थिक क्षेत्र में- लोहे के फाल वाले हल से खेती करने से अनाजों के पैदावार में वृद्धि हुई तथा व्यापार और सिक्कों के प्रचलन से व्यापारियों एवं अमीरों को धन संचित करने का मौका मिला। किंतु, बौद्ध धर्म ने घोषणा की कि धन संचित नहीं करना चाहिये, क्योंकि धन दरिद्रता, घृणा, क्रूरता और हिंसा की जननी है। परिणामतः धन लोलुपता में कमी आई।
- सामाजिक क्षेत्र में- बौद्ध धर्म ने स्त्रियों और शूद्रों के लिये अपने द्वार खोलकर समाज पर गहरा प्रभाव जमाया और जिसने भी बौद्ध धर्म अपनाया, उसे हीनता से मुक्ति मिली।
- राजनीतिक क्षेत्र में- जिस शासक ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया, चाहे वह समकालीन हो या परवर्ती, अपनी नीति में अहिंसा को एक नीति के रूप में लागू किया, जैसे- अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर ‘धम्म नीति’ का अनुसरण किया तथा लंबे समय तक शांति के साथ अपने साम्राज्य पर शासन किया।
- सांस्कृतिक क्षेत्र में- प्राचीन भारत की कला पर बौद्ध धर्म का प्रभाव परिलक्षित हुआ। श्रृद्धालु उपासकों ने बुद्ध के जीवन की अनेक घटनाओं को पत्थर पर उकेरा है, उदाहरण के लिये- साँची, भरहुत, सारनाथ, कौशांबी आदि स्थान पर।
बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिये चार बौद्ध संगीतियों का आयोजन किया गया।
- प्रथम बौद्ध संगीति
- यह 483 ई.पू. अजातशत्रु के शासनकाल में राजगृह (सप्तपर्णी गुफा में) आयोजित की गई थी।
- इसकी अध्यक्षता महाकस्सप ने की थी।
- इसमें बुद्ध के उपदेशों को सुत्तपिटक तथा विनयपिटक में अलग-अलग संकलित किया गया।
- द्वितीय बौद्ध संगीति
- यह 383 ई.पू. वैशाली में कालाशोक के शासनकाल में आयोजित की गई थी।
- इसकी अध्यक्षता साबकमीर (सुबुकामी) ने की थी।
- इसमें भिक्षुओं में मतभेद के कारण बौद्ध संघ स्थविर एवं महासंघिक में विभाजित हो गया था।
- तृतीय बौद्ध संगीति
- यह 250 ई.पू. अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में आयोजित की गई थी।
- इसकी अध्यक्षता मोगलिपुत्त-तिस्स ने की थी।
- इसमें अभिधम्मपिटक (तीसरा पिटक) का संकलन किया गया था।
- चतुर्थ बौद्ध संगीति
- यह लगभग ईसा की प्रथम शताब्दी में कनिष्क के शासनकाल में कुंडलवन (कश्मीर) में आयोजित की गई थी।
- इसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने की थी।
- इसमें बौद्ध धर्म का हीनयान एवं महायान संप्रदायों में विभाजन हो गया। हीनयान में वस्तुतः स्थविरवादी तथा महायान में महासंघिक थे।
- सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को वर्तमान ओडिशा के कटक में हुआ था। सुभाष के पिता जानकीनाथ बोस पेशे से एक वकील थे।
- वर्ष 1919 में सुभाष ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से अपना स्नातक पूर्ण किया। स्नातक पूर्ण करने के बाद उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और 1920 में सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा (ICS) उत्तीर्ण की।
- देश की राजनीतिक स्थितियों को देखते हुए बोस ने 1921 में नौकरी छोड़ दी और राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए।
- वर्ष 1938 के हरिपुरा अधिवेशन में बोस को सर्वसम्मति से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
- अगले वर्ष त्रिपुरी में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में पट्टाभि सीतारमैया को हरा दिया और पुन: अध्यक्ष निर्वाचित हुए, किंतु कांग्रेस कार्यकारिणी के गठन पर गांधीजी से मतभेद के कारण वे कोर कांग्रेस नेतृत्व से अलग हो गए और 1939 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
- अपने राजनीतिक विचारों को बढ़ावा देने के लिये बोस ने ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ की स्थापना की।
- जनवरी 1942 में बर्लिन से नेताजी ने ‘आज़ाद हिंद रेडियो’ का प्रसारण शुरू किया तथा बाद में इसका मुख्यालय सिंगापुर और तत्पश्चात् रंगून स्थानांतरित किया गया।
- मार्च 1942 में टोक्यो में रासबिहारी बोस ने ‘इंडियन इंडिपेंडेंस लीग’ का गठन किया जिसे बाद में सुभाष चंद्र बोस ने नेतृत्व प्रदान किया।
- जुलाई 1943 में रासबिहारी बोस ने ‘आज़ाद हिंद फौज’ की कमान सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी और नेताजी फौज के सर्वोच्च सेनापति नियुक्त हुए तथा ‘आज़ाद हिंद फौज’ को स्थायित्व प्रदान किया।
- 21 अक्तूबर, 1943 को बोस ने सिंगापुर में ‘आज़ाद हिंद’ की ‘प्रोविज़नल सरकार’ के गठन की घोषणा की तथा इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न स्वतंत्र देशों ने मान्यता प्रदान की।
- जनवरी 1944 में आईएनए का मुख्यालय रंगून में स्थानांतरित कर दिया गया।
- बोस ने स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी का महत्त्व स्वीकारते हुए आज़ाद हिंद फौज में ‘‘रानी झाँसी रेजिमेंट’’ गठित की। इस रेजिमेंट की कमान ‘कैप्टन लक्ष्मी सहगल’ के हाथों में थी।
- वे स्वतंत्र भारत में महिला-पुरुष अधिकारों में समानता के प्रबल पक्षधर थे। इनके राजनीतिक गुरु देशबंधु चित्तरंजन दास थे।
- भारत सरकार ने सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस 23 जनवरी को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
- नेहरू का जन्म 14 नवंबर, 1889 को इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) में हुआ।
- नेहरू 1912 में कांग्रेस के पटना अधिवेशन में शामिल हुए और यहीं से राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति उनका झुकाव शुरू हुआ।
- एनी बेसेंट द्वारा होमरूल लीग के अंतर्गत किये जा रहे कार्यों से जवाहरलाल नेहरू अत्यधिक प्रभावित थे।
- 1916 में गांधीजी से नेहरू मिले और दोनों में गहरी मित्रता हुई।
- 1920 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण नेहरू पहली बार जेल गए।
- 1923 में नेहरू कांग्रेस महासचिव बने तथा 1929 में लाहौर अधिवेशन में नेहरू अध्यक्ष बने। इस अधिवेशन में कांग्रेस द्वारा ‘पूर्ण-स्वराज’ का संकल्प पारित किया गया।
- ‘नमक सत्याग्रह’ तथा ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ सहित अनेक संघर्षों में नेहरू ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अनेक बार नेहरू को जेल भी जाना पड़ा।
- नेहरू ने भारत शासन अधिनियम, 1935 को ‘एक कार जिसमें ब्रेक तो है पर इंजन नहीं’ तथा ‘दासता का अधिकार पत्र’ कहा।
- नेहरू की प्रमुख पुस्तकों में ‘ग्लिम्प्सेज़ ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ (1934) तथा ‘द डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ (1946) हैं।
- संविधान सभा की संघीय समिति के अध्यक्ष नेहरू थे।
- अगस्त 1946 में वेवेल ने नेहरू को अंतरिम सरकार के गठन के लिये आमंत्रित किया। अंतरिम मंत्रिमंडल में ‘प्रधानमंत्री, वैज्ञानिक शोध, राष्ट्रमंडल संबंध तथा विदेशी मामले’ संबंधित विभाग नेहरू के पास था।
- नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने तथा उन्होंने शीतयुद्ध के समय ‘गुट-निरपेक्ष’ आंदोलन का नेतृत्व किया।
- गोखले का जन्म वर्तमान महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरि ज़िले में 1866 में हुआ।
- गोखले जे.एस. मिल तथा एडमंड बर्क के राजनीतिक विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे।
- समाज सुधारक एम.जी. रानाडे से प्रभावित होकर गोखले 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए।
- गोखले उदारवादी थे तथा शांतिपूर्ण तरीके से राजनीतिक अधिकारों के लिये संघर्ष कर रहे थे।
- 1890 में वे ‘पूना सार्वजनिक सभा’ के सचिव चुने गए।
- गोखले समाज में सामाजिक सुधार के लिये औपनिवेशिक सरकार के साथ मिलकर काम करने में विश्वास करते थे। उन्हें 1899 में ‘बॉम्बे की विधान परिषद’ और 1901 में गवर्नर-जनरल की ‘इंपीरियल काउंसिल’ के लिये चुना गया।
- 1905 में, गोखले ने भारतीयों में शिक्षा का विस्तार करने के लिये ‘सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना की। वे चाहते थे कि भारतीयों को ऐसी शिक्षा मिले जो उनमें नागरिक-कर्त्तव्य और देशभक्ति की भावना पैदा करे।
- वे एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थे।
- गोपाल कृष्ण गोखले ने मॉर्ले-मिंटो सुधारों में प्रमुख भूमिका निभाई।
- 1908 में गोखले ने ‘रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ इकॉनमिक्स’ की स्थापना की। उन्होंने छुआछूत और जाति-व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाई; महिलाओं की मुक्ति और महिला शिक्षा का समर्थन किया।
- गोखले ने दैनिक समाचार पत्र ‘जनप्रकाश’ का प्रकाशन किया।
- 1911 में गोखले ने ‘हितवाद’ का प्रकाशन आरंभ किया।
- गोखले महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु हैं। गांधीजी ने ‘गोखले : माय पॉलिटिकल गुरु’ नामक एक पुस्तक लिखी थी।
- 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बनारस अधिवेशन की अध्यक्षता गोपाल कृष्ण गोखले ने की।
- तिलक ने गोखले को ‘भारत का हीरा’, ‘महाराष्ट्र का आभूषण’ तथा ‘श्रमिकों का राजकुमार’ कहकर उनकी प्रशंसा की।
- 25 दिसंबर, 1876 को मुहम्मद अली जिन्ना का जन्म कराची (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ।
- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की प्रक्रिया में जिन्ना ने मुस्लिम-अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व किया।
- इंडियन होमरूल लीग में जिन्ना का अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
- 1913 में जिन्ना मुस्लिम लीग के सदस्य बने तथा 1916 में मुस्लिम लीग के अध्यक्ष बने।
- कांग्रेस के नेतृत्व में 1920 में चलाए गए असहयोग आंदोलन का जिन्ना ने विरोध किया और कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया।
- मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस के मध्य ‘लखनऊ-समझौता’ (1916) करवाने में जिन्ना का अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
- नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकार करने के पश्चात् जिन्ना ने मार्च 1922 में अलग से चौदह सूत्री मांगें प्रस्तुत कीं।
- 1930 में जिन्ना प्रथम गोलमेज़ सम्मेलन में शामिल हुए तथा भारतीय-मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व किया।
- 1941 में जिन्ना ने ‘डॉन’ (Dawn) समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया।
- 1930 के दशक का अंत आते-आते अंग्रेज़ों ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के साथ-साथ मुसलमानों के लिये एक पृथक् स्वतंत्र राष्ट्र की मांग तेज़ हुई। जिन्ना इस मांग के नेतृत्वकर्त्ता थे।
- कांग्रेस आरंभ में देश के विभाजन पर सहमत नहीं थी, परंतु 1940 के दशक में हुए भीषण दंगों ने उसे विवश कर दिया।
- इस प्रकार जिन्ना के प्रयासों से 1947 में भारत का विभाजन व पाकिस्तान का निर्माण हुआ। जिन्ना स्वतंत्र राष्ट्र के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
- पाकिस्तान में जिन्ना को ‘क़ायद-ए-आज़म’ कहकर संबोधित किया जाता है।
सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारणों को मुख्यतः चार वर्गों में वर्गीकृत कर सकते हैं-
आर्थिक कारण
- मूल्यों में वृद्धि
- औद्योगिक विकास
- आर्थिक नियोजन
- राष्ट्रीय आय में वृद्धि
- अल्पविकसित राष्ट्रों को आर्थिक सहायता
- उत्पादकों को आर्थिक सहायता
सामाजिक कारण
- सामाजिक सुरक्षा उपायों में वृद्धि
- जनसंख्या में वृद्धि
- आवश्यकताओं की सामूहिक संतुष्टि
राजनीतिक कारण
- लोकतांत्रिक शासन प्रणाली का विकास
- सुरक्षा व्यय में वृद्धि
अन्य कारण
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का प्रभाव
- प्रशासनिक दोष
- स्थानीय एवं सामाजिक समस्याएँ
- सरकार के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन
भारतीय शेयर बाज़ारों और अन्य प्रतिभूति बाज़ारों के व्यवसाय को विनियमित करने तथा उन्हें एक संगठित स्वरूप प्रदान करने के लिये भारत सरकार द्वारा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना 1988 में एक विधि-इतर निकाय के रूप में की गई। 12 अप्रैल, 1992 को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के तहत इसे वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। वर्तमान में चेयरमैन के अतिरिक्त 4 पूर्णकालिक सदस्य और 4 अंशकालिक सदस्य इसके बोर्ड में शामिल हैं। इसका मुख्यालय मुंबई में है।
इसके प्रमुख कार्य एवं अधिकार निम्नलिखित हैं-
- प्रतिभूति बाज़ार में निवेशकों को संरक्षण प्रदान करना तथा विभिन्न उपायों से प्रतिभूति बाज़ार को विनियमित तथा विकसित करना;
- स्टॉक एक्सचेंज, मर्चेंट बैंक, म्यूच्यूअल फंड, अंडरराइटर्स, रजिस्ट्रार, ब्रोकर्स इत्यादि को विनियमित करने के साथ पंजीकरण करना;
- स्टॉक एक्सचेंजों तथा अन्य मध्यस्थों की जाँच और उनकी लेखा परीक्षा करना;
- प्रतिभूति बाज़ार से जुड़े कामगारों तथा निवेशकों को शिक्षा प्रदान कर प्रोत्साहित करना;
- विभिन्न शुल्कों की वसूली करना।
प्रतिभूति कानून (संशोधन) अधिनियम, 2014 के माध्यम से सभी को फर्जी निवेश योजनाओं पर लगाम लगाने, जाँच के बारे में निकायों से सूचनाएँ मांगने और मामलों का त्वरित निपटारा सुनिश्चित करने के लिये विशेष अदालत गठित करने के संबंध में SEBI को और अधिकार प्राप्त हो गए हैं।
सितंबर 2015 में SEBI और FMC (Forward Markets Commission) का आपस में विलय कर दिया गया। इस विलय से अब कमोडिटी ब्रोकर भी सेबी ब्रोकर नियमों के दायरे में आ गए जिससे अब वायदा कारोबार में भी ज़्यादा पारदर्शिता आएगी।
- ये भारत रत्न के बाद सबसे उच्च नागरिक सम्मान हैं।
- पद्म पुरस्कार वर्ष 1954 में प्रारंभ किये गए। वर्ष 1978, 1979 तथा 1993 से 1997 के दौरान के अंतराल को छोड़कर ये पुरस्कार प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस पर घोषित किये जाते हैं।
- वर्ष 1954 में भारत रत्न के बाद दूसरे सर्वोच्च सम्मान के रूप में पद्म विभूषण प्रदान करने की परिपाटी शुरू की गई। किंतु 1955 से पद्म पुरस्कार के अंतर्गत क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर पद्म भूषण और पद्म श्री को भी सम्मिलित कर लिया गया।
- ये पुरस्कार निम्नलिखित तीन श्रेणियों में प्रदान किये जाते हैं-
- पद्म विभूषण : ‘असाधारण एवं विशिष्ट सेवा’ के लिये।
- पद्म भूषण : ‘उच्च कोटि की विशिष्ट सेवा’ के लिये।
- पद्म श्री : ‘विशिष्ट सेवा’ के लिये प्रदान किये जाते हैं।
- ये पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति भवन में सामान्यतः मार्च/अप्रैल माह में आयोजित समारोह में प्रदान किया जाता है।
- एक वर्ष में प्रदान किये जाने वाले पुरस्कारों की कुल संख्या (मरणोपरांत पुरस्कारों तथा विदेशियों को दिये जाने वाले पुरस्कारों को छोड़कर) 120 से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- यह भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है, जो किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवा हेतु प्रदान किया जाता है।
- यह पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा 1954 से देना प्रारंभ किया गया।
- प्रारंभ में यह पुरस्कार मरणोपरांत नहीं दिया जाता था, परंतु 1966 से यह मरणोपरांत भी दिया जाता है।
- इस पुरस्कार के अंतर्गत कोई राशि प्रदान नहीं की जाती तथा विशेष वर्ष में अधिकतम तीन व्यक्तियों को यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
- प्रतीक : एक पीपल के पत्ते पर सूर्य की छवि के साथ देवनागरी लिपि में ‘भारत रत्न’ लिखा हुआ है।
‘भारत रत्न’ से सम्मानित व्यक्ति |
|
1954 |
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. चंद्रशेखर वेंकटरमण |
1955 |
डॉ. भगवान दास, डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया, जवाहरलाल नेहरू |
1957 |
पंडित गोविंद बल्लभ पंत |
1958 |
धोंडो केशव कर्वे |
1961 |
बिधानचंद्र राय, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन |
1962 |
डॉ. राजेंद्र प्रसाद |
1963 |
डॉ. जाकिर हुसैन, डॉ. पांडुरंग वामन काणे |
1966 |
लाल बहादुर शास्त्री (मरणोपरांत पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति) |
1971 |
इंदिरा गाँधी |
1975 |
वराह गिरि वेंकट गिरि |
1976 |
कुमारस्वामी कामराज (मरणोपरांत) |
1980 |
मदर टेरेसा |
1983 |
आचार्य विनोबा भावे |
1987 |
खान अब्दुल गफ्फार खान (प्रथम अनिवासी पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता) |
1988 |
एम.जी. रामचंद्रन (मरणोपरांत) |
1990 |
डॉ. भीमराव आंबेडकर (मरणोपरांत), नेल्सन मंडेला (द्वितीय अनिवासी पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता) |
1991 |
राजीव गाँधी (मरणोपरांत), सरदार वल्लभ भाई पटेल (मरणोपरांत), मोरारजी देसाई |
1992 |
मौलाना अबुल कलम आज़ाद (मरणोपरांत), जे.आर.डी. टाटा, सत्यजीत राय |
1997 |
गुलजारी लाल नंदा, अरुणा आसफ अली (मरणोपरांत), ए.पी.जे. अब्दुल कलाम |
1998 |
एम.एस. सुब्बालक्ष्मी, सी. सुब्रमण्यम |
1999 |
जयप्रकाश नारायण (मरणोपरांत), प्रो. अमर्त्य सेन, गोपीनाथ बारदोलोई (मरणोपरांत), पंडित रवि शंकर |
2001 |
लता मंगेशकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां |
2009 |
भीमसेन जोशी |
2014 |
चिंतामणि नगेसा रामचंद्र राव, सचिन तेंदुलकर |
2015 |
मदन मोहन मालवीय (मरणोपरांत), अटल बिहारी वाजपेयी |
2019 |
नानाजी देशमुख (मरणोपरांत), भूपेन हज़ारिका (मरणोपरांत), प्रणब मुखर्जी |
2024 |
कर्पूरी ठाकुर (मरणोपरांत), लालकृष्ण आडवाणी, पी.वी. नरसिम्हा राव (मरणोपरांत), चौधरी चरण सिंह (मरणोपरांत), एम.एस. स्वामीनाथन (मरणोपरांत) |
नोट-
- भारत रत्न के संबंध में दिशा-निर्देशों के अनुसार एक वर्ष में अधिकतम तीन व्यक्तियों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा सकता है। इस नियम को पहली बार वर्ष 1999 में तोड़ा गया जहाँ चार व्यक्तियों को भारत रत्न से सम्मानित किया गया जिनमें जयप्रकाश नारायण, अमर्त्य सेन, गोपीनाथ बारदोलोई और पंडित रवि शंकर शामिल थे।
- वर्ष 2024 में पुनः एक बार नियम को तोड़ा गया और पाँच व्यक्तियों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- प्रबलता (Loudness)- यह हमारे कान में उत्पन्न वह संवेदना है, जिसके कारण हम तीव्र अथवा मंद ध्वनियों की पहचान कर पाते हैं। किसी ध्वनि की प्रबलता ध्वनि के आयाम पर निर्भर करती है।
- तारत्व (Pitch)- यह ध्वनि का वह अभिलक्षण है, जिससे ध्वनि मोटी अथवा पतली सुनाई देती है। ध्वनि का तारत्व ध्वनि की आवृत्ति पर निर्भर करता है। तारत्व जितना अधिक होता है, ध्वनि की आवाज उतनी ही पतली होती है। बच्चों एवं लड़कियों की आवाज का तारत्व अधिक होता है। इसलिये इनकी आवाज पतली सुनाई देती है।
- गुणता (Quality)- ध्वनि की इस विशेषता से हम एक-समान तारत्व व प्रबलता वाली ध्वनियों में विभेद कर पाते हैं। गुणता की वजह से हम अपने विभिन्न मित्रों तथा रिश्तेदारों की आवाज पहचान लेते हैं। एक साथ एक ही आवृत्ति पर बजने वाले वाद्ययंत्रों की आवाज को भी इसी गुण के आधार पर महसूस किया जाता है।
- परावर्तन (Reflection)- ध्वनि तरंगें भी प्रकाश तरंगों की भाँति परावर्तन का गुण प्रदर्शित करती हैं। ध्वनि तरंगों के मार्ग में जब अवरोध उत्पन्न होता है तो ये तरंगें भी प्रकाश तरंगों की भाँति परावर्तित होती हैं। चूँकि ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्ध्य अधिक होती है, अतः बड़े पृष्ठों से इनका परावर्तन अधिक होता है।
- ध्वनि का अपवर्तन (Refraction of Sound)- प्रकाश तरंगों की तरह ध्वनि तरंगों में भी अपवर्तन का गुण पाया जाता है अर्थात् जब ध्वनि एक माध्यम से दूसरे माध्यम में गमन करती है तो उसकी दिशा परिवर्तित हो जाती है। अपवर्तन की घटना के पीछे मुख्य वजह विभिन्न माध्यमों और तापों में ध्वनि की चाल का भिन्न-भिन्न होना है।
- ध्वनि का व्यतिकरण (Interference of Sound)- जब दो समान आवृत्ति और समान आयाम की ध्वनियाँ एक साथ एक बिंदु पर पहुँचती हैं तो उस बिंदु पर ध्वनि ऊर्जा का पुनर्वितरण हो जाता है। यह घटना ‘ध्वनि का व्यतिकरण’ कहलाती है।
- ध्वनि का विवर्तन (Diffraction of Sound)- जब ध्वनि के मार्ग में अवरोध उत्पन्न होता है तो वह सुलभ स्थान से मुड़कर आगे बढ़ती है। इस घटना को ‘ध्वनि का विवर्तन’ कहते हैं, उदाहरण- खिड़कियों या दरवाज़ों से आवाज सुनाई देना।
- अनुरणन (Reverberation)- जब ध्वनि के मार्ग में कोई दृढ़ अवरोध पड़ता है तो ध्वनि परावर्तित हो जाती है। जब ध्वनि स्रोत किसी बंद कमरे में दृढ़ दीवारों से घिरा होता है तो ध्वनि स्रोत बंद होने के पश्चात् भी कुछ समय तक ध्वनि सुनाई देती है, क्योंकि ध्वनि का बार-बार परावर्तन होता है। यह घटना ध्वनि का ‘अनुरणन’ कहलाती है।
- अनुरणन की घटना को प्रभावहीन करने के लिये ही सिनेमाहॉल की दीवारों को खुरदरा बनाया जाता है अथवा ध्वनि अवशोषक पदार्थों की एक परत ऊपर से लगाई जाती है। बादलों का गर्जन भी अनुरणन का उदाहरण है।
- प्रतिध्वनि (Echo)- वह ध्वनि जो किसी अवरोध से टकराने के बाद वापस लौटती है, उसे ‘प्रतिध्वनि’ कहते हैं। यदि ध्वनि का वेग 332मी./से. है तो प्रतिध्वनि उत्पन्न होने के लिये अवरोध, ध्वनि स्रोत से लगभग 17 मीटर (16.6 मी.) दूर होना चाहिये।
- मनुष्य ‘विषमदंती’ होता है, अर्थात् मनुष्य ने 4 प्रकार के दांत पाए जाते हैं, कृंतक (Incisor), रदनक (Canine), अग्रचवर्णक (Premolar) एवं चवर्णक (Molar)
- कृंतक (Incisor) सबसे आगे के दांत होते हैं जिनका कार्य भोजन को काटना होता है।
- रदनक (Canine) नुकीले दांत होते हैं जिनका कार्य भोजन को फाड़ना होता है।
- अग्रचवर्णक (Premolar) तथा चवर्णक (Molar) को ‘गाल दंत’ (Cheek Teeth) कहा जाता है जिनका कार्य भोजन को पीसना होता है।
- तीसरे चवर्णक लगभग 20 वर्ष की आयु में निकलते हैं जिन्हें ‘बुद्धि दंत’ (Wisdom Teeth) कहते हैं। ये सबसे अंत में निकलते हैं। अधिकतर लोगों में चार अक्ल दाढ़ पाई जाती हैं।
- मनुष्य में रदनक व बुद्धि दंत अवशेषी संरचनाएँ (Vestigial Structures) हैं।
- दंतवल्क या इनैमल (Enamel) दांत की ऊपरी परत होती है। इनैमल मानव शरीर का कठोरतम भाग होता है।
- इनैमल लगभग 98% कैल्शियम लवण (कैल्शियम फॉस्फेट एवं कैल्शियम कार्बोनेट) द्वारा बना होता है जिसे फ्लोरीन मज़बूती प्रदान करता है।
राज्य की उत्पत्ति का ऐतिहासिक (विकासात्मक) सिद्धांत
- राज्य की उत्पत्ति का विकासात्मक (Evolutionary) या ऐतिहासिक (Historical) सिद्धांत राज्य को मानव संस्थाओं की तरह ऐतिहासिक विकास का परिणाम मानता है।
- राज्य की उत्पत्ति के ऐतिहासिक सिद्धांत के अंतर्गत आर.एम. मैकाइवर के विचार उदारवादी दृष्टिकोण का सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व करते हैं।
- फ्रेडरिक एंजेल्स के विचार राज्य की ऐतिहासिक उत्पत्ति के संदर्भ में मार्क्सवादी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उदारवादी दृष्टिकोण-
- हेनरी मेन, बैजहॉट तथा मैकाइवर आदि प्रमुख राजनीतिक विचारक हैं, जिन्होंने उदारवादी दृष्टिकोण के माध्यम से ‘राज्य के विकासात्मक सिद्धांत’ की व्याख्या की है।
- हेनरी मेन ने वस्तुत: पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के आधार पर राज्य के विकास की व्याख्या की है। इनके अनुसार, राज्य परिवार का वृहत् रूप है, ऐसे परिवार का जिसमें पिता की प्रधानता थीा। अन्य विचारकों में गार्नर, सिजविक, डुग्बी, हिचनर तथा हरबोल्ट आदि भी पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण का अनुसरण करते हैं। अरस्तू पितृसत्तात्मक-दृष्टिकोण के प्रवर्तक माने जाते हैं।
- हेनरी मेन के अनुसार, ‘‘पितृसत्तात्मक सिद्धांत वह सिद्धांत है जो समाज का आरंभ ऐसे पृथक परिवारों से मानता है जो सबसे अधिक आयु वाले पुरुष वंशज के नियंत्रण तथा छत्रछाया में एक साथ रहते हैं।’’
- हेनरी मेन ने अपनी पुस्तक ‘एंशिएंट लॉ : इट्स कनेक्शन विद द अर्ली हिस्ट्री ऑफ सोसाइटी एंड इट्स रिलेशन टू मॉरल आइडियाज़’ में रोमन न्यायशास्त्र के विकास को ध्यान में रखते हुए यूरोप में प्रचलित कानून और न्याय की संकल्पनाओं के आरंभिक इतिहास का विवरण दिया है।
- मैकाइवर मूलत: बहुलवादी (Pluralist) विचारक हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आधुनिक राज्य, मनुष्यों के परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य स्थापित करने के साधन के रूप में विकसित हुआ।’’
- मैकाइवर के राज्य संबंधी विचारों का उल्लेख उसकी पुस्तक ‘द मॉडर्न स्टेट (1926)’ में मिलता है।
- ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर मैकाइवर ने आधुनिक राज्य के विकास के पाँच चरणों की पहचान की है-
1. स्वजन समूह (Kinship)
2. संपत्ति (Property)
3. रीति-रिवाज़ (Custom)
4. शक्ति (Power)
5. नागरिकता (Citizenship) - मैकाइवर के ऐतिहासिक सिद्धांत से यह प्रकट होता है कि राज्य की उत्पत्ति सामुदायिक प्रणाली (Community System) से हुई है जिसमें राज्य, परिवार, धार्मिक संस्थाओं तथा अन्य नए साहचर्यों के विकास की संभावनाएँ विद्यमान थीं।
- राज्य की उत्पत्ति तब होती है जब राजनीतिक संगठन अन्य सामाजिक संगठनों से पृथक् अस्तित्त्व स्थापित कर लेता है और समुदाय का नियंत्रण एक ही जगह स्थापित होता है।.
- राज्य का कार्य है कि वह समस्त साहचर्यों के पृथक्-पृथक् या परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य स्थापित करता है।
- राज्य मनुष्य की अनन्य निष्ठा का अधिकारी नहीं है। मैकाइवर ने ‘सेवाधर्मी राज्य’ (Service State) का समर्थन किया है।
- मैकाइवर के विचार समकालीन ‘उदारवादी-बहुलवादी विचारधारा’ की पुष्टि करते हैं।
मार्क्सवादी दृष्टिकोण
- एंजेल्स ने अपनी पुस्तक, ‘द ओरिजिन ऑफ द फैमिली, प्राइवेट प्रॉपर्टी एंड द स्टेट’ (1884) में राज्य की उत्पत्ति संबंधी विचार प्रस्तुत किये हैं।
- मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति न तो किसी नैतिक उद्देश्य की सिद्धि के लिये हुई है, न मनुष्यों की इच्छापूर्ति के लिये। यह न तो उच्च विवेक को व्यक्त करती है और न ही उच्च इच्छा को।
- मार्क्सवाद मानता है कि राज्य एक ऐसी संस्था है जो एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के दमन और शोषण के लिये स्थापित की गई है।
- राज्य का अस्तित्व अनंतकाल से नहीं है। ऐसे समाज भी रहे हैं, जिनमें राज्य नहीं था, जिनमें राज्य या सार्वजनिक शक्ति की कोई कल्पना ही नहीं थी। आर्थिक विकास के क्रम में एक ऐसी अवस्था आई जब समाज अनिवार्यत: दो वर्गों में विभक्त हो गया और इस विभाजन का अनिवार्य परिणाम ‘राज्य’ के रूप में सामने आया।
- अर्थात् वर्ग-विभाजन तथा वर्ग-संघर्ष को राज्य की उत्पत्ति का अनिवार्य कारण माना।
- एंजेल्स ने ‘राज्य की उत्पत्ति’ से पूर्व के युग को ‘आदिम-साम्यवाद’ कहा और उसके तीन रूप बताए-
1. जंगली अवस्था (Savagery)
2. बर्बर अवस्था (Barbarism)
3. संक्रमणकालीन अवस्था (Transitional Stage) - एंजेल्स के अनुसार, ‘‘राजनीतिक शक्ति वस्तुत: आर्थिक शक्ति की सेविका है।’’
- लेनिन ने अपनी पुस्तक ‘द स्टेट एंड रिवोल्यूशन’ (1917) के अंतर्गत पुष्टि की है कि राज्य की उत्पत्ति तब होती है जब वर्ग-संघर्ष को शांत करना मुश्किल हो जाता है।
- एंजेल्स के अनुसार, जब राज्य की उत्पत्ति होती है, तब समाज में 4 महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिलते हैं-
1. निश्चित क्षेत्रों में प्रजा का विभाजन
2. सार्वजनिक रूप से शक्ति की स्थापना
3. कर आरोपित करने तथा सार्वजनिक ऋण का अधिकार
4. अधिकारीतंत्र की विशेष-स्थिति - मार्क्सवादी सिद्धांत के अनुसार, राज्य के ऐतिहासिक विकास की पाँच अवस्थाएँ हैं- 1. आदिम साम्यवादी अवस्था, 2. दास-प्रथा अवस्था, 3. सामंतवादी अवस्था, 4. पूंजीवादी अवस्था, 5. समाजवादी अवस्था।
- अंत में राज्य लुप्त हो जाता है। इसी अवस्था को ‘साम्यवाद’ कहा जाता है।>
सामाजिक अनुबंध की अवधारणा
- सामाजिक अनुबंध की अवधारणा उदारवादी विचारकों द्वारा प्रस्तुत की गई। ये विचारक राज्य को ऐसी संस्था मानते हैं जिसे सब मनुष्यों या उनके समूहों ने मिलकर अपने हित और लाभ के लिये बनाया है।
- यह सिद्धांत राज्य के यंत्रीय सिद्धांत (Mechanistic Theory of State) की तरह ही है।
- इस सिद्धांत के प्रमुख प्रवर्तक थॉमस हॉब्स, जॉन लॉक तथा रूसो आदि हैं।
- हॉब्स का दृष्टिकोण
- अपनी पुस्तक ‘लेवायथन’ (Leviathan) में हॉब्स ने सामाजिक-अनुबंध की संकल्पना पेश की।
- हॉब्स के अनुसार, मनुष्य स्वभाव से स्वार्थी तथा निर्मम है।
- मानव समाज की प्राकृतिक दशा में अत्यंत ही भयपूर्ण-अव्यवस्था थी जिससे मुक्ति के लिये प्राकृतिक कानूनों से ‘राज्य’ या ‘कॉमनवेल्थ’ की स्थापना की प्रेरणा मिलती है।
- इस संकल्पना के द्वारा ही वे प्रभुसत्ताधारी (The Sovereign) की स्थापना करते हैं।
- अर्थात्, अव्यवस्था से मुक्ति तथा शांति की स्थापना के लिये मनुष्यों की इच्छा या सहमति से राज्य अस्तित्व में आता है।
- हॉब्स ने प्रभुसत्ताधारी को असीमित शक्तियाँ देकर ‘पूर्णसत्तावाद’ को बढ़ावा दिया है।
- लॉक का दृष्टिकोण
- लॉक ने अपनी पुस्तक ‘टू ट्रीटिज़ेस ऑफ गवर्नमेंट’ में सामाजिक अनुबंध की संकल्पना पेश की।
- लॉक के अनुसार, मनुष्य स्वभाव से विवेकशील प्राणी होता है।
- लॉक ने प्राकृतिक अवस्था को भी शांति, सद्भावना, परस्पर सहायता तथा रक्षा की अवस्था माना है। किंतु सत्ता के अभाव में ‘न्याय’ की असुविधा उत्पन्न होती है, जिससे मुक्ति के लिये मनुष्य ‘नागरिक-समाज’ की स्थापना करते हैं।
- प्राकृतिक दशा में मनुष्य को जीवन, स्वतंत्रता तथा संपत्ति का अधिकार हासिल होता है; इनकी सुरक्षा के लिये ही समाज की स्थापना करते हैं।
- सरकार की स्थापना एक ‘न्यास’ या ‘ट्रस्ट’ के रूप में की जाती है।
- लॉक के अनुसार, सरकार की स्थापना के लिये सहमति (Consent) की आवश्यकता होती है।
- लॉक ने ‘क्रांति के अधिकार’ को मान्यता दी है।
- लॉक ने सीमित प्रभुसत्ताधारी की संकल्पना पेश की है।
- रूसो का दृष्टिकोण
- रूसो ने अपनी पुस्तक ‘डिस्कोर्स ऑन द ओरिजिन ऑफ इनिक्वैलिटी’ तथा ‘द सोशल कॉन्ट्रैक्ट’ में सामाजिक अनुबंध की संकल्पना पेश की है।
- रूसो के अनुसार, मानव का स्वभाव सरल है तथा प्राकृतिक अवस्था सुख-शांतिपूर्ण है और व्यक्ति प्राकृतिक स्वतंत्रता में जीवन व्यतीत करता है।
- अभाव की स्थिति पैदा होने पर व्यक्तियों ने ऐसे नागरिक समाज की स्थापना की जिसमें श्रम द्वारा अर्जित संपत्ति की सुरक्षा की जा सके।
- सभी मनुष्य अपनी-अपनी प्राकृतिक स्वतंत्रता का त्याग करके पूरे समुदाय को सारे अधिकार सौंप देते हैं, जहाँ उन्हें ‘नागरिक-स्वतंत्रता’ प्राप्त होती है।
- रूसो ने ‘लोकप्रिय-संप्रभुता’ (Popular Sovereignty) की संकल्पना पेश की, जहाँ विरोध का अधिकार निरर्थक होगा।
- हॉब्स का दृष्टिकोण
राज्य की दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत
- यह सिद्धांत राज्य की शक्ति के दैवीय आधार की पुष्टि करता है।
- राजतंत्र के युग में यूरोपीय परंपरा के अंतर्गत राजा के अधिकारों को दैवीय अधिकारों के रूप में व्यक्त किया गया।
- मध्य-युग में राजतंत्र तथा चर्च के मध्य उभरे विवाद में राजतंत्र के समर्थकों ने तर्क दिया कि राजा को अपनी शक्ति ईश्वर से प्राप्त होती है, चर्च के माध्यम से नहीं, अत: राजा चर्च के अधीन नहीं है।
- रॉबर्ट फिल़्मर ने अपनी पुस्तक ‘पेट्रियार्का’ (1680) में स्पष्ट किया कि ईश्वर ने आदम को पहला मनुष्य ही नहीं बनाया, वह धरती का पहला राजा भी था, तथा वर्तमान राजा उसी के उत्तराधिकारी हैं।
- इंग्लैंड के राजा जेम्स-I ने स्वयं के निरंकुश शासन के औचित्य को सिद्ध करने के लिये कहा, ‘‘राजा पृथ्वी पर स्वयं ईश्वर का अंश है।’’
- इस सिद्धांत के कारण राजा के निर्णयों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता था।
- इसके कारण राजा के खिलाफ विद्रोह करना ईशनिंदा के बराबर था।
- इस सिद्धांत के आलोचक तर्क देते हैं कि इसे असहमति को दबाने और यथास्थिति बनाए रखने के उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
- भारतीय परंपरा के अंतर्गत महाभारत के शांति-पर्व में, मनुस्मृति में तथा कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में राजा की दैवीय उत्पत्ति के सिद्धांत का विस्तृत विवरण मिलता है।
- प्राचीन चीनी दर्शन भी इसी सिद्धांत की पुष्टि करते हैं।
- कई संस्कृतियों में इस सिद्धांत ने धार्मिक संस्थानों और राज्य के बीच घनिष्ठ संबंध को बढ़ावा दिया।
राज्य के निर्माण के तत्त्व (Constituents of the State)
- जनसंख्या
- राज्य का सर्वप्रथम तथा अनिवार्य तत्त्व है। राज्य मनुष्यों का ही एक संगठन है। व्यक्तियों से ही मिलकर राज्य का निर्माण होता है।
- राज्य का अस्तित्व मानव तत्त्व के अस्तित्व पर ही आश्रित है। मानव राज्य की आधारशिला है। अत: राज्य के निर्माण के लिये जनसंख्या का होना नितांत आवश्यक है।
- भू-भाग
- निश्चित-भू-भाग राज्य का दूसरा आवश्यक तत्त्व है। भू-भाग के अभाव में मनुष्यों द्वारा व्यवस्थित जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता।
- ब्लंशली के अनुसार, ‘‘जैसे राज्य का वैयक्तिक आधार जनता है, उसी प्रकार उसका भौतिक आधार प्रदेश है। जनता उस समय तक राज्य का रूप धारण नहीं कर सकती, जब तक उसका कोई निश्चित प्रदेश न हो।’’
- उल्लेखनीय है कि राज्य के आवश्यक तत्त्व के रूप में निश्चित भू-भाग से अभिप्राय केवल भू-क्षेत्र से ही नहीं है अपितु इसके अंतर्गत उस प्रदेश में स्थित पर्वत, पठार, नदियाँ, सरोवर, झीलें, खनिज पदार्थ, समुद्र तटों से 12 मील तक का समुद्र तथा राज्य की सीमा के अंतर्गत आने वाला वायुमंडल इत्यादि सम्मिलित हैं।
- राज्य का क्षेत्र कितना होना चाहिये, इस संबंध में विद्वानों में मतभेद है। प्लेटो, अरस्तू, रूसो आदि छोटे राज्यों के पक्षधर हैं।
- वर्तमान में राज्य का कम क्षेत्र होना हानिकारक समझा जाता है। क्योंकि कम क्षेत्र वाले राज्य आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से आत्मनिर्भर नहीं हो सकते हैं। आधुनिक युग में संघवाद की व्यवस्था के कारण बड़े राज्यों की स्थापना को बल मिला है।
- निश्चित-भू-भाग राज्य का दूसरा आवश्यक तत्त्व है। भू-भाग के अभाव में मनुष्यों द्वारा व्यवस्थित जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता।
- सरकार
- सरकार राज्य का संगठनात्मक तत्त्व है। किसी भू-भाग के निवासी तब तक राज्य का स्वरूप धारण नहीं कर सकते जब तक कि उनका एक राजनीतिक संगठन न हो। यह राजनीतिक संगठन सरकार है जो राज्य के लक्ष्यों तथा नीतियों को क्रियान्वित करता है।
- सरकार राज्य का वह अभिन्न अंग है, जिसके द्वारा राज्य उन उद्देश्यों की पूर्ति करता है जिनके लिये उसका गठन हुआ है।
- यह वह एजेंसी है जिसके माध्यम से राज्य के संकल्प निर्धारित होते हैं और उसकी अपनी सरकार ही व्यवस्था स्थापित करती है। विधियों का पालन करवाने के लिये पुलिस या अन्य प्रकार की व्यवस्था व बल का प्रयोग भी सरकार ही करती है। इस प्रकार सरकार राज्य का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्माणक तत्त्व है।
- संप्रभुता
- संप्रभुता राज्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण निर्माणक तत्त्व है। संप्रभुता राज्य के प्राण हैं। इसके अभाव में राज्य अस्तित्व में नहीं आ सकता।
- किसी निश्चित प्रदेश में रहने वाले सरकार-संपन्न लोग भी उस समय तक राज्य का निर्माण नहीं कर सकते, जब तक कि इनके अधिकार में संप्रभुता न हो।
- राज्य की संप्रभुता से अभिप्राय है कि राज्य अपने क्षेत्र में स्थित सभी व्यक्तियों तथा समुदायों को आज्ञा प्रदान कर सके, इन आज्ञाओं का पालन करा सके तथा बाहरी नियंत्रण से पूरी तरह मुक्त हो।
- दूसरे शब्दों में, संप्रभुता राज्य द्वारा अपने हितों को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्र निर्णय लिये जाने की क्षमता है।
- ध्यातव्य है कि कोई राज्य दूसरे राज्यों के साथ मधुर संबंध स्थापित करते समय यदि स्वयं पर कुछ प्रतिबंध स्वीकार करता है, तो इसे संप्रभुता का हनन नहीं माना जाएगा।
- मैक्स वेबर के अनुसार, ‘‘किसी संगठन को राजनीतिक संगठन तभी तक और वहीं तक मानना चाहिये जब तक और जहाँ तक किसी निश्चित भूभाग के अंतर्गत उसके आदेशों का निरंतर पालन होता हो और उनका पालन कराने के लिये प्रशासनिक अधिकारी-तंत्र ठोस शक्ति का प्रयोग करे या ऐसा करने का डर दिखाए।’’
- हैरॉल्ड लासवेल के अनुसार, ‘‘राजनीति-विज्ञान में यह पता लगाते हैं कि शक्ति या सत्ता किस-किस रूप में पाई जाती है और उसका प्रयोग कौन-कौन, किस-किस के साथ मिलकर करता है’’
- एलन बॉल ने ‘मॉडर्न पॉलिटिक्स एंड गवर्नमेंट’ में लिखा है- ‘‘राजनीतिक गतिविधि से मतभेदों की उपस्थिति और उन मतभेदों के समाधान के प्रयास का संकेत मिलता है। राजनीतिक स्थिति का सार-तत्त्व संघर्ष और उस संघर्ष का समाधान है।’’
- स्टीफऩ एल. वास्बी ने ‘पॉलिटिकल साइंस-द डिसीप्लिन एंड इट्स डायमेंशन्स : एन इंट्रोडक्शन’ (1970) के अंतर्गत लिखा है- ‘‘जहाँ राजनीति है, वहाँ कोई-न-कोई विवाद रहता है; जहाँ कोई-न-कोई समस्या होती है, वहाँ राजनीति होती है। जहाँ कोई विवाद नहीं होता, जहाँ किन्हीं समस्याओं पर वाद-विवाद नहीं चल रहा होता, वहाँ राजनीति भी नहीं होती।’’
- जे.डी.बी. मिलर ने ‘द नेचर ऑफ पॉलिटिक्स’ (1962) में स्पष्ट किया था कि राजनीतिक स्थिति के अंतर्गत समस्याओं के समाधान के लिये सरकार या सत्ता का प्रयोग कया जाता है।
- ऑटो वॉन बिस्मार्क ने ‘राजनीति को संभाव्य की कला’ (Politics is the art of the possible) कहा है।
- डेविड ईस्टन ने ‘द पॉलिटिकल सिस्टम : एन इंक्वायरी इनटू द स्टेट ऑफ पॉलिटिकल साइंस’ (1953) में लिखा है कि राजनीति का संबंध समाज में ‘मूल्यों’ के आधिकारिक आवंटन से है।